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दिल्ली से गैरसैंण और गर्जिया देवी मन्दिर

   सितम्बर का महीना घुमक्कडी के लिहाज से सर्वोत्तम महीना होता है। आप हिमालय की ऊंचाईयों पर ट्रैकिंग करो या कहीं और जाओ; आपको सबकुछ ठीक ही मिलेगा। न मानसून का डर और न बर्फबारी का डर। कई दिनों पहले ही इसकी योजना बन गई कि बाइक से पांगी, लाहौल, स्पीति का चक्कर लगाकर आयेंगे। फिर ट्रैकिंग का मन किया तो मणिमहेश परिक्रमा और वहां से सुखडाली पास और फिर जालसू पास पार करके बैजनाथ आकर दिल्ली की बस पकड लेंगे। आखिरकार ट्रेकिंग का ही फाइनल हो गया और बैजनाथ से दिल्ली की हिमाचल परिवहन की वोल्वो बस में सीट भी आरक्षित कर दी।
   लेकिन उस यात्रा में एक समस्या ये आ गई कि परिक्रमा के दौरान हमें टेंट की जरुरत पडेगी क्योंकि मणिमहेश का यात्रा सीजन समाप्त हो चुका था। हम टेंट नहीं ले जाना चाहते थे। फिर कार्यक्रम बदलने लगा और बदलते-बदलते यहां तक पहुंच गया कि बाइक से चलते हैं और मणिमहेश की सीधे मार्ग से यात्रा करके पांगी और फिर रोहतांग से वापस आ जायेंगे। कभी विचार उठता कि मणिमहेश को अगले साल के लिये छोड देते हैं और इस बार पहले बाइक से पांगी चलते हैं, फिर लाहौल में नीलकण्ठ महादेव की ट्रैकिंग करेंगे और वापस रोहतांग से आ जायेंगे। इस यात्रा में ऊधमपुर के रहने वाले रोमेश शर्मा जी ने भी सहमति दे दी। दिल्ली का ही एक मित्र करण जादौन अपनी बुलेट पर साथ चलेगा और पठानकोट से हम रोमेश जी को ले लेंगे।

