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राधानगर बीच @ हैवलॉक द्वीप

21 जनवरी 2017
वही जहाज जिससे हम कल नील द्वीप आये थे, हमें आज हैवलॉक ले जायेगा। आज सुबह साढ़े सात बजे यह पॉर्ट ब्लेयर से चलेगा और साढ़े नौ बजे नील आ जायेगा। आधे घंटे बाद हैवलॉक के लिये प्रस्थान कर जायेगा।
यहाँ सुबह जल्दी हो जाती है, लेकिन अपनी आदत वही आठ-नौ बजे सोकर उठने की है। होटल का चेक-आउट समय साढ़े सात बजे था। मुझसे पहले दीप्ति उठ गयी। चमत्कार! कहने लगी कि उठ, समुद्र तट पर चलकर नहाते हैं। मैंने मना कर दिया। वह आराम से बिना गुस्सा किये चली गयी। महा चमत्कार!!
जल्दी ही वापस लौट आयी - बिना नहाये। बताया कि यह कोरल तट है। नहाना बहुत मुश्किल है। कोरल तटों पर चोट बड़ी आसानी से लगती है और लगती भी ऐसी है कि खून निकल आता है।





चेक-आउट करते-करते साढ़े आठ बज गये। मुझे लग रहा था कि होटल मालकिन अतिरिक्त पैसे लेगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। वैसे मैं ‘लड़ने’ की तैयारी करके गया था। सोच रखा था कि कुछ भी हो जाये, अतिरिक्त पैसे नहीं देने हैं। वैसे तय समय से अधिक देर तक रुकने के लिये हम दोषी थे।
बाहर मेन रोड़ पर आकर ऑटो की प्रतीक्षा करने लगे। एक इलेक्ट्रिक रिक्शा आया। हम बिना कुछ कहे बैठ लिये और मुख्य बाज़ार में उतर गये। अस्सी रुपये माँगने लगा। मैंने कहा कि दस-दस रुपये लगते हैं, कल ऑटो वाले ने भी इतने ही लिये थे। हम शेयर में आये हैं। सुनते ही चुपचाप बीस रुपये रख लिये।
डोसा खाने की इच्छा थी। इसके लिये ‘साउथ इंडियन ढाबे’ से बेहतर भला और क्या हो सकता था? दो प्लेट मसाला डोसे का ऑर्ड़र दे दिया। दूसरी मेज पर कुछ पुलिसवाले प्लेन डोसा खा रहे थे। एक यात्री इड़ली और दूसरे कुछ पराँठे का आनंद ले रहे थे। मालकिन बड़ी चपलता से सभी का ध्यान रखे हुए थी।
जेट्टी पर चहल-पहल थी। पौने दस बजे पॉर्ट ब्लेयर से जहाज आया - ओशन क्रूज। पहले पोर्ट ब्लेयर से आये यात्री उतरे, फिर हम लोग चढ़े। इस बार बायीं तरफ़ वाली सीटें मिलीं। यानी पूरे रास्ते भर हमें हैवलॉक द्वीप के पूर्वी तट के नज़ारे मिलने वाले थे।
जहाज चला तो सामना बड़ी-बड़ी लहरों से होने लगा। ऐसा लग रहा था कि आज लहरें कल के मुकाबले ज्यादा बड़ी थीं। जहाज का अगला हिस्सा ऊपर उठकर जब नीचे गिरता तो उससे पानी की बौछार हो जाती। यह बौछार जिस स्थान पर समुद्र में विलीन होती, उस स्थान पर छोटा-सा इंद्रधनुष बन जाता। दीप्ति ने इसकी ‘खोज’ की। फिर मुझे बताया। बड़ी देर बाद बात मेरे पल्ले पड़ी।
साढ़े ग्यारह बजे हैवलॉक द्वीप उतरे। विकट धूप थी। मोबाइल में गूगल मैप खोला, तो हमारी लोकेशन आ गयी। जिस होटल में हमारी बुकिंग थी - पानो इको रिसॉर्ट - उसकी भी लोकेशन इसमें पहले से ही सेव थी। लेकिन इंटरनेट न चलने के कारण दूरी का पता नहीं चल सका। मैंने सोचा कि नील द्वीप की तरह ही मुख्य बाज़ार पास में ही होगा। होटल आधेक किलोमीटर दूर ही होगा। इसलिये हम धूप में ही निकल गये। एक किलोमीटर चलने के बाद भी जब बाज़ार नहीं आया, तो मैप में देखा। पता चला कि अभी तो आधी दूरी भी तय नहीं की है। तेज धूप और पैरों में पड़े छालों के कारण चलने की हिम्मत नहीं बची थी - न मेरी और न ही दीप्ति की। अगर पहले ही पता होता कि होटल ढाई-तीन किलोमीटर दूर है, तो हम ऑटो ले लेते। लेकिन अब एक किलोमीटर चलने के बाद ऑटो लेने का मन नहीं किया।
