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Uttarakhand

उत्तराखंड

पोस्ट सं.पोस्टप्रकाशन दिनांक
54केदारकंठा ट्रैक (अक्टूबर 2020)19 नवंबर, 2020
53उत्तराखंड की जन्नत है खिर्सू20 नवंबर, 2019
52बीनू कुकरेती का The Jayalgarh Resort19 नवंबर, 2019
51ग्राम आनंद: खेतों के बीच गाँव का वास्तविक आनंद15 नवंबर, 2019
50ग्रुप यात्रा: चकराता, लोखंडी, मोइला बुग्याल, लाखामंडल (सितंबर 2018)26 नवंबर, 2018
49बरसूडी घुमक्कड़ महोत्सव (सितंबर 2018)28 अक्टूबर, 2018
48ग्रुप यात्रा: धराली, सातताल, गंगोत्री, नेलांग (जून 2018)31 अगस्त, 2018
47धराली, सातताल, गंगोत्री (जून 2018)20 अगस्त, 2018
46चकराता, मोइला बुग्याल, बुधेर, लाखामंडल (जून 2018)6 अगस्त, 2018
45नेलांग घाटी, गरतांग गली (सितंबर 2017)15 जनवरी, 2018
44फूलों की घाटी, हेमकुंड साहिब (जुलाई 2017)9 अक्टूबर, 2017
43पंचचूली बेसकैंप यात्रा (धारचूला, नारायण आश्रम, मुन्स्यारी, पाताल भुवनेश्वर, जागेश्वर, अल्मोड़ा) (जून 2017)7 अगस्त, 2017
42कुमारहट्टी से जानकीचट्टी (त्यूणी, हनोल, पुरोला, जानकीचट्टी) (मई 2017)5 जून, 2017
41उत्तरकाशी, चौरंगीखाल, रैथल (अप्रैल 2017)4 मई, 2017
40बरसूड़ी - एक गढ़वाली गाँव (जनवरी 2017)16 फरवरी, 2017
39खिरसू, देवरिया ताल, चोपता, तुंगनाथ, चंद्रशिला (नवंबर 2016)9 नवंबर, 2016
38चंद्रबदनी, नचिकेता ताल (फरवरी 2016)29 जुलाई, 2016
37नागटिब्बा ट्रैक (जनवरी 2016)8 अप्रैल, 2016
36नागटिब्बा ट्रेक (दिसंबर 2015)14 जनवरी, 2016
35बद्रीनाथ यात्रा (सितंबर 2015)7 दिसंबर, 2015
34रुद्रनाथ ट्रैक (सितंबर 2015)25 नवंबर, 2015
33गैरसैंण, आदिबद्री यात्रा (सितंबर 2015)20 नवंबर, 2015
32दीप्ति के साथ पहला ट्रैक: डोडीताल ट्रैक (मार्च-अप्रैल 2015)13 अप्रैल, 2015
31पहली मोटरसाइकिल यात्रा (ऋषिकेश, नीलकंठ, धनोल्टी, लाखामंडल, चकराता) (नवंबर 2014)26 जनवरी, 2015
30हर की दून की अधूरी यात्रा (अक्टूबर 2013)19 अक्टूबर, 2013
29ऋषिकेश से नीलकंठ साइकिल यात्रा (अक्टूबर 2012)8 नवंबर, 2012
28रूपकुंड ट्रैक (बेदिनी बुग्याल, आली बुग्याल) (अक्टूबर 2012)5 अक्टूबर, 2012
27गौमुख-तपोवन ट्रैक (जून 2012)16 जून, 2012
26पंचप्रयाग, औली, गोरसों बुग्याल, कल्पेश्वर (अप्रैल 2012)17 अप्रैल, 2012
25सातताल, नल दमयंती ताल, कार्बेट म्यूजियम, कार्बेट फाल (मार्च 2012)12 अप्रैल, 2012
24मसूरी, धनोल्टी, सुरकंडा देवी, सहस्त्रधारा (नवंबर 2011)30 नवंबर, 2011
23पिंडारी और कफनी ग्लेशियर ट्रैक (अक्टूबर 2011)21 अक्टूबर, 2011
22चकराता और कालसी यात्रा (जुलाई 2011)10 सितंबर, 2011
21केदारनाथ यात्रा (त्रियुगी नारायण, तुंगनाथ भी) (अप्रैल 2011)26 अप्रैल, 2011
20कुमाऊँ यात्रा (भागादेवली, कौसानी, बैजनाथ, रानीखेत, बिनसर महादेव) (फरवरी 2011)3 मार्च, 2011
19मदमहेश्वर यात्रा और देवरिया ताल (नवंबर 2010)20 दिसंबर, 2010
18यमुनोत्री यात्रा (अप्रैल 2010)3 मई, 2010
17पूर्णागिरी और नानकमत्ता यात्रा (फरवरी 2010)25 फरवरी, 2010
16देवप्रयाग और चंद्रबदनी यात्रा (सितंबर 2009)24 सितंबर, 2009
15बरसात में नीलकण्ठ के नजारे (जुलाई 2009)20 अगस्त, 2009
14लैंसडाउन यात्रा (जून 2009)2 जुलाई, 2009
13भीमताल, नौकुचियाला, नैनीताल यात्रा (मई 2009)1 जून, 2009
12हरिद्वर-ऋषिकेश की प्रशासनिक सच्चाई24 फरवरी, 2009
11देहरादून का इतिहास17 फरवरी, 2009
10हरिद्वार जाने का वैकल्पिक मार्ग15 फरवरी, 2009
9चले थे सहस्त्रधारा, पहुँच गये लच्छीवाला5 जनवरी, 2009
8मसूरी भ्रमण -126 दिसंबर, 2008
7रुडकी में चली थी भारत की पहली रेल25 दिसंबर, 2008
6चीला के जंगलों में23 दिसंबर, 2008
5राजाजी राष्ट्रीय पार्क में मोर्निंग वाक13 दिसंबर, 2008
4मुसाफिर जा पहुँचा कुमाऊँ में (भाग -1)27 नवंबर, 2008
3और पहुँच गये नैनीताल25 नवंबर, 2008
2नीलकंठ महादेव और झिलमिल गुफा, ऋषिकेश14 नवंबर, 2008
1हरिद्वार में गंगा आरती10 नवंबर, 2008

