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श्रीखण्ड यात्रा- भीमद्वारी से रामपुर

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दिनांक 21 जुलाई और दिन था गुरूवार। हम तीनों- मैं, सन्दीप और विपिन श्रीखण्ड यात्रा लगभग पूरी करके भीमद्वारी में एक टेण्ट में बैठे थे। लगभग इसलिये कि श्रीखण्ड दर्शन तो हो चुके थे बस यात्रा के आधार स्थल जांव पहुंचना था। जांव पहुंचते ही यह यात्रा पूरी हो जाती। हम सुबह पार्वती बाग से दो-दो परांठे खाकर चले थे, शरीर के साथ साथ दिमाग को भी झकझोर देने वाली चढाई और फिर उसी रास्ते से उतराई- सोलह किलोमीटर में हमने बारह घण्टे लगा दिये थे। इतने टाइम तक मात्र दो-दो परांठों में गुजारा करना कितना कठिन है- इसका अन्दाजा लगाना मुश्किल नहीं है। वो तो अच्छा था कि सुबह भीमद्वारी से चलते समय मैंने बिस्कुट के दो बडे पैकेट ले लिये थे और उससे भी अच्छा ये हुआ कि सन्दीप और विपिन मुझसे मीलों आगे चल रहे थे- बिस्कुटों का मालिक मैं ही था और मैंने मालिक धर्म पूरी तरह निभाया भी। सन्दीप एक ऊंट की तरह है जो रेगिस्तान में भी बिना खाये पीये कई दिनों तक रह सकता है। उसके साथ बेचारे विपिन की क्या हालत हुई होगी, सिर्फ वही जानता होगा।
और इसका नमूना मुझे उस समय मिल भी गया जब सन्दीप और विपिन मुझे वापसी में पार्वती बाग के एक टैण्ट में मैगी खाते मिले। मैंने मैगी नहीं खाई बल्कि भीमद्वारी वाले अपने तम्बू में पहुंचते ही घनश्याम को बोल दिया कि परांठे बना दो। उसने पूछा कि कितने तो जवाब था जितने बन सकें। उस शाम वो तम्बू यात्रियों से फुल था। आलू के तीन बडे बडे परांठे खा लिये फिर भी मन ये कर रहा था कि चार-पांच और खा ले। फिर सोचा कि छोड यार, अब तो सोना ही है। यहां आकर सन्दीप और विपिन ने परांठे भी खाये और मैगी भी। लेकिन अब मुझे कम से कम इतनी अक्ल तो आ ही गई है कि सफर में हमेशा अपने साथ कुछ ना कुछ खाने को रखना ही चाहिये। बिस्कुटों के उन दो पैकेटों की वजह से ही मैं यात्रा पूरी कर पाया।
इस तम्बू में हमारे अलावा सभी बाकी यात्री श्रीखण्ड जाने वाले थे। मैंने और विपिन ने तो खाते ही चादर तान ली जबकि सन्दीप बाकी यात्रियों को जरूरी सलाह देने लगा जैसे कि सुबह जितनी जल्दी हो सके निकल पडना, अपना गैर जरूरी सामान यही छोड देना। मुझे ताज्जुब तब हुआ जब उसने कहा कि नैन सरोवर से आगे पानी नहीं मिलेगा, पानी का इंतजाम करके चलना नहीं तो बर्फ के नीचे से जान हथेली पर रखकर निकालना पडेगा या फिर बर्फ ही खानी पडेगी। ताज्जुब इसलिये हुआ क्योंकि उसने खुद ही इस बात का ध्यान नहीं रखा। चलो खैर, इंसान अपने ही अनुभवों से सीखता है।
सुबह यहां से वापस चल पडे। जब तक मैं सोकर उठने के बाद चलने लायक हुआ तब तक वे दोनों मुझसे काफी आगे निकल गये थे। सारा माहौल बादलों से ढका था इसलिये कुछ मीटर के बाद कुछ भी नहीं दिखाई नहीं दे रहा था। रात यहां काफी बारिश हुई थी इसलिये पूरे रास्ते में कीचड था। काली घाटी तक तो कुछ पता भी नहीं चला क्योंकि रास्ता हल्की हल्की उतराई वाला था हालांकि कहीं कहीं चढाई भी थी। और काली घाटी का पता भी आधी चढाई चढकर ही चला। जब जांव से श्रीखण्ड जाते हैं तो डण्डीधार की ‘अनन्त’ चढाई चढने के बाद यही काली घाटी की उतराई बडी राहत लेकर आती है। इसी तरह वापसी में काली घाटी की यह चढाई चढनी ही पडती है। और अब तक हम चढने उतरने के इतने आदी हो चुके थे कि पता ही नहीं चला कि काली घाटी की चढाई चढ रहे हैं। घण्टे भर तक चढने के बाद काली मन्दिर पर पहुंचते हैं। अब यही से डण्डीधार का ‘महान’ ढलान शुरू होता है। यही चोटी पर सन्दीप और विपिन भी बैठे मिल गये। उन्होंने बताया कि वे मुझसे मात्र पन्द्रह मिनट पहले ही यहां पहुंचे हैं।
कीचड होने की वजह से डण्डीधार के ढलान पर मुझे वो स्पीड नहीं मिल पायी जिसे सन्दीप शताब्दी वाली स्पीड कहता है। जहां ऊपर चढने के मामले में सन्दीप आगे है वही नीचे उतरने के मामले में मेरे बराबर कोई नहीं है (सन्दीप और विपिन)। आखिरकार ले देकर थाचडू पहुंच गये। अरे हां, इसे तो हम खचेडू कहते थे। यहां लंगर चलता रहता है। दाल-चावल-कढी का लंगर था उस समय। पेट भरकर खाकर फिर चल पडे।
पहाड पर चढने और उतरने में यही फरक है कि चढने में बार बार रुकना पडता है जबकि उतरने में नहीं रुकना पडता। हमने जल्दी ही खुद को बराटी नाले पर पाया। यही पर डण्डीधार की ढलान खत्म होती है। थोडी ही देर में हम सिंहगाड में थे। यहां जलेबी और पकौडी का लंगर चलता रहता है। पिछले कई दिनों से हम इस लंगर को याद कर रहे थे। अब जब यहां आ ही गये तो जी-भरकर जलेबी-पकौडी खानी थी ही। पेट भरकर खाना अलग होता है और जी भरकर खाना अलग। पेट जल्दी भर जाता है और जी बहुत देर से भरता है। यहां से चले तो जांव पहुंचने में देर नहीं थी। हमें यहां नितिन एक कार में सोता हुआ मिल गया। वही नितिन जो गर्लफ्रेण्ड से बात करने के चक्कर में ठोकर खाने से पांव में मोच ला बैठा था और थाचडू से वापस आ गया था।
अब हमारी श्रीखण्ड यात्रा समाप्त हुई। अब फिर से बाइक स्टार्ट करने का टाइम आ गया था। बागीपुल, निरमण्ड होते हुए शाम तक हम रामपुर पहुंच गये। रामपुर में ढाई सौ के दो कमरे मिल गये। हालांकि रामपुर-शिमला रोड बहुत बढिया है लेकिन हम यहां से रोहडू होते हुए त्यूनी और चकराता जाना चाहते थे। रामपुर से रोहडू करीब अस्सी किलोमीटर दूर है।








इस इलाके में जोकों की कमी नहीं है। जिधर से भी आदमी की गन्ध आती है, यह उधर ही मुड जाती है।




यह फोटो शक्त दिखाने के लिये नहीं है, बल्कि जूते दिखाने के लिये है। कीचड में जूतों की ऐसी हालत हो ही जाती है।

अलविदा श्रीखण्ड। फिर कभी मत बुलाना।

जब पेट भर जाता है तो जलेबियां दिखाने के लिये खाई जाती हैं। दिखावटी भोज।

रामपुर में घुसने से बस पहले




रामपुर से दूरियां


अगला भाग: श्रीखण्ड से वापसी एक अनोखे स्टाइल में


श्रीखण्ड महादेव यात्रा
7. श्रीखण्ड यात्रा- भीमद्वारी से रामपुर

Comments

  1. दोनों जाट और श्रीखंड .....सब बेहतर बन पड़ा है ....घूमते रहिये .....!

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  2. baaki sab theek hai, mujhe ek baat samah nahin aayi, jab aap og saath aaye the to aapka saath mein chalna kyun nahin hua? aap log to bachhon ki tarah roothte manate rahe ;)

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  3. "अलविदा श्रीखण्ड। फिर कभी मत बुलाना।"

    मैं तो यही से कह रही हूँ --मुझे मत बुलाना ? महादेव ..मैं नही आने वाली ..???
    जूतों के साथ-साथ तुम दिनों के चोखटे भी देखने लायक हैं ?

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  4. जूते और शकल दोनो दिखा दी। हाँ जलेबी देख के मन ललचा रहा है,लेकिन बड़ी मंहगी जलेबियाँ हैं।
    हमने तो घर बैठे ही मौज ले ली।

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  5. नीरज जी ... आपकी यात्रा बहुत ही मजेदार रही और बहुत कठिन भी....पहाड़ो के, जोंक के, सड़क के, पुल के, मंदिर के फोटो बहुत शानदार रहे.... घुमते रहो. और हमें भी घुमाते रहो....

    MY NEW POST ....
    माउन्ट आबू : अरावली पर्वत माला का एक खूबसूरत हिल स्टेशन .........2

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  6. सब कुछ नहीं बताया, कुछ छुपा भी लिया है,

    उसे मैं बताऊंगा अपनी पोस्ट में?

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  7. वाह वाह वाह जितना सुंदर चित्र उससे भी प्यारी यात्रा का वर्णन सरजी इस प्रकार घूमते रहिये और हम लोगो को घूमाते रहिया आभार आपका

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  8. गज़ब यात्रा, रोमांच और मस्ती से भरी।

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  9. नीरज भाई बहुत ही मुस्किल यात्रा थी चलो अब तो पूरी हो ही गयी है इसके लिए आपको बहुत -बहुत बधाई.......
    आपकी और संदीप भाई की कीचड़ में सने हुए जुते वाली फोटो देखकर ऐसा लगता है जैसे चोरी के इल्जाम में पकड़कर बैठा रखें हो ..हा हा हा ..माफ़ करना नीरज भाई

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  10. इस दुष्कर यात्रा कर पाने के लिए बधाईयाँ.

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  11. वास्तव में ही, पानी गिरते ही ख़ुशनुमा रास्ते भयावह हो जाते हैं...

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  12. हाय हम न हुए ...
    हार्दिक शुभकामनायें !

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  13. वाह ! शानदार लगा रोमांचक यात्रा विवरण|

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