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तारीख थी 18 जुलाई और दिन था सोमवार। यात्रा भी शिवजी की और दिन भी शिवजी का। हम चार जने- मैं, सन्दीप, नितिन और विपिन श्रीखण्ड महादेव की यात्रा पर थे और यात्रा के आधार स्थल जांव पहुंच गये थे। जांव से दोपहर बाद ठीक दो बजे हमने श्रीखण्ड के लिये प्रस्थान कर दिया। मेरे द्वारा की गई इस कठिनतम यात्रा से पहले कुछ बातें थीं जिनका जिक्र करना जरूरी है।
हम दिल्ली से ही बाइक पर आये थे। कल यानी 17 तारीख को हमने पूरा दिन जलोडी जोत (JALORI PASS) पर बिताया। रामपुर बुशैहर से कुल्लू जाने वाली सडक जलोडी जोत को पार करके ही जाती है। इसकी ऊंचाई समुद्र तल से 3120 मीटर है। इससे पांच किलोमीटर दूर एक छोटी सी झील है- सेरोलसर झील। इसके दूसरी तरफ करीब तीन किलोमीटर दूर एक किला है- रघुपुर किला। दोनों जगहें पैदल नापी गईं। यहां जाने का हमारा मकसद था केवल एक्लीमेटाइजेशन यानी शरीर को पहाडों के अनुकूल बनाना। आखिर श्रीखण्ड की ऊंचाई 5200 मीटर से ज्यादा है। दिल्ली में रहने वाला जब अचानक इतनी ऊंचाई पर पहुंचेगा तो शरीर के आन्तरिक नाजुक हिस्सों पर असर पडना तय है। इस असर को कम से कम करने के लिये हम जलोडी जोत गये।
तो जी, जब हमने जांव से चलना शुरू किया तो हम काफी हद तक पहाड के आदी हो चुके थे। जांव में फोन नेटवर्क काम करता है तो सभी ने घरवालों को बता दिया कि शायद अगले चार दिनों तक नेटवर्क ना भी मिले। परेशान मत होना। उधर नितिन का हाल दूसरा था। पता नहीं कितनी गर्लफ्रेण्ड थी बन्दे की। एक से सुलटता तो दूसरी हाजिर। हमसे कहने लगा कि भईया, मेरे साथ साथ चलते रहो। इस कठिन यात्रा में बोर नहीं होने दूंगा। साथ ही गर्लफ्रेण्ड को भी यात्रा का लाइव सुनाता रहा- "अब हमारे सामने एक नदी है। इस पर पतला सा पुल है। मैं इसे पार करूंगा..... ले पार कर लिया। यहां एक भण्डारा लगा है। मुझे भूख नहीं है। ... अब चढाई है... सुन रही है ना... हेलो, हेलो। ... अरे यहां कम नेटवर्क आता है। जब तक नेटवर्क आ रहा है तू चिन्ता मत करना। ... अब सामने और ज्यादा चढाई है। (ठक...भड...भडाम...धडाम)... आ मर गया।" वो ठोकर लगने से गिर पडा। तीन किलोमीटर दूर सिंहगाड तक एकदम सीधा सरल रास्ता है। फिर भी इस पर नितिन तीन बार गिरा। नतीजा यह हुआ कि उसका पैर मुड गया और उसे चलने में दिक्कत होने लगी।
सिंहगाड- यात्रा का पहला पडाव। यहां जलेबी और पकौडी का भण्डारा लगा था। यही पर यात्रियों की गिनती भी होती है। हम 2500 के आसपास के यात्री थे। यानी रोजाना लगभग 1000 यात्री पहुंचते हैं यहां। यह संख्या यात्रियों की भीड नहीं बल्कि कमी दर्शाती है। अमरनाथ तो एक दिन में लाखों यात्री जाते हैं।
एक बार हम चारों का भी विश्लेषण हो जाये। सन्दीप पंवार- उम्र में सबसे बडे, ऊर्जा से भरपूर। अपने घर लोनी बॉर्डर से ऑफिस नई दिल्ली जाते हैं तो साइकिल से जाते हैं। ऑफिस दिल्ली की सबसे ऊंची इमारत सिविक सेंटर में 18वीं मंजिल पर है। बताते हैं कि कभी भी लिफ्ट का इस्तेमाल नहीं करते , सीढियों से ही चढते-उतरते हैं। ऐसे में बन्दे की फिटनेस कैसी होगी, कोई शक की बात नहीं है। विपिन गौड- मूल रूप से उत्तराखण्ड के रुद्रप्रयाग जिले में अगस्त्यमुनि के रहने वाले यानी जन्मजात पहाडी। दिल्ली में रहते हुए फिटनेस भले ही कुछ कम हो लेकिन हैं तो पहाड के ही रहने वाले। फिर पेशे से भी किसी ट्रैवल कम्पनी में ही है। नीरज जाट यानी मैं- इसे मैं फिटनेस के मामले में तीसरे नम्बर पर मानता हूं। दिल्ली मेट्रो में कार्यरत। हमेशा लिफ्ट और एस्केलेटर पर चढने-उतरने का आदी। कम से कम दस घण्टे सोना। वो तो हर महीने घूमने निकलता है इसलिये घुमक्कडी में होने वाली दिक्कतों से बच जाता है। नहीं तो कैसी फिटनेस है मैं ही जानता हूं। नितिन जाट- इसे मैं चौथे नम्बर पर रखता हूं। घूमने के मामले में बाकी तीनों से कम ही है। ले-देकर एक गंगोत्री-यमुनोत्री की यात्रा बताई जाती है। इतना सुनकर दिल्ली में ही मैंने अन्दाजा लगा लिया था कि बन्दा पता नहीं यात्रा पूरी कर भी पायेगा कि नहीं।
सिंहगाड से निकलते-निकलते तीन बज चुके थे। यहां से अगला पडाव थाचडू 7 किलोमीटर आगे है। दो किलोमीटर आगे बराटी नाला है जहां रुकने और भण्डारे का इंतजाम था। एक बात और है कि यहां भीड-भाड ना होने की वजह से भण्डारों में मारामारी नहीं मचती। कभी कभी तो भण्डारे वाले अपने तामझाम लेकर बैठे-बैठे यात्रियों की बाट देखते रहते हैं।
सिंहगाड से बराटी नाले तक का रास्ता भले ही दो किलोमीटर का हो लेकिन पूरी श्रीखण्ड यात्रा की कठिनाईयों का संग्रहालय माना जा सकता है। सीधे सरल रास्ते से लेकर खडी चढाईयां, तेज बहती नदी के ऊपर चट्टान के किनारे-किनारे लेंटर डालकर बनाया गया फुट भर चौडा रास्ता, नदी से पचासों फुट ऊपर पेड के तने रस्सी से बांधकर बस चलने लायक बना हुआ रास्ता, सामने से अगर कोई आ जाये तो कहीं कहीं तो बचना ही नामुमकिन। कहीं एक फुट चौडी और दो फीट ऊंची सीढियां, सिर को बिल्कुल छूती हुई चट्टाने, ऊपर से बारिश का मौसम, नीचे नदी का शोर, फिसल गये तो किसी को भी पता नहीं चलेगा कि नीचे नदी में पडा हुआ कोई बचाव के लिये पुकार रहा है।
नितिन का पैर मुड गया था, फिर अन्दाजा भी नहीं था कि ऐसे रास्ते भी होते हैं। बराटी नाले तक पहुंचते-पहुंचते ही लगने लगा था कि यह बन्दा यात्रा पूरी नहीं कर पायेगा। क्योंकि अभी हम करीब 2200 मीटर की ऊंचाई पर थे, अभी 30 किलोमीटर में 3000 मीटर और चढना है। जाहिर है कि पूरे रास्ते भर हमें चढाई ही नहीं बल्कि भयानक चढाई का सामना करना पडेगा। बराटी नाले तक जहां कुछ चढाई है तो कुछ उतराई भी है। उतरते समय तो नितिन बिल्कुल ही ‘खत्म’ था। इतना धीरे धीरे उतरता था कि हमने उसे अपने से आगे कर लिया था और हमारे पीछे काफी लम्बी लाइन लग गई थी क्योंकि साइड देने और लेने लायक रास्ता ही नहीं था।
बराटी नाले के पास दो नदियों का मिलन होता है। इससे आगे कुछ कदम चलते ही एक पुल आता है। पुल पार करके हम दोनों नदियों के बीच में पहुंच जाते हैं। यहां ‘बीच में’ का मतलब पानी के बीच से नहीं है बल्कि हमारे एक तरफ एक नदी और दूसरी तरफ दूसरी नदी। यहां से शुरू होती है डण्डीधार की चढाई। ऐसी चढाईयां तो मैंने बहुत चढी हैं लेकिन मात्र कुछ सौ मीटर या एकाध किलोमीटर। यहां से पांच किलोमीटर पर थाचडू और उससे भी करीब तीन किलोमीटर आगे काली घाटी है। काली घाटी तक आठ किलोमीटर तक यह चढाई बरकरार रहती है। अगर कोई अमरनाथ गया हो तो शुरू में ही तीन किलोमीटर की पिस्सू टॉप की चढाई पूरी यात्रा में सबसे मुश्किल मानी जाती है। डण्डीधार के आगे पिस्सू टॉप कुछ भी नहीं है। 13 किलोमीटर लम्बी वैष्णों देवी यात्रा में एक मीटर रास्ता भी ऐसा नहीं है जो डण्डीधार की बराबरी कर सके।
यह आठ किलोमीटर तक कभी ना रुकने वाली और कभी ना झुकने वाली चढाई थी। पूरे रास्ते में कहीं हमें दस मीटर का भी समतल हिस्सा नहीं मिला। पहाड का अनुभव रखने वाले लोग ऐसे रास्तों पर कभी रुकते नहीं हैं बल्कि अपनी चलने की स्पीड कम कर लेते हैं। मेरी स्पीड कम होते होते एक किलोमीटर प्रति घण्टे की हो गई। ऐसा अपने आप हो जाता है। इसे इंसान की अपनी स्पीड कहते हैं। कहते हैं ना कि अपनी स्पीड से चलना चाहिये। अपनी स्पीड से चलने में कभी थकान महसूस नहीं होती चाहे कैसी भी चढाई हो। नतीजा ये हुआ कि मैं बाकी तीनों से पीछे रह गया। सबसे आगे सन्दीप था।
धीरे धीरे जैसी उम्मीद थी, वैसा ही होने लगा। नितिन के पैर में दर्द बढने लगा। उसके लिये पहाड पर चढने के मुकाबले नीचे उतरना ज्यादा मुश्किल था। दिमाग में यह भी आ रहा था कि वापसी में यही खतरनाक चढाई उतरनी भी पडेगी। मेरे लिये नीचे उतरना हमेशा आरामदायक रहता है जबकि नितिन इसे सोच-सोचकर परेशान हुआ जा रहा था। धीरे धीरे नितिन पीछे रह गया और उसका साथ विपिन दे रहा था, इसलिये विपिन भी पीछे हो गया। कुछ देर बाद देखा कि सन्दीप एक जगह खडा हांफ रहा है। मुझे देखते ही बोला कि भाई, बडी फाडू चढाई है। श्रीखण्ड- खण्ड यानी हिस्सा यानी फाड। इसे फाडू बाबा नाम दे देना चाहिये। फिर तो मैं और सन्दीप साथ ही चलते रहे- कभी मैं आगे कभी सन्दीप आगे। सन्दीप भी एक किलोमीटर की स्पीड पर ही आ गया था। यह मेरे लिये खुश होने वाली बात थी क्योंकि सन्दीप मुझसे सौ गुना ज्यादा सेहतमंद इंसान है।
हमें आज रात थाचडू में रुकना था। लेकिन यह एक ऐसा शब्द है जो हम ठेठ गंवारों की जुबान पर आया ही नहीं। नतीजा यह हुआ कि हम थाचडू को खाचडू कहते कहते खचेडू कहने लगे। हर पांच पांच मिनट में ऊपर से आने वालों से पूछते कि अभी खचेडू कितना दूर है। जवाब मिलता कि आधा घण्टा और लगेगा। आधे घण्टे बाद फिर पूछते तो जवाब मिलता कि अभी कम से कम दो घण्टे और लगेंगे। जितना चलते जा रहे थे, ‘खचेडू’ भी उतना ही दूर होता जा रहा था।
सात बज गये जब जवाब मिला कि अभी दो किलोमीटर और है। दिल बैठ गया कि हमें इस छोटी सी पांच किलोमीटर की चढाई को चढते-चढते घण्टों हो गये लेकिन साला खचेडू अभी भी दो किलोमीटर और है। इस तरह तो नौ बज जायेंगे। फिर नितिन की हालत खराब से खराब होती जा रही थी। तय किया गया कि यही रुकते हैं। श्रीखण्ड सेवा समिति ने पूरी यात्रा के तीन पडाव बना रखे हैं- सिंहगाड, थाचडू और भीमद्वारी। लेकिन बीच बीच में भी स्थानीय लोगों द्वारा टेण्ट लगाये हुए हैं जहां रुकना और खाना हो जाता है।
‘खचेडू’ से दो किलोमीटर पहले हम एक टेण्ट में रुक गये। नितिन कहने लगा कि अब आगे जाना बसकी बात नहीं है। तय हुआ कि सुबह नितिन वापस जांव चला जायेगा और हम तीनों यात्रा पूरी करेंगे। इसी टेण्ट में एक बन्दा और रुका हुआ था। वो था तो दिल्ली से ही और किसी कम्पनी में बडी पोस्ट पर था। उसने बताया कि इस यात्रा का आइडिया मेरे ही दिमाग में आया, मैंने ही बन्दे इकट्ठे किये और मैं यहां दो दिनों से पडा हुआ हूं। मेरे साथ के सब लोग आगे चले गये हैं लेकिन मुझे बाहर निकलते ही खांसी होने लगती है। मोबाइल की बैटरी खत्म हो गई है, घर पर या किसी से बात भी नहीं कर सकता। हमने उसे सलाह दी कि आपको ऊंचाई की वजह से सांस लेने में परेशानी हो रही है इसीलिये थोडा सा चलते ही खांसी होने लगती है। आप बिना देर किये वापस चले जाइये। कल हमारा एक बन्दा नीचे वापस जायेगा, आप इसी के साथ निकल जाना। उसने फिर बताया कि मैं अगर टॉयलेट भी जाता हूं तो भी गाडी से ही जाता हूं। ड्राइवर दरवाजा खोलकर कहता है कि साहब टॉयलेट आ गया। मैं सोचता हूं कि ऐसे लोगों के लिये शिमला जैसी जगहें ही सही हैं। बेचारा कहां श्रीखण्ड के पहाडों में आ गया।
हमें दो दिन बाद पता चला कि वो बन्दा अभी भी वही पडा हुआ है इसी इंतजार में कि खांसी ठीक होगी और वो श्रीखण्ड जायेगा।
जांव से यात्रा शुरू |
ऐसे रास्ते हैं जांव से सिंहगाड तक |
सिंहगाड में चण्डाल चौकडी |
सामने जाना है। दाहिने तेज बहती नदी है, कोई पुल भी नहीं है, बायें सीधी खडी विशाल चट्टान है- कैसे जायें? बताता हूं- अगले फोटो को देखिये। |
यह रास्ता है सिंहगाड से बरोटी नाले का। इसे पूरी श्रीखण्ड यात्रा का मिनी रूप भी कहा जा सकता है। |
कितना खतरनाक है इस पतले से लेंटर वाले रास्ते पर चलना। |
नदी देख ली हो तो अब जरा दाहिने की तरफ आ रहे यात्रियों को भी देख लो। |
बडी राहत मिलती है बराटी नाले पर पहुंचकर |
सामने एक पुल दिख रहा है। उसके दाहिनी तरफ से डण्डीधार की चढाई शुरू हो जाती है। |
जहां भी लगता था कि हां, इस जगह पर खडे होकर सुस्ता सकते हैं, वही फोटो भी खींचे जाते थे। फोटो देखकर कठिनाईयों का अन्दाजा कभी नहीं लग सकता। |
बैठा हुआ नितिन है, इसके पैर में दिक्कत बढती ही जा रही थी। |
यहां इसी तरह बादल आते हैं। ये नीचे से बादल आ रहे हैं जो धीरे धीरे सबकुछ ढक लेंगे। |
कठिनाईयां तो हो गईं, अब कुछ प्राकृतिक सौन्दर्य भी हो जाये।
अगला भाग: श्रीखण्ड महादेव यात्रा- थाचडू से भीमद्वार
श्रीखण्ड महादेव यात्रा
3. श्रीखण्ड महादेव यात्रा- जांव से थाचडू
आज रांची प्रवास के मध्य में हूँ |
ReplyDeleteएक मित्र के घर से आपका आभार कर रहा हूँ ||
उधर नितिन का हाल दूसरा था। पता नहीं कितनी गर्लफ्रेण्ड थी बन्दे की। एक से सुलटता तो दूसरी हाजिर।
नितिन का पैर मुड गया था, फिर अन्दाजा भी नहीं था कि ऐसे रास्ते भी होते हैं। बराटी नाले तक पहुंचते-पहुंचते ही लगने लगा था कि यह बन्दा यात्रा पूरी नहीं कर पायेगा।
3 jato aur chouthe jat bhole baba --
bechaara nitin
अरे भाई अठारह मंजिल कर दे,
ReplyDeleteअगर कोई मिलने आयेगा तो सोलवी पर पर ढूंढता फ़िरेगा,
नीरज अपनी टैंट में की गयी पूरी रात वाली सडीदार/बदबूदार बात बतानी मत भूलना।
डटे रहें हमारे जांबाज, यही औरों के उत्साह का बीज बनेगा।
ReplyDeleteभाई पढने में बहुत मज़ा आरहा है देखता हूँ की जा ने में कितना आएगा. चित्र अच्छे है . भाई लोग अगर चाहो तो दिसंबर के आखिरी सप्ताह कोई बढ़िया जगह चला जाए .
ReplyDeleteनीरज भाई और संदीप भाई वाकई बहुत खतरनाक रास्ते है आपकी और आपके साथियों की हिम्मत की दाद देनी पड़ेगी हम यंहा बैठे -बैठे कह देते है की यात्रा तो बहुत ही अच्छी थी असली पता तो जो यात्रा करता है उसे ही चलता है क्यों नीरज भाई क्या कहते हो ...
ReplyDeleteपढने में बहुत मज़ा आया
ReplyDeleteखतरनाक रास्तो पर खतरनाक यात्रा
बहुत जोखम वाली यात्रा है ।
ReplyDeleteसुन्दर तस्वीरें ।
मोच में आराम करना चाहिए लेकिन यहाँ तो यात्रा हो रही है । कैसे हुई होगी ?
खतरनाक यात्रा के लिए खतरनाक हिम्मत और हौसलॊं की जरुरत होती है । जो तुम में है..शुभकामनाएँ...
ReplyDeleteपढने में बहुत मज़ा आया
ReplyDeleteखतरनाक रास्तो पर खतरनाक यात्रा
अकेले अकेले इतना मिटा खाना अच्छा नहीं है
जाट जी के सन
शानदार यात्रा वृतांत के लिए बधाई. ऐसे ही लगे रहो. फोटो तो एक से बढकर एक हैं. शायद ये अब तक की सबसे कठिन यात्रा है.
ReplyDeleteमजा आ गया भाई :)
ReplyDeleteअरे बाप रे...यहाँ तो चित्र देख कर ही कलेजा बैठे जा रहा है...
ReplyDeleteनीरज
bahut hi achchee tasveeren..bahut himmat ki baat hai in sthano par yatra karna... aap ki himmat bani rahe ...yatrayen karte rahen..best wishes.
ReplyDeleteबाप रे...देखकर ही पैर काँप गये...आप धन्य हैं...जो वहाँ फोटो खिंचा रहे हैं..घूम रहे हैं.
ReplyDeleteSO NICE BRO. M I SOBAN MANRAL FROM RANIKHET
ReplyDeleteKAVI AAO MILTE HAI OR HO SAKE TO MUJHE V APNE SATH LE LO MERA V BADA SOK HAI NU.9639334150
बनियान में चढाई ये काम जाट देवता ही कर सकते है लेकिन है बेवकूफी, चढाई में गर्मी लगती है और बहार वातावरण सर्द बस लुच लोग इसी मरीचिका में फस जाते है
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