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घुमक्कड पत्रिका- 1















1. सम्पादकीय
बहुत से मित्र सोचते हैं कि ‘घुमक्कड पत्रिका’ कोई हार्डकॉपी होगी। वे पूछते भी हैं कि यह पत्रिका कहां से मिलेगी और कितने की मिलेगी? तो आज ‘घुमक्कड पत्रिका’ आपके सामने है और बिल्कुल मुफ्त। पहले ‘डायरी के पन्ने’ छपते थे, उनकी जगह अब ‘घुमक्कड पत्रिका’ छपा करेगी।
‘डायरी के पन्ने’ बेहद सफल श्रंखला रही। आपने इसे खूब सराहा। कुछ भी लिख दिया, खूब सराहना मिली। यह ब्लॉग एक यात्रा-ब्लॉग है जिसमें मैं अपने यात्रा-वृत्तान्त छापता हूं। फिर एक बार महसूस हुआ कि कुछ बातें ऐसी भी हैं जिन्हें यात्रा-वृत्तान्त नहीं कहा जा सकता लेकिन छपने योग्य हैं। ऐसी बातों को इकट्ठा करके ‘डायरी के पन्ने’ के अन्तर्गत छापा जाने लगा। घुमक्कडी के स्वाद के अलावा एक नया स्वाद आपको मिला, अच्छा भी लगा।
अब मन में विचार आने लगा है कि मित्रों को भी साथ लेकर चलूं। आगे आप पढेंगे तो देखेंगे कि सबकुछ ‘डायरी के पन्ने’ जैसा ही है लेकिन एक तो इसका प्रस्तुतिकरण बदला है और दूसरी बात जो बदली है वो है मित्रों को साथ लेना। जैसा कि किसी पत्रिका में होता है, इसमें भी बहुत सारे कॉलम हैं। मैं चाहता हूं कि उन कॉलमों के लिये आप भी कुछ न कुछ लिखें। पहली तो बात यह है कि मैं हमेशा आपके अपने ब्लॉग या वेबसाइट का समर्थक रहा हूं और समय-समय पर तकनीकी बातें भी बताता रहा हूं। अभी भी यहीं चाहता हूं कि आप अपने यहां ही लिखें। मुझे अपने ब्लॉग का लिंक भेज दें। फिर भी अगर आपके पास इतना समय नहीं है कि आप अपने ब्लॉग के लिये सप्ताह में दो पोस्ट नहीं लिख सकते तो महीने में दो पोस्ट लिखिये और ‘घुमक्कड पत्रिका’ आपके लिये है। महीने में दो पोस्ट तो आसानी से लिखी जा सकती हैं। वे यात्रा-वृत्तान्त के साथ साथ यात्रा से जुडे किसी भी क्षेत्र से सम्बन्धित हो सकती हैं- इतिहास से, भूगोल से, पुरातत्व से, वन्य जीवन से, फोटोग्राफी से, लेखन से।
एक बात ‘यात्रा कैलेण्डर’ कॉलम के बारे में कहनी है। अभी फेसबुक पर जब पूछा कि आपकी आगामी कहां घूमने की योजना है तो बहुत से मित्रों ने अपनी योजना बताई। और मजा तब आया जब कई मित्र आपस में ही मिलने लगे। कोई लद्दाख जा रहा है तो दूसरा उसके साथ जाने को तैयार हो रहा है। महेश सेमवाल और नरेश सहगल जी का तो ऐसा संयोग बना कि वे एक ही समयान्तराल में चोपता तुंगनाथ जा रहे हैं। पहले उन्हें एक-दूसरे की योजना का नहीं पता था। अब पता चल गया है तो सम्भव है कि उनकी पूरी यात्रा साथ-साथ ही हो।
कुछ दिन पहले हम पचमढी में थे। दो दिन वहां रहे, फिर पातालकोट चले गये। पातालकोट से जब इन्दौर जा रहे थे तो रात बैतूल में रुके। शाम को छत्तीसगढ के परम मित्र सुनील पाण्डेय जी का फोन आया कि वे भी ठीक उन्हीं दो दिन पचमढी में थे, जब हम वहां थे। लेकिन मैंने पचमढी घूमने के बारे में किसी को नहीं बताया था और शायद सुनील जी ने भी नहीं बताया था। अगर पता होता तो हम उन दो-तीन दिन साथ साथ ही रहते।
इसलिये ‘यात्रा कैलेण्डर’ कॉलम अपनी तरह का एक विशिष्ट कॉलम साबित हो सकता है। आप अपनी आगामी यात्राओं की सूचना अवश्य दें- फेसबुक पर दें, व्हाट्सएप पर (9650270044) दें या मेल करके दें या नीचे कमेण्ट लिखकर। आप छह महीने बाद भी अगर कहीं जा रहे हैं तो उसकी सूचना दें। इसके बारे में अभी से प्रकाशित करना शुरू कर दिया जायेगा।
यह पहला अंक है। हालांकि इसे ‘यूजर फ्रेण्डली’ बनाने का पूरा प्रयत्न किया गया है, फिर भी कुछ त्रुटियां जरूर मिलेंगी। आप इन त्रुटियों के बारे में अवश्य सूचित करें ताकि अगले अंकों में उन्हें दूर किया जा सके।

2. लेख
A. घुमक्कडी क्या है और कैसे घुमक्कडी करें?
सात साल पहले जब मैंने लिखना शुरू किया था तो स्वयं को ‘घुमक्कड’ कहकर सम्बोधित किया था और पर्यटकों के व घुमक्कडों के बीच एक विभाजन करने की कोशिश की थी। इसका नतीजा यह हुआ कि पर्यटन को निम्न स्तर का भ्रमण माना जाने लगा और घुमक्कडी को उच्च स्तर का। तब धारणा थी कि झोला उठाकर कहीं भी बिना किसी योजना के निकल पडने वाला घुमक्कड है और महीनों पहले योजना बनाकर होटल-टैक्सी बुक करके भ्रमण करने वाले पर्यटक कहलाते हैं। लेकिन मेरा जैसे जैसे अनुभव बढता जा रहा है, वैसे वैसे यह धारणा भी खण्डित होती जा रही है।
यात्रियों की कई श्रेणियां होती हैं। जिस तरह एक बच्चा होता है, सबसे पहले पहली कक्षा में प्रवेश लेता है, फिर उत्तीर्ण होता-होता उच्चतर कक्षाओं में जाता रहता है; उसी तरह यात्रियों की भी कक्षाएं होती हैं। हममें से बहुत से लोग पहली कक्षा के यात्री हैं और कुछ उच्चतर कक्षाओं में पहुंचते रहे हैं। लेकिन जिस तरह एक बच्चे के लिये सबसे पहले पहली कक्षा में रहना जरूरी होता है, उसी तरह यात्रियों को भी सबसे पहले पहली कक्षा में होना जरूरी होता है। पहली कक्षा ‘पर्यटकों’ की है।
‘पर्यटन’ बुरा नहीं है लेकिन अगर आप पहली कक्षा में ही पडे रहोगे, तो आपको असफल कहा जायेगा, फेलियर कहा जायेगा। आपको एक निश्चित समयान्तराल बाद उच्चतर कक्षा में जाना ही पडेगा।
यह कैसे होगा? इसके लिये हमें सबसे पहले समझना होगा कि हम घूमने क्यों जाते हैं? घूमने के मायने हम सभी के लिये अलग-अलग होते हैं। कुछ के लिये रोजमर्रा की दिनचर्या से अलग होना है तो कुछ के लिये मौजमस्ती; कुछ साहस का प्रदर्शन करते हैं तो कुछ खोजी होते हैं। यहीं से जवाब मिलने लगता है कि हम उच्चतर कक्षाओं में कैसे जायें।
हम पहली कक्षा के यात्री हों या दसवीं कक्षा के; एक बात तो पक्की है कि हम अकेले दम पर कभी नहीं घूम सकते। हमें दूसरों की आवश्यकता जरूर पडेगी। घर से बाहर निकलते ही हम दूसरों पर आश्रित हो जाते हैं। रास्ता पूछने से लेकर खाना खाने तक। लेकिन बदले में हम वापस क्या करते हैं? होटल वाले को तो पैसे दे देते हैं लेकिन रास्ता पूछने के बदले क्या देते हैं? इंटरनेट और किताबों से हम सैंकडों जानकारियां जुटाते हैं, बदले में क्या देते हैं? कुछ नहीं।
आपको अगर अपनी श्रेणी बढानी है तो बदले में देना शुरू कर दें। इसका सबसे आसान तरीका है लिखना। लिखने से बहुत ज्यादा मनोबल बढता है। जल्दी ही आपको लगने लगता है कि आपके देखे स्थान के बारे में तो हजारों लोग लिख रहे हैं, कहीं ऐसी जगह चलें जहां का बहुत कम लिखा हुआ हो। यहीं से परिवर्तन आने लगेगा। आप लिखने लगेंगे; चीजों के बारे में, रहन-सहन के बारे में, खान-पान के बारे में बताना शुरू कर देंगे। धीरे-धीरे आप पायेंगे कि आप एक विधा के या कुछ विधाओं के विशेषज्ञ होने लगे हैं जैसे ट्रैकिंग, पर्वतारोहण, कश्मीर, लद्दाख, चारधाम, रेलवे, पुरातत्व, भूगोल, इतिहास। इस कक्षा के बाद आप जो भी लिखेंगे, वो हैरतअंगेज होगा।
हालांकि राहुल जी कह गये हैं कि उच्च श्रेणी के घुमक्कड को घर छोड देना चाहिये लेकिन घर छोडना आवश्यक नहीं है। रूस में पच्चीस मास और लद्दाख में चार मास बिताने के बाद आपको घर की जरुरत पडेगी ही। राहुल जी ने अपना पैतृक घर छोड दिया था, मैंने भी लगभग छोड ही रखा है और आपमें से भी बहुतों ने पैतृक घर छोड रखा होगा। तो इस प्रकार आपमें और राहुल सांकृत्यायन में ज्यादा फर्क नहीं है। राहुल जी कुछ दिनों के लिये या कुछ महीनों के लिये या कुछ सालों के लिये भ्रमण पर जाते थे और लौट आते थे। ऐसा हम भी कर सकते हैं। कुछ महीनों के लिये न सही लेकिन कुछ दिनों के लिये तो जा ही सकते हैं। राहुल जी बाहर जाकर क्या करते थे और वापस आकर क्या करते थे; अगर हम भी वही सब करने लगे तो हममें और उनमें ज्यादा फर्क नहीं रह जायेगा।
एक प्रश्न और उठता है कि नौकरी के कारण समय नहीं मिलता। आपमें से बहुत से लोग इस समय ऑफिस में हैं और यह ब्लॉग पढ रहे हैं। इससे यह साबित होता है कि आपके पास ऑफिस-टाइम में भी कुछ समय ऐसा होता है जिसे आप अनुत्पादित नष्ट कर देते हैं। आप कितना समय अनुत्पादित नष्ट करते हैं, यह सब आपको ही देखना पडेगा। इस समय का क्या उपयोग किया जा सकता है और कैसे उपयोग किया जा सकता है, यह भी आपको ही देखना है। कोई दूसरा आपको समय प्रबन्धन नहीं सिखा सकता। ऑफिस टाइम तो बहुत लम्बा होता है; हम छोटे-छोटे कामों में भी अनावश्यक देर लगा देते हैं। खाना खाने में कितनी देर लगनी चाहिये और हम कितनी देर लगाते हैं; इसे केवल हम ही जानते हैं।
यह सब कहने का मतलब है कि आपकी जिन्दगी भले ही कितनी भी व्यस्त हो, लिखने के लिये तो आपके पास हमेशा समय होता ही है। आप अगर दूसरों की सहायता से यात्रा प्लान करते हैं तो आपका कर्तव्य है कि वापस आकर यह कर्ज चुकाएं। क्या लिखना है, कैसे लिखना है, कहां लिखना है, कौन पढेगा; ये सब बहुत छोटी बातें हैं।
इसी तरह कक्षाएं बढती हैं। अपनी कक्षा बढाइये। सालों साल एक ही कक्षा में पडे रहने वाले को ‘पर्यटक’ कहते हैं और नियमित तौर पर उच्चतर कक्षाओं में जाने वाले को ‘घुमक्कड’ कहते हैं।