होटल जाते ही दोनों निढ़ाल होकर पड़ गये। दो घंटे तक बेसुध पड़े रहे। कमरे के दरवाजे भी खुले रहे। दो बजे जब उठे तो महसूस हुआ कि हैवलॉक की तारीफ़ सभी यूँ ही नहीं करते। वाकई बड़ा सुकून है यहाँ। ऐसी थकान, ऐसी नींद और ऐसा सुकून पूरी यात्रा में हमें नहीं मिला।
राधानगर बीच हैवलॉक का सबसे प्रसिद्ध बीच है। हमने आज का बाकी समय वहीं बिताने का निश्चय किया। निकलने लगे तो भूख लग आयी, खाने के लिये गये तो हमारी पसंद का नहीं मिला। हम हल्का-फुल्का ही कुछ खाना चाहते थे। पानी की बोतल भरवाने लगे तो पट्ठा पूरा बनिया निकला - ‘हम खुद भी बिसलरी का पानी पीते हैं जी। आप भी बिसलरी ले लो।’ और हमने बिसलरी ले ली।
किराये पर स्कूटी लेने का विचार बना तो दीप्ति किराया पूछने गयी। लौटकर कहने लगी - ‘पैदल ही चलते हैं। पाँच सौ रुपये माँग रहे हैं।’
मुख्य बाज़ार में राधानगर जाने वाली बस की प्रतीक्षा करने लगे। बस नहीं आयी। हर एक घंटे में बस जाती है। लेकिन इतना सब्र नहीं हो रहा था कि अगली बस आने की प्रतीक्षा करते। मैंने पूछा - ‘ऑटो कर लें क्या?’
बोली - ‘हाँ, अगर पचास रुपये में ले चले तो। सौ रुपये भी माँगेगा, तो नहीं जायेंगे।”
एक ऑटो वाले को पकड़ा। उसने जो किराया बताया, वह हमारे लिये इतना ज्यादा अप्रत्याशित था कि मुझे एकबारगी ‘वन थाउजैंड़’ का हिंदी अनुवाद ‘सौ रुपये’ करना पड़ा। आठ किलोमीटर का इतना भी किराया हो सकता है, कभी नहीं सोचा था। एक हज़ार रुपये! थोड़ी देर में एक जीप आयी। उसने यहाँ खड़े कई यात्रियों को पच्चीस-पच्चीस रुपये में राधानगर पहुँचा दिया। सड़क ख़राब है। रास्ते में एक जगह बोर्ड लगा था - एलीफेंट बीच 1.8 किलोमीटर। यह दूरी पैदल तय करनी पड़ती है। हम न पैदल चलना चाहते थे और न ही भागमभाग करना चाहते थे।
हम राधानगर बीच पर नहाने का इरादा बनाकर नहीं आये थे। इसी कारण न अतिरिक्त कपड़े लाये थे और न ही तौलिया और न ही बैग। हम यहाँ केवल ढाई-तीन घंटे बैठने आये थे - केवल बैठने और लहरों को देखने। लेकिन यहाँ आते ही नहाने का मन बन गया - हम दोनों का। वास्तव में यह बहुत खूबसूरत है। समुद्र के अंदर काफ़ी दूर तक गहराई नहीं है और इस कारण यहाँ वैसी लहरें नहीं बनतीं, जैसी दूसरे समुद्र तटों पर बनती हैं। लेकिन बड़ी लहरें आ जाती हैं। कभी-कभी तो ये लहरें दो-दो मीटर तक ऊँची होतीं, जो नहाने वालों के लिये निश्चित ही रोमांचक होती थी। गहराई न होने के कारण न तो इन बड़ी लहरों के कारण चोटिल होने का डर था और न ही डूबने का। हम यही अनुभव लेना चाहते थे। अगर यहाँ से गोविंदनगर के लिये यातायात के नियमित साधन होते तो हम होटल जाकर अपने कपड़े ले आते।
यहाँ किराये पर कपड़े नहीं मिले, तो चार सौ रुपये खर्च करके दीप्ति के लिये अतिरिक्त कपड़े खरीद लिये। मुझे अतिरिक्त कपड़ों की ज़रूरत नहीं थी। कच्छा ही तो भीगेगा। लहरों से पर्याप्त दूरी पर चप्पलें, कैमरा, कपड़े रख दिये और घुस गये पानी में। मेरा समुद्र का अनुभव लगभग शून्य है, लेकिन यह एक विशिष्ट अनुभव था। एक-एक, दो-दो मीटर ऊँची लहरें आतीं तो शरीर से टकराने के क्षण तक रोमांच की पराकाष्ठा हो जाती। फिर यह शरीर से टकरातीं। हम या तो पानी में पूरे डूब जाते, या लहर के साथ ऊपर उठ जाते और कई मीटर तट की तरफ़ फेंक दिये जाते। कई बार लहर की तरह मुँह करके चौड़े होकर खड़े हो जाते और लहर हमें रौंदकर तट की ओर चली जाती।
बहुत शानदार! मुझे सभी समुद्र तट एक-जैसे लगते हैं, लेकिन हैवलॉक का यह राधानगर बीच वाकई विशिष्ट था।
सूर्यास्त होते ही पुलिस ने सभी को बाहर निकलने का आदेश दे दिया। यहाँ से आख़िरी बस छह बजे चलती है, लेकिन आज यह पंद्रह मिनट की देरी से आयी और आधे घंटे की देरी से चली।

बोट से दिखता बाहर का नज़ारा







अंडमान में अंग्रेजी से ज्यादा हिंदी का चलन है।















दादाजी की गोद में...





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Comments

  1. 'Ladne ka mood banakar gaye the', haha..
    Isi check-out time wali problem se bachne ke liye maine ek bar apni wife ko subah 4 baje hi utha diya tha.
    ₹1000 wo bhi 7-8 km ke? Aisi jagaho par aisa hota hai aksar. Ek bar mujhe bhi Ram jhula se Rishikesh bus adde Jana tha..
    Koi shared wala bhi Jane ko taiyar nahi tha, kyoki hum sirf 2 hi the. Auto wale bade group ki talash me the. Ek taiyar hua bhi to ₹300 mangne laga. Mai paidal hi chala gaya.

    Vaise mujhe pahad hi jyada ache lagte hai, lekin aap ki Andman ki yatra padh kar laga ki ek bar to Jana banta hi hai.
    Yatra ke antim bhag me kharcha bhi batana.

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  2. शानदार जानदार मज़ेदार...
    बेहतरीन फोटोग्राफी...

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  3. काफ़ी दिन बाद आज ब्लॉग पे आने का मौक़ा लगा। एक एक करके पिछला सारा पढ़ डाला, आनंद आ गया। फ़ोटो तो अच्छे हैं ही और उसके साथ कैप्शन जैसे सोने पे सुहागा।

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