18 जनवरी, 2017
तो ऐसा हुआ कि हम पोर्ट ब्लेयर उतर गये - हवाई जहाज से। मरीन रोड़ पर एक होटल में एक कमरा बुक था ही। 100 रुपये में एक ऑटो वाला तैयार हो गया चलने को। वैसे यहाँ बसें भी खूब चलती हैं, जो दस-दस रुपये में आपको एयरपोर्ट से अबरडीन बाज़ार या मरीन रोड़ पहुँचा देती हैं। मुख्य लोकल बस अड्डा इन दोनों स्थानों के बीच में है।
तो हमें इस बात का उस समय पता नहीं था। प्रत्येक अंडमानी की तरह यह ऑटोवाला भी बहुत अच्छा था। चलते-चलते ही हमारा कार्यक्रम पूछा और आज ही नील व हैवलॉक आने-जाने के टिकट बुक करा लेने की सलाह दे दी। प्राइवेट जहाज वालों के ऑफिस में ले गया और थोड़ी ही देर में हमारे पोर्ट ब्लेयर से नील, नील से हैवलॉक और हैवलॉक से पोर्ट ब्लेयर के जहाजों में बुकिंग हो गयी। वैसे हमारे पास सरकारी जहाज से आने-जाने का भी विकल्प था, लेकिन सुना है कि सरकारी और प्राइवेट के किराये में ज्यादा अंतर नहीं होता, तो हमने प्राइवेट में ही बुकिंग कर ली। टिकटों की मारामारी का आलम यह था कि पाँच दिन पहले भी हैवलॉक से पोर्ट ब्लेयर आने के लिये हमें अपने इच्छित समय वाले जहाज में खाली सीट नहीं मिली।
कमरे में सामान पटककर निकल पड़े पोर्ट ब्लेयर घूमने। अबरडीन बाज़ार ही यहाँ का मुख्य बाज़ार है। इसके गाँधी-प्रतिमा वाले चौक के बगल में सस्ते खाने-पीने की दो दुकानें हैं। 60 रुपये में हम दोनों का पेट भर गया - भरपेट रोटी और चने की दाल से।
सीधे पहुँचे सेलूलर जेल। इसके बारे में ज्यादा लिखने की आवश्यकता नहीं है।
बाहर निकले तो मैं सोच रहा था कि क्या अंग्रेजों में मानवता नहीं थी? ऐसा व्यवहार तो जानवरों के साथ भी नहीं किया जाता। आज अगर किसी देश को ऐसी जेल बनानी पड़े तो वो भी इतना पाशविक नहीं हो सकता। धिक्कार है!
यही था वो भोजन जो हमने पोर्ट ब्लेयर में पहली बार किया। उँगलियाँ सानकर खाने में संकोच भी आया, लेकिन जल्द ही हम इस विधा में उस्ताद हो गये। |
अबरडीन बाज़ार... |
सेलूलर जेल का मुख्य फाटक और उसके भीतर बनी जेल... अब यह मत पूछना कि यह फोटो हमने कहाँ चढ़कर खींचा... |
यह है कैदियों की कोठरी... इसकी साँकल को देखिये... मोटी दीवार में इसे इसलिये बनाया है, ताकि गलती की कोई गुंजाइश न रहे और कोई कैदी इसे तोड़ने या खोलने की कोशिश न करे... |
टाट की पोशाक... क्या सोचकर इसे ईज़ाद किया होगा उन पशुओं ने? |
अंडमानी कबूतर |
एक फोटो अपना भी... मुझे ख़ुशी भी है और गर्व भी है कि आज आज़ाद भारत में मैं बिना बेड़ियों के हूँ और इस प्राणहंता जेल की छत पर हूँ... उस समय किसी भारतीय को ऐसा मौका नहीं मिल सकता था... |
पीछे दिखता रॉस द्वीप... उधर उस ज़माने में अंग्रेज अधिकारियों के घर हुआ करते थे... |
यह फोटो दीप्ति जी ने खींचा है... उनका ज़िक्र करना इसलिये आवश्यक है कि कभी यदि भूलवश उनके खींचे फोटो पर अपने नाम का ठप्पा लगा देता हूँ, तो तुरंत ज़वाब देना पड़ता है... |
सावरकर जी इसी कोठरी में कैदी हुआ करते थे... |
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Vinayak Damodar Savarkarji wo mahan insan the, jinhone apne will power par jindgi ke jyadatar din guzare. Salam hai unke jajbe ko.
ReplyDeleteसही कहा अमित भाई... धन्यवाद आपका...
Deleteअंग्रेजों ने भारतीयों के स्वतंत्रता आंदोलन को कुचलने के लिए अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में एक ऐसी जेल बनाई थी,जहां भारतीयों पर भयानक जुल्म ढाए जाते थे। अंग्रेजों ने हिंद महासागर के इस द्वीप में 1857 की क्रांति के तुरंत बाद भारतीयों की स्वतंत्रता की भावना कुचलने के लिए इस जेल का निर्माण किया था।
ReplyDeleteबिल्कुल ठीक कहा आपने भाई जी...
Deleteवीर सावरकर के जेल वाले कमरे की फोटो को प्रणाम ।इस ऐतिहासिक जेल की की जानकारी के लिए धन्यवाद नीरज जी।
ReplyDeleteआपका भी बहुत बहुत धन्यवाद...
Deleteबहुत बढिया नीरज भाई
ReplyDeleteधन्यवाद सर जी...
DeleteBahut achha varnan. Ye photo un 35-40 sal ke students ko dekhna chahiye, taki pata chale ki gulami kya hoti hai. Desh Puri tarah SS Azad h,par ab bhi pata nahi kaisi azadi chahiye. Is jail ko krantikariyon ka teerth kahna atshyokti nahi hogi. Photo bahut ache h.
ReplyDeleteUmesh Pandey
शत प्रतिशत सहमत हूँ उमेश जी...
DeleteNeeraj bhai, 3rd picture was taken from jail model situated in museum building.
ReplyDeleteहाँ जी, यह फोटो मॉडल का ही है...
DeleteJail ke mukhya fatak vala photo, shayad jail ke model ka photo h.
ReplyDeleteUmesh Pandey
सावरकरजी महाराष्ट्र के थे यह हमारे लिये गौरव कि बात है ... लेकिन सच्ची बात तो यह है सावरकरजी भारत के क्रातिकारक नेताओ में के एक है
ReplyDeleteयह हमारे लिये वाकई गौरव की बात है.. धन्यवाद आपका सर...
Deleteबस 1 घंटा
ReplyDeleteरिसर्च करके अपने पाठकों (मेरे जैसे) को बताइये की कम से कम ख़र्चे में यहाँ कैसे पहुँचा जाए।
ReplyDeleteमस्त क्लिक्स