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अगले दिन यानी 18 अगस्त को सुबह आठ बजे सोकर उठा। चाय पी, कुछ बिस्कुट खाये और जैम के साथ लद्दाखी रोटी भी। हालांकि अब मैं हिमाचल में था, लाहौल में था लेकिन यह लद्दाख से ज्यादा भिन्न नहीं है। साढे आठ बजे यहां से चल पडा।
आज मुझे अपने बाकी दोनों साथियों से मिलना है। पुरने में जब हम अलग हुए थे, तब यही तय हुआ था कि हम चार दिन बाद दारचा में मिलेंगे। सुबह वे लेह से चले होंगे, मैं यहां से चलूंगा। देखते हैं कौन पहले दारचा पहुंचता है?
लामाजी द्वारा बनवाई जा रही सडक लगभग शिंगो-ला तक पहुंच चुकी है। वह सडक यहां से बस कुछ ही ऊपर थी। नीचे पगडण्डी थी। मुझे अभी भी इतनी थकान थी कि मैं करीब सौ मीटर ऊपर सडक पर नहीं जाना चाहता था। लेकिन इसका भी अपना नुकसान था। ऊपर सडक बनी तो मलबा नीचे तक आ गया था। उससे पगडण्डी भी प्रभावित हुई थी, इसलिये चलने में समस्या आ रही थी। एक बार हिम्मत करके ऊपर सडक तक पहुंच गया और बाकी पैदल यात्रा मजे में कटी।
इसे सडक तो कतई नहीं कह सकते। जेसीबी मशीन से पत्थर हटा दिये थे लेकिन इससे वो चिकनापन नहीं आया था कि इस पर आसानी से गाडियां चलाई जा सकें। वो काम बाद में होता रहेगा लेकिन यह इतना तो बन ही गया था कि इस पर मोटरसाइकिलें व सूमो वगैरा चल सकें। जांस्करी तो अपने यहां सडक बन जाने की भयंकर प्रतीक्षा कर रहे हैं। हालांकि पदुम की तरफ से और इधर दारचा की तरफ से सीमा सडक संगठन अपना काम कर रहा है लेकिन वह पर्याप्त नहीं है। जांस्करियों का कहना है कि पिछले चार साल से ये लोग एक ही जगह पर काम कर रहे हैं, आगे नहीं बढ रहे। हालांकि बीआरओ के पास पैसे की कोई तंगी नहीं है, संसाधनों की कोई कमी नहीं है लेकिन फिर भी ये सडक को आगे नहीं बढा रहे। इसका कारण यह भी हो सकता है कि यह रक्षा सडक नहीं है।
जब अति हो गई तो एक लामा ने यह काम संभाला। पूरे जांस्कर व लाहौल में लामाजी श्रद्धा के पात्र बने हुए हैं। उनका नाम छुल्तिम छोसजोर है। रास्ते में वे मिले भी, फोटो के लिये कहने पर फोटो भी खिंचवाया। वे चाहते हैं कि नीचे मैदान में इस काम की जानकारी पहुंचे और कुछ सहायता भी मिल जाये तो अच्छा। हालांकि सीमा सडक संगठन भी उनकी खूब मदद कर रहा है। आखिर वे बीआरओ का ही काम आसान कर रहे हैं। उनकी बनाई सडक पर पीछे-पीछे बीआरओ भी फिनिशिंