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हल्दीघाटी एक ऐसा नाम है जिसको सुनते ही इतिहास याद आ जाता है। हल्दीघाटी के बारे में हम तीसरी चौथी कक्षा से ही पढना शुरू कर देते हैं: रण बीच चौकडी भर-भर कर, चेतक बन गया निराला था। राणा प्रताप के घोडे से, पड गया हवा का पाला था।
हल्दीघाटी एक ऐसा नाम है जिसको सुनते ही इतिहास याद आ जाता है। हल्दीघाटी के बारे में हम तीसरी चौथी कक्षा से ही पढना शुरू कर देते हैं: रण बीच चौकडी भर-भर कर, चेतक बन गया निराला था। राणा प्रताप के घोडे से, पड गया हवा का पाला था।
18 अगस्त 2010 को जब मैं मेवाड (उदयपुर) गया तो मेरा पहला ठिकाना नाथद्वारा था। उसके बाद हल्दीघाटी। पता चला कि नाथद्वारा से कोई साधन नहीं मिलेगा सिवाय टम्पू के। एक टम्पू वाले से पूछा तो उसने बताया कि तीन सौ रुपये लूंगा आने-जाने के। हालांकि यहां से हल्दीघाटी लगभग पच्चीस किलोमीटर दूर है इसलिये तीन सौ रुपये मुझे ज्यादा नहीं लगे। फिर भी मैंने कहा कि यार पच्चीस किलोमीटर ही तो है, तीन सौ तो बहुत ज्यादा हैं। बोला कि पच्चीस किलोमीटर दूर तो हल्दीघाटी का जीरो माइल है, पूरी घाटी तो और भी कम से कम पांच किलोमीटर आगे तक है। चलो, ढाई सौ दे देना। ढाई सौ में दोनों राजी।
यह सारा इलाका पहाडी है। राजसमन्द जिले में पडता है। खमनोर गांव आते ही बोला कि उस समय यह गांव यहां नहीं था। यही से हल्दीघाटी का इलाका शुरू हो जाता है। यहां मिट्टी का रंग हल्दी जैसा पीला है। कहीं कहीं पर पीलापन और लालपन बहुत ज्यादा है।
कहा जाता है कि हल्दीघाटी में जहां-जहां भी मुगलों और मेवाडियों की मुठभेड हुई, वहां इतना खून बहा कि मिट्टी ही लाल हो गयी।
हल्दीघाटी नाम का कोई गांव नहीं है। यह एक पहाडी घाटी है। इसी नाम का एक दर्रा भी है। यह काफी बडे भूभाग में फैली है। पूरी घाटी पार करने के बाद हल्दीघाटी संग्रहालय आता है। इसे एक किले की शक्ल में बनाया गया है।
यहां का मुख्य आकर्षण यह संग्रहालय ही है। तीस रुपये का टिकट लेना पडता है। कैमरे का चार्ज अलग से देना होता है। इसमें युद्ध का सजीव वर्णन है।
मुगलों की सेना में हाथियों की संख्या ज्यादा थी और चेतक को हाथियों के बीच रहकर युद्ध करना पडता था। अतः हाथियों को भ्रमित करने के लिये चेतक के मुंह पर हाथी की सूंड की तरह दिखने वाला बनावटी मास्क लगाया गया। मुगल सेनापति एक राजपूत मानसिंह था। वह एक हाथी के हौदे में बैठकर युद्ध कर रहा था। एक मौके पर जैसे ही चेतक ने ऊंची छलांग लगाकर हाथी के सिर पर पैर रखे तो महाराणा प्रताप ने मानसिंह पर भाले से वार किया। मानसिंह हौदे में छुप गया और भाले से बच गया। लेकिन हाथी की सूंड में बंधी तलवार के चेतक का एक पैर बुरी तरह घायल हो गया।
अब झालामान की बारी थी। उसने महाराणा प्रताप को संकट में घिरा देखकर जबरदस्ती उनका मुकुट अपने सिर पर रख लिया और युद्ध करने लगा। मुगलों ने सोचा कि वो रहा प्रताप और पिल पडे झालामान पर। इतने में प्रताप सुरक्षित निकल गये। घायल चेतक ने अपने स्वामी को एक नाला पार कराते समय दम तोड दिया।
अब संग्रहालय की कुछ झलकियां:
यह कुम्भलगढ किले का नमूना है।
मेवाड में प्रसिद्ध मन्दिरों के मॉडल
हल्दीघाटी में गुलाब की खेती जमकर होती है। यहां गुलाब उत्पाद उच्च कोटि के होते हैं।
संग्रहालय से कुछ दूर चेतक स्मारक
चेतक स्मारक
प्रताप गुफा। इसी गुफा में बैठकर प्रताप युद्ध की रणनीति बनाया करते थे।
