22 जनवरी, 2017
‘पानो इको रिसॉर्ट’ में हम ठहरे थे। यह गोविंदनगर बीच के बिल्कुल बगल में है। अच्छा बना हुआ है।
हैवलॉक से हमें आज शाम को निकलना था, लेकिन बोट की बुकिंग न मिल पाने के कारण सुबह वाली बोट में ही बुकिंग करनी पड़ी थी। इस तरह हैवलॉक जैसे खूबसूरत स्थान को देखने के लिये हमारे पास चौबीस घंटे भी नहीं थे। कल राधानगर बीच देख लिया, आज बगल में मौज़ूद गोविंदनगर को देख लेते हैं।
हम नहाने की तैयारी के साथ गये थे, लेकिन जब कोरल चट्टानें देखीं तो नहाने का इरादा त्याग दिया। पानी एकदम शांत था। बड़ी दूर तक पानी में गहराई भी नहीं थी। इक्का-दुक्का पर्यटक ही थे। उनमें भी कई स्कूबा डाइविंग के लिये जाने वाले थे। हमें इस तरह की ‘एक्टिविटी’ रास नहीं आतीं। परसों स्नॉरकलिंग कर ली, बहुत हो गया।
आठ बजे का चेक-आउट टाइम था। अंडमान में सभी होटलों में चेक-आउट सुबह साढ़े सात से लेकर साढ़े आठ बजे तक हो जाता है। प्रत्येक होटल में प्रत्येक कमरे में स्पष्ट लिखा होता है कि इतने बजे आपको कमरा छोड़ देना है। तो आठ बजे हमने भी कमरा छोड़ दिया। एक ऑटो वाले से जेट्टी चलने की बात की, बोला पाँच सौ रुपये लूँगा। हम सौ देने को तैयार थे। तीन किलोमीटर के इतने पैसे हमसे नहीं दिये गये और एक बार फिर से पैदल चलना पड़ा। पक्की सड़क पर पैदल चलने से मेरे पैरों में छाले पड़ जाते हैं। परसों नील में हम 15-16 किलोमीटर पैदल चले थे, कल भी पैदल चले, तो छाले पड़ चुके थे। बड़ा कष्ट हुआ जेट्टी पहुँचने में।
इड़ली और डोसा हम चाव से खाते हैं। एक गंदी-सी दिखने वाली दक्षिण भारतीय दुकान पर जाकर इड़ली खायीं। अब तक मैं पाँचों उंगलियाँ सानकर खाने लगा था। चम्मच से खाने में या दो उंगलियों से खाने में तृप्ति ही नहीं मिलती। दीप्ति तो पहले दिन से ही पाँचों उंगलियाँ सानने लगी थी।
यह जहाज बहुत बड़ा था। कई सौ यात्री इसमें यात्रा कर सकते थे। हमें जो सीट मिली, वे जहाज की तली में एक बंद कमरे में थीं। कोई खिड़की तक नहीं। बड़ी निराशा हुई। ऊपर डेक पर जाने का भी विकल्प था, लेकिन हमने ढाई घंटे की इस यात्रा में जहाज पर चल रही ‘एम.एस. धोनी’ फिल्म देखनी पसंद की। फिल्म अच्छी लगी। यह देखकर सुखद आश्चर्य भी हुआ कि धोनी जी एक जमाने में खड़गपुर स्टेशन पर टी.टी. थे और लोगों के टिकट चेक किया करते थे।
स्कूबा डाइविंग के लिये जाते हुए... |
यही जहाज था, जिससे हम पोर्ट ब्लेयर गये... |
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Ghoomo aur zindgi ke maje lo. Photo kafi acche hai. Agle bhag ka intezar rahega.
ReplyDeleteधन्यवाद उमेश जी...
Deleteअगर पैदल ज़्यादा चलना हो तो एक अच्छे जूतों का जोड़ा बहुत मददगार साबित होता है। चप्पलों के कारण छाले अधिक पड़ते हैं।
ReplyDeleteधन्यवाद भाई... हम कौन-सा वहाँ पैदल घूमने के इरादे से गये थे? वहाँ जाकर माहौल ऐसा बन गया कि पैदल चलना पड़ गया।
Deleteजे बात भी ठीक है
Deleteखूबसूरत चित्रो के साथ सुन्दर यात्रा लेख ।
ReplyDeleteजहाजो पर यात्रा करने के लिए बुकिंग जेट्टी पर ही होती है क्या ?
ReplyDeleteसुन्दर चित्र,शानदार और रोचक यात्रा वर्णन
ReplyDeleteऐसे ही घूमते रहिये
रिंकू गुप्ता
NEERAJ JI APNE NISHA KA NAM DEEPTI KAB KAR DIYA
ReplyDeleteहरियाली और खूबसूरती बिखरी पड़ी है चरों तरफ ! बढ़िया लग रहा अंडमान घूमना
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