पुस्तक प्रकाशन की योजना तो काफी पहले से बनती आ रही थी लेकिन कुछ न कुछ समस्या आ ही जाती थी। सबसे बडी समस्या आती थी पैसों की। मैंने कई लेखकों से सुना था कि पुस्तक प्रकाशन में लगभग 25000 रुपये तक खर्च हो जाते हैं और अगर कोई नया-नवेला है यानी पहली पुस्तक प्रकाशित करा रहा है तो प्रकाशक उसे कुछ भी रॉयल्टी नहीं देते। मैंने कईयों से पूछा कि अगर ऐसा है तो आपने क्यों छपवाई? तो उत्तर मिलता कि केवल इस तसल्ली के लिये कि हमारी भी एक पुस्तक है।
फिर दिसम्बर 2015 में इस बारे में नई चीज पता चली- सेल्फ पब्लिकेशन। इसके बारे में और खोजबीन की तो पता चला कि यहां पुस्तक प्रकाशित हो सकती है। इसमें पुस्तक प्रकाशन का सारा नियन्त्रण लेखक का होता है। कई कम्पनियों के बारे में पता चला। सभी के अलग-अलग रेट थे। सबसे सस्ते रेट थे एजूक्रियेशन के- 10000 रुपये। दो चैप्टर सैम्पल भेज दिये और अगले ही दिन उन्होंने एप्रूव कर दिया कि आप अच्छा लिखते हो, अब पूरी पुस्तक भेजो। मैंने इनका सबसे सस्ता प्लान लिया था। इसमें एडिटिंग शामिल नहीं थी।
अब बात आई पुस्तक में पेज और शब्द कितने होने चाहिये। मैंने कुछ पुस्तकें देखीं तो अन्दाजा लगाया कि कम से कम 150 पेज तो होने ही चाहिये। 150 पेज का अर्थ था कि लगभग 50000 शब्द हों। उधर मेरी चादर ट्रैक और जांस्कर ट्रैक दोनों यात्राओं के 25000 के आसपास शब्द ही बन रहे थे। ये वे शब्द थे, जो ब्लॉग में प्रकाशित हुए हैं। दोनों को एक जगह चैप्टर-वाइज इकट्ठा कर लिया और तब हिसाब लगाया कि किस चैप्टर में कितने शब्दों के और शामिल होने की सम्भावना है। फिर प्रत्येक चैप्टर में और मैटीरियल जोडना शुरू किया और आखिरकार कुल मिलाकर लगभग 55000 शब्द हो गये। इसमें 15 से भी ज्यादा दिन लग गये और यह वाकई बेहद थकाऊ कार्य था। इस दौरान ब्लॉग पर कोई गतिविधि नहीं हुई।
जनवरी के पहले ही सप्ताह में स्पीति जाने से पहले मैंने उन्हें यह मैन्यूस्क्रिप्ट भेज दी। सब ऑनलाइन। जब मैं सांगला में था तो मैसेज आया कि मेरी भेजी मैन्यूस्क्रिप्ट में बहुत ज्यादा त्रुटियां हैं। इसलिये उन्होंने एडिटिंग कराने का सुझाव दिया। एडिटिंग का अर्थ था कि लगभग 8000 रुपये का और खर्च। लेकिन मैंने एडिटिंग से मना कर दिया और त्रुटियों के कुछ सैम्पल मंगा लिये। कुछ त्रुटियां वास्तव में थीं और कुछ वास्तव में त्रुटियां नहीं थीं। जैसे कि मैं ‘हूं’ लिखता हूं, उन्होंने कहा कि यह ‘हूँ’ है। मैं ब्लॉग में कभी भी चन्द्रबिन्दु (ँ) का इस्तेमाल नहीं करता। कभी भी ‘ड़’, ‘ढ़’ का प्रयोग नहीं करता। इस पर उन्होंने विशेष ध्यान दिलाया। अब फिर से 55000 शब्दों को एक-एक करके खंगालना शुरू किया। मुझे तो यह भी नहीं पता कि चन्द्रबिन्दु का इस्तेमाल कहां होता है और ड़, ढ़ का कहां? उनके दिये सैम्पल से ही काफी अन्दाजा लगाया। सबसे ज्यादा समस्या आई ‘ज’ और ‘ज़’ में। फिर भी कुछ शब्दों में सन्देह रहा तो इंटरनेट पर ढूंढे। लेकिन यहां तो दोनों ही तरह के शब्दों की भरमार थी। ‘कहां’ भी खूब प्रयोग हो रहा था और ‘कहाँ’ भी। फिर आखिरकार स्वयं एडिटिंग पूरी करके मैन्यूस्क्रिप्ट दोबारा भेज दी और साथ ही कह भी दिया कि अब और एडिटिंग नहीं हो सकती। जो भी जैसा भी है, उसे वैसा ही प्रकाशित कर दीजिये। उन्होंने ‘ड’, ‘ड़’, और चन्द्रबिन्दु पर शिकायत की लेकिन मैंने कई उदाहरण देकर मामले को शान्त कर दिया। 8000 रुपये बच गये। हालांकि इसके बावजूद उन्होंने भी एडिटिंग की। वे इस काम के प्रोफेशनल लोग होते हैं, इसलिये भाव से ज्यादा शब्द पर ध्यान देते हैं, व्याकरण पर ध्यान देते हैं। इसलिये कई जगह मेरे लिखे शब्दों में परिवर्तन भी किया। जैसे कि ‘मचैल’ का ‘मचौल’। आखिर में हालांकि एप्रूव भी मैंने ही किया लेकिन 55000 शब्द बार-बार थोडे ही पढे जाते हैं? इसलिये एकाध जगह इस तरह की मामूली सी त्रुटि भी है। फिर कई जगह उन्होंने पैराग्राफ बढा दिये। मैंने एक पैरा बनाया, उन्होंने दो-तीन पैरा कर दिये। इससे कई जगह उस एक पैरा के फ्लो पर असर पडा है। यानी इसके अगले संस्करण में मुझे ये सब परिवर्तन कराने पडेंगे।
हम हिन्दी का झण्डा उठाकर चलने वाले लोग हैं। लेकिन इन नन्हीं-नन्हीं चीजों से हिन्दी निखरती है या नहीं, यह तो नहीं पता लेकिन लिखने में बोझिल अवश्य होने लगती है।
कुछ दिन बाद उन्होंने बताया कि पुस्तक की फॉरमैटिंग हो गई है। अब ‘पुस्तक के बारे में’, ‘लेखक के बारे में’, ‘आभार’ और ‘भूमिका’ लिखकर भेज दो। शुरू की तीन चीजें तो आसानी से हो गईं लेकिन भूमिका की समस्या आ पडी। याद आये तरुण गोयल। सैम्पल पुस्तक उन्हें भेजी और भूमिका लिखने को कहा। उन्होंने फटाक से फेसबुक पर ही भूमिका लिखकर भेज दी।
इसके बाद फ्रण्ट कवर और बैक कवर की डिजाइनिंग शुरू हुई। जल्द ही मेरे पास इनके भी सैम्पल आये और मामूली से करेक्शन के बाद मैंने इन्हें भी एप्रूव कर दिया।
पुस्तक लगभग तैयार थी। अब उन्होंने इसकी कीमत के बारे में बताया और पृष्ठ संख्या को देखते हुए व बहुत सारे और भी तथ्यों को देखते हुए सुझाव दिया कि पुस्तक की एमआरपी 240 रुपये रखो और बिक्री मूल्य 180 रुपये रखो। हालांकि कीमत का निर्धारण करना भी मेरे ही हाथ में था, तो मैंने इसकी कीमत थोडी सी बढा दी। एमआरपी 299 रुपये कर दी और बिक्री मूल्य 240 रुपये कर दिया। ऐसा करने से प्रकाशक को तो ज्यादा लाभ नहीं होगा लेकिन मुझे प्रति पुस्तक 50 रुपये ज्यादा मिलेंगे। जो कोई 180 रुपये में इसे खरीदेगा, वो 240 में भी खरीद लेगा। हां, मुझे रॉयल्टी शत प्रतिशत मिलेगी। यानी प्रकाशक पुस्तक की बिक्री में से अपना खर्च काटकर बाकी पैसे मुझे दे देगा। शत प्रतिशत रॉयल्टी देने वाले प्रकाशक बेहद दुर्लभ हैं। मैंने सुना है कि परम्परागत प्रकाशन में शुरू में तो कुछ भी रॉयल्टी नहीं मिलती और कई पुस्तकें छप जाने पर दस प्रतिशत भी रॉयल्टी मिल जाये तो गनीमत है।