B. असली जीटी रोड
हमारे यहां मेरठ में प्रचलित है कि हमारे यहां से प्राचीन जीटी रोड गुजरती है जिसे शेरशाह सूरी ने बनवाया था। जो सडक हमारे गांव से होकर गुजरती है यानी मेरठ-शामली-करनाल रोड; उसे भी कहा जाता है कि यही असली जीटी रोड है जो पाकिस्तान जाती है। हम बच्चे थे तो बडे हैरान हो जाते थे। जिस दिशा में पाकिस्तान होना बताया जाता था, उस दिशा में हम गांव से बाहर भी नहीं निकलते थे कि कहीं पाकिस्तान न पहुंच जायें।
यह सडक कलकत्ता से पेशावर तक बनाई गई थी। कलकत्ता से चलकर यह बर्द्धमान, आसनसोल, धनबाद, सासाराम, बनारस, इलाहाबाद, कानपुर, कन्नौज, एटा, अलीगढ, गाजियाबाद, दिल्ली, पानीपत, अम्बाला, लुधियाना, अमृतसर, लाहौर होती हुई पेशावर जाती थी।
तो मेरठ वालों, अपनी जानकारी अपडेट कीजिये। जिस सडक को आप जीटी रोड कहते हैं, वो जीटी रोड नहीं है।

3. यात्रा-वृत्तान्त
A. रानीखेत-बिनसर यात्रा
[अपनी रानीखेत और बिनसर की यात्रा साझा कर रही हैं दीप्ति सिंह]
पिछले साल मार्च में हम तीन फ्रेण्ड्स रानीखेत घूमने गईं। घरवालों से बचकर इस तरह निकल जाना रोमांचक था और डरावना भी। डर ये था कि कहीं घरवालों को अगर पता चल गया तो खूब डांट पडेगी। फिर भी हम सबसे पहले पहुंचे हल्द्वानी। वहां से रानीखेत की बस पकडी। शुरू में तो पहाड अच्छे लगे लेकिन फिर बोरियत होने लगी। सडक पर धूल थी और हरियाली भी नहीं थी। शायद जाडों के कारण ऐसा हो।
खैर, हम रानीखेत पहुंचे और एक होटल में कमरा ले लिया। सफर की थकान उतारी और आराम किया। अगले दिन बिनसर महादेव के लिये चल दिये। रानीखेत से बस पकडी और एक जगह उसने हमें उतार दिया। जहां बस ने उतारा, वहां से बिनसर महादेव एक-डेढ किलोमीटर दूर है। जंगल के बीच में सडक बनी है। हमें यहां डर भी लगा कि कहीं कोई जंगली जानवर न आ जाये। लेकिन चीड के पेडों का यह जंगल बडा अच्छा लग रहा था। हमने यहां खूब मस्ती की।
चारों ओर जंगल से घिरा बिनसर महादेव का मन्दिर है। मन्दिर के बाहर बहुत सारे बन्दर थे जो हमें बार-बार डरा देते थे। मन्दिर के पुजारी बन्दरों को भगाने में लगे थे लेकिन बन्दर फिर भी आ जाते थे। इसके बावजूद यहां का शान्त वातावरण बेहद अच्छा था। मन करता था कि यहां बहुत देर तक बैठे रहे और जंगल की शान्ति का आनन्द लेते रहें। लेकिन वापस भी जाना था।
वापसी में एक किलोमीटर पैदल चले और मेन रोड पर पहुंच गये। थोडी देर में बस आ गई और हम फिर से रानीखेत चले गये। रानीखेत एक छोटा शहर है जहां ज्यादा चहल-पहल नहीं होती। उस दिन भी हम रानीखेत में ही रुके और अगले दिन वापस लौट आये।






B. सावन में ज्योतिर्लिंग ओंकारेश्वर की परिक्रमा व दर्शन
[इन्दौर से ओंकारेश्वर तक के मार्ग और ओंकारेश्वर परिक्रमा व नर्मदा की खूबसूरती दिखा रहे हैं आशीष मेहता]
इस बार श्रावण मास में बारह ज्योतिर्लिंग में से एक ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग दर्शन के साथ ओंकार पर्वत की परिक्रमा का भी योग लगा। इंदौर से बाइक से हमने यह यात्रा संपन्न की। यह ज्योतिर्लिंग इंदौर से लगभग 70 कि.मी.दूर विंध्याचल पर्वत श्रृंखला में माँ नर्मदा / रेवा नदी के किनारे स्थित है। मानसून में इस क्षेत्र की छटा बहुत ही मनभावन हो जाती है। रास्ते में भेरूघाट व चोरल के जंगलो की दूर दूर तक फैली हरियाली मन को भीतर तक सकून पंहुचा जाती है। बोल बम करते हुवे कांवड़िये भी रास्ते भर मिले। कुछ देर बड़वाह के पास चोरल नदी के तट पर अत्यंत मनोरम स्थल जयंती माता होते हुए हम सबसे पहले प्राचीन ममलेश्वर मंदिर में दर्शन करने पहुंचे। प्रभु कृपा से सावन रविवार होने के बावजूद दर्शन मात्र 5 - 10 मिनट में ही हो गए। यहां भातपूजा का भी नया स्वरुप देखने को मिला। जहां उज्जैन में पूरे शिवलिंग को भात से ढककर भातपूजा की जाती है वहीं यहां मिट्टी के 108 / 1008 खूबसूरत शिवलिंग बनाकर उन पर चावल का एक एक दाना स्थापित कर भातपूजा की जाती है।
फिर झूला पूल से होते हुए हम ओंकार पर्वत की पैदल परिक्रमा के लिए निकल गए जिसमे दो-तीन घंटे लगते है। पूरा परिक्रमा पथ पक्का बना हुआ है। पर्वत पर प्राचीन मंदिर, शिव की विशाल प्रतिमा, लेटे हनुमान जी, नवग्रह अनुसार वृक्षारोपित बगीचा स्थापित है। पहाड़ी के दोनों और से नर्मदा प्रवाहित होती है। एक तरफ ओंकारेश्वर डेम है व दूसरी तरफ पर जहां से नर्मदाजी आगे बढ़ती है, अद्भुत नजारा बनता है। वहीं संगम स्थल पर हमने देर तक स्नान का आनंद लिया। यहीं संगम किनारे 13वीं शताब्दी का निर्मित प्राचीन ऋणमुक्तेश्वर महादेव का मंदिर भी है जहां चने की दाल चढ़ाने की परंपरा है। सूर्यास्त के समय यहां का सौंदर्य और बढ़ जाता है। दिन ढलते हमने ओंकारेश्वर महादेव के दर्शन किये। रात्रि में मंदिर परिसर व आसपास आकर्षक लाइटिंग से बड़ी सुन्दर दृश्यावली हो रही थी। फिर वापसी में भेरूघाट के नीचे ढाबे पर खटिया-पाटिया पर सुस्वाद भोजन का आनंद लेते यात्रा समाप्त की।
कुछ चित्रो का आप भी अवलोकन कीजिये।