   लेकिन तभी मौसम खराब हो गया। इतना खराब हो गया कि हिमाचल की कई सडकें बन्द होने की खबरें आने लगीं। मुझे सबसे ज्यादा डर साचपास का था। हमारी यात्रा का उच्चतम बिन्दु वही था और वहां बर्फ पडने की उडती-उडती खबर भी मुझे मिली थी। रोमेश जी से बात हुई। उन्होंने बताया कि ऊधमपुर में भी बारिश से बुरा हाल है और अगले तीन दिन भारी बारिश होगी। इतना जानते हुए भी उस इलाके में यात्रा करना ठीक नहीं।
   जहां हिमाचल और जम्मू-कश्मीर में भारी बारिश हो रही थी, वही उत्तराखण्ड में बिल्कुल भी बारिश नहीं थी। अब इरादा बना उत्तराखण्ड जाने का। पूरे आठ दिन हमारे हाथ में थे। मैं बद्रीनाथ नहीं गया हूं, इसलिये बद्रीनाथ चलो। साथ में या तो सतोपंथ ताल की ट्रैकिंग करेंगे या फिर रुद्रनाथ की। दोनों ही ट्रैक तीन-तीन दिनों के हैं। साथ में ट्रैकिंग स्टिक भी ले लीं। 23 सितम्बर को दोपहर डेढ बजे मैं, निशा और करण दो बाइकों पर चल पडे।
   बद्रीनाथ जाने का सीधा मार्ग है हरिद्वार होते हुए। लेकिन मैं अगर हरिद्वार से जाऊंगा तो वापसी हरिद्वार से नहीं करूंगा, किसी अन्य मार्ग से आऊंगा। इसलिये क्यों न जाना अन्य मार्ग से कर लिया जाये। वापस हरिद्वार से आ जायेंगे। इसलिये कुमाऊं वाला रास्ता पकडा- रामनगर वाला।
   जब मैं और निशा गूगल मैप पर रास्ते की दूरियां देख रहे थे तो उसे काशीपुर के पास जसपुर दिखाई दिया। उसने तुरन्त कहा कि एक रात जसपुर रुकेंगे, वहां उसकी एक मित्र रहती है। मैंने तुरन्त सहमति दे दी क्योंकि दोपहर दिल्ली से चलकर रात होने तक रामनगर पहुंचते और रात रामनगर में रुकते। जसपुर ज्यादा दूर तो नहीं है, इसलिये रामनगर की बजाय जसपुर में ही रुक लेंगे। निशा ने अपनी मित्र को सूचित कर दिया। उन्होंने सलाह दी कि मुरादाबाद के रास्ते मत आना, लम्बा पडेगा बल्कि अमरोहा, कांठ, स्योहारा होते हुए आना। बताया कि सडक भी अच्छी है।
   तो जी, डेढ बजे दिल्ली शास्त्री पार्क से चल दिये। पुस्ता रोड होते हुए अक्षरधाम से बायें गाजियाबाद की तरफ मुड गये। मोहननगर के रास्ते इसलिये नहीं गये क्योंकि सीलमपुर-वेलकम के पास और दिलशाद गार्डन से गाजियाबाद तक मेट्रो का काम चल रहा है। सडक छोटी हो गई है और ट्रैफिक उतना ही है; लिहाजा जाम लग जाता है। अक्षरधाम के रास्ते गये, यहां ट्रैफिक तो मिला लेकिन सब चलता रहता है, जाम नहीं लगता। लालबत्ती भी कम ही हैं। एक घण्टे में लालकुआ पहुंच गये।
   सडक चार लेन की है। अच्छा ट्रैफिक है। हालांकि जितना हम आगे बढते गये, ट्रैफिक उतना ही कम होता गया। हापुड के बाद तो काफी कम हो गया। दिल्ली से हापुड तक सडक को छह लेन का कर देना चाहिये। बल्कि दिल्ली के चारों तरफ कम से कम सौ-सौ किलोमीटर तक छह लेन की सडकें तो होनी ही चाहिये। मेरठ रोड पर भी चार लेन के बावजूद भयंकर ट्रैफिक रहता है।
