23 जनवरी 2017
आज हमारी अंडमान यात्रा का आख़िरी दिन था और दिन का भी आख़िरी वक़्त चल रहा था। हम सीधे पहुँचे वंडूर बीच पर। पोर्ट ब्लेयर से यहाँ तक बहुत सारी बसें भी चलती हैं। एक जगह लिखा था - महात्मा गाँधी मरीन नेशनल पार्क में स्वागत है। आप इधर के नक्शे को देखेंगे तो पायेंगे कि यहाँ छोटे-छोटे कई द्वीप हैं। ये सभी द्वीप निर्जन हैं और सामुद्रिक पारिस्थितिकी में महत्वपूर्ण हैं। इनमें सबसे प्रसिद्ध है जॉली ब्वाय द्वीप। जॉली ब्वाय की बोट यहीं वंडूर से चलती है। हमारे पास समय की कमी थी, इसलिये वहाँ नहीं गये।
वंडूर बीच के पास ही लोहाबैरक क्रोकोडायल सेंचुरी है। जगह-जगह चेतावनी भी लिखी थी कि यहाँ तक मगरमच्छ आ जाते हैं, इसलिये सावधान रहें।
भीड़ बिल्कुल नहीं थी। जितने पर्यटक थे, लगभग उतने ही कुत्ते भी थे। एक बहुत बड़ा ठूँठ पड़ा था, जो यात्रियों के लिये फोटो-पॉइंट था। हमारे लिये भी।
किसी बच्चे ने रेत का किला बना रखा था। वे लोग बनाकर चले गये, लहरें आयीं और किला ध्वस्त हो गया। हालाँकि इसके चारों तरफ़ रेत की ही सुरक्षा दीवार भी बना रखी थी, लेकिन कोई काम नहीं आया।
हम यहाँ पानी के भीतर नहीं गये। बस, टहलते रहे। और तब तक टहलते रहे, जब तक कि सूर्यास्त न हो गया। दीप्ति सीपियाँ और कोड़ियाँ ढूँढ़ने में आनंद लेती रही।
फिर तो जिस रास्ते यहाँ तक पहुँचे थे, उसी रास्ते लौट गये। पहले कमरे में, अगले दिन एयरपोर्ट, कोलकाता, हावड़ा और दिल्ली।
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अब थोड़ी-सी बात अंडमान के जन-जीवन के बारे में भी कर लेते हैं। अंग्रेज यहाँ कालापानी की सज़ा देने के लिये भारतीयों को ले जाते रहे। बाद में कुछ साल जापानी भी रहे। फिर 1947 में आज़ादी के बाद बहुत से कैदी यहीं बस गये। बंगाल और तमिलनाडु से बड़ी संख्या में लोग जाकर बसे। इनका प्रभाव यहाँ स्पष्ट दिखायी देता है। घर में तो ये लोग अपनी-अपनी भाषा - बंगाली या तमिल - में बात करते हैं, लेकिन सामान्य वार्तालाप करने के लिये हिंदी से बेहतर कोई नहीं। प्रत्येक व्यक्ति हिंदी में भी उस्ताद होता है। सरकारी भाषा हिंदी व अंग्रेजी हैं, तो लगभग प्रत्येक सार्वजनिक स्थान पर सूचना हिंदी में लिखी मिल जाती है।
पर्यटन ही यहाँ का मुख्य आधार है - इस बात को प्रत्येक स्थानीय जानता है। और ये लोग पर्यटकों के प्रति शिष्ट भी बने रहते हैं। ठगी अक्सर नहीं होती। हाँ, महँगाई काफ़ी है।
यहाँ चाय बनाने का तरीका मुझे बहुत पसंद आया। एक केतली में पानी उबलता रहता है। साथ ही एक विशेष प्रकार के बर्तन में चायपत्ती भी उबलती रहती है। चाय बनाने के लिये कप में दूध पावड़र डाला जाता है, चीनी डाली जाती है। फिर उबलती चायपत्ती के काढ़े की थोड़ी-सी मात्रा डाली जाती है और आख़िर में इस कप को उबलते पानी से भर दिया जाता है। अच्छी तरह मिलाकर यह चाय आपके हाथ में पकड़ा दी जाती है। यह कड़क चाय होती है और वाकई लगता है कि हाँ, चाय पी रहे हैं।
