Skip to main content

फोटो-यात्रा-16: एवरेस्ट बेस कैंप - थंगनाग से ज़ोंगला

इस यात्रा के फोटो आरंभ से देखने के लिये यहाँ क्लिक करें
26 मई 2016
आज का दिन हमारी इस यात्रा का सबसे मुश्किल दिन रहा। बर्फ़बारी के बीच ख़राब मौसम में 5320 मीटर ऊँचा चो-ला दर्रा पार करना आसान नहीं रहा। रही-सही कसर इसके उस तरफ ग्लेशियर ने पूरी कर दी।
“बर्फ़ होने के बावज़ूद भी हमें रास्ता मिल रहा था। कारण था कि ठीकठाक पगडंड़ी बनी थी। फिर हमसे एक-डेढ़ घंटे पहले पाँच लोग यहाँ से गुज़रे थे, तो उनके पैरों के निशान भी मिल रहे थे। ऐसा ही चलता रहा, तो उत्तम होगा। लेकिन यदि मामूली-सी बर्फ़ भी पड़ गयी, तो ये निशान मिट जायेंगे। क्या पता आगे दर्रे के पास कैसी पगडंड़ी हो? हो या न हो।”
“थोड़ी देर के लिये थोड़े-से बादल इधर-उधर हो गये और हमें सामने बिल्कुल सिर के लगभग ऊपर तीन चोटियाँ दिखायी पड़ीं। इनके बीच में दो दर्रों जैसी आकृतियाँ भी दिखीं। इनमें से एक चो-ला है। इसे देखना भर ही सिहरन पैदा कर रहा था। यह एक ‘रॉक-फ़ाल जोन’ था, जहाँ खड़े ढाल पर आपको ढीले पत्थरों पर चढ़ना होगा और कभी भी कोई भी पत्थर आपके चलने से या अपने-आप भी नीचे गिर सकता था। अभी तक हम बादलों की उपस्थिति को कोस रहे थे। अब खुश हुए कि बादल रहें, तो अच्छा हो। हमें यह ‘रॉक-फ़ाल जोन’ दूर तक नहीं दिखेगा और सिहरन व डर भी कम लगेगा। हमारा यह विचार ऊपर वाले से सुन लिया और अगले एक मिनट में फिर से सबकुछ ढक गया।”
“लेकिन अब एक नयी मुसीबत सामने आ गयी, जिसका सामना इस समय हम नहीं करना चाहते थे। यह एक ग्लेशियर था और झील ग्लेशियर के ऊपर ही बनी थी। ताज़ा बर्फ़बारी हो जाने से और घने बादल होने से चारों तरफ़ सबकुछ सफ़ेद ही दिख रहा था। हम दोनों की साँसें तब यकायक रुक गयीं, जब एक ‘क्रेवास’ पार किया।”





एवरेस्ट बेस कैंप ट्रैक पर आधारित मेरी किताब ‘हमसफ़र एवरेस्ट का एक अंश। किताब तो आपने पढ़ ही ली होगी, अब आज की यात्रा के फोटो देखिये:




चो-ला के रास्ते में 

थंगनाग... यहीं से हमने आज का ट्रैक आरंभ किया...

रात बर्फ़बारी हुई थी, इसलिए थंगनाग से ही हमें बर्फ़ में चलना पड़ा...





गोरक पक्षी

मानवरहित इलाके में आगे बढ़ते कदम...

मुझे ट्रैकिंग में बर्फ़ से कोई लगाव नहीं है... लेकिन एक बात माननी पड़ेगी... ताजी बर्फ़ खूबसूरत होती है...

और बर्फ़ की छत तोड़कर झाँकते नन्हें पौधे

इस तिनके पर जमी ‘आइस’ से आप हवा की रफ़्तार, दिशा और ठंडक का अनुमान लगा सकते हैं...







यह चो-ला नहीं है, बल्कि उससे कुछ पहले चो-ला का भ्रम कराता एक अन्य स्थान है


एकदम सामने दिख रहा है चो-ला दर्रा... जहाँ पहुँचने के लिए एकदम सीधी खड़ी चढ़ाई चढ़नी पड़ेगी...

वो रहा सामने चो-ला

कदम कदम बढ़ाये जा...


5300 मीटर की ऊँचाई पर चलना आसान नहीं होता... और बैठना तो कतई नहीं...