आखिर में कुछ ‘टर्म्स एण्ड कण्डीशन्स’ पर साइन हुए। उन्होंने मुझे एक पीडीएफ फाइल भेज दी, मैंने प्रिण्ट आउट निकालकर उस पर साइन करके फोटो खींचकर वापस उन्हें ईमेल कर दिया।
इस सारी प्रक्रिया में लगभग चार महीने लगे। इस समय को और भी कम किया जा सकता था। कई बार किसी करेक्शन में मैंने ज्यादा समय लगाया।
पिछले दिनों जब मैंने अमेजन पर अनुराधा बेनीवाल की ‘आजादी मेरा ब्राण्ड’ ऑर्डर की तो तीसरे दिन सन्देश आया कि आज यह पुस्तक हमारे यहां पहुंच जायेगी। दोपहर को जैसे ही दरवाजे की घण्टी बजी तो मैंने निशा को यह कहकर भेजा कि अनुराधा की पुस्तक आ गई। लेकिन वह काफी बडा पैकेट लेकर लौटी। मेरे आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। मैंने तो अनुराधा की एक ही पुस्तक मंगाई थी, इस बडे पैकेट में क्या है? कहीं उसने किसी और का ऑर्डर गलती से हमें तो नहीं दे दिया? लेकिन जैसे ही इसके ऊपर छपे अक्षरों पर निगाह गई तो हम दोनों खुशी से झूम उठे। यह ‘लद्दाख में पैदल यात्राएं’ थी।
बाकी सब ठीक था, लेकिन एक चीज ने थोडा निराश किया। मैंने कुछ फोटो भी भेजे थे। मेरी इच्छा रंगीन फोटो लगवाने की थी, लेकिन प्रकाशक ने समझाया कि आजकल पुस्तकों में श्वेत-श्याम फोटो ही अच्छे लगते हैं। इसलिये मैंने उन्हें अपने सर्वश्रेष्ठ फोटो में से कुछ फोटो स्वयं श्वेत-श्याम करके भेजे। उन्होंने जो मुझे सैम्पल कॉपी ईमेल पर दिखाई थी, उसमें सब अच्छा था लेकिन पुस्तक में फोटो की प्रिंटिंग उतनी अच्छी नहीं है। फोटो थोडे गहरे हो गये हैं।
नीरज जी प्रथम पुस्तक छपवाने पर आपको हार्दिक शुभकामनाये | मै चाहता हु की ये पुस्तक खूब प्रसिद्धि पाए |
ReplyDeleteधन्यवाद रीतेश जी...
DeleteWow neeraj you have achieved one more milestone
ReplyDeletePahli pushtak ke prakashan par bahut badhai neeraj,
ReplyDeleteधन्यवाद सर जी...
Deleteप्रकाशन पूर्व कथा जब इतना अच्छा है,,तो पुस्तक अच्छू ही होगी।
ReplyDeleteवैसे आप बहुत सरल लिखते है,,,जो बहुत ही खास बात है,,,यह हर किसी को समझ में आ जाती है।
अब किताब पढने के बाद ही इसकी समीक्षा करूँगा की आपके इस पुस्तक में क्या अनोखा है,,क्या दिलचस्प लगा।
कुछ ब्लॉग पढा हुँ,,।
पर देखता हुँ आपके किताब का न० कब आता है।
पुस्तक के लिए बहुत-बहुत बधाई
धन्यवाद गौतम जी... आपकी समीक्षा की प्रतीक्षा रहेगी...
DeleteBahut bahut mubarakbaad. Ishwar aise hi safalta deta rahe
ReplyDeleteधन्यवाद चोपडा साहब...
Deleteजाट बहुत बहुत बधाई है मेरे दोस्त :)
ReplyDeleteअब रिव्यू भी करवाना लोगों से। ऐसा भी लिख दो पोस्ट में की जो पढ़े, वो रिव्यू बेधड़क मेल में, कमेंट में भेज दे।
धन्यवाद भाई... करूंगा ऐसा भी...
Deleteबधाई हो
ReplyDeleteधन्यवाद आदित्य जी...
Deleteआप जैसा ब्लाॅग मे लिखे है बहुत ही आत्मीय लगता है।हम अपने अनुभव से यह कह सकता हूं कि पाठक को यह पुस्तक आपने अन्दर समा लेगा ।
ReplyDeleteएक बात पूछना चाहता हू कि मै वर्तमान मे असम के सूदूर क्षेत्र मे रहता हू उर मै एक पुस्तक का ऑडर दे चुका हूं।bookscanel.com से डीलिवरी के बारे कोई ट्रैकिंग इत्यादि का विकल्प नही दे रखा है शायद। कोरियर की सेवा शायद नही होगी । तो बिक्रेता भारतीय डाक द्वारा भेजता है या कोई अन्य साधन।
वे लोग कैसे भेजते हैं, मुझे इसके बारे में नहीं पता... शायद भारतीय डाक से ही भेजेंगे। इतना सुदूर में क्या पता कोरियर सेवा हो या न हो...
Deleteएक और चीज ।
ReplyDeleteयह लेख एक बार फिर लेखक और पाठक का सबंध गहरा कर दिया ।आपकी यह स्पष्ट वादी नजरिया की, जितना प्रशंसा की जाए कम होगा।
धन्यवाद कपिल जी...
Deleteऔर अगर कोई १००-१०० के दो नोट ना दे ! उसकी पुस्तक उधार हो तो ?
ReplyDeleteअरे भाई, इतना हिसाब किताब नी करा करते...
Deleteबधाई हो नीरज जी
Deleteवैसे तो आर्डर करके भी मंगवा सकता हूँ. लेकिन सोच रहा हूँ कि किसी दिन आपके पास सौ सौ के नॉट लेकर जाऊं और आपके हाथों से ले लूँ . इसी बहाने मिल भी लूँगा. बस आप बता दीजिये की आपको कब वक़्त मिलता है घर पर.
ReplyDeleteमैं तो ज्यादातर समय घर पर ही रहता हूं... ऑफिस भी घर की बगल में है... आप किसी भी दिन आ जाइये... आपका स्वागत है...
Deleteनीरज पुस्तक के प्रकाशित होने पर बधाई,याद होगा मैंने तो पहले भी कहा पुस्तक के छपवाने के बारे मे, बहुत अच्छा ला 😊
ReplyDeleteहां जी, याद है मुझे। आपका बहुत बहुत धन्यवाद।
DeleteBahut bahut badhai Neeraj, dil khush ho gaya.
ReplyDeleteWishing you lot more success in future.
धन्यवाद सर जी...
Deleteबहुत अच्छा नीरज जी। बधाई और शुभकामनाए तो है ही। यह पड़ाव एक बहुत थकाऊ और उबाऊ वाला पड़ाव था। आप ने इस पुस्तक के प्रकाशन के बारे मे जो अनुभव लिखे है वह सचमुच मे समझने और उसमे होने वाली कठिनाइयो से निपटने का रास्ता दिखाता है । मुझे तो लगता है की यह पोस्ट भी इस पुस्तक के शुरुआत मे कहीं स्थान पाने लायक है। अब साहित्य कार मित्रो को चाहिए की इस पुस्तक की समीक्षा लिखे और अपने से जुड़े ब्लॉग या पत्रिका या समाचार पत्र मे प्रकाशित करावे । हाँ अगले पुस्तक के प्रकाशन मे यदि आप समय न दे पाये तो मेरे विचार से एक रास्ता यह भी है की एडिटिंग या सम्पादन मे किसी योग्य मित्र का सहयोग ले और उनका नाम पुस्तक के संपादक मे रखते हुये और लेखक मे तो खैर आप है ही तथा और उन्हे उसकी ज़िम्मेदारी देकर फ्री हो जाइए और बिना रुकावट आप अपने घूमने का अपना प्रोग्राम जारी रखें । पुनः शुभकामनायें ।
ReplyDeleteधन्यवाद सर जी... आपकी बताई बात को अगली बार ध्यान रखूंगा...
DeleteHi Neeraj,
ReplyDeleteCongratulations for your first book.
I'm following your blog since 6-7 years.
You are really amazing man with brave and true heart.
I hope you will be more successful.............in this new field.
धन्यवाद प्रशान्त जी...
Deletebahut bahut badhai
ReplyDeleteधन्यवाद विकास जी...
Deleteनीरज जी,
ReplyDeleteमैं इन दिनों बैंक के वार्षिक खाताबंदी के कार्य में व्यस्त होने के कारण मेल चेक नही कर पाया था. आज ही आपके किताब के बारे में आपका मेल पढा, आज ही अमेजान पर आडर बूक कर दिया तथा अब किताब का इंतजार कर रहा हूं. पढने के बाद फिर आपको लिखूंगा. बहुत-बहुत बधाई,
संतोष प्रसाद सिंह,
जयपुर.