अगर आप कोरल देखना चाहते हैं, तो स्नॉरकलिंग से सस्ता कुछ नहीं। यदि आपको तैरना आता है, तब तो बल्ले-बल्ले। कोई ज़रूरत नहीं है किसी को स्नॉरकलिंग के लिये कई सौ रुपये देने की। बाज़ार से स्नॉरकलिंग में इस्तेमाल होने वाला चश्मा खरीद लीजिये और कूद पड़िये पानी में। जी भरकर कोरल देखिये। हाँ, अगर तैरना नहीं आता, तब आपको ‘सुरक्षा-टायर’ के लिये एजेंटों पर निर्भर रहना पड़ेगा।
बाकी सब ठीक ही है। एक बार जाना तो बनता है अंडमान। हालाँकि हमसे अभी भी बहुत कुछ छूट गया, उसके लिये दोबारा जाना पड़ेगा। देखते हैं कब जाना हो।
यह यात्रा एकदम संक्षिप्त में लिखी है। मैं जब लिखने बैठता हूँ, तो पोस्ट अपने आप ही लंबी हो जाती है, लेकिन इस बार जान-बूझकर छोटी-छोटी पोस्टें लिखी हैं। हम जानबूझकर अपने ऊपर व्यस्तता ओढ़ लेते हैं। मैंने भी ऐसी ही कई व्यस्तताएँ ओढ़ रखी हैं, जिनके कारण ये छोटी-छोटी पोस्टें लिखनी पड़ीं। उम्मीद है कि अब के बाद ऐसा नहीं होगा और आपको वही पोस्टें पढ़ने को मिलेंगी, जिनके लिये आप यहाँ आते हैं।
1. अंडमान यात्रा - दिल्ली से पोर्ट ब्लेयर
2. अंडमान यात्रा: सेलूलर जेल के फोटो
3. रॉस द्वीप - ऐसे खंड़हर जहाँ पेड़ों का कब्ज़ा है
4. नॉर्थ-बे बीच: कोरल देखने का उपयुक्त स्थान
5. नील द्वीप में प्राकृतिक पुल के नज़ारे
6. नील द्वीप: भरतपुर बीच और लक्ष्मणपुर बीच
7. राधानगर बीच @ हैवलॉक द्वीप
8. हैवलॉक द्वीप - गोविंदनगर बीच और वापस पॉर्ट ब्लेयर
9. अंडमान में बाइक यात्रा: चाथम आरा मशीन
10. अंडमान में बाइक यात्रा: माउंट हैरियट नेशनल पार्क
11. वंडूर बीच भ्रमण
12. अंडमान यात्रा की कुछ वीडियो
शानदार सफ़र रहा..
ReplyDeleteSafar acha raha apka. Itne chhote tak theek hai par isse chhote blog mat likhne lagna. Aapki khasiyat hi yah hai ki jab aap blog ke madhyam se hume kisi jagah aur waha ke culture ke bare me batate hain to hume lagta hai hum bhi aapke sath sath ghum rahe hai.. Yahi quality Andaman me dikhi aur aage bhi jari rakhiye.
ReplyDeleteChai ke glass wala photo aur photo number 4 sabse acha laga.
नीरज भाई ये यात्रा तो समाप्त हो गयी। अब भाई आपकी रेल यात्राओं की बड़ी याद आ रही है। काफी दिनों से किसी स्टेशन बोर्ड के दर्शन नहीं हुए। जल्द कोई रेल यात्रा छापो। और यदि कोंकण रेलवे के सुंदर नज़ारे हो जाये तो बात ही कुछ और हो।
ReplyDeleteदूर दराज की जगहों पर ठूंठ भी "दर्शनीय " बन जाता है ! सही है
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