23 जनवरी, 2017
आज जो सबसे पहला काम किया, वो था किराये पर बाइक लेना। अबरडीन बाज़ार में एक दुकान से बाइक मिल गयी - 500 रुपये प्रतिदिन किराया और 2000 रुपये सुरक्षा-राशि, जो बाइक लौटाने पर वापस कर दी जायेगी।
हमारे मोबाइल में नेट नहीं चल रहा था, इसलिये गूगल मैप लोड़ नहीं हो पाया। मेरी इच्छा बाइक से माउंट हैरियट जाने की थी। हैरियट के लिये पहले अंडमान ट्रंक रोड़ पर चलना होता है, वही सड़क जो डिगलीपुर जाती है। फिर कहीं से दाहिने मुड़कर बड़ी लंबी दूरी तय करके हैरियट जाना होता है। लेकिन नक्शे के अभाव में हम पहुँच गये चाथम। अब जब चाथम पहुँच ही गये तो यहाँ की आरा मिल भी देख लें। मैं एक मैकेनिकल इंजीनियर हूँ। इस तरह की पता नहीं कितनी मिलों की विजिट कर रखी है, इसलिये यह मेरे लिये एक उत्पादन इकाई से ज्यादा कुछ नहीं थी, लेकिन आजकल यह एक पर्यटक स्थल है।
एक बुढ़िया पुल से पहले चौराहे पर स्टूल पर डिब्बा रखकर इडली बेच रही थी। हमें चाहिये सस्ता भोजन और यहाँ से सस्ता कहीं नहीं मिल सकता था। दो प्लेट इडली ले ली। लेकिन दोनों प्लेटों में कम से कम दस बाल निकले। हमने बाल छोड़ दिये और इडली खा ली। और करते भी क्या? इडली थोड़े ही छोड़ते?
मिल के गेट पर दस-दस रुपये के टिकट लिये। प्रवेश करते ही संग्रहालय है। लकड़ी की वस्तुओं का अच्छा संग्रह है। हाथ लगाने पर रोक थी, फोटो लेने पर नहीं। फिर मिल में घूमने लगे और दीप्ति को समझाने लगा - “देख, ये लकड़ी के चट्टे के चट्टे लगे हैं। इसे ‘सीजनिंग’ बोलते हैं। लकड़ी में जो अतिरिक्त नमी होती है, राल होती है, सब निकल जाती है। सूखने के बाद ही लकड़ी काम की होती है, गीली लकड़ी केवल सूखने के काम की होती है, बाकी किसी काम की नहीं होती।”
आरा मशीन है तो ज़ाहिर है कि लकड़ी की चिराई होगी, अलग-अलग आकार में इसके टुकड़े काटे जायेंगे और बाहर भेज दिये जायेंगे। माल को इधर से उधर ढोने के लिये रेल बिछी हुई थी। जहाँ भी इनका ‘जंक्शन’ होता, वहाँ ‘पॉइंट’ न बनाकर ‘टर्न-टेबल’ बना रखी थी। एक-एक वैगन को इनके ऊपर रखो, टर्न-टेबल को घुमाओ और वैगन दूसरी लाइन पर। हालाँकि कुछ जगहों पर ‘पॉइंट’ भी हैं, लेकिन सब ख़राब पड़े हैं।
इसका मतलब अंडमान में भी ‘रेल-वे’ है। वैसे पोर्ट ब्लेयर से डिगलीपुर तक रेलवे लाइन बिछाने की योजना प्रस्तावित है। इसका सर्वे शायद हो चुका है। यह पूर्वी तट के साथ-साथ ही बनायी जायेगी। पश्चिम में तो जरावा लोग रहते हैं, इसलिये वहाँ किसी तरह की छेड़छाड़ नहीं की जायेगी। पता नहीं अपने जीते-जी यह लाइन बन पायेगी या नहीं।
यहाँ से माउंट हैरियट बहुत नज़दीक है। बोट चलती हैं, जो आपको उस पार बंबू-फ्लैट उतार देती हैं। ज्यादा दूर नहीं है। तबियत से पत्थर फेंकोगे तो पत्थर बंबू-फ्लैट में जा पड़ेगा। वहाँ से माउंट हैरियट 7-8 किलोमीटर दूर ही है।
लेकिन हमने सड़क वाला रास्ता चुना, जो कम से कम पचास किलोमीटर है। एयरपोर्ट के सामने से होता हुआ और छोलदारी होता हुआ यह रास्ता जाता है। छोलदारी के बाद यह रास्ता सीधा तो डिगलीपुर चला जाता है और इसमें से एक सड़क दाहिने मुड़ती है। लिखा भी हुआ है कि विम्बर्लीगंज, बंबू-फ्लैट और माउंट हैरियट के लिये दाहिने जायें। लेकिन ध्यान रखना, यह रास्ता ख़राब है। अगर आप भी बाइक से इधर जाना चाहते हैं तो बेहतर है कि ट्रंक रोड़ पर और सीधे जायें और टसनाबाद से आगे फ़रारगंज से दाहिने मुड़े। फ़रारगंज से यह दाहिने जाने वाली सड़क स्टेट हाईवे है और शोल-बे जाती है। इसी सड़क में से आपको आसानी से बंबू-फ्लैट जाने वाली सड़क अलग होती दिख जायेगी।
रंगत और बंबू-फ्लैट के बीच चलने वाली एक बस भी दिखायी दी।
मज़ा गया इधर बाइक चलाकर। और हाँ, फ़रारगंज से थोड़ा ही आगे ज़िरकाटांग चेक-पोस्ट है, जहाँ से ज़रावा जंगल आरंभ हो जाता है। ज़िरकाटांग से आगे किसी भी टू-व्हीलर को जाने की अनुमति नहीं है। ज़रावा जंगल में आप केवल कार, बस या ट्रक में बैठकर ही जा सकते हैं। हम उधर नहीं गये। अगर उस जंगल में बाइक चलाने की अनुमति होती, तो हम आज ही डिगलीपुर तक खींच देते।
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Har bar ki tarah ek acha lekh. Ek engineer ke liye factory, ek factory se jyada kuch nahi.
ReplyDeleteJarwa tribes ke bare me 1-2 sal pahle ek video viral hua tha jisme videshi tourists biscuits ka lalach dekar unko nacha rahe the, yah sab tour guides ki den thi. Aise logo par action hona chahiye.
Photo ache hai.
शानदर लेखन, जानदार फोटोग्राफी।
ReplyDeleteसाधुवाद।
बालों वाली इड़ली का भोग
ReplyDeleteha ha ha ha ha ....
पानीपत रोड ! सुखद आश्चर्य ! जारवा जंगल के बारे में ऐसी जानकारी थी कि जारवा प्रजाति के आदिवासियों की फोटो खींचना , विडियो बनाना मना है और उनके पास तक जाना भी प्रतिबंधित है !! फिर कार , बस कैसे जाते हैं ?
ReplyDeleteStandard lekhani.Budhiya ki jagah wridh mahila likhate to aur achcha hota
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