Skip to main content

“मेरा पूर्वोत्तर” - बोगीबील पुल और माजुली तक की यात्रा

इस यात्रा-वृत्तांत को आरंभ से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें
16 नवंबर 2017
डिब्रुगढ़ से बोगीबील का रास्ता इतना सुनसान था कि हमें एक स्थानीय से पूछना पड़ा। लेकिन जब ब्रह्मपुत्र के किनारे पहुँचे, तो ब्रह्मपुत्र की विशालता और इस पर बन रहे पुल को देखकर आश्चर्यचकित रह गए। यहाँ आने का एक उद्देश्य यह पुल देखना भी था। 2002 में यह पुल बनना शुरू हुआ था, लेकिन अभी तक भी पूरा नहीं हुआ है। फिलहाल पूरे पूर्वोत्तर में सड़क और रेल बनाने का काम जोर-शोर से चल रहा है, तो उम्मीद है कि एक साल के भीतर यह पुल भी चालू हो जाएगा। चालू होने के बाद लगभग 5 किलोमीटर लंबा यह पुल देश में सबसे लंबा सड़क-सह-रेल पुल होगा। इधर डिब्रुगढ़ और उधर धेमाजी रेल मार्ग से जुड़ जाएँगे। पुल के दोनों किनारों तक रेल की पटरियाँ बिछ चुकी हैं, स्टेशन भी तैयार हो चुके हैं और पुल निर्माण की सारी सामग्री रेल के माध्यम से ही आती है। पुल बनते ही इस पर ट्रेन चलने में कोई समय नहीं लगेगा।
“घाट किधर है?”
“उधर।”





कुछ दूर रेत में चलना पड़ा और हम एक चहल-पहल वाले स्थान पर थे। बहुत सारी गाड़ियाँ खड़ी थीं, यहाँ तक कि बसें भी। ढाबे थे और बहुत सारे स्टीमर थे। कईयों पर गाड़ियाँ और मोटरसाइकिलें लदी खड़ी थीं, तो कईयों से उतारी जा रही थीं। गौरतलब है कि ब्रह्मपुत्र के दक्षिण में स्थित डिब्रुगढ़ और तिनसुकिया बड़े व्यापारिक शहर हैं और रेल के जंक्शन भी। इसलिए उत्तर किनारे की बड़ी आबादी और अरुणाचल के लोग भी दक्षिण में खूब आना-जाना करते हैं।
हमारी मोटरसाइकिल भी एक स्टीमर पर चढ़ा दी गई। बराबर में बोगीबील पुल था, जिसका परला किनारा नहीं दिख रहा था। बीच का एक ‘स्पान’ बाकी था, बाकी पूरा पुल बन चुका था।
उधर पहुँचने में डेढ़ घंटा लगा। नदी में बहुत सारे द्वीप थे और नाविकों को इन द्वीपों के बीच से सही रास्ते की जानकारी थी। बरसात में जब नदी चढ़ती होगी, तो घाट भी डूब जाते होंगे। तब नए घाट बनाए जाते होंगे और दूरी तो निश्चित ही बढ़ जाती होगी।
दूसरी तरफ भी ऐसा ही माहौल था। चहल-पहल और ढाबे। कारों को लकड़ी के एक-एक फुट चौड़े फट्टों पर चलाकर नाव से किनारे पर लाना और किनारे से नाव पर चढ़ाना खासा रोमांचक था। अगर ड्राइवर जरा भी गलती करे तो कार नीचे नदी में भी गिर जाती होगी। मैं कैमरा लिए तैयार खड़ा रहा कि कोई ड्राइवर तो गलती करेगा ही, लेकिन किसी ने भी गलती नहीं की और सभी कारें आसानी से चढ़-उतर गईं।
अब हम उत्तरी असम में थे। ब्रह्मपुत्र के उत्तर में यह एक लंबी मैदानी पट्टी है, जिसके उत्तर में अरुणाचल की पहाड़ियाँ हैं। रंगिया से रेल की एक लाइन यहाँ आखिर में मुरकंग सेलेक तक आती है। एक सड़क भी है, जिसे इस क्षेत्र की मुख्य सड़क कहा जा सकता है। यह सड़क अच्छी बनी थी और ट्रैफिक भी नगण्य ही था।
हमें अब माजुली जाना था और हम गूगल मैप पर निर्भर थे। अच्छी सड़क पूर्वोत्तर में अभी भी कम ही हैं और हम अधिक से अधिक दूरी तक इस अच्छी सड़क का लाभ लेना चाहते थे।
“यह सड़क कहाँ तक अच्छी है?”
“आखिर तक अच्छी ही है।”
“आखिर तक मतलब?”
“तेजपुर तक।”
हमें तेजपुर से बहुत पहले ही यह सड़क छोड़ देनी पड़ेगी। इसका अर्थ है कि हम जब तक इस सड़क पर रहेंगे, हमें शानदार ही मिलेगी। उधर माजुली जाने के दो रास्ते दिख रहे थे – एक तो गोगामुख से और दूसरा नॉर्थ लखीमपुर से। गोगामुख से जो सड़क जाती है, वह ब्रह्मपुत्र की उस धारा को पार करती है, जिसके उस पार माजुली स्थित है। माजुली दुनिया का सबसे बड़ा नदी-द्वीप है और इसके एक ओर ब्रह्मपुत्र की मुख्य धारा है और दूसरी ओर ब्रह्मपुत्र की एक छोटी धारा। इसके पश्चिमी भाग में सुबनसिरी नदी भी आकर ब्रह्मपुत्र में मिलती है।
तो गोगामुख से जो सड़क माजुली जाती है, वह ब्रह्मपुत्र की उस छोटी धारा को पार करती है। सैटेलाइट से देखने पर स्पष्ट हो गया कि उस पर पुल बना है। उधर नॉर्थ लखीमपुर से जो रास्ता जाता है, वह सुबनसिरी नदी को पार करता है और पुल नहीं बना है। नाव से नदी पार करनी पड़ेगी। इसलिए तय किया कि गोगामुख से ही हम इस राजमार्ग को छोड़कर माजुली की ओर चल देंगे।
गोगामुख से कुछ पहले बोरदोलोनी में जब हम मीठे समोसे और चाउमीन खा रहे थे, तो माजुली की दिशा में जाते एक रास्ते पर निगाह पड़ी।
“वह रास्ता कहाँ जाता है?”

ये हाल ही में प्रकाशित हुई मेरी किताब ‘मेरा पूर्वोत्तर’ के ‘असम के आर-पार फिर से’ चैप्टर के कुछ अंश हैं। किताब खरीदने के लिए नीचे क्लिक करें:



जब यह पुल चालू हो जाएगा, तो भारत का सबसे लंबा रेल पुल होगा

बोगीबील घाट

नवंबर 2017 तक पुल लगभग पूरा बन चुका था... केवल एक स्पान बाकी है...








दिनभर गाड़ियाँ लादे हुए नावों का आना-जाना लगा रहता है...


ब्रह्मपुत्र का विस्तार

ब्रह्मपुत्र के अंदर बने रेतीले टापू... पानी से ये बनते और बिगड़ते रहते हैं... इनकी वजह से नावों को भी बड़ा लंबा चक्कर काटकर जाना पड़ता है... अनजान नाविक हो, तो वह इनकी भूल-भुलैया में फँस भी सकता है...

एक टापू पर किसी मछुआरे का ठिकाना


दूसरी तरफ वाला घाट





कार ‘बोटिंग’ के लिए जाती हुई...





उत्तरी असम की सड़कों पर








गिलहरी






अगला भाग: “मेरा पूर्वोत्तर” - माजुली से काजीरंगा की यात्रा






1. “मेरा पूर्वोत्तर”... यात्रारंभ
2. “मेरा पूर्वोत्तर”... गुवाहाटी से शिवसागर
3. “मेरा पूर्वोत्तर” - शिवसागर
4. “मेरा पूर्वोत्तर” - चराईदेव: भारत के पिरामिड
5. “मेरा पूर्वोत्तर” - अरुणाचल में प्रवेश
6. “मेरा पूर्वोत्तर” - नामदफा नेशनल पार्क
7. “मेरा पूर्वोत्तर” - नामदफा से नामसाई तक
8. “मेरा पूर्वोत्तर” - तेजू, परशुराम कुंड और मेदू
9. “मेरा पूर्वोत्तर” - गोल्डन पैगोडा, नामसाई, अरुणाचल
10. “मेरा पूर्वोत्तर” - ढोला-सदिया पुल - 9 किलोमीटर लंबा पुल
11. “मेरा पूर्वोत्तर” - बोगीबील पुल और माजुली तक की यात्रा
12. “मेरा पूर्वोत्तर” - माजुली से काजीरंगा की यात्रा
13. “मेरा पूर्वोत्तर” - काजीरंगा नेशनल पार्क





Comments

  1. बहुत बढ़िया नीरज भाई, शानदार जगह है पूर्वोतर, किताब में इन चित्रों की कमी ज़रूर खलती है लेकिन ये बढ़िया करते हो जो चित्रों को ब्लॉग के माध्यम से अपने पाठकों तक पहुंचा देते हो !

