श्रीखण्ड महादेव हिमाचल प्रदेश में रामपुर बुशहर के पास एक 5200 मीटर ऊंची चोटी है। इतनी ऊंचाई तक चढना हर किसी के बस की बात नहीं होती। वे लोग तो बिल्कुल भी नहीं चढ सकते जिन्हें पहाड पर कदम रखते ही हवा की कमी महसूस होने लगती है। इसकी सालाना यात्रा जुलाई में होती है। हालांकि कुछ साहसी ट्रेकर साल के बाकी समय में भी जाते हैं लेकिन वे इसी रास्ते से वापस नहीं लौटते। भाभा पास करके स्पीति घाटी में चले जाते हैं।
जब मैंने घर पर बताया कि मैं श्रीखण्ड की यात्रा पर जा रहा हूं तो पिताजी बोले कि मैं भी चलूंगा। वैसे तो मुझे बाइक से जाना था, पिताजी ने कहा कि मैं भी बाइक से जाऊंगा तुम्हारे साथ-साथ। मैंने उनके सामने एक शर्त रखी कि बाइक से तुम रहने दो, मैं भी तुम्हारे साथ बस से जा सकता हूं लेकिन पैदल रास्ते में जहां कहीं भी आपको सिर में दर्द या चक्कर आने लगेंगे, वहां से आगे नहीं जाने दूंगा। हालांकि गांव का आदमी आराम से पहाड की चढाई कर लेता है, फिर भी मैंने गम्भीरता से ये बातें कहीं, तो उन्होंने जाने से मना कर दिया।
यह बात यहां सब पर लागू होती है। बहुत सारे लोग ऐसे होते हैं जो बिना चोटी पर पहुंचे ही बीच रास्ते से वापस लौट आते हैं। और वापस लौट आने में भलाई भी है।
इस यात्रा के पैदल पार्ग को चार मुख्य भागों में बांटा जा सकता है:
1. जांव से बराटी नाला: यह दूरी करीब पांच किलोमीटर है। इसकी खास बात यह है कि इसमें रास्ता समतल से होकर जाता है। जांव से तीन किलोमीटर आगे सिंहगाड तक तो खेतों से होकर जाता है। सिंहगाड से बराटी नाले तक रास्ता हालांकि ‘स्टंट’ से भरा है और कई बेहद खतरनाक जगहों से होकर गुजरता है। फिर भी बराटी नाले तक पहुंचना कोई मुश्किल बात नहीं है।
2. बराटी नाले से कालीघाटी: बराटी नाले को पार करते ही डण्डीधार की ‘अनन्त’ चढाई शुरू हो जाती है। यह दूरी भी करीब 6-7 किलोमीटर है। इस पूरी चढाई में कहीं बीस मीटर का भी समतल रास्ता नहीं है। पांच किलोमीटर चढने पर थाचडू आता है जहां लंगर का इंतजाम रहता है। हालांकि रास्ते में कई जगह स्थानीय लोग रुकने और सोने का इंतजाम किये रहते हैं। अच्छा हां, एक बात और कि बराटी नाले को पार करने वाले काफी सारे यात्री ऐसे होते हैं जो डण्डीधार की चढाई को पार करके कालीघाटी तक नहीं पहुंच पाते। बीच रास्ते से ही लौट पडते हैं।
3. कालीघाटी से पार्वती बाग: कालीघाटी से पार्वती बाग तक रास्ता मध्यम चढाईयों-उतराईयों वाला है। अगर कोई कालीघाटी तक पहुंच गया तो ये गारण्टी है कि वो पार्वती बाग तक जरूर पहुंच जायेगा। हालांकि एकाध जगह दिल को दहला देने वाला रास्ता भी मिल जाता है। यह दूरी करीब 18 किलोमीटर की है। पूरे रास्ते में कहीं भी पेड नहीं हैं। बस, चारों तरफ फैली हरी-भरी घास, जडी-बूटियां और रंग-बिरंगे फूल। जगह-जगह झरने भी मिलते हैं तो कई जगह बर्फ से होकर भी निकलना पडता है। कुल मिलाकर यह 18 किलोमीटर का रास्ता डण्डीधार की चढाई के कष्टों को भुला देता है।
4. पार्वती बाग से श्रीखण्ड महादेव: पूरी यात्रा का यह हिस्सा सबसे मुश्किल हिस्सा है। पूरा रास्ता करीब 8 किलोमीटर का है और बडे-बडे पत्थरों से भरा है। कदम-कदम पर कुदरत इम्तिहान लेती है। समुद्र तल से ऊंचाई 4000 मीटर से शुरू होकर 5200 मीटर तक पहुंच जाती है। हवा की कमी साफ महसूस होती है। जल्दी जल्दी सांस चढने लगती है, आलस आने लगता है, सुस्ती छाने लगती है। फिर अगर बारिश हो जाये तो पत्थरों पर कीचड और फिसलन भी हो जाती है। अगर किसी ने इस चौथे खण्ड को पूरा कर लिया तो उसके सामने वो दृश्य उपस्थित हो जाता है, जिसे देखने वो अपने घर से इतनी दूर आया है।
यह तो थी रास्ते की थोडी सी जानकारी। अब वहां जाने के लिये कुछ सावधानियों की भी जरुरत पडती है:
1. अपने साथ एक रेनकोट जरूर रखें।
2. पैदल यात्रा शुरू करने से पहले एक डण्डे का इंतजाम भी कर लें। आगे जब वृक्ष रेखा खत्म हो जायेगी, तब डण्डे की जरुरत पडेगी।
3. सामान कम से कम ही रखें, रास्ते में जगह-जगह तम्बू मिलते रहते हैं, जहां रहना-खाना हो जाता है।
4. दिल के रोगी और फेफडों के रोगी (टीबी) इस यात्रा को बिल्कुल ना करें।
5. सबसे खास बात कि अगर दो बजे तक भीमद्वारी पहुंच गये तो आगे बढने की कोशिश ना करें। हालांकि पार्वती बाग तक टेण्ट मिलते हैं और पार्वती बाग भीमद्वारी से दिखाई भी देता है तो यह ना सोचें कि अभी काफी टाइम है, आराम से पार्वती बाग पहुंच जायेंगे। ठीक है, पहुंच तो जायेंगे वहां तक आराम से लेकिन तीन बजे तक अमूमन पार्वती बाग के सभी टेण्ट भर जाते हैं। यहां से आगे रुकने का कोई इन्तजाम नहीं होता इसलिये जगह ना मिलने के कारण या तो खुले में रात काटनी पडेगी या फिर वापस भीमद्वारी लौटना पडेगा। समुद्र तल से 4000 मीटर की ऊंचाई पर खुले में कडकडाती ठण्ड में रात काटना एक जानलेवा फैसला होता है।
6. आप भीमद्वारी में रात काटते हैं या पार्वती बाग में, यहां से आगे का रास्ता सर्वाधिक मुश्किल रास्ता है। पहली बार जाने वाला इंसान यह सोच भी नहीं सकता कि ऐसा भी रास्ता होता है। इसलिये जिस तम्बू में आप रात को रुके थे, अपना फालतू सामान वहीं छोड दें और अगली रात के लिये भी उसे बुक रखें। यहां से चलकर वापस यहीं तक आने में एक साधारण आदमी को रात हो ही जायेगी।
7. कभी भी अंधेरे में यात्रा ना करें। हालांकि कुछ स्थानीय लोग रात को भी यात्रा करते हैं।
8. पार्वती बाग से दो किलोमीटर आगे नैन सरोवर है। नैन सरोवर से आगे पानी नहीं मिलता, इसलिये इसका भी इंतजाम रखें। हालांकि कदम कदम पर प्यास लगती है, फिर भी आपके पास हर समय पानी रहना चाहिये। यहां से आगे पानी का एकमात्र स्रोत बरफ ही है, बोतल जरा सी खाली होते ही उसमें बरफ भर लें। अत्यधिक ठण्ड होने की वजह से बोतल में भरी गई बरफ पिघलती भी नहीं है।
9. आगे पानी नहीं मिलता तो खाना भी नहीं मिलता और दिन लग जाता है पूरा। इसलिये पार्वती बाग से ही परांठे पैक करके चलना चाहिये।
10. काली घाटी से पार्वती बाग तक पूरा रास्ता पेड विहीन और छोटी छोटी हरी-भरी घास युक्त है। ऐसी घास देखते ही इसमें लोट मारने का मन करता है। लेकिन सावधान रहें, इसी इलाके में जोंक भी सर्वाधिक संख्या में होती हैं।
11. टट्टी-पेशाब हमेशा खुले में ही करना पडेगा।
12. केवल अपने पैरों का ही भरोसा है तो यात्रा करें। रास्ते में कहीं भी घोडे, खच्चर, पालकी, उडनखटोला, हैलीकॉप्टर नहीं मिलेंगे।
12. केवल अपने पैरों का ही भरोसा है तो यात्रा करें। रास्ते में कहीं भी घोडे, खच्चर, पालकी, उडनखटोला, हैलीकॉप्टर नहीं मिलेंगे।
श्रीखण्ड महादेव यात्रा
1. श्रीखण्ड महादेव यात्रा
2. श्रीखण्ड यात्रा- नारकण्डा से जांव तक
3. श्रीखण्ड महादेव यात्रा- जांव से थाचडू
4. श्रीखण्ड महादेव यात्रा- थाचडू से भीमद्वार
5. श्रीखण्ड महादेव यात्रा- भीमद्वार से पार्वती बाग
6. श्रीखण्ड महादेव के दर्शन
7. श्रीखण्ड यात्रा- भीमद्वारी से रामपुर
8. श्रीखण्ड से वापसी एक अनोखे स्टाइल में
9. पिंजौर गार्डन
10. सेरोलसर झील और जलोडी जोत
11. जलोडी जोत के पास है रघुपुर किला
12. चकराता में टाइगर फाल
13. कालसी में अशोक का शिलालेख
14. गुरुद्वारा श्री पांवटा साहिब
15. श्रीखण्ड यात्रा- तैयारी और सावधानी
सही सलाह। शायद इसीलिए कहा गया है सावधानी हटी, दुर्घटना घटी।
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कभी देखा है ऐसा साँप?
उन्मुक्त चला जाता है ज्ञान पथिक कोई..
इस पोस्ट के बिना शायद ये सफर अधूरा रहता.. बहुत काम कि टिप्स...
ReplyDeleteहम तो चित्र देख कर ही सब समझ गये थे।
ReplyDeleteखूबसूरत प्रस्तुति ||
ReplyDeleteहम तो यहीं सैर कर आनंदित होते रहते हैं, आपका सफर यूं ही चलता रहं.
ReplyDeleteआपने बहुत अच्छी जानकारी दी है. जैसे राहुल जी ने कहा है, हम भी आपकी पोस्ट पढ़कर आनंदित हो लेते हैं.
ReplyDeleteThankyou . Tussi grate ho .
ReplyDeleteमुकेश said...
ReplyDeleteनीरज जी ,वहां के लिए जूते कैसे हों ,खास कर बरफ पर चलने के लिये ? कृप्या जरुर बतायें ।
बहुत अच्छी जानकारी दी है.
ReplyDeleteBadhiya janakari dii hai. Apka yah prayas avashya ki shrikhand jane valon ke liye sarthak hoga.
ReplyDeleteआपके ब्लॉग की चर्चा ब्लॉग4वार्ता पर
ब्लोगोदय नया एग्रीगेटर
पितृ तुष्टिकरण परियोजना
बहुत अच्छी जानकारी....
ReplyDeleteनीरज जी ,वहां के लिए जूते कैसे हों जरूर बतायें..
Neeraj Bhai apne bas ki ye yatra nahin hai...apun ne to ye yatra aapke maadhyam se kar ke puny kama liya...:-)
ReplyDeleteNeeraj
Humen ShreeKhand Mahadev Ji ki yatra karwane ke liye apka bahut bahut dhanyawad..
ReplyDeleteJai Shiri Khand Mahadev......
ReplyDeleteNiraj bhai .....kese kar lete ho itana danzar safar ....foto dek kr humari aatam bi kaf uti hai
ReplyDeleteKy aap ke sat bi ghomne ja satkte h kyghfgv
ReplyDeleteBhai hum bi aap ke sat ja satkte h ky
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