हल्दीघाटी दर्रा। टम्पू वाले ने साथ जाने से मना कर दिया नहीं तो मैं जाकर देखता कि यह रास्ता जाता कहां है।
हल्दी घाटी दर्रा।
हल्दीघाटी के कुछ और चित्र।
और यह है अपनी सवारी। वापस आते समय टम्पू वाले ने पूछा कि सवारियां बैठा लूं क्या। बैठा ले भाई, मुझे कोई दिक्कत नहीं है। खमनोर से उसने सवारियां बैठा ली।
हल्दीघाटी का युद्ध अकबर के सेनापति मानसिंह और राणा प्रताप के बीच 18 जून 1576 को हुआ था। इसमें प्रताप की हार हुई थी। लेकिन आज भी मेवाडी इसे हार नहीं मानते। वे इसे बराबरी वाला युद्ध मानते हैं क्योंकि एक तो राणा प्रताप बच गये थे और दूसरे मेवाड फिर भी अकबर के अधीन नहीं हुआ।
अगला भाग: उदयपुर - मोती मगरी और सहेलियों की बाड़ी
उदयपुर यात्रा
1. नाथद्वारा
2. हल्दीघाटी- जहां इतिहास जीवित है
3. उदयपुर- मोती मगरी और सहेलियों की बाडी
4. उदयपुर- पिछौला झील
हल्दी घाटी के बारे में सुंदर पाठ है।
ReplyDeleteहल्दी घाटी को आपने जीवंत कर दिया भाई !
ReplyDeleteमैं जब गया था ,इतना नहीं देख पाया था ,संग्रहालय तो जा ही नहीं पाया !
मुझे तो वह केवल उजाड़ सी घाटी लगी थी ...
हल्दीघाटी युद्ध का सजीव वर्णन। आनन्द आ गया।
ReplyDeleteबडे गज़ब की पोस्ट रही आज की। महाराणा प्रताप, और चेतक की प्रसिद्ध हल्दीघाटी को कौन भारतीय नहीं देखना चाहता। राज्य और केन्द्र सरकार और स्थानीय प्रशासन को हल्दीघाटी की यात्रा सुलभ कराने के प्रयास करने चाहिये। जानकारी और चित्रोंके लिये धन्यवाद!
ReplyDeleteसुन्दर वर्णन एवं फोटू. मुगलों ने भी राजपूत को ही राजपूत से लडवाया. वहां के लोगों में मानसिंह के बारे में क्या विचार हैं.
ReplyDeleteबहुत दिनों से इस पोस्ट की इंतजार थी। महाराणा प्रताप की हल्दी घाटी युद्ध में हार नहीं हुई थी, क्योंकि प्रताप को मुगल सैनिक पकड़ नही पाए थे। हल्दी घाटी युद्ध के बाद प्रताप ने वापस अपना सैन्यबल एकत्र किया और दिवेर युद्ध किया जिसमें अकबर द्वारा स्थापित 84 थानों को प्रताप ने जीता और उसके बाद चावण्ड को अपनी राजधानी बनाकर 10 वर्षों तक प्रताप ने राज किया।
ReplyDeleteपढ़ कर अच्छा लगा।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया वर्णन किया है नीरज ! अगली यात्रा के लिए शुभकामनायें !
ReplyDeleteनीरज जी
ReplyDeleteभारतीय इतिहास से जुड़े इस स्थल के बारे में आपकी यात्रा वाकई अविस्मर्णीय रही होगी......!!!!! तस्वीरों वाला ये यात्रा वृतांत हमें बहुत अच्छा-ज्ञानवर्धक लगा.आभार...
25किमी के लिये 300 ज्यादा नहीं लगे, फिर कम क्यों करवाये जी?
ReplyDeleteटैम्पो वाला साथ नहीं चला आपको भी कहीं जाने के लिये साथ की जरूरत होती है क्या
दूसरी सवारियों को बैठाया था उस कमाई को 250में से कुछ कम करना चाहिये था
प्रणाम
हल्दी घाटी के बारे में पहली बार इतनी तस्वीरें और जानकारी पायी है।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद
भाई मैं तो रास्तों वाले फोटू पे ही अटका रह गया.... मजा आ गया भाई :)
ReplyDeleteबहुत अच्छा से आपने वर्णन किया है हल्दीघाटी का :)
बहुत बढ़िया
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी पोस्ट .ऐतिहासिक स्थल देखने का बहुत चस्का है मुझे. पर हल्दीघाटी आजतक नहीं जा पाई .आपने बहुत ही कुशलता से दिखा दिया .आभार.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया. ऐसा लगा जैसे संग्रहालय के भीतर के कुछ और चित्र होने चाहिए.