    ReplyDelete
  2. Jb ajj me post pad rha tha tb ye pull ka udghatan hua he

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

डायरी के पन्ने- 30 (विवाह स्पेशल)

ध्यान दें: डायरी के पन्ने यात्रा-वृत्तान्त नहीं हैं। 1 फरवरी: इस बार पहले ही सोच रखा था कि डायरी के पन्ने दिनांक-वार लिखने हैं। इसका कारण था कि पिछले दिनों मैं अपनी पिछली डायरियां पढ रहा था। अच्छा लग रहा था जब मैं वे पुराने दिनांक-वार पन्ने पढने लगा। तो आज सुबह नाइट ड्यूटी करके आया। नींद ऐसी आ रही थी कि बिना कुछ खाये-पीये सो गया। मैं अक्सर नाइट ड्यूटी से आकर बिना कुछ खाये-पीये सो जाता हूं, ज्यादातर तो चाय पीकर सोता हूं।। खाली पेट मुझे बहुत अच्छी नींद आती है। शाम चार बजे उठा। पिताजी उस समय सो रहे थे, धीरज लैपटॉप में करंट अफेयर्स को अपनी कापी में नोट कर रहा था। तभी बढई आ गया। अलमारी में कुछ समस्या थी और कुछ खिडकियों की जाली गलकर टूटने लगी थी। मच्छर सीजन दस्तक दे रहा है, खिडकियों पर जाली ठीकठाक रहे तो अच्छा। बढई के आने पर खटपट सुनकर पिताजी भी उठ गये। सात बजे बढई वापस चला गया। थोडा सा काम और बचा है, उसे कल निपटायेगा। इसके बाद धीरज बाजार गया और बाकी सामान के साथ कुछ जलेबियां भी ले आया। मैंने धीरज से कहा कि दूध के साथ जलेबी खायेंगे। पिताजी से कहा तो उन्होंने मना कर दिया। यह मना करना मुझे ब...

ट्रेन में बाइक कैसे बुक करें?

अक्सर हमें ट्रेनों में बाइक की बुकिंग करने की आवश्यकता पड़ती है। इस बार मुझे भी पड़ी तो कुछ जानकारियाँ इंटरनेट के माध्यम से जुटायीं। पता चला कि टंकी एकदम खाली होनी चाहिये और बाइक पैक होनी चाहिये - अंग्रेजी में ‘गनी बैग’ कहते हैं और हिंदी में टाट। तो तमाम तरह की परेशानियों के बाद आज आख़िरकार मैं भी अपनी बाइक ट्रेन में बुक करने में सफल रहा। अपना अनुभव और जानकारी आपको भी शेयर कर रहा हूँ। हमारे सामने मुख्य परेशानी यही होती है कि हमें चीजों की जानकारी नहीं होती। ट्रेनों में दो तरह से बाइक बुक की जा सकती है: लगेज के तौर पर और पार्सल के तौर पर। पहले बात करते हैं लगेज के तौर पर बाइक बुक करने का क्या प्रोसीजर है। इसमें आपके पास ट्रेन का आरक्षित टिकट होना चाहिये। यदि आपने रेलवे काउंटर से टिकट लिया है, तब तो वेटिंग टिकट भी चल जायेगा। और अगर आपके पास ऑनलाइन टिकट है, तब या तो कन्फर्म टिकट होना चाहिये या आर.ए.सी.। यानी जब आप स्वयं यात्रा कर रहे हों, और बाइक भी उसी ट्रेन में ले जाना चाहते हों, तो आरक्षित टिकट तो होना ही चाहिये। इसके अलावा बाइक की आर.सी. व आपका कोई पहचान-पत्र भी ज़रूरी है। मतलब...

चूडधार की जानकारी व नक्शा

चूडधार की यात्रा कथा तो पढ ही ली होगी। ट्रेकिंग पर जाते हुए मैं जीपीएस से कुछ डाटा अपने पास नोट करता हुआ चलता हूं। यह अक्षांस, देशान्तर व ऊंचाई होती है ताकि बाद में इससे दूरी-ऊंचाई नक्शा बनाया जा सके। आज ज्यादा कुछ नहीं है, बस यही डाटा है। अक्षांस व देशान्तर पृथ्वी पर हमारी सटीक स्थिति बताते हैं। मैं हर दस-दस पन्द्रह-पन्द्रह मिनट बाद अपनी स्थिति नोट कर लेता था। अपने पास जीपीएस युक्त साधारण सा मोबाइल है जिसमें मैं अपना यात्रा-पथ रिकार्ड नहीं कर सकता। हर बार रुककर एक कागज पर यह सब नोट करना होता था। इससे पता नहीं चलता कि दो बिन्दुओं के बीच में कितनी दूरी तय की। बाद में गूगल मैप पर देखा तो उसने भी बताने से मना कर दिया। कहने लगा कि जहां सडक बनी है, केवल वहीं की दूरी बताऊंगा। अब गूगल मैप को कैसे समझाऊं कि सडक तो चूडधार के आसपास भी नहीं फटकती। हां, गूगल अर्थ बता सकता है लेकिन अपने नन्हे से लैपटॉप में यह कभी इंस्टाल नहीं हो पाया।