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17 नवंबर 2017
चाउमीन खाकर हम कोहोरा फोरेस्ट ऑफिस के बाहर बैठकर काजीरंगा और कर्बी आंगलोंग के बारे में तमाम तरह की सूचनाएँ पढ़ने में व्यस्त थे, तभी तीन आदमी और आए। यात्री ही लग रहे थे। आते ही पूछा – “क्या आप लोग भी काजीरंगा जाओगे?”
मैंने रूखा-सूखा-सा जवाब दिया – “हाँ, जाएँगे।”
बोले – “हम भी जाएँगे।”
मैंने जेब से मोबाइल निकाला और इस पर नजरें गड़ाकर कहा – “हाँ, ठीक है। जाओ। जाना चाहिए।”
बोले – “तो एक काम करते हैं। हम भी तीन और आप भी तीन। मिलकर एक ही सफारी बुक कर लेते हैं। पैसे बच जाएँगे।”
और जैसे ही सुनाई पड़ा “पैसे बच जाएँगे”; तुरंत मोबाइल जेब में रखा और सारा रूखा-सूखा-पन त्यागकर सम्मान की मुद्रा में आ गया – “अरे वाह सर, यह तो बहुत बढ़िया बात रहेगी। मजा आ जाएगा। आप लोग कहाँ से आए हैं?”
“भई वाह सर, यह समझ लो सरजी कि इंदौर में तो हमारा दूसरा घर है और हम कई-कई दिन वहाँ गुजार देते हैं।”
“कहाँ? किस जगह?”
फिर तो हमने उन्हें जो सम्मान दिया, उतना सम्मान हमने कभी किसी को नहीं दिया होगा। खुली गाड़ी में सबसे आगे भी उन्हें ही बैठाया और सबसे पीछे भी उन्हें ही। आखिर हमारे कई सौ रुपये जो बचने वाले थे।
तो बगोरी गेट पहुँचे। मोटरसाइकिल भी सामान सहित यहीं खड़ी कर दी। आज हम पहली बार किसी नेशनल पार्क में सफारी पर जा रहे थे। वो भी एक ऐसे नेशनल पार्क में जो विश्व विरासत स्थल भी है और जहाँ दुनिया में सबसे ज्यादा एक सींग वाले गैंडे पाए जाते हैं और जहाँ बाघों का घनत्व भी सबसे ज्यादा है। 2015 की गणना के अनुसार, इस नेशनल पार्क में 2400 से भी ज्यादा गैंडे हैं। हालाँकि इसी साल आई बाढ़ के कारण बहुत सारे गैंडे नेशनल पार्क से निकलकर आबादी क्षेत्रों में और कर्बी आंगलोंग की पहाड़ियों में चले गए और शिकार के कारण मारे भी गए।
लेकिन प्रत्येक यात्री की तरह हमारी भी इच्छा थी कि बस, एक गैंडा देखने को मिल जाए। नेशनल पार्कों में जानवर आसानी से दिखते नहीं हैं, लेकिन एक गैंडा दिख जाएगा तो जीवन सफल हो जाएगा। हम हर दो-दो मिनट में ड्राइवर से यही पूछे जा रहे थे – “दादा, गैंडा दिख तो जाएगा ना?”