ReplyDeleteachchi jaankari di aapne!
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteयार भटकती आत्मा, मैं इस घाटी से कम से कम आठ या नौ बार तो निकला ही हूं आज तक पर इतनी सुंदर नही लगी जितनी तेरे कैमरे से. इसके लिए घणा सारा धन्यवाद लेले.
ReplyDeleteभारतीयों के लिये महाराणा प्रताप एक आदर्श और प्रेरक व्यक्तित्व है. तस्वीरे देखकर और आलेख पढकर तो ऐसा लगने लगा है कि अभी तलवार उठा कर दुश्मनों का काम तमाम कर दूं.
रामराम.
यह हल्दी घाटी है,जिसके नाम से एक त्वरा उठती है,एक हुक बरबस ह्रदय को मसोस डालती है
ReplyDeleteकालेज के दिनों में हल्दी घाटी देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था आज आपने जीवंत देखकर यादें ताजा करा दी |
हल्दी घाटी देखने की तमन्ना है. यह तीर्थ है .आपने मेरी उत्सुक्ता और बडा दी २०११ में जरूर जाउंगा .
ReplyDeleteकुंभलगढ़ को देखने के लिए इस घाटी के पन्द्रह किमी पहले ही दूसरे रास्ते की ओर मुड़ना पड़ा। बहुत बढ़िया जानकारी दी है आपने।
ReplyDeleteभाई नीरज, छा गये हो। हल्दीघाटी का नाम ही सुना था अब तक, देखने का क्रेज जरूर था लेकिन मौका नहीं लगा। आज तुमने उस पवित्र भूमि के दर्शन करवा दिये, आभारी हैं तुम्हारे।
ReplyDeleteहल्दी घाटी का रोचक और जीवंत विवरण यहाँ पढ़े चेतक की जुबान से |
ReplyDeleteचेतक की समाधि से-1 |
चेतक की समाधि से -2 |
सुन्दर चित्र ....
ReplyDeleteशूरवीरों की धरती है हल्दी घाटी...!
हल्दी घाटी के सुन्दर वर्णन के लिये धन्यवाद। शुभकामनायें।
ReplyDeleteभाई गज़ब कर दिया इब की बार...राजस्थान घूम आये...जैपर, अजमेर, चित्तोड, उदैपुर, जोधपुर की सिर कब कराओगे?
ReplyDeleteनीरज
नीरज जी ..क्या कहूँ आपकी इस पोस्ट के बारे में...आप खुद तो मुसाफिर हो ..और इस पोस्ट के माध्यम से मुझे भी घुमाकर मुसाफिर बना दिया ...कमाल कर दिया आपने ...बहुत बहुत आभार ...मुझे दर्शन करवाने के लिए ...शुक्रिया
ReplyDeleteइतने सजीव वर्णन के लिए धन्यवाद .
ReplyDeleteबचपन से चेतक के बारे मं पढ़ा था ,यह जानकार अच्छा लगा कि चेतक के नाम का स्मारक भी है .
Nice to see Haldighati. I had visited Salarjung museum in Hyderabad few years back. It has one BHALA (lance) used by Maharana Pratap. The details of Bhala says "Weight: 100 kgs".
ReplyDeleteAnd Maharana used to pick it up in one hand and throw at targets. Can anybody think about his physical strength? I can not at least.
Vishal Dixit (Retired wanderer)
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर वृतान्त. फ़ोटो बहुत ही अच्छे हैं.
ReplyDeleteThank For Detail Of This Great Palace .
ReplyDeleteSo. Nice,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
jay ho ranaji ki
ReplyDeleteहल्दी घटी हमने इतनी नहीं देखि जितनी आपने दिखाई, चेतक की समाधी और संग्रहालय देखने गए थे मगर गुफा नहीं देखि थी.
ReplyDeleteहल्दी घटी हमने इतनी नहीं देखि जितनी आपने दिखाई, चेतक की समाधी और संग्रहालय देखने गए थे मगर गुफा नहीं देखि थी.
ReplyDeleteहल्दी घटी हमने इतनी नहीं देखि जितनी आपने दिखाई, चेतक की समाधी और संग्रहालय देखने गए थे मगर गुफा नहीं देखि थी.
ReplyDeleteहल्दीघाटी दर्रा नही गए बस
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