ज्यादातर हाई एल्टीट्यूड दर्रों के पास एकदम खड़ी दीवार होती है। चो-ला भी अपवाद नहीं है।

यहाँ से उन झंडियों के दिखने की जो खुशी हुई, उसे बयां नहीं किया जा सकता। झंडी मतलब चो-ला। मतलब चढ़ाई खत्म।

5320 मीटर ऊँचे चो-ला पर चढ़ते ही एकदम ढलान शुरू हो जाता है। और यह ढलान कहाँ तक है, कुछ नहीं पता।




चो-ला का जी.पी.एस. डाटा

यह है चो-ला। हम बायीं तरफ से आये थे और अब हमें दाहिनी तरफ जाना है।

चो-ला से नीचे उतरते ही ग्लेशियर शुरू हो जाता है।

इसी ग्लेशियर में स्थित है यह झील। इस समय यह ज्यादातर जमी हुई थी।


ग्लेशियर पर छोटे-छोटे क्रेवासों के बीच में

क्रेवासों से भरा ग्लेशियर... यकीन नहीं होता कि हमने इसे पार किया है...



बर्फ़ में ऐसा ढलान पार करने में साँस रुक जाती है।

बर्फ़ में नीलिमा दिख रही है।


और इस यात्रा का सबसे खतरनाक हिस्सा पार कर लिया...

ज़ोंगला में मेन्यू कार्ड














अगला भाग: फोटो-यात्रा-17: एवरेस्ट बेस कैंप - ज़ोंगला से गोरकक्षेप



1. फोटो-यात्रा-1: एवरेस्ट बेस कैंप - दिल्ली से नेपाल
2. फोटो-यात्रा-2: एवरेस्ट बेस कैंप - काठमांडू आगमन
3. फोटो-यात्रा-3: एवरेस्ट बेस कैंप - पशुपति दर्शन और आगे प्रस्थान
4. फोटो-यात्रा-4: एवरेस्ट बेस कैंप - दुम्जा से फाफलू
5. फोटो-यात्रा-5: एवरेस्ट बेस कैंप - फाफलू से ताकशिंदो-ला
6. फोटो-यात्रा-6: एवरेस्ट बेस कैंप - ताकशिंदो-ला से जुभिंग
7. फोटो-यात्रा-7: एवरेस्ट बेस कैंप - जुभिंग से बुपसा
8. फोटो-यात्रा-8: एवरेस्ट बेस कैंप - बुपसा से सुरके
9. फोटो-यात्रा-9: एवरेस्ट बेस कैंप - सुरके से फाकडिंग
10. फोटो-यात्रा-10: एवरेस्ट बेस कैंप - फाकडिंग से नामचे बाज़ार
11. फोटो-यात्रा-11: एवरेस्ट बेस कैंप - नामचे बाज़ार से डोले
12. फोटो-यात्रा-12: एवरेस्ट बेस कैंप - डोले से फंगा
13. फोटो-यात्रा-13: एवरेस्ट बेस कैंप - फंगा से गोक्यो
14. फोटो-यात्रा-14: गोक्यो और गोक्यो-री
15. फोटो-यात्रा-15: एवरेस्ट बेस कैंप - गोक्यो से थंगनाग
16. फोटो-यात्रा-16: एवरेस्ट बेस कैंप - थंगनाग से ज़ोंगला
17. फोटो-यात्रा-17: एवरेस्ट बेस कैंप - ज़ोंगला से गोरकक्षेप
18. फोटो-यात्रा-18: एवरेस्ट के चरणों में
19. फोटो-यात्रा-19: एवरेस्ट बेस कैंप - थुकला से नामचे बाज़ार
20. फोटो-यात्रा-20: एवरेस्ट बेस कैंप - नामचे बाज़ार से खारी-ला
21. फोटो-यात्रा-21: एवरेस्ट बेस कैंप - खारी-ला से ताकशिंदो-ला
22. फोटो-यात्रा-22: एवरेस्ट बेस कैंप - ताकशिंदो-ला से भारत
23. भारत प्रवेश के बाद: बॉर्डर से दिल्ली




Comments

  1. खतरनाक :O गज़ब भाई

    ReplyDelete
  2. तस्वीरें देख कर कुछ क्षण निःशब्द से हो गया था।
    साहसिक व रोमांचक यात्रा... शानदार तस्वीरें।

    ReplyDelete
  3. क्या कहूँ-नो शब्द। दीप्ति की हिम्मत को प्रणाम।

    ReplyDelete
  4. आप दोनो की हिम्मत और धैर्य को सलाम

    ReplyDelete
  5. फोटुओं ने तो निःशब्द कर दिया

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

स्टेशन से बस अड्डा कितना दूर है?

आज बात करते हैं कि विभिन्न शहरों में रेलवे स्टेशन और मुख्य बस अड्डे आपस में कितना कितना दूर हैं? आने जाने के साधन कौन कौन से हैं? वगैरा वगैरा। शुरू करते हैं भारत की राजधानी से ही। दिल्ली:- दिल्ली में तीन मुख्य बस अड्डे हैं यानी ISBT- महाराणा प्रताप (कश्मीरी गेट), आनंद विहार और सराय काले खां। कश्मीरी गेट पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन के पास है। आनंद विहार में रेलवे स्टेशन भी है लेकिन यहाँ पर एक्सप्रेस ट्रेनें नहीं रुकतीं। हालाँकि अब तो आनंद विहार रेलवे स्टेशन को टर्मिनल बनाया जा चुका है। मेट्रो भी पहुँच चुकी है। सराय काले खां बस अड्डे के बराबर में ही है हज़रत निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन। गाजियाबाद: - रेलवे स्टेशन से बस अड्डा तीन चार किलोमीटर दूर है। ऑटो वाले पांच रूपये लेते हैं।

आज ब्लॉग दस साल का हो गया

साल 2003... उम्र 15 वर्ष... जून की एक शाम... मैं अखबार में अपना रोल नंबर ढूँढ़ रहा था... आज रिजल्ट स्पेशल अखबार में दसवीं का रिजल्ट आया था... उसी एक अखबार में अपना रिजल्ट देखने वालों की भारी भीड़ थी और मैं भी उस भीड़ का हिस्सा था... मैं पढ़ने में अच्छा था और फेल होने का कोई कारण नहीं था... लेकिन पिछले दो-तीन दिनों से लगने लगा था कि अगर फेल हो ही गया तो?... तो दोबारा परीक्षा में बैठने का मौका नहीं मिलेगा... घर की आर्थिक हालत ऐसी नहीं थी कि मुझे दसवीं करने का एक और मौका दिया जाता... निश्चित रूप से कहीं मजदूरी में लगा दिया जाता और फिर वही हमेशा के लिए मेरी नियति बन जाने वाली थी... जैसे ही अखबार मेरे हाथ में आया, तो पिताजी पीछे खड़े थे... मेरा रोल नंबर मुझसे अच्छी तरह उन्हें पता था और उनकी नजरें बारीक-बारीक अक्षरों में लिखे पूरे जिले के लाखों रोल नंबरों में से उस एक रोल नंबर को मुझसे पहले देख लेने में सक्षम थीं... और उस समय मैं भगवान से मना रहा था... हे भगवान! भले ही थर्ड डिवीजन दे देना, लेकिन पास कर देना... फेल होने की दशा में मुझे किस दिशा में भागना था और घर से कितने समय के लिए गायब रहना था, ...

लद्दाख बाइक यात्रा-5 (पारना-सिंथन टॉप-श्रीनगर)

10 जून 2015 सात बजे सोकर उठे। हम चाहते तो बडी आसानी से गर्म पानी उपलब्ध हो जाता लेकिन हमने नहीं चाहा। नहाने से बच गये। ताजा पानी बेहद ठण्डा था। जहां हमने टैंट लगाया था, वहां बल्ब नहीं जल रहा था। रात पुजारीजी ने बहुत कोशिश कर ली लेकिन सफल नहीं हुए। अब हमने उसे देखा। पाया कि तार बहुत पुराना हो चुका था और एक जगह हमें लगा कि वहां से टूट गया है। वहां एक जोड था और उसे पन्नी से बांधा हुआ था। उसे ठीक करने की जिम्मेदारी मैंने ली। वहीं रखे एक ड्रम पर चढकर तार ठीक किया लेकिन फिर भी बल्ब नहीं जला। बल्ब खराब है- यह सोचकर उसे भी बदला, फिर भी नहीं जला। और गौर की तो पाया कि बल्ब का होल्डर अन्दर से टूटा है। उसे उसी समय बदलना उपयुक्त नहीं लगा और बिजली मरम्मत का काम जैसा था, वैसा ही छोड दिया।