   गढमुक्तेश्वर में गंगा पार की और गजरौला जाकर रुके। अभी तक तीन घण्टे हो चुके थे और कुछ विश्राम करने का मन था। एक जगह लस्सी और पकौडियां ले लीं। करण अपने साथ आलू के परांठे लाया था। इन्हें निपटाकर जब चले तो पांच बज गये थे। अभी भी हमें काफी दूरी तय करनी थी और शीघ्र ही अन्धेरा हो जायेगा। अमरोहा का रास्ता वैसे तो जोया से अलग होता है लेकिन हम जोया से पहले ही अमरोहा की ओर मुड गये। निशा यहीं की रहने वाली है, इसलिये रास्तों की अच्छी परिचित है। अमरोहा में भीड ने बडा तंग किया। फिर भी निशा ने बताया कि आज तो कुछ भी भीड नहीं है, अन्यथा यहां इतनी भीड होती है कि चलना ही मुश्किल हो जाता। अमरोहा पार करते करते छह बज गये थे।
   यहां से कांठ और वहां से स्योहारा- अच्छी टू-लेन सडक है। कोई गड्ढा तक नहीं। अन्धेरा हो ही गया था। ट्रैफिक भी कम ही था, इसलिये सामने से आ रहे वाहनों से कोई दिक्कत नहीं हुई। फिर मैंने नाइट विजन चश्मा लगा रखा था। उससे भी काफी फायदा मिला। सात बजे हम स्योहारा में थे। गूगल बता रहा था कि यहां से जसपुर जाने के लिये हमें धामपुर के रास्ते जाना चाहिये जबकि जसपुर वाले बता रहे थे कि स्योहारा से सुरजन नगर के रास्ते आओ। हमने जसपुर वालों की बात मानी। बाद में अनुभव हुआ कि गूगल की बात मान लेनी चाहिये थी।
   स्योहारा से निकलकर जैसे जैसे रामगंगा के नजदीक आते गये, वैसे वैसे सडक खराब होती गई। सडक का काम चल रहा है, इसलिये करीब दस किलोमीटर तक कच्चा रास्ता और पत्थर बिखरे पडे थे। ऊपर से फिर निर्जन इलाका। यहां करण ने कहा- यूपी में दो तरह के खराब रास्ते होते हैं- एक तो ऐसे खराब और एक वैसे खराब। कोई और राज्य होता तो हमें अन्धेरे में सुनसान रास्ते पर चलने में कोई डर नहीं लगता लेकिन यहां हमें डर लगा। यूपी का होने के कारण यहां की कुछ बातों से मैं अच्छी तरह परिचित हूं।
   सुरजननगर से अच्छी सडक मिल गई जो आगे ठाकुरद्वारा जाती है। जब हमें कुछ सन्देह हुआ तो एक स्थानीय से जसपुर के रास्ते के बारे में पूछा। यहां से जसपुर 10-12 किलोमीटर ही है लेकिन यह रास्ता तो और भी ‘सदाबहार’ था। यह एक रजवाहे की पटरी पर बना था। दोनों तरफ झाड-झंगाड उगे थे और पूरा टूटा-फूटा रास्ता। फिर कुछ ही देर पहले बारिश हुई थी तो रास्ते भर कीचड में चलना पडा। पता नहीं जसपुर वालों को यह रास्ता कैसे अच्छा लगा? जब जसपुर पहुंचे और धामपुर से आने वाली साफ-सुथरी चौडी सडक मिली तो स्वयं को बहुत कोसा कि यह मक्खन जैसी सडक छोडकर कीचड में घूमते फिर रहे हैं। स्योहारा से जसपुर तक 36 किलोमीटर तय करने में बिना रुके डेढ घण्टे लग गये।
   हां, सुरजन नगर से जसपुर के बीच में कहीं हम यूपी से उत्तराखण्ड में प्रवेश कर गये। जसपुर उत्तराखण्ड में है।
   दोनों सहेलियां खूब उत्साहपूर्वक मिलीं। वहां कोई मुझे नहीं जानता था और करण के तो जानने का सवाल ही नहीं। लेकिन जाते ही दो सब्जियों के साथ मशरूम की सब्जी भी मिली तो लगा कि इससे ज्यादा खातिरदारी नहीं हो सकती।

24 सितम्बर 2015, जसपुर से गैरसैंण
   सुबह साढे आठ बजे जसपुर से निकल लिये। जसपुर से पूर्व दिशा में काशीपुर है और वहां से उत्तर में रामनगर। लेकिन यहां हमें एक ऐसा रास्ता बता दिया गया जो सीधे रामनगर ही जाता है। रास्ता बहुत अच्छा है, मुझे बडा पसन्द आया। एक घण्टे में रामनगर पहुंच गये। यहां से पहाड शुरू हो जाते हैं। रामनगर से निकलते ही जिम कार्बेट का जंगल है और खूब होटल और जंगल सफारी वाले मिले। खूब पालतू हाथी भी थे जो जंगल में पर्यटकों को घुमाते होंगे। हम यहां बिना रुके निकल गये और सीधे रुके गर्जिया देवी मन्दिर पर।
   गर्जिया देवी मन्दिर कोसी नदी के किनारे बना है। इसकी स्थिति कुछ ऐसी है कि ऐसा लगता है जैसे यह नदी के बीचोंबीच एक द्वीप की तरह है। जबकि ऐसा नहीं है। यहां कोसी में एक नदी और आकर मिलती है। गर्जिया मन्दिर दोनों के संगम पर बना है। मन्दिर के बाहर श्रद्धालुओं की बडी भीड थी, लाइन लगी थी, हम अन्दर नहीं गये। बाहर नदी किनारे बैठे, कुछ फोटो खींचे और चल दिये।
   यहां से दस किलोमीटर आगे मोहान नामक स्थान है। पहले मैं सोचता था कि मोहान कोई गांव होगा। शायद यहां गांव भी हो लेकिन मुझे जंगल में एक तिराहे के अलावा कुछ नहीं दिखाई दिया। बायें सडक गढवाल जाती है और दाहिने रानीखेत। हम रानीखेत की तरफ चल दिये। मोहान के बाद सडक पतली हो जाती है। उत्तराखण्ड के पहाडों में मुख्य हाईवे पर भी ट्रैफिक नहीं मिलता, यहां तो क्या खाक मिलेगा? फिर भी कभी-कभार कोई बस आ जाती या जीप आ जाती। हिमाचल के ड्राइवर याद आ गये जो ऐसी पतली सडकों पर भी फर्राटे से गाडियां भगाते हैं। करसोग जाते समय हम ऐसी ही एक तेज रफ्तार बस के अचानक सामने आ जाने से खाई में गिरने से बाल-बाल बचे थे। जबकि यहां सब सावधानी से चलाते हैं।
   दोपहर को नींद आने ही लगती है। टोटाम के पास कुछ देर रुके। मुंह धोया, कुछ फोटो खींचे। हिन्दी में टोटाम लिखा पहली बार देखा। अभी तक अंग्रेजी में ही देखता था और इसे तोता आम पढता था। आज पता चला कि यह तोता आम नहीं बल्कि टोटाम है।
   हमें भिकियासैंण जाना था। भतरोजखान से एक रास्ता भिकियासैंण जाता है लेकिन उससे पहले भी एक दूसरा रास्ता वहां जाता है। यह दूसरा रास्ता कुछ छोटा भी था, हमने इसी से जाने का इरादा कर रखा था। जब हमारे अन्दाजे के अनुसार वो तिराहा आया तो हमने बाइक रोक दी। यह कोई गांव नहीं था, बस तिराहा ही था। एक यात्री शेड बना था, दो-चार यात्री बैठे थे। पता चला कि यह सडक भिकियासैंण नहीं जाती बल्कि इससे अगली जाती है। हम चलने ही वाले थे कि उस सडक से एक जीप आई। वो ड्राइवर नया रहा होगा। सामने जब उसने टी-पॉइण्ट देखा तो सोच रहा होगा कि दाहिने जाना है या बायें। इसी चक्कर में वो दाहिने-बायें देख रहा था। हम बीच में खडे थे। हमारा ध्यान नहीं दिया उसने। वो तो जीप की सवारियों ने शोर मचाया, अचानक तेज ब्रेक लगाये; फिर भी जीप फिसली और हमसे एक मीटर की दूरी पर रुक गई। हमने भी राहत की सांस ली, उन्होंने भी राहत की सांस ली... और सब हंस दिये।
   भिकियासैंण मोड पर कुछ ढाबे थे। भूख भी लगी थी और नींद भी आ रही थी। रुकना अनिवार्य था। मूली के परांठे मिल गये। यह भी कोई गांव नहीं था, बस एक तिराहा और कुछ ढाबे ही थे, बस। हिमालय में ऐसी जगहों पर रुककर कुछ खाने का आनन्द निराला ही होता है। फिर जंगल अगर चीड का हो तो क्या कहने!
   यहां से हमने यह सडक छोड दी। यह सीधी रानीखेत जा रही थी। हम भिकियासैंण की तरफ मुड गये। इस बीस किलोमीटर के रास्ते में हमें बस एक ट्रक मिला, बाकी कोई नहीं मिला। हां, रामगंगा नदी भी मिल गई जो आगे 40 किलोमीटर दूर चौखुटिया तक हमारे साथ ही रहेगी।
   तीन बजे भिकियासैंण पहुंचे और बिना रुके पार हो गये। बीस किलोमीटर आगे मासी है। मासी से चौखुटिया तक 15 किलोमीटर की सडक बेहद खराब थी। इसकी मरम्मत का काम चल रहा था और पूरे रास्ते भर पत्थर पडे थे। इसे तय करने में एक घण्टा लग गया और साथ ही आज ही कर्णप्रयाग पहुंचने की योजना पर भी पानी फिर गया।
   चौखुटिया रामगंगा के किनारे बसा है। यह एक बहुत चौडी घाटी है और रामगंगा यहां बेहद शान्ति से बहती है। किसी भी दृष्टि से यह पहाडी नदी नहीं लगती। इस घाटी में धान की खेती हो रही थी।
   चौखुटिया में रामगंगा पार करके गैरसैंण की चढाई आरम्भ हो जाती है। यहीं कहीं हम कुमाऊं छोडकर गढवाल में प्रवेश कर जाते हैं। चौखुटिया कुमाऊं के अल्मोडा जिले में है और गैरसैंण गढवाल के चमोली जिले में।
   गैरसैंण का नाम अगर आपने नहीं सुना तो अब सुन लीजिये। उत्तराखण्ड राज्य बनने के बाद से ही कुछ क्षेत्रीय पार्टियां देहरादून की बजाय गैरसैंण को राजधानी बनाने के लिये प्रयासरत और आन्दोलनरत हैं। अब ये तो मुझे नहीं पता कि इसकी असली वजह क्या है। लेकिन जहां तक मेरी अकल सोचती है, उसके अनुसार यह गढवाल-कुमाऊं की सीमा पर है और पर्वतीय नगर है। इसे प्रस्तावित करने वाले लोग गढवाल के रहे होंगे, तभी तो उन्होंने चौखुटिया की इतनी चौडी घाटी की बजाय पहाड पर ऊपर बसे गैरसैंण का नाम लिया। यानी राजधानी गढवाल में भी रहेगी और कुमाऊं वाले भी खुश हो जायेंगे।
   पौने सात बजे गैरसैंण पहुंचे। अन्धेरा हो चुका था। यह बडा ही छोटा सा कस्बा है। बल्कि यह तो गांव है। अच्छे-खासे देहरादून में बसी-बसाई राजधानी को छोडकर गैरसैंण में राजधानी बनाने की बात सिर्फ राजनीति मामले के अलावा और कुछ नहीं है। हम कमरा ढूंढते-ढूंढते गैरसैंण में घुसे और पता चला कि गैरसैंण तो पीछे गया। इतना छोटा सा है यह।
   खैर, मोलभाव करके 500 रुपये का एक कमरा मिला। नीचे रेस्टोरेण्ट में खाना खाने गये तो एक मजेदार वाकया हुआ। दाल थी और भिण्डी की सब्जी थी। इनके अलावा हमने अण्डा-भुजिया भी बनवा लिये। खाने बैठे तो आनन्द आ गया। यहां हमारे अलावा और कोई ग्राहक नहीं था, तो हम रेस्टोरेण्ट वाले से भी बातचीत करते जा रहे थे। जब खाना खत्म होने को आया तो बातों-बातों में मैंने पूछ लिया कि भाईजी, आप अपने घर पर जीरा उगाते हो क्या? बोला कि नहीं भाईजी, सब नीचे से आता है। मैंने कहा- तो जीरा थोडा कम डाला करो। आपने तो अण्डा भुजिया में भी जीरा डाल रखा है। इतना सुनते ही वो तुरन्त उठा और हमारे ऊपर वाला बल्ब बन्द कर दिया और बोला- भाईजी, यह जीरा नहीं था, बल्कि रात में कीट लाइट पर आ जाते हैं। मुझे यह ऊपर वाला बल्ब बन्द करना ध्यान नहीं रहा।
   हम तीनों एक-दूसरे का मुंह देखने लगे लेकिन तब तक तो खाना समाप्त हो चुका था। खूब हंसे।

गढमुक्तेश्वर में गंगा पार करके

करण 

जसपुर से रामनगर की सड़क 


गर्जिया देवी मंदिर 











भिकियासैण 

भिकियासैण से मासी की ओर और रामगंगा नदी 

मासी-चौखुटिया रोड 


रामगंगा पार करते हुए 

चौखुटिया बड़ी चौड़ी घाटी है.


गैरसैण में डिनर 
अगला भाग: गैरसैंण से गोपेश्वर और आदिबद्री


1. दिल्ली से गैरसैंण और गर्जिया देवी मन्दिर
2. गैरसैंण से गोपेश्वर और आदिबद्री
3. रुद्रनाथ यात्रा: गोपेश्वर से पुंग बुग्याल
4. रुद्रनाथ यात्रा- पुंग बुग्याल से पंचगंगा
5. रुद्रनाथ यात्रा- पंचगंगा-रुद्रनाथ-पंचगंगा
6. रुद्रनाथ यात्रा- पंचगंगा से अनुसुईया
7. अनुसुईया से जोशीमठ
8. बद्रीनाथ यात्रा
9. जोशीमठ-पौडी-कोटद्वार-दिल्ली




Comments

  1. वाह नीरज जी । आज आपके लेख में हास-परिहास भी है । आगे और आनंद आऐगा ।

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  2. वाह! और एक सुन्दर यात्रा का आनन्द मिलने जा रहा है!

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  3. jeere wala episode achcha laga..........ANURAG SHARMA.

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  4. bahut khub ....gairsen ko UK ki rajdhani ka plan kafi time se chal raha hai ....Gairsen Garhwal or kumaoun ka center hai

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    1. हाँ जी, केंद्र तो है लेकिन यह सांस्कृतिक से ज्यादा राजनीतिक मुद्दा है. अगर पहले ही गैरसैण राजधानी बन जाती तो विरोधी लोग किसी और शहर का नाम लेते...

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    2. Dehradun jesa banane mein 20 sal lagenge or approachable bhi nahi hai dehradun ki tarah

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  5. कीटभक्षी मनुष्य

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  6. अब जब भी आप लोग अंडे का भुजिया देखोगे या खाओगे तो जीरे का तड़का वाले बात याद आएगी और हंसी में ...

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    1. हहहहह इस बात पर बहुत हंसी आ रही है ! अंडा मे जीरा का तडका !

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  7. कोई कुछ भी कहे यात्रा नीरज भाई और भाभी जी के साथ हो( भले ही ब्लाग पर हो) तो मज़ा तो आ ही जाता है । जीरा जरा कम खाया करो........हा हा हा

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  8. अंडे के साथ किट का भि सेवन अब तो आप प्का
    मसाहरी हो गये

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    1. जीरे में... मतलब कीट में कौन सा मांस होता है????

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    2. Neeraj maza aa Gaya.....TOTAAM.....Tota-Aam.....jeera kam khya karo.....ha ha muze to blog pad kar he gumne ka Anand as gya. ....very good....

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  9. गैरसैण राजधानी के प्रस्ताव का मुख्य कारण ये है कि यहाँ पर उत्तराखंड सरकार के कई नेताओं ने मिटटी के भाव पर सेकड़ों नाली जमीन ले रखी है।तो जमीन का भाव बढाने के चक्कर से वहां राजधानी बनाना चाहते हैं और ये जगह आजकल वहां के मुख्यमंत्री के इलाके से भी बहुत नजदीक है

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    1. हाँ जी, एकदम ठीक कहा आपने... यह राजनीतिक मुद्दा है, सांस्कृतिक नहीं...धन्यवाद आपका....

