डेढ़ घंटा रॉस द्वीप पर घूमने के बाद हम वापस जेट्टी पहुँच गये। समय की पाबंदी का उदाहरण देखिये - हमारी बोट नंदिनी जेट्टी पर लगायी जा रही थी। अब यह हमें नॉर्थ-बे ले जायेगी।
इसे नॉर्थ-बे आइलैंड़ भी कहा जाता है, लेकिन मैं इसे ‘आइलैंड़’ नहीं कहूँगा। वैसे तो पूरा अंडमान-निकोबार ही द्वीप-समूहों से बना है। पोर्ट ब्लेयर भी एक द्वीप ही है - बहुत बड़ा द्वीप - इसका नाम है दक्षिणी अंडमान। तो यह जो नॉर्थ-बे है ना, यह पोर्ट ब्लेयर वाले मुख्य द्वीप का ही हिस्सा है। यह रॉस आइलैंड़ की तरह अलग से कोई द्वीप नहीं है। इसलिये इसे नॉर्थ-बे द्वीप कहना गलत है। यह दक्षिणी अंडमान द्वीप का एक हिस्सा है और समुद्री-तट होने के कारण इसे ‘नॉर्थ-बे बीच’ कहना ज्यादा उपयुक्त है, ‘नॉर्थ-बे आइलैंड़’ नहीं।
समुद्र में बड़ी उथल-पुथल थी। लहरें नाव को ऊपर उठा देतीं और फिर धड़ाम से नीचे पटक देतीं। इससे इतना पानी छलकता कि नाव के भीतर भी आ जाता।
एक आदमी ने हिंदी में सभी यात्रियों को बताना शुरू किया - “नॉर्थ-बे में दर्शनीय कुछ नहीं है। यहाँ केवल वाटर एक्टिविटी होती हैं। स्कूबा डाइविंग होती है, इसका इतना चार्ज है, इसमें यह-यह होता है, इतना समय लगता है। ग्लास बॉटम बोट की सैर है, इसका यह किराया है। स्नॉरकलिंग है, इसमें यह होता है।”
हमें स्नॉरकलिंग पसंद आयी - सस्ती होने के कारण। इसमें भी दो विकल्प थे - एक 300 रुपये वाला और दूसरा 600 रुपये वाला। हमने दूसरा विकल्प चुना। यह सब हमारे लिये एकदम नयी चीज थी, इसलिये उत्साहित भी थे। हमें तैरना नहीं आता, लेकिन डूबने का डर भी नहीं लगा।
कोरल समुद्री जीव होते हैं। मुझे इनके बारे में कुछ नहीं पता, लेकिन दीप्ति को सब पता है। चलिये, उसी से जान लेते हैं:
“कोरल अचल समुद्री जीव होते हैं। इनका पूरा शरीर छिद्रयुक्त होता है। इन छिद्रों से पानी आता-जाता रहता है, जिससे इन्हें भोजन और ऑक्सीजन मिलती है। इन्हें स्पंज भी कहा जाता है। इनके शरीर में कैल्शियम की मात्रा अधिक होती है, जिससे ये मरने के बाद अत्यधिक कठोर हो जाते हैं। इनकी बहुत बड़ी-बड़ी कालोनियाँ होती हैं। इस कारण मरने के बाद ये अन्य समुद्री जीवों के निवास स्थान बन जाते हैं और एक जैव-विविधता युक्त क्षेत्र बन जाता है।”
पानी के भीतर यही कोरल हमें देखने थे। किराये पर कपड़े उपलब्ध थे। हमने कपड़े बदले और गाइड़ के साथ घुस गये समुद्र में। उसने हमें एक-एक ‘टायर’ पहना दिया, जिससे डूबने का खतरा समाप्त हो गया। चश्मे वगैरा लगाये और अपने साथ समुद्र में ले चले। गहराई बढ़ती गयी और जमीन हमारे पैरों से बहुत नीचे चली गयी। पानी में डुबकी-सुबकी लगाने का कोई चक्कर नहीं था। बस, चश्मे को पानी पर स्पर्श करो और नीचे रंग-बिरंगे, भिन्न-भिन्न आकृतियों के कोरल देखने शुरू कर दो। उनके बीच में चक्कर लगाती अनगिनत मछलियाँ। गाइड़ हमें प्रत्येक कोरल के बारे में, प्रत्येक मछली और अन्य जीवों के बारे में बताते रहे। अच्छा लगा। 600 रुपये वसूल हो गये।
स्कूबा डाइविंग में भी मुख्य मकसद कोरल देखना ही होता है, लेकिन और ज्यादा गहराई में जाकर। उनकी पीठ पर ऑक्सीजन सिलेंड़र होता है और इस कारण वे ज्यादा दूर व ज्यादा गहरे जा सकते हैं। और भी दूसरी गतिविधियाँ थीं, लेकिन हम स्नॉरकलिंग में ही खुश थे। बाद में इसी कोरल तट पर बड़ी देर तक नहाये और अपने घुटने व टखने छिलवाये। कोरल बहुत सख्त व नुकीले होते हैं और आसानी से आप चोटिल हो जाते हैं। आज मैं भी पहली बार समुद्र में नहाया था और पहली सीख मिली कि कोरल तट पर कभी भी नहाना नहीं चाहिये।
कोरल तट पर किसी भी तरह की छेड़छाड़ नहीं की जा सकती, इसलिये यहाँ पीपों की जेट्टी थी। कंक्रीट का कुछ भी नहीं था। तय समय पर यानी ढाई घंटे बाद बोट आयी और हम वापस पोर्ट ब्लेयर पहुँच गये।
कोरल का एक टुकड़ा |
यहाँ हमें समोसे मिले - ताज़े और गर्मागरम |
नॉर्थ-बे से दिखता पोर्ट ब्लेयर |
दीप्ति सीपियाँ और कोड़ियाँ ढूँढ़ती हुई... |
कोरल अनगिनत रूपों वाले होते हैं - सब एक से बढ़कर एक... |
केकड़े दिख गये होंगे... |
यह है नॉर्थ-बे जेट्टी |
इसका कैप्शन आप सुझाईये... |
वापस पोर्ट ब्लेयर |
जलजीव संग्रहालय... अंदर फोटो लेना मना था, लेकिन दर्शनीय स्थान है... पोर्ट ब्लेयर में अबरडीन जेट्टी के पास... |
जहाँ भी कहीं गोलगप्पे दिखें, प्रहार करने में देर नहीं करनी चाहिये... |
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बहुत ही सुंदर
ReplyDeleteLage Raho
ReplyDeleteस्कूबा डाइविंग के लिये स्विमिंग आणि जरुरी होती हे क्या नीरज भाई कुछ आयडिया
ReplyDeleteनहीं सुनील जी... स्कूबा डाइविंग के लिये स्विमिंग आवश्यक नहीं है... उनके पास अच्छे उपकरण होते हैं, जिनसे न डूबने का ख़तरा होता है और न ही साँस लेने में समस्या आती है...
Deleteभोत बढ़िया,हमने तो सारी डायनिंग आती हैं, जोहड़ खूब गोते लगाए है।
ReplyDeleteराम राम
बहुत बढिया
ReplyDeleteAap ko dar nahi laga? Mujhe to coral dekh kar hi ajeeb sa aur dar sa lag raha hai ki ye Kat na le.
ReplyDeleteMaine suna hai ki Lakshdeep to pura hi Coral ka bana island hai.
Wakai yatra bahut achi rahi aapki.
Full paisa vasool.
Umesh Pandey
Deleteकोरल काटते नहीं हैं सर जी... ये बेहद सख्त पत्थर जैसे होते हैं... रंग-बिरंगे होते हैं तो अच्छे भी लगते हैं...
DeleteMujhe to ek bar Situhi(pani ka ek jeev) ne kata tha. Tab se pani ke HAR jeev se dar lagta hai.
Deletenice to see this journey, cheap and romantic,, with family,,,,
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