4. ब्लॉग अपडेट
[यह लिस्ट है उन ब्लॉगों की जिन्होंने मेरे पास अपने ब्लॉग का नाम भेज रखा है। आपको एक बार अपने ब्लॉग का यूआरएल मुझे भेजना होता है, फिर हर महीने उसकी यात्रा-पोस्टों का लिंक यहां प्रकाशित होता रहेगा।]

A. LOOP-WHOLE (तरुण गोयल)
तरुण गोयल मेरे पसन्दीदा यात्रा लेखकों में से एक हैं। उन्होंने इस महीने तीन पोस्ट प्रकाशित कीं लेकिन बाद में एक पोस्ट हटा ली। उनकी पहली पोस्ट थी- Eiger Dreams- Ventures among Men and Mountains | Travel Book Review जैसा कि नाम से ही जाहिर है कि यह एक पुस्तक समीक्षा है। इसके बाद एक मार्मिक अपील आई जो बाद में उन्होंने हटा ली। अनुभवी ट्रैकर अरुण शर्मा जम्मू-कश्मीर में उमासी-ला दर्रे की चढाई करते समय किसी शारीरिक परेशानी की वजह से फंस गये थे। उनका साथी रीजुल गिल दो दिनों तक उनके ठीक होने की प्रतीक्षा करता रहा लेकिन अपने हाथ से बाहर बात जाने पर कोई बाहरी सहायता लाने के लिये उन्हें वहीं छोडकर चला गया। रीजुल ने इसकी खबर तरुण को दी। तरुण ने यही खबर या अपील अपने ब्लॉग में लिखी थी। थोडी ही देर में अरुण के फंसे होने की बात प्रचारित हो गई। लेकिन दो दिन बाद जब तक उनके पास सहायता पहुंची, वे स्वर्गवासी हो चुके थे।
तरुण अरुण को अपना भाई मानते थे और उन्होंने साथ-साथ कई ट्रैक किये हैं। लाजिमी है कि उनके चले जाने का तरुण को बहुत दुख हुआ। महीने की तीसरी पोस्ट O Captain! My Captain! इसी से सम्बन्धित थी।

B. Kailashi Sushil’s Yatra (सुशील कुमार)
सुशील जी ने जुलाई में ही इस यात्रा को लिखना शुरू कर दिया था जो अभी तक अनवरत प्रकाशित हो रही है। पिछले साल उन्होंने कैलाश मानसरोवर यात्रा की थी जिसे अब वे लिपिबद्ध कर रहे हैं। आप पढेंगे तो आपको भी अच्छा लगेगा-

C. मुसाफिर चलता चल (सचिन त्यागी)
सचिन जी ने मुझे जो पोस्ट भेजी, वो पिछले साल प्रकाशित हुई थी- श्रावण मास का महत्व व कांवड यात्रा
[इस कॉलम के लिये आप भी अपने ब्लॉग का लिंक भेज सकते हैं। एक बार लिंक भेजने के बाद आपको फिर कभी लिंक नहीं भेजना है। महीने भर में आप जो भी यात्रा-पोस्ट प्रकाशित करेंगे, उन सबकी सूचना पत्रिका में दी जायेगी।]

5. पुस्तक समीक्षा
पुस्तक समीक्षा में आज हम लेकर आये हैं तीन पुस्तकें। इनके लेखक हैं अमृतलाल वेगड। वेगड साहब जबलपुर के रहने वाले हैं और नर्मदा के अनन्य भक्त हैं। पहली पुस्तक ‘सौन्दर्य की नदी नर्मदा’ वेगड साहब की नर्मदा परिक्रमा है। इसमें वे जबलपुर से उत्तरतट की यात्रा करते हुए अमरकण्टक पहुंचे, फिर दक्षिणतट की यात्रा करते हुए अमरकण्टक से गुजरात स्थित सागरसंगम तक और पुनः उत्तरतट में सागरसंगम से भरूच तक पहुंचते हैं।
दूसरी पुस्तक है- अमृतस्य नर्मदा। इसमें भरूच से जबलपुर तक उत्तरतट की यात्रा है। उन्होंने पूरी परिक्रमा एक साथ नहीं की बल्कि खण्डों में की। उनका कहना है- ‘बूंदी का लड्डू पूरा खाओ तो मीठा लगता है और चूरा खाओ तो मीठा लगता है।’
तीसरी पुस्तक ‘तीरे तीरे नर्मदा’ में उन्होंने बाद के वर्षों में जबलपुर से अमरकण्टक और हण्डिया तक की परिक्रमा का वृत्तान्त लिखा है। साथ ही नर्मदा की सहायक नदियों बुढनेर, बंजर और शक्कर की भी परिक्रमा का वृत्तान्त लिखा है। गौरतलब है कि नर्मदा की परिक्रमा तो की ही जाती है, कुछ अनन्य भक्त इसकी सहायक नदियों की भी परिक्रमा कर आते हैं।
वेगड साहब की पहली नर्मदा परिक्रमा उस समय हुई थी जब नर्मदा पर कोई बांध नहीं बना था। अब तो कई बांध बन चुके हैं- बरगी बांध है, ओमकारेश्वर बांध है, सरदार सरोवर है; तो उनके देखे बहुत से स्थान और घाट, मन्दिर, झरने अब बांध में डूब चुके हैं। परिक्रमा का सबसे भयानक मार्ग शूलपाण की झाडी भी अब डूब चुकी है। बांधों से पहले यहां क्या था, कैसा था; वो सब पढना बेहद रोमांचक है।
वेगड साहब लिखते हैं-
“इस यात्रा ने मन में एक नई आशा जगाई है कि अभी मैं जरा-जीर्ण नहीं हुआ, कि इस उम्र में भी मैं नर्मदा तट की कठिन पदयात्रा कर सकता हूं। यात्रा का यह सिलसिला मुझे जारी रखना चाहिये। बुद्धि की बात मानकर अगर मैं घर में ही बैठा रहता तो कितने बडे सुख से वंचित रह जाता। बरमानघाट के विशाल घाट, छोटे धुआंधार के नन्हें-मुन्ने प्रपात, पुतलीखोह के प्रागैतिहासिक चित्र, गुरुगुफा के अदभुत शैल-शिल्प, आश्रम के सन्यासी, चौडे पाट में करवटें बदलती नर्मदा, बिना दचका पूरा-पूरा आकाश और पिछली रात का चुटकी भर चांद- मुझे यह सब गंवाना पडता। इस यात्रा से मैंने एक महत्वपूर्ण सबक सीखा: अगर हमारे सपनों को साकार करने में बुद्धि आडे आती हो- वह आडे आती ही है- तो हमें उसे धता बता देने में संकोच नहीं करना चाहिये। बुद्धि की धौंस मानने से इंकार कर देना चाहिये। जीवन में कुछ तो हो जो बुद्धि के पार हो, तर्क के परे हो।”
“सुबह निकलने में थोडी देर हो गई। सूर्य तप रहा है और हम चुपचाप चले जा रहे हैं। पूरे आकाश में सूर्य के सिवा और कुछ नहीं है। मुझे लगा, दिन का आकाश है रेगिस्तान, सूर्य के सिवा और कुछ नहीं। रात का आकाश है फूलों की घाटी- वैली ऑफ फ्लॉवर्स! घटते-बढते चांद को देखिये, झिलमिलाते तारों को देखिये, दमकते ग्रहों को देखिये, आकाश के मेरुदण्ड सी आकाशगंगा को देखिये। रात्रि का आकाश विपुल सम्पदा का स्वामी है। उसे घण्टों निहारा जा सकता है। दिन के गंजे, सौन्दर्यविहीन आकाश में क्या देखियेगा!”
“शिव को बेल (या बेल के पत्ते) प्रिय हैं तो गणेश को लड्डू। पिता को फल तो बेटे को मिठाई। जनरेशन गैप!”
“अमरकंटक, डिंडोरी और मंडला- कहीं भी रेल नहीं है। कहने को तो मंडला में डेढ पसली की नैरोगेज रेल जरूर है, पर वह उसे जबलपुर से सीधे नहीं जोडती, इसलिये यात्रियों के लिये उसकी कोई खास उपयोगिता नहीं। इतने बडे भूभाग में रेल का न होना दर्शाता है कि यह प्रदेश कितना विपन्न और गरीब होगा!”
ये तीनों पुस्तकें मध्य प्रदेश हिन्दी ग्रन्थ एकादमी, भोपाल से प्रकाशित हुई हैं। कुछ और जानकारियां नीचे लिखी हैं:
1. सौन्दर्य की नदी नर्मदा- ISBN 81-7327-123-2, छठा संस्करण 2007, पेपरबैक मूल्य 40 रुपये।
2. अमृतस्य नर्मदा- ISBN 81-7327-036-8, पांचवां संस्करण 2009, पेपरबैक मूल्य 65 रुपये।
3. तीरे तीरे नर्मदा- ISBN उपलब्ध नहीं, प्रथम संस्करण 2010, पेपरबैक मूल्य 70 रुपये।
इन पुस्तकों का गुजराती, मराठी, बंगाली के अलावा अंग्रेजी में भी अनुवाद हो चुका है।