नीरज जी.
ReplyDeleteप्रथम पुस्तक के प्रकाशन पर ढेरो बधाइयाँ |
आपका ब्लॉग पढता रहता हूँ, जब कभी भी टाइम मिलता है .
आपकी किताब भी जरूर खरीदूंगा .
धन्यवाद.
शास्त्री पार्क सौ सौ के दो पकड़ाना ही बेस्ट है।
ReplyDeleteलेखकों के साथ चाय विरले ही पी पाते हैं
और लेखक जब घर का हो तो वो हो जाते हैं
ReplyDeleteक्या कहते हैं उन्हें, गूज़ बम्प्स!
ढेरों बधाई भाई
ढेरों बधाई
pustak parkashan ki bahut badhai u hi saflta ki sidiya chadte raho .
ReplyDeleteराम राम जी जाट राम जी, आपको नव पुस्तक के प्रकाशन पर बहुत बहुत बधाई, नीरज जी यदि आपको याद हो मैंने आपको कई साल पहले सुझाव दिया था की आप अपने अनुभव को पुस्तक के रूप में प्रकाशित करे. बहुत ख़ुशी हुई आपकी पुस्तक के बारे में पढ़कर, amazon पर आर्डर दे चुका हूँ, दो चार दिन में आ ही जायेगी. निश्चय ही आप बधाई के पात्र हैं. धन्यवाद, वन्देमातरम...
ReplyDeleteहार्दिक अभिनन्दन नीरज जी!!!! :) बहुत अच्छा लगा| मै खरिदूँगा|
ReplyDeleteबधाई नीरज भाई।
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteआपको बधाई.....!! ये पुस्तक लद्दाख के यात्रीयों के लिये मील का पत्थर साबित होगी।
NEERAJ JI APKI BOOK KE BARE MEIN JANKAR ACCHA LAGA APKA SHASTRI PARK KA PURA ADRESS TO LIKHO
ReplyDeleteAAPKO BAHUT BAHUT BADHAI.
ReplyDeleteNeeraj sir aapke sath ghumne ka dil to karta hai lekin paise aur paristhiti aisi nahi hai ki main ye iccha poori kar saku man main ye sochkar rah jata hoon ki neeraj sir ke sath live hi ghoom raha hoon jab aapka blogs padhta hoon
ReplyDeleteNeeraj sir congratulations
ReplyDeleteशुभकामनाएं नीरज सर
ReplyDeleteMr.Neeraj,heartiest congratulation for publishing very first book. Today I am sending order for purchasing the book to Amazon
ReplyDeleteNeeraj Bhai .....Bahut Bahut Congratulation.....Pehli book ke publish hone par.....Ab intzar hai agli book ka....
ReplyDeleteबधाई। यदि आप चाहें तो अगली पुस्तक की एडिटिंग में मैं भी आपकी सहायता कर सकता हूँ। आपका कुछ समय बच जाएगा, और छपने से पहले पुस्तक पढ़ पाने का मुझे आनंद। अगली बार दिल्ली आने पर आपके हाथों ही पुस्तक लेने की कोशिश करूँगा।
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई नीरज जी एक और उपलब्धि के लिए । आपकी पुस्तक निसंदेह बहुत पसंद की जाएगी...मेरी शुभकामनाएं ।
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई नीरज जी
ReplyDeleteमुझे कल दोपहर को आपका पुस्तक मिला ।
ReplyDeleteजितना खुशी आपको अपनी इस पुस्तक को छपवा मिली होगी उससे कही ज्यादा खुशी मुझे यह पुस्तक को पाकर हो रहा है ।मुझे लग रहा है कि मैने अभी तक बहुत सी किताबे पढी है पर यह उनमे से अद्वितीय है।यह किताब अपने मे इस कदर समा देती है। ऐसा बोध होता है कि यह फर्क करना मुश्किल होने लगता है मै पाठक हू या लेखक। अर्थात लेखक और पाठक के बीच कोई फासला ही नही रहता है । एक अजब सी खुशी मिलती है इस किताब से ।
बहुत बहुत बधाई हो!
ReplyDeletewww.travelwithrd.com
बहुत बहुत शुभकामनाएं नीरज जी
ReplyDeleteCongratulations.... I have read all your blogs... All the best for your initiatives...
ReplyDeleteRegards,
Alok Kumar Jauhari
aap ki book online flipcart se mili h.ABHI READING CHALU H.
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