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46 रेलवे स्टेशन हैं दिल्ली में

एक बार मैं गोरखपुर से लखनऊ जा रहा था। ट्रेन थी वैशाली एक्सप्रेस, जनरल डिब्बा। जाहिर है कि ज्यादातर यात्री बिहारी ही थे। उतनी भीड नहीं थी, जितनी अक्सर होती है। मैं ऊपर वाली बर्थ पर बैठ गया। नीचे कुछ यात्री बैठे थे जो दिल्ली जा रहे थे। ये लोग मजदूर थे और दिल्ली एयरपोर्ट के आसपास काम करते थे। इनके साथ कुछ ऐसे भी थे, जो दिल्ली जाकर मजदूर कम्पनी में नये नये भर्ती होने वाले थे। तभी एक ने पूछा कि दिल्ली में कितने रेलवे स्टेशन हैं। दूसरे ने कहा कि एक। तीसरा बोला कि नहीं, तीन हैं, नई दिल्ली, पुरानी दिल्ली और निजामुद्दीन। तभी चौथे की आवाज आई कि सराय रोहिल्ला भी तो है। यह बात करीब चार साढे चार साल पुरानी है, उस समय आनन्द विहार की पहचान नहीं थी। आनन्द विहार टर्मिनल तो बाद में बना। उनकी गिनती किसी तरह पांच तक पहुंच गई। इस गिनती को मैं आगे बढा सकता था लेकिन आदतन चुप रहा।

जिम कार्बेट की हिंदी किताबें

इन पुस्तकों का परिचय यह है कि इन्हें जिम कार्बेट ने लिखा है। और जिम कार्बेट का परिचय देने की अक्ल मुझमें नहीं। उनकी तारीफ करने में मैं असमर्थ हूँ क्योंकि मुझे लगता है कि उनकी तारीफ करने में कहीं कोई भूल-चूक न हो जाए। जो भी शब्द उनके लिये प्रयुक्त करूंगा, वे अपर्याप्त होंगे। बस, यह समझ लीजिए कि लिखते समय वे आपके सामने अपना कलेजा निकालकर रख देते हैं। आप उनका लेखन नहीं, सीधे हृदय पढ़ते हैं। लेखन में तो भूल-चूक हो जाती है, हृदय में कोई भूल-चूक नहीं हो सकती। आप उनकी किताबें पढ़िए। कोई भी किताब। वे बचपन से ही जंगलों में रहे हैं। आदमी से ज्यादा जानवरों को जानते थे। उनकी भाषा-बोली समझते थे। कोई जानवर या पक्षी बोल रहा है तो क्या कह रहा है, चल रहा है तो क्या कह रहा है; वे सब समझते थे। वे नरभक्षी तेंदुए से आतंकित जंगल में खुले में एक पेड़ के नीचे सो जाते थे, क्योंकि उन्हें पता था कि इस पेड़ पर लंगूर हैं और जब तक लंगूर चुप रहेंगे, इसका अर्थ होगा कि तेंदुआ आसपास कहीं नहीं है। कभी वे जंगल में भैंसों के एक खुले बाड़े में भैंसों के बीच में ही सो जाते, कि अगर नरभक्षी आएगा तो भैंसे अपने-आप जगा देंगी।

स्टेशन से बस अड्डा कितना दूर है?

आज बात करते हैं कि विभिन्न शहरों में रेलवे स्टेशन और मुख्य बस अड्डे आपस में कितना कितना दूर हैं? आने जाने के साधन कौन कौन से हैं? वगैरा वगैरा। शुरू करते हैं भारत की राजधानी से ही। दिल्ली:- दिल्ली में तीन मुख्य बस अड्डे हैं यानी ISBT- महाराणा प्रताप (कश्मीरी गेट), आनंद विहार और सराय काले खां। कश्मीरी गेट पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन के पास है। आनंद विहार में रेलवे स्टेशन भी है लेकिन यहाँ पर एक्सप्रेस ट्रेनें नहीं रुकतीं। हालाँकि अब तो आनंद विहार रेलवे स्टेशन को टर्मिनल बनाया जा चुका है। मेट्रो भी पहुँच चुकी है। सराय काले खां बस अड्डे के बराबर में ही है हज़रत निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन। गाजियाबाद: - रेलवे स्टेशन से बस अड्डा तीन चार किलोमीटर दूर है। ऑटो वाले पांच रूपये लेते हैं।