6. जिज्ञासा
A. दर्रा क्या है?
बहुत से मित्र पूछते हैं कि ‘दर्रा’ क्या है? किसे कहते हैं दर्रा? कैसे पता चलता है कि यह दर्रा है या नहीं?
कुछ कहते हैं कि दो चोटियों के बीच की नीची जगह को दर्रा कहते हैं और कुछ का मानना है कि दो घाटियों को जोडने वाले रास्ते की सबसे ऊंची जगह को दर्रा कहते हैं। बात लगभग ठीक है लेकिन अगर आपको दर्रे का कुछ भी आइडिया नहीं है तो आप भ्रमित हो सकते हैं। जैसे कि राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश आदि में जहां एक पहाड समतल जमीन पर रखा होता है और दूसरा पहाड उससे पांच दस किलोमीटर दूर होता है। तो परिभाषा के अनुसार दोनों के बीच की जगह दर्रा हुई। जबकि ऐसा नहीं है।
मैं परिभाषा तो नहीं दूंगा लेकिन समझाने की कोशिश करूंगा। चारों तरफ समतल जमीन पर रखे किसी एक पर्वत पर कोई दर्रा नहीं होता। दर्रे होते हैं पर्वत-श्रंखलाओं पर। एक के बाद एक पर्वत गुंथे होते हैं तो ये पर्वत श्रंखलाओं का निर्माण करते हैं। इनकी तुलना खेत में बनी मेंड से कर सकते हैं या ऊंची-नीची दीवार से भी कर सकते हैं। इनकी ऊपरी लाइन को रिज लाइन कहते हैं। इसे रीढ या धार भी कहा जाता है। धौलाधार इसी तरह की एक श्रंखला है। रिज लाइन कभी भी एक तल में नहीं होती बल्कि ऊंची-नीची होती है। इसमें कुछ चोटियां होती हैं तो कुछ नीची जगहें भी होती हैं। उन नीची जगहों को दर्रा कह सकते हैं। यह धार रेखीय होती है और इसके दोनों तरफ घाटियां होती हैं। अगर हमें एक घाटी से दूसरी घाटी में जाना है तो हमें वो धार पार करनी पडेगी। हमारे रास्ते का जो भी सबसे ऊंचा स्थान होगा, एक दर्रा होगा। यह रास्ता सडक मार्ग भी हो सकता है और पैदल पथ यानी ट्रैक भी। ध्यान रहे कि रिज लाइन पर चोटियां भी होती हैं और नीची जगहें भी। तो रास्ते उन चोटियों से होकर नहीं गुजरते। सुविधाजनक नीची जगह से होकर ही गुजरते हैं ताकि कम से कम चढाई करनी पडे।
चित्र को बडा करके देखने के लिये इस पर क्लिक करें।

ऊपर वाले चित्र से यह बात और ज्यादा स्पष्ट हो जायेगी। इसमें लाल लाइनें रिज लाइन हैं। हिमालय में रिज लाइनों का बहुत घना जाल बना है। इस चित्र में तीन नदी घाटियां हैं- ब्यास, चन्द्रा और स्पीति। इनके अलावा बहुत सी छोटी छोटी नदियां और नाले भी हैं जिनका पानी इन्हीं तीनों नदियों में से किसी एक में गिरता है। उन छोटी-छोटी नदियों और नालों की अपनी अपनी घाटियां हैं। अब हमें अगर किसी भी एक घाटी से दूसरी घाटी में जाना है तो कम से कम एक रिज लाइन पार करनी पडेगी। या तो सडक मार्ग से हम इसे पार करेंगे या फिर ट्रैकिंग करते हुए। जिस स्थान पर भी हम रिज लाइन को पार करेंगे, वो स्थान एक दर्रा होगा। ध्यान रहे, हमें इन्हें मात्र पार ही करना है; इसलिये हम आसान रास्ता चुनेंगे। कम से कम चोटियों पर तो नहीं चढेंगे। दो चोटियों के बीच में अपेक्षाकृत नीची जगह होगी, वहीं से हम इन्हें पार करेंगे।
रोहतांग और कुंजुम दर्रे पर सडक बनी है जबकि हामटा दर्रे पर सडक नहीं है। रोहतांग ब्यास और चन्द्रा घाटियों को जोडता है। ब्यास को कुल्लू घाटी भी कह देते हैं और चन्द्रा को लाहौल घाटी। इस तरह रोहतांग और हामटा दर्रे कुल्लू और लाहौल घाटियों को जोडने वाले मार्ग पर स्थित हैं। उधर कुंजुम लाहौल और स्पीति घाटियों को जोडने वाले मार्ग पर। इनके अलावा इसी नक्शे में बहुत से दर्रे और भी हैं जो बेहद दुर्गम हैं और केवल अनुभवी ट्रैकर्स ही उन्हें पार करते हैं।

अगर हम नीचे घाटी में खडे होकर देखें तो सामने कुछ-कुछ इस तरह का नजारा दिखता है। यह पर्वतमाला की रिज लाइन है। इससे जाहिर हो रहा है कि उस ऊबड-खाबड रिज लाइन पर कुछ ऊंची चोटियां हैं और कुछ दर्रे हैं।
उम्मीद है कि अब आपको ‘दर्रा’ समझ में आ गया होगा।
दर्रे को लद्दाख, लाहौल-स्पीति, सिक्किम समेत बौद्ध बहुल हिमालय में ‘ला’ कहते हैं, कश्मीर और जम्मू में ‘गली’, हिमाचल में ‘जोत’ और उत्तराखण्ड में ‘धार’ कहते हैं। पर्यटक स्थानों पर पर्यटकों को आकर्षित करने के लिये इन्हें ‘टॉप’ भी कह देते हैं। अभी कुछ दिन पहले हमारी मित्र-मण्डली में ‘टॉप’ शब्द को लेकर वाद-विवाद हो रहा था। तकनीकी भाषा में टॉप का अर्थ होता है चोटी, पीक। लेकिन जहां पर्यटकों का बहुत ज्यादा आना-जाना होता है, वहां किसी भी ऊंची जगह को टॉप कह देने का रिवाज हो जाता है। मैक्लोडगंज के पास त्रियुण्ड को त्रियुण्ड टॉप भी कहा जाता है लेकिन वह न चोटी है और न ही दर्रा। रोहतांग कुल्लू और लाहौल को मिलाता है इसलिये कुल्लू वालों के लिये यह ‘रोहतांग जोत’ है, लाहौल वालों के लिये ‘रोहतांग ला’ है और मनाली आने वाले पर्यटकों के लिये यह ‘रोहतांग टॉप’ है। मनाली में ज्यादातर पर्यटक ही होते हैं इसलिये स्थानीय एजेंट भी ‘टॉप’ शब्द का प्रयोग करते हैं और प्रशासन ने भी कई जगह किलोमीटर के पत्थरों पर ‘रोहतांग टॉप’ लिखा है। लेकिन तकनीकी शब्दावली में टॉप का अर्थ चोटी होता है, दर्रा नहीं।