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    2. rajdhani ka main mudha hai Garhwali vs Kumauani jese neta log hi tul dethe hai janta kush hai dehradun se

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  10. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (21-11-2015) को "हर शख़्स उमीदों का धुवां देख रहा है" (चर्चा-अंक 2167) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  11. नीरज भाई ,आपने मेरी समस्या का हल दे दिया |मैं भी गर्मियों की छुट्टीयों में परिवार के साथ पाताल भुवनेश्वेर जाने का प्लान बना रहा हूँ |मेरा गाँव गढ़ बुलंदशहर रोड पर है बरौली वासदेवपुर |मेरा रूट गाँव से गढ़मुक्तेश्वेर होते हुए राम नगर जाने का था ,पर दुविधा ये थी कि मुरादाबाद से रामनगर सड़क बहुत ख़राब है कोई दूसरा विकल्प समझ नहीं आ रहा था आपने मेरी दुविधा खत्म कर दी |मार्गदर्शन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद् |मैं गर्जिया देवी होते हुए ,सोनी बिनसर महादेव ,रानीखेत ,अल्मोड़ा,जगेश्वेर धाम ,पाताल भुवनेश्वेर|वापसी कैंची धाम, नैनीताल,कार्बेट फाल ,होते हुए आने की है क्या ये सही रहेगा |कृपया मार्ग दर्शन करें साभार |बाकी आपकी यात्रा में हम खुद को आपके साथ महसूस करते हैं |

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    1. हाँ जी, यह रुट बिल्कुल ठीक रहेगा। लेकिन मैंने सुना है कि मुरादाबाद-ठाकुरद्वारा रोड अच्छी बनी है।

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  12. नीरज जी राम राम, जीरे के बारे में पढ़ कर मज़ा आगया. जसपुर के लिए आप लोग वाया बिजनोर, नगीना, धामपुर होकर निकल सकते थे. हाइवे हैं, बढ़िया सड़क हैं..रही बात गैर सैन की सब राजनीति हैं, राजधानी बनेगी, ठेके छूटेंगे, पैसा बनेगा.....

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    1. धन्यवाद गुप्ता जी, आपने ठीक कहा।

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  13. नीरज जी हमे तो समय मिल नहीं पता लेकिन आपकी यात्राओं को पढ़ के ऐसा लगता है की हम भी आपके साथ घूम लिए है, बहुत ही रोचक और आनद्दयक है।

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  14. Jaldi Badrinath pahunche , wahan ke raste ki khoobsoorat tasveerien dekhne ko milegi.

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  15. जीरे वाली अंडे की भुजी... ओहोहो लाजवाब

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  16. Neeraj bhai 100 cc splendor kis unchai tak ja sakti hai?

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    1. 100 सीसी को कम मत समझिये। यह खारदुंगला तक भी जा सकती है।

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    2. 100 सीसी को कम मत समझिये। यह खारदुंगला तक भी जा सकती है।

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  17. Neeraj ji aapke blog main agle bhag main jari ka link kam nahin kar raha hai pls use thik karen blog padhne main dikkat ho rahi hai.

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    1. अभी मैं बाहर हूँ। मोबाइल से यह काम नहीं हो पाता। दिल्ली पहुंचकर करूँगा। धन्यवाद आपका।

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  18. Neeraj Ji is bar google maps nahi dale. photo ke akhir mein map diya kijiye acha lagta hai

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    1. हाँ जी। किसी कारण से गूगल मैप नहीं लगा सका। जल्दी ही आपको मैप भी मिलेंगे।

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  19. नीरज जी एक बात पूछना थी. ये जो आपके जंगल में हेल्मेट पहन के सोते हुए फोटो होते है तो क्या आप सचमुच नींद में सोए हुए होते हो ? मेरा मतलब है क्या इतने कम समय के लए ऐसी जगहों पर आपको नींद आ जाती है ?

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    1. सर जी, असल में हेलमेट पहन नहीं रखा बल्कि तकिया बना रखा है। अक्सर दोपहर को बाइक चलाते चलाते नींद आने लगती है तो इस तरह 5 मिनट सो लेना बड़ा काम का होता है। तो कई बार मैं सो जाता हूँ और कई बार केवल फ़ोटो के लिए ऐसा करता हूँ।

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  20. Neeraj bhai ..
    aap to bear gyrlls (Man vs wild) ban gaye...कीटभक्षी...

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  21. हा हा हा हा आमलेट तो नॉनवेज हो गया

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  22. हहहहहहाहा मजा आ गया नीरज जी!

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46 रेलवे स्टेशन हैं दिल्ली में

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इन पुस्तकों का परिचय यह है कि इन्हें जिम कार्बेट ने लिखा है। और जिम कार्बेट का परिचय देने की अक्ल मुझमें नहीं। उनकी तारीफ करने में मैं असमर्थ हूँ क्योंकि मुझे लगता है कि उनकी तारीफ करने में कहीं कोई भूल-चूक न हो जाए। जो भी शब्द उनके लिये प्रयुक्त करूंगा, वे अपर्याप्त होंगे। बस, यह समझ लीजिए कि लिखते समय वे आपके सामने अपना कलेजा निकालकर रख देते हैं। आप उनका लेखन नहीं, सीधे हृदय पढ़ते हैं। लेखन में तो भूल-चूक हो जाती है, हृदय में कोई भूल-चूक नहीं हो सकती। आप उनकी किताबें पढ़िए। कोई भी किताब। वे बचपन से ही जंगलों में रहे हैं। आदमी से ज्यादा जानवरों को जानते थे। उनकी भाषा-बोली समझते थे। कोई जानवर या पक्षी बोल रहा है तो क्या कह रहा है, चल रहा है तो क्या कह रहा है; वे सब समझते थे। वे नरभक्षी तेंदुए से आतंकित जंगल में खुले में एक पेड़ के नीचे सो जाते थे, क्योंकि उन्हें पता था कि इस पेड़ पर लंगूर हैं और जब तक लंगूर चुप रहेंगे, इसका अर्थ होगा कि तेंदुआ आसपास कहीं नहीं है। कभी वे जंगल में भैंसों के एक खुले बाड़े में भैंसों के बीच में ही सो जाते, कि अगर नरभक्षी आएगा तो भैंसे अपने-आप जगा देंगी।

ट्रेन में बाइक कैसे बुक करें?

अक्सर हमें ट्रेनों में बाइक की बुकिंग करने की आवश्यकता पड़ती है। इस बार मुझे भी पड़ी तो कुछ जानकारियाँ इंटरनेट के माध्यम से जुटायीं। पता चला कि टंकी एकदम खाली होनी चाहिये और बाइक पैक होनी चाहिये - अंग्रेजी में ‘गनी बैग’ कहते हैं और हिंदी में टाट। तो तमाम तरह की परेशानियों के बाद आज आख़िरकार मैं भी अपनी बाइक ट्रेन में बुक करने में सफल रहा। अपना अनुभव और जानकारी आपको भी शेयर कर रहा हूँ। हमारे सामने मुख्य परेशानी यही होती है कि हमें चीजों की जानकारी नहीं होती। ट्रेनों में दो तरह से बाइक बुक की जा सकती है: लगेज के तौर पर और पार्सल के तौर पर। पहले बात करते हैं लगेज के तौर पर बाइक बुक करने का क्या प्रोसीजर है। इसमें आपके पास ट्रेन का आरक्षित टिकट होना चाहिये। यदि आपने रेलवे काउंटर से टिकट लिया है, तब तो वेटिंग टिकट भी चल जायेगा। और अगर आपके पास ऑनलाइन टिकट है, तब या तो कन्फर्म टिकट होना चाहिये या आर.ए.सी.। यानी जब आप स्वयं यात्रा कर रहे हों, और बाइक भी उसी ट्रेन में ले जाना चाहते हों, तो आरक्षित टिकट तो होना ही चाहिये। इसके अलावा बाइक की आर.सी. व आपका कोई पहचान-पत्र भी ज़रूरी है। मतलब