एक पुल पार करते ही नेशनल पार्क में प्रवेश कर गए। और थोड़ी ही दूर एक गैंडा दिख गया। ऊँची हाथी-घास में छुपा हुआ था और केवल पेट का कुछ हिस्सा दिख रहा था। कैमरा 30 गुणा जूम करने पर छोटा-सा फोटो आया। फिर कैमरा एक तरफ रख दिया और गाड़ी रुकवाकर इसे ही देखने में लग गए।
“आगे बहुत सारे गैंडे मिलेंगे और सड़क के एकदम नजदीक मिलेंगे”, ड्राइवर ने कहा।
“और अगर न मिले तो? एक गैंडा दिख रहा है। इसे ही निहारने दो, दादा।”
काजीरंगा नाम सुनते ही गैंडे की छवि बनती है और गैंडा नाम सुनते ही काजीरंगा दिमाग में आता है। दोनों एक-दूसरे के पर्याय कहे जा सकते हैं। मुझे नहीं पता था कि पार्क कितना बड़ा है और ज्यादातर गैंडे इस समय कहाँ होंगे। तो एक गैंडा घास में आधा छुपा था, तो मैं इसमें खो गया। पेट पर लटकती खाल और ऊपर बैठा एक बगुला।
ड्राइवर भी ऊब गया और बाकी सभी भी। आखिरकार गाड़ी चला ही दी। मुझे तसल्ली नहीं थी। मैं इस एक को ही घास से निकलते देखना चाहता था। मुझे नहीं पता था कि कुछ ही आगे अनगिनत गैंडे सड़क के एकदम नजदीक होंगे।
मैं तो हैरान रह गया यह देखकर। नेशनल पार्कों में बढ़ती व्यावसायिकता को देखकर मेरा कभी मन नहीं होता था जाने का। प्रवेश शुल्क, सफारी, फोरेस्ट हट्स और फिर तमाम तरह के प्रतिबंध – कभी मन नहीं होता था। आज पहली बार ये सब काम किए। और पहली बार एहसास हो रहा है कि नेशनल पार्क क्यों खास होते हैं।
जंगली हाथियों में और जंगली भैंसों में किसी की दिलचस्पी नहीं थी, सिवाय मेरे। गैंडे समेत ये तीनों बड़े शाकाहारी जानवर एक ही मैदान में अपना भोजन साझा कर रहे थे। इनके बीच में बारहसिंगे और पक्षी तो खिलौने-से लग रहे थे। मन करने लगा कि एक-दो दिन रुकना चाहिए यहाँ, लेकिन आज हमारी यात्रा का आखिरी दिन था और दिन का भी आखिरी समय था।
“ये लोग फरवरी में सारी हाथी-घास को जला देते हैं। तब सभी जानवर स्पष्ट देखे जा सकते हैं। बाघ भी आसानी से दिख जाता है।” ड्राइवर ने बताया।
“क्यों? जला क्यों देते हैं?”
ये हाल ही में प्रकाशित हुई मेरी किताब ‘मेरा पूर्वोत्तर’ के ‘असम के आर-पार फिर से’ चैप्टर के कुछ अंश हैं। किताब खरीदने के लिए नीचे क्लिक करें:
नेशनल पार्क में कुछ कदम चलते ही आपको ये सब दिखने लगते हैं |
जलक्रीड़ा का आनंद लेता गैंडा |
गैंडा निःसंदेह काजीरंगा का राजा है... लेकिन भैंसे भी मंत्री से कम नहीं... |
यही घास गैंडों की शरणस्थली है |
कपिल चौधरी के साथ |
यह बाढ़ का पैमाना है... 2017 में मानसून में भयंकर बाढ़ आई थी और सैंकड़ों जानवरों को नेशनल पार्क छोड़ना पड़ा था... |
और यह रहा हमारा और इंदौर वालों का ग्रुप फोटो... |
अगले दिन दिल्ली के लिए वापसी |
ब्रह्मपुत्र भारत से बांग्लादेश में प्रवेश कर रहा है... इस फोटो में दोनों ही देश दिख रहे हैं... लेकिन सीमा-रेखा की पहचान मुश्किल है... |
बादलों के ऊपर |
और मोटरसाइकिल कहाँ गई? उसे गुवाहाटी ही छोड़ दिया। जल्द ही फिर आएँगे और बाकी पूर्वोत्तर देखेंगे।
1. “मेरा पूर्वोत्तर”... यात्रारंभ
2. “मेरा पूर्वोत्तर”... गुवाहाटी से शिवसागर
3. “मेरा पूर्वोत्तर” - शिवसागर
4. “मेरा पूर्वोत्तर” - चराईदेव: भारत के पिरामिड
5. “मेरा पूर्वोत्तर” - अरुणाचल में प्रवेश
6. “मेरा पूर्वोत्तर” - नामदफा नेशनल पार्क
7. “मेरा पूर्वोत्तर” - नामदफा से नामसाई तक
8. “मेरा पूर्वोत्तर” - तेजू, परशुराम कुंड और मेदू
9. “मेरा पूर्वोत्तर” - गोल्डन पैगोडा, नामसाई, अरुणाचल
10. “मेरा पूर्वोत्तर” - ढोला-सदिया पुल - 9 किलोमीटर लंबा पुल
11. “मेरा पूर्वोत्तर” - बोगीबील पुल और माजुली तक की यात्रा
12. “मेरा पूर्वोत्तर” - माजुली से काजीरंगा की यात्रा
13. “मेरा पूर्वोत्तर” - काजीरंगा नेशनल पार्क
शानदार फोटो ....
ReplyDeleteWaah waah waah
ReplyDeleteशानदाऱ प्रभु
ReplyDeleteNice
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