7. घुमक्कड चर्चा
A. शलभ
शलभ से मेरी पहली और आखिरी मुलाकात 2009 में हुई थी। तब मैं उनकी वेबसाइट trekhimachal.com को कई बार खंगाल चुका था। वैसे तो शलभ हिमाचल के ही रहने वाले थे लेकिन उनकी शिक्षा-दीक्षा बंगाल और लखनऊ में हुई। बाद में उन्होंने लन्दन में भी कुछ समय नौकरी की। इस दौरान या पता नहीं किस दौरान उन्होंने हिमाचल के खूब ट्रैक किये। केवल ट्रैकिंग ही नहीं की बल्कि अच्छे जीपीएस से उनका डॉक्यूमेण्टेशन भी किया। पूरे रास्ते का जीपीएस की सहायता से दूरी-ऊंचाई नक्शा बनाया। इससे निर्जन इलाकों में ट्रैकिंग के लिये जाने वालों को अब भी बहुत सहायता मिलती है।
उन्होंने वेब डिजाइनिंग भी सीखी और उनकी वेबसाइट एक बेहद शानदार डिजाइन की हुई वेबसाइट है। इसमें कुछ भी फालतू नहीं है, केवल और केवल काम की ही चीजें हैं। उन्होंने जो ट्रैक किये, वे हैं- बरोट-बीड ट्रैक, इन्द्रहार दर्रा, भांग ट्रैक, जालसू पास, पराशर झील, तुंगा माता, करेरी झील, चामुण्डा टॉप, नोहरू पास, सारी पास, बलेनी पास, बन्नी माता, गज पास, लाम डल, मणिमहेश वाया सुख डाली, चौरासी का डल, साच पास, मिंकियानी पास, बडा भंगाल, मियाड ग्लेशियर, कांग ला, शिंगो ला, कुण्डली पास।
जाहिर है कि धौलाधार और हिमाचली पीर पंजाल को उन्होंने खूब नापा है। इनके अलावा जांस्कर में भी ट्रैकिंग की है। कहां गांव हैं, कहां ठिकाना है, कहां आपको टैंट लगाना पडेगा; सब विस्तार से लिखा है। लगता है कि उन्होंने लिखने के लिये ही ये ट्रैक किये।
अब वे कहां हैं, कुछ नहीं पता। जब हम मिले थे, तो उन्होंने बताया था कि वे अब बंगलौर जा रहे हैं। शायद नौकरी करने या फिर बिजनेस करने। उसके बाद न तो उनसे कोई मुलाकात हुई और न ही उन्होंने अपनी वेबसाइट पर कोई अपडेट किया।
[आपकी भी निगाह में कोई घुमक्कड है तो उसके बारे में 1000 शब्दों तक भेज दीजिये। सम्भव हो सके तो एक फोटो भी भेजिये।]

8. यात्रा कैलेण्डर
इसमें आपकी आगामी यात्राओं की सूचना दी गई है। कौन कब कहां जा रहा है; इसकी जानकारी यदि हमें रहेगी तो यह हमारे ही काम आयेगी। हमें यात्राओं के लिये नये-नये साथी मिलेंगे। आप भी अपनी आगामी यात्राओं की जानकारी दीजिये। इसके लिये नीचे कमेण्ट में, neerajjaatji@gmail.com पर मेल करके, फेसबुक का प्रयोग कर सकते हैं और 9650270044 पर व्हाट्स-एप भी।
1. सुभाष शर्मा (निन्दक नियरे राखिये)- 1-4 सितम्बर, भुज, वायुमार्ग
2. पटना से राहुल कुमार- 2-7 सितम्बर, ट्रेन से, वृन्दावन।
3. दीपक कुमार- 3-9 सितम्बर- दिल्ली से मुम्बई, दमन सिलवासा ट्रेन से
4. तैय्यब खान- किन्नौर, स्पीति 5 सितम्बर बाइक से
5. विजयकुमार भवारी- 5-7 सितम्बर, नागपुर।
6. नीरज जाट- 6-17 सितम्बर, अण्डमान यात्रा, दिल्ली-चेन्नई के बीच ट्रेन, बाकी फ्लाइट।
7. प्रतीक गांधी (9819970183)- इनोवा से किन्नौर-स्पीति यात्रा, 8-18 सितम्बर (किसी को आना है तो दो जगह खाली है। उससे यात्रा का किराया शेयर नहीं किया जायेगा।)
8. योगेन्द्र सिंह- श्रीनगर 10 सितम्बर वायुमार्ग
9. सचिन त्यागी- 11-15 सितम्बर, कुमाऊं (भीमताल, नौकुचियाताल, अल्मोडा, बिनसर, रानीखेत, बैजनाथ, जागेश्वर) कार से
10. कपिल मेहता- 11-14 सितम्बर- इन्द्रहार दर्रा
11. सुरेन्द्र सिंह रावत- सितम्बर मध्य में फूलों की घाटी, बस से और पैदल, ऑफिस मित्रों के साथ
12. नरेश सहगल- 24-27 सितम्बर, बाइक से चोपता तुंगनाथ, चन्द्रशिला, देवरिया ताल
13. सचिन कुमार-25-30 सितम्बर- नासिक, शिरडी, शनि सिंगनापुर, त्र्यंबकेश्वर, परली वैजनाथ, औण्ढा नागनाथ, घृष्णेश्वर, भीमाशंकर, अजन्ता, एलोरा
14. पटना से राहुल कुमार- सितम्बर के अन्त में गंगोत्री-यमुनोत्री
15. ग्वालियर से प्रशान्त दासेन- 28 सितम्बर-1 अक्टूबर, गोवा, 2-3 अक्टूबर, शिरडी
16. बीनू कुकरेती- 1-6 अक्टूबर- रूपकुण्ड
17. मनोज बिष्ट- 3-8 अक्टूबर, अण्डमान
18. तरुण तिवारी- नवम्बर में आन्ध्र, केरल, तमिलनाडु
19. विनय श्रीवास्तव- नवम्बर में जिम कार्बेट
20. सचिन गावडे- बाइक से नेपाल यात्रा- नवम्बर में
21. प्रिंस सनी- दिसम्बर के दूसरे सप्ताह में कन्याकुमारी, रामेश्वरम, तिरुपति
22. कुंवर कुलदीप सिंह- जनवरी 2016 में अण्डमान, फ्लाइट से
23. अंकित मलिक- मार्च 2016 में, शामली से हरिद्वार, गोपेश्वर, मसूरी, पौण्टा साहिब

9. यात्रा समाचार
कई ट्रेनें कटरा तक बढीं
सितम्बर के पहले सप्ताह से जम्मू तवी तक जाने वाली कई ट्रेनें श्री माता वैष्णों देवी कटरा स्टेशन तक बढा दी गई हैं। इनमें नई दिल्ली-ऊधमपुर उत्तर सम्पर्क क्रान्ति (12445/46), दिल्ली-ऊधमपुर जम्मू मेल (14033/34), चेन्नई-जम्मू अण्डमान एक्सप्रेस (16031/32), कन्याकुमारी-जम्मू हिमसागर एक्सप्रेस (16317/18), मंगलौर-जम्मू नवयुग एक्सप्रेस (16687/88), जबलपुर-जम्मू एक्सप्रेस (11449/50), कोटा-जम्मू एक्सप्रेस (19803/04), बान्द्रा-जम्मू स्वराज एक्सप्रेस, अहमदाबाद-जम्मू सर्वोदय एक्सप्रेस, हापा-जम्मू, जामनगर-जम्मू (12471/72/73/74/75/76/77/78) को श्री माता वैष्णों देवी कटरा तक बढा दिया गया है जबकि मेरठ के रास्ते कानपुर से जम्मू जाने वाली 14155/56 को ऊधमपुर तक बढाया है।

शेखावाटी में नई ट्रेन
गेज परिवर्तन का कार्य पूरा हो जाने के बाद लोहारू-सीकर मार्ग आम यातायात के लिये खुल गया है। दिल्ली सराय रोहिल्ला से सीकर के बीच एक एक्सप्रेस ट्रेन (14811/12) सितम्बर के पहले सप्ताह से चलाई जायेगी। यह ट्रेन सराय रोहिल्ला से सुबह 06:50 पर चलेगी और दिल्ली छावनी, गुडगांव, रेवाडी, महेन्द्रगढ, लोहारू, सूरजगढ, चिडावा, झुंझनूं, डूंडलोद मुकुन्दगढ और नवलगढ के बाद 13:15 बजे सीकर पहुंचा करेगी। वापसी में यह ट्रेन 14:00 बजे सीकर से चलकर 21:00 बजे सराय रोहिल्ला आया करेगी। यह ट्रेन दोनों ओर से प्रत्येक बुधवार और शुक्रवार को चला करेगी।

पलवल स्टेशन पर इंटरलॉकिंग, कई ट्रेनें रद्द, मार्ग बदले
सितम्बर के पहले सप्ताह में पलवल स्टेशन पर इंटरलॉकिंग के कारण कई ट्रेनों को रद्द कर दिया गया है। कई के मार्ग बदल दिये हैं। रद्द ट्रेनों में कोटा जनशताब्दी, महाकौशल, श्रीधाम, पुणे दूरन्तो, सिकन्दराबाद दूरन्तो, चेन्नई दूरन्तो, यशवन्तपुर सम्पर्क क्रान्ति, बान्द्रा गरीब रथ, मेवाड, देहरादून-बान्द्रा, फिरोजपुर जनता समेत कई ट्रेनें हैं। दिल्ली लोकल में चलने वाली कई ईएमयू भी रद्द रहेंगी। अगर आपका भी इस रूट की किसी ट्रेन में आरक्षण है तो उसे इस लिंक पर जाकर जांच लीजिये कि आपकी ट्रेन रद्द है या चलेगी।
इनके अलावा इस रूट पर चलने वाली कई ट्रेनों के मार्ग भी बदले हैं। मार्ग बदले जाने से ट्रेनें अपने निर्धारित समय से देरी से चलेंगीं। जैसे कि केरला एक्सप्रेस, कर्नाटक एक्सप्रेस, एपी एक्सप्रेस, समता एक्सप्रेस, छत्तीसगढ, कलिंग उत्कल समेत कई ट्रेनों को अलीगढ, टूण्डला के रास्ते निकाला जायेगा। इससे टूण्डला-दिल्ली मार्ग भी बाधित होगा। कुछ ट्रेनों के चलने के समय में परिवर्तन भी किया जा सकता है। किन ट्रेनों के चलने के समय में परिवर्तन किया जायेगा, यह जानकारी अभी उपलब्ध नहीं है लेकिन फिर भी मानकर चलिये कि कुछ ट्रेनों का प्रस्थान समय बदलेगा। ट्रेन इंक्वायरी पर अपनी ट्रेन पर लगातार निगाह रखना ही बेहतर है। चेन्नई से हमें पोर्ट ब्लेयर की फ्लाइट पकडनी थी, हमारी बर्थ दूरोन्तो में आरक्षित थी लेकिन चेन्नई दूरोन्तो रद्द हो गई है, इसलिये हमें चेन्नई जाने के लिये दूसरा विकल्प चुनना पडेगा। आप भी अपनी ट्रेनों पर और विकल्पों पर नजर रखिये।

10. फोरम
कुछ दिन पहले एक फोरम बनाया था। इसका लक्ष्य था मित्रों की साझेदारी और आपस में चर्चा-वार्तालाप। कुछ सदस्य इसमें जुडे भी हैं लेकिन अब उसकी रफ्तार थम सी गई है। जब तक इससे कोई सार्थक परिणाम नहीं निकलेगा, रफ्तार थमी ही रहेगी। अपनी व्यस्तताओं के कारण मेरा इसमें ज्यादा समय देना मुश्किल है। आपमें से अगर कोई इच्छुक हो तो बता दीजिये, आपको इसका एडमिन बना देंगे।
इसमें यात्रा-वृत्तान्त प्रकाशित करने का विकल्प भी है लेकिन मैं चाहता हूं कि इसके लिये आप अपना ब्लॉग बनायें। उस ब्लॉग के यूआरएल को इस फोरम में अपने सिग्नेचर के साथ जोड सकते हैं। इस फोरम में ही क्यों? जितने भी अन्य फोरम हैं, सभी में अपने सिग्नेचर के साथ आप वार्तालाप कर सकते हैं। कुछ फोरम जैसे इण्डियामाइक, बीसीएमटूरिंग, टीम बीएचपी आदि पर खूब ट्रैफिक होता है। आप उनमें सम्मिलित होकर अपने ब्लॉग का भी ट्रैफिक बढा सकते हैं।
फिर हमारे इस फोरम का क्या होगा? इसके यात्रा-वृत्तान्त के कॉलम को आप एक डायरी के तौर पर इस्तेमाल कर सकते हैं। कहीं घूमने जा रहे हैं, उसके कुछ खास अनुभव इसमें लिख दिये। बाद में अपने उन अनुभवों के आधार पर अपनी पोस्ट तैयार कर लें।
पुनश्च, यदि आप इस फोरम को चलाने के इच्छुक हैं तो जरूर सूचित करें। मैं इसमें ज्यादा समय नहीं दे पाऊंगा।

11. फोटो प्रतियोगिता-1

इस प्रतियोगिता के लिये आप अपने खींचे फोटो भेज सकते हैं। नियम इस प्रकार हैं:
1. एक व्यक्ति केवल एक ही फोटो भेज सकता है। 
2. फोटो अधिकतम 500 KB साइज का हो। इससे बडा फोटो स्वीकार नहीं किया जायेगा।
3. फोटो के साथ कैप्शन भी अनिवार्य है। बिना कैप्शन का फोटो स्वीकार नहीं किया जायेगा। कैप्शन अधिकतम 50 शब्दों तक हो। 
4. फोटो भेजने की अन्तिम तिथि 25 सितम्बर 2015 है। इसके बाद फोटो प्रतियोगिता-1 के लिये आये फोटुओं पर गौर नहीं की जायेगी। 
5. इसके लिये किसी इनामी राशि का प्रावधान नहीं है। अगली घुमक्कड पत्रिका में आपके फोटो के आधार पर सर्वोत्तम फोटोग्राफर का चुनाव किया जायेगा और सभी प्रतिभागियों को रैंक दी जायेगी। 
6. सभी फोटुओं को अंक देने का कार्य एक निर्णायक समिति करेगी। यदि आप भी समिति के सदस्य होना चाहते हैं, तो इसकी स्वीकृति दें। अगर आप समिति के सदस्य हुए तो आप अपने भेजे फोटो को अंक नहीं दे सकते। आप केवल दूसरे के फोटुओं को ही अंक दे सकते हैं। इन अंकों का औसत निकालकर फोटुओं को रैंक मिलेगी।
7. फोटो neerajjaatji@gmail.com पर या मेरे फेसबुक पेज पर लगायें या मुझे इनबॉक्स करें। किसी भी फोटो में मुझे टैग न करें। टैग वाले फोटुओं पर गौर नहीं की जायेगी। 9650270044 पर व्हाट्सएप भी कर सकते हैं। 

12. लेख भेजने के नियम

1. अपने अप्रकाशित यात्रा-वृत्तान्त (अधिकतम 1000 शब्द, 5 फोटो, प्रत्येक फोटो अधिकतम 500 केबी)) आप भेज सकते हैं। यदि आपने कोई साहसिक यात्रा की है (ट्रेकिंग, साइकिलिंग, दुर्गम इलाकों में मोटरसाइकिल, कार यात्रा) तो आप अधिकतम 5000 शब्द और 10 फोटो, प्रत्येक फोटो अधिकतम 500 केबी तक भेज सकते हैं। यदि साहसिक यात्रा-वृत्तान्त और भी लम्बा हुआ तो उसे दो या अधिक भागों में प्रकाशित करा सकते हैं। यात्रा-वृत्तान्त केवल हिन्दी में ही भेजें।
2. यदि आपका यात्रा-वृत्तान्त इंटरनेट पर पहले आपके ब्लॉग, वेबसाइट या अन्य किसी जगह छप चुका है तो उसे ‘घुमक्कड पत्रिका’ में नहीं प्रकाशित किया जा सकता। आप उसका लिंक भेज सकते हैं, ताकि पाठक सीधे आपके यहां जाकर पढ सकें। ऐसा यात्रा-वृत्तान्त हिन्दी, अंग्रेजी समेत किसी भी भाषा में हो सकता है।
3. फोटोग्राफी और यात्रा-वृत्तान्त लेखन से सम्बन्धित तकनीकी जानकारियां भी आप भेज सकते हैं।
4. यात्राओं से या यात्रा-वृत्तान्त, फोटोग्राफी से सम्बन्धित अपना कोई प्रश्न, जिज्ञासा आदि भेज सकते हैं। समाधान करने का प्रयत्न किया जायेगा।
5. आपके आसपास या आपकी जान-पहचान में कोई ऐसा व्यक्ति हो जिसने घुमक्कडी में कुछ विलक्षण किया हो; आप उसके बारे में, उसके कार्यों के बारे में बता सकते हैं।
6. यात्राओं से सम्बन्धित समाचार आप भेज सकते हैं।
7. आप अपनी सेवाओं जैसे होटल, ट्रैवल एजेंसी; इसकी खासियतों और सुविधाओं के बारे में बता सकते हैं। (इसके बदले आपसे विज्ञापन राशि ली जा सकती है।)
8. आपको जो भी कुछ भेजना है, मेरी ई-मेल आईडी neerajjaatji@gmail.com पर ही भेजें। भेजने की कोई अन्तिम तिथि नहीं है। प्रत्येक महीने की पहली तारीख को ‘घुमक्कड पत्रिका’ प्रकाशित हुआ करेगी। आपका मैटेरियल यथासम्भव प्रकाशित कर दिया जायेगा



Comments

  1. बहुत शानदार प्रस्तुति।

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  2. Laazawab neeraj. Ab tumne bahut Hi shaandaar kaam kiya hai. Dil khush kar diya

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  3. Laazawab neeraj. Ab tumne bahut Hi shaandaar kaam kiya hai. Dil khush kar diya

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  4. Congratulation , brother .
    shandar starting he . Aapke is prayog se likhane ki prerana milegi .

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  5. नीरज साहब आपने तो ब्लॉग के माध्यम से गागर में सागर भर दिया।
    भाई ये ओपचारिक टिप्पड़ी नहीं है, मन से कह रहा हूँ।

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  6. नीरज जी..... आपकी घुमक्कड़ पत्रिका बहुत अच्छी लगी | इस पत्रिका के माध्यम से आपने बहुत ही शानदार जानकारियाँ , ब्लॉगस, यात्रा अनुभव, घुमक्कड़ समाचार ब्लोगर भाइयो के द्वारा की जानी वाली यात्रा की जानकारी और अन्य महत्वपूर्ण जानकारियों पूरक सामग्रियों को समावेश कर वास्तव में गागर में सागर को भर दिया है |
    आप चाहे तो मेरे ब्लॉग को भी आप अपनी इस पत्रिका में शामिल कर सकते है मुझे ख़ुशी होगी |
    धन्यवाद |
    ब्लॉग का पता
    www.safarhaisuhana.com

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    1. धन्यवाद रीतेश जी...
      आपने वेबसाइट बना ली, पता ही नहीं चला। खैर, आपकी वेबसाइट को जोड दिया है। अगली बार इसकी सूचना दी जायेगी।

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  7. नीरज बहुत अच्छा प्रयास है ! अब कम से कम यात्रा वृतांत लिखने वाले ब्लॉगर एक दुसरे को पहिचान तो सकेंगे ! मैं भी यात्रा ब्लॉग लिखता हूँ और मेरा लिंक
    http://yogi-saraswat.blogspot.in मेरा लिंक भी शामिल करेंगे तो ख़ुशी होगी !!

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    1. धन्यवाद सारस्वत जी...
      आपका ब्लॉग अगली बार से शामिल किया जायेगा।

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  8. "घुमक्कड़" पत्रिका के सुन्दर व सार्थक आगाज के लिए आपको बधाई व अनेकानेक शुभकामनये I आपकी यह पत्रिका निश्चित ही हम जैसे नए लोगो के लिए अत्यंत उपयोगी व मार्गदर्शक साबित होगी, यह आपसे फेसबुकी मिलन का ही परिणाम है कि समान रूचि वाले अनेक मित्रो को जानने का मौका इस माध्यम से आपने दिया है I घुमक्कड़ पत्रिका के पहले अंक के साथ ही पहली बार इसमें फेसबुक के बाहर कंही अपने यात्रा अनुभव बाँट कर सुखद अनुभव हो रहा है I आभार आपका, उम्मीद है यह पत्रिका नयी ऊंचाइयां छुएगी I

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  9. Neeraj, bahut badhiya.

    Shalabh aajkal US me hai, aur ye trek shalabh ne naukri chodne ke baad waapis India me aake kiye the.

    Ye magazine ek bahut badhiyua initiative hai, aur dkeh ke hi pata chal raha hai kitni mehnat aur pyar se ye text ek saleeke se sanjoya gaya hai :)

    chalte raho, badhte raho

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    1. धन्यवाद तरुण भी...
      आपने शलभ के बारे में बताया। अब ये भी बताना कि वे भारत कब आयेंगे। मिलने की इच्छा है।

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  10. Replies
    1. धन्यवाद सर जी...आपकी यात्रा इसी पोस्ट में जोड दी गई है।

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  11. मेरा यात्रा ब्लॉग
    http://vijaybhawari.blogspot.in/
    ----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------

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    1. आपका ब्लॉग जोड दिया है। अगली बार से इसके बारे में प्रकाशन होगा।

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  12. Bahut badhiya jaankari di hai Neeraj bhai,aapka pryas sarahniya hai.Sach kahoon to sabse pahle mera pala aapse hi pada tha.pahli bar Hastinapur search kar raha tha tabhi aapka blog padha tha aaj se lagbhag 5 saal pahle. tabse maine aapke saare yatra vrtant padhe hain.aapka dwara hi maine aur bloggers ko bhi jana jaise-Sandeep bhai,Riteshji,Darshan ji,Sahgal sahab,Pawllaji,Manish ji,Manu tyagi ji,Sachin Bhai, aadi aadi.ye jankari to jaise sone par suhaga aur mil gayi.aur bhi margdarshan milega.mujhe bhi bas ek hi shok hai Ghumne ka,kabhi akele kabhi parivaar ke sath.par program fix nahin hota,jaise mouka laga basa nikal padte hain.aapke margdarshan main ek baar hum bhi Binsar mahadev hokar aa chuke hain june 2014 main.aage bhi aapka margdarshan milta rahega isi shubhkamna ke sath ye pryas sarahniya hai. Dhanyabad.

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    1. आपका भी बहुत बहुत धन्यवाद रूपेश जी...

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  13. Dear Neeraj, Good initiative
    My blog's link are as under
    bhartianand1359.blogspot.in

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    1. धन्यवाद आनन्द जी, आपका ब्लॉग जोड दिया है। अगली बार से दिखने लगेगा।

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  14. शानदार...प्रस्तुती
    एक और कदम बुलंदी की और...

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  15. This comment has been removed by the author.

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  16. बहुत बढ़िया है !

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  17. बहुत अच्छा प्रयास 😊😊😊😊

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  18. Thanks for a unique initiative! Soon I will write my journey-with a truck driver.It would be an unique travel experience storey.

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    1. बिल्कुल, आपकी यात्रा एक अलग ही तरह की यात्रा होगी। जल्दी लिखिये।

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  19. बहुत बढ़िया शुरुआत ,सभी के लिए कुछ न कुछ मैटर है । सब कुछ पढ़ने समझने के बाद महसूस हुआ की डायरी के पन्ने के बिना यह अधूरा लगा । यदि डायरी के पन्ने नाम से ही इसमे मैटर दिया करे तो डायरी के पन्ने की कमी महसूस नहीं होती । वैसे सबको साथ लेकर चलना बढ़िया बात है । नई शुरुआत के लिए हार्दिक शुभकामनाए ।

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    1. सबकुछ तो है यहां जो डायरी के पन्ने में हुआ करता था। फिर भी उस कॉलम में क्या लिखना है, बता दीजिये। धन्यवाद।

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  20. शानदार शुरूआत
    शाब्बाश नीरज

    ये बात सही है कि बदले में देना शुरू कर दें। इसका सबसे आसान तरीका है लिखना

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद पाबला जी...

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  21. नीरज जी आपका प्रयाश सराहनीय है
    बड़ा अच्छा लगा घुमक्कड़ पत्रिका पढ़कर
    और शेखावाटी से जो ट्रेन चली है उसके रूट में सुजानगढ़ नहीं सूरज गढ़ आता है।

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद मनीष भाई... सुजानगढ को सूरजगढ कर दिया है।

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  22. अभी तक का सबसे सर्वोत्तम पत्रिका।शायद पहली जो हर तरह की जिज्ञासा को तर्प्त करने वाली है।
    नीरज भाई आपकी यह पहल बहुत ही अच्छी है।
    धन्यवाद

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  23. Nice initiative ....very useful for follow ghumakkars

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  24. Nice initiative ....very useful for follow ghumakkars

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  26. Brilliant initiative, and brilliant beginning.
    Since it is first edition, so I’m sure there are lot of scope for improving its format as it goes forward.
    One thing that made me little uncomfortable was length of the ‘magazine’, it is covering a lot of items and by the end it became difficult to keep track of items.
    So few suggestions :-)
    1) How about keeping it simple – reducing number of sections.
    2) How about marking each as a special edition, e.g. – Photography edition or Books reviews edition.
    Or Start a new blog, with all sections as separate permanent tabs.
    Hope you won’t mind these suggestions.
    Good luck brother!!!

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    1. हां, यह पोस्ट बहुत लम्बी है और अगर भविष्य में इसके और भी लम्बा होने की सम्भावना है। चूंकि इसे पत्रिका नाम दिया गया है तो जरूरी नहीं है कि आप इसे एक ही दिन में पढें। दो दिन, तीन दिन, चार दिन लगाइये... तभी मजा है।
      स्पेशल एडिशन का विचार बहुत अच्छा है लेकिन यह तभी सम्भव है जब मित्र लोग भी सहयोग करें। मेरे लिये किसी भी विषय पर विशेषज्ञ लेख लिखना सम्भव नहीं है।

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  27. Ye badiya kaam kar rahe ho ,,,ghumkdon me kaafi kaam aayega ,,,aapka ye paryas,,,namskar

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  28. Shabd Dhudhen Ja rahe hi comment Karne ke lie ..filhal to koe shabd nahi mil raha hi..

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  29. मन प्रसन्नचित्त हो गया नीरज भाई। वैसे मैं कुछ दिनों से उडुपी गया हुआ था और फेसबुक पर सक्रिय नहीं था इसीलिए इस योजना का पता नहीं चल पाया। आपने जो काम आरम्भ किया है,ये हम सभी घुमक्कड़ों को और प्रेरित करेगी। जैसे हमेशा से करती आई है। वैसे अगली यात्रा २५ सितम्बर से ३० सितम्बर गोआ की है,पर अच्छा ये है की इसबार समुद्र तट की बजाय ग्रामीण गोवा का जायका लिए जायेगा।अनछुए स्थान ढूंढे जायेंगे और सलीम अली नेसनल पार्क जाया जायेगा। उसके बाद अगले महीने जोग जाने का इरादा है पहले हफ्ते।

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  30. इस घुमक्कड़ पत्रिका के लिए आपने कितनी मेहनत की है वो तो इसे पढ़कर ही समझ आ गया ,आप वाकई बधाई के पात्र हैं जो इतना अच्छा माध्यम दिया हमें एक -दुसरे को जानने के लिए ,यह पत्रिका वाकई सबके लिए मददगार साबित होगी ,पुनः बधाई एवं धन्यवाद्

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  31. सराहनीय प्रयास। आप का कठिन परिश्रम पत्रिका में झलक रहा है। आपका ब्लाग और अब ये घुमक्कङ पत्रिका मुझ जैसे नवआगंतुको के लिए बहुत सहायक होगी। मेरी तरफ से आप को बहुत बहुत धन्यवाद।

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  32. शानदार पत्रिका l हमारे जैसे नये घुमक्कर को इससे काफी सहायता मिलेगी l यात्रा-कलैंडर में अपना नाम देखकर अच्छा लगा l इस बीच मैं वृन्दावन की यात्रा से होकर वापस आ गया l वहाँ से करीब ३५ किमी दूर गोवर्धन भी गया था तथा वहाँ गोवर्धन की २१ किमी की परिक्रमा नंगे पाँव ही की थी l मुझे blog लिखने का आदत नहीं है लेकिन अब प्रयास रहेगा की आगे से किसी यात्रा पर जाऊँ तो उसका वर्णन जरुर लिखूँ l

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  33. नीरज जी मेरे ख्याल से घुमक्कड़ और पर्यटक में जो बेसिक डिफरेंस होता है वो है की घुम्मकड़ प्रचलित टूर प्रोग्राम्स को फॉलो नहीं करता .... आप खुद को राहुल सांकृत्यायन जी बना कर एक फॉलोवर बना रहे हैं ..... जो आप को एक पर्यटक बना देगा .... उन्होंने अपने तरीके से घुमक्कडी की आप आप के तरीके से करते रहें .... जहां अच्छा लगे घूमिये .... जहा अच्छा लगे रुकिए ... जहा मूड करे चाय नाश्ता कीजिये / खाना खाइये या फोटो खींचिए ..... मेरे हिसाब से यही घुमक्कडी है .... बाकी आप बेहतर जानते हैं ...

    नवीन प्रताप सिंह

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  34. वाह नीरज जी पत्रिका पढ़कर मज़ा आ गया. क्या कुछ नहीं है इसमें? एक घुमक्कड़ की क्षुधा शांत करने के लिए ये ई-पत्रिका किसी छप्पन भोग से कम नहीं है. आपका ये प्रयास बेजोड़ है, इस तरह की पत्रिका हिन्दी में मैनें तो अब तक कहीं नहीं पढ़ी. सभी अध्याय जानकारी पारक तथा अनमोल हैं लेकिन मुझे सबसे अच्छा कॉलम लगा "जिज्ञासा". आशा है ये पत्रिका बहुत प्रसिद्ध होगी.

    इस अनूठी पत्रिका में मेरे ब्लॉग को भी शामिल करने की कृपा करें - http://www.mukeshbhalse.blogspot.in/ (Travel with Mukesh). 90% सामग्री हिन्दी में है, बाकी आगे भी हिन्दी में ही लिखने का प्रयास है.

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  35. Nice initiative ....neeraj bro,very useful for follow ghumakkars.
    Please also add my travel blog url http://travelbynitin.blogspot.com. in this travel series.

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  36. Nice initiative ....neeraj bro,very useful for follow ghumakkars.
    Please also add my travel blog url http://travelbynitin.blogspot.com. in this travel series.

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  37. अच्छा तो ये है पत्रिका ।पर इसके बारे में घुमक्कडी पर बोला होता तो अच्छा होता ना । अब वहां अपने लिंक शेयर किया करो ।

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46 रेलवे स्टेशन हैं दिल्ली में

एक बार मैं गोरखपुर से लखनऊ जा रहा था। ट्रेन थी वैशाली एक्सप्रेस, जनरल डिब्बा। जाहिर है कि ज्यादातर यात्री बिहारी ही थे। उतनी भीड नहीं थी, जितनी अक्सर होती है। मैं ऊपर वाली बर्थ पर बैठ गया। नीचे कुछ यात्री बैठे थे जो दिल्ली जा रहे थे। ये लोग मजदूर थे और दिल्ली एयरपोर्ट के आसपास काम करते थे। इनके साथ कुछ ऐसे भी थे, जो दिल्ली जाकर मजदूर कम्पनी में नये नये भर्ती होने वाले थे। तभी एक ने पूछा कि दिल्ली में कितने रेलवे स्टेशन हैं। दूसरे ने कहा कि एक। तीसरा बोला कि नहीं, तीन हैं, नई दिल्ली, पुरानी दिल्ली और निजामुद्दीन। तभी चौथे की आवाज आई कि सराय रोहिल्ला भी तो है। यह बात करीब चार साढे चार साल पुरानी है, उस समय आनन्द विहार की पहचान नहीं थी। आनन्द विहार टर्मिनल तो बाद में बना। उनकी गिनती किसी तरह पांच तक पहुंच गई। इस गिनती को मैं आगे बढा सकता था लेकिन आदतन चुप रहा।

ट्रेन में बाइक कैसे बुक करें?

अक्सर हमें ट्रेनों में बाइक की बुकिंग करने की आवश्यकता पड़ती है। इस बार मुझे भी पड़ी तो कुछ जानकारियाँ इंटरनेट के माध्यम से जुटायीं। पता चला कि टंकी एकदम खाली होनी चाहिये और बाइक पैक होनी चाहिये - अंग्रेजी में ‘गनी बैग’ कहते हैं और हिंदी में टाट। तो तमाम तरह की परेशानियों के बाद आज आख़िरकार मैं भी अपनी बाइक ट्रेन में बुक करने में सफल रहा। अपना अनुभव और जानकारी आपको भी शेयर कर रहा हूँ। हमारे सामने मुख्य परेशानी यही होती है कि हमें चीजों की जानकारी नहीं होती। ट्रेनों में दो तरह से बाइक बुक की जा सकती है: लगेज के तौर पर और पार्सल के तौर पर। पहले बात करते हैं लगेज के तौर पर बाइक बुक करने का क्या प्रोसीजर है। इसमें आपके पास ट्रेन का आरक्षित टिकट होना चाहिये। यदि आपने रेलवे काउंटर से टिकट लिया है, तब तो वेटिंग टिकट भी चल जायेगा। और अगर आपके पास ऑनलाइन टिकट है, तब या तो कन्फर्म टिकट होना चाहिये या आर.ए.सी.। यानी जब आप स्वयं यात्रा कर रहे हों, और बाइक भी उसी ट्रेन में ले जाना चाहते हों, तो आरक्षित टिकट तो होना ही चाहिये। इसके अलावा बाइक की आर.सी. व आपका कोई पहचान-पत्र भी ज़रूरी है। मतलब

जिम कार्बेट की हिंदी किताबें

इन पुस्तकों का परिचय यह है कि इन्हें जिम कार्बेट ने लिखा है। और जिम कार्बेट का परिचय देने की अक्ल मुझमें नहीं। उनकी तारीफ करने में मैं असमर्थ हूँ क्योंकि मुझे लगता है कि उनकी तारीफ करने में कहीं कोई भूल-चूक न हो जाए। जो भी शब्द उनके लिये प्रयुक्त करूंगा, वे अपर्याप्त होंगे। बस, यह समझ लीजिए कि लिखते समय वे आपके सामने अपना कलेजा निकालकर रख देते हैं। आप उनका लेखन नहीं, सीधे हृदय पढ़ते हैं। लेखन में तो भूल-चूक हो जाती है, हृदय में कोई भूल-चूक नहीं हो सकती। आप उनकी किताबें पढ़िए। कोई भी किताब। वे बचपन से ही जंगलों में रहे हैं। आदमी से ज्यादा जानवरों को जानते थे। उनकी भाषा-बोली समझते थे। कोई जानवर या पक्षी बोल रहा है तो क्या कह रहा है, चल रहा है तो क्या कह रहा है; वे सब समझते थे। वे नरभक्षी तेंदुए से आतंकित जंगल में खुले में एक पेड़ के नीचे सो जाते थे, क्योंकि उन्हें पता था कि इस पेड़ पर लंगूर हैं और जब तक लंगूर चुप रहेंगे, इसका अर्थ होगा कि तेंदुआ आसपास कहीं नहीं है। कभी वे जंगल में भैंसों के एक खुले बाड़े में भैंसों के बीच में ही सो जाते, कि अगर नरभक्षी आएगा तो भैंसे अपने-आप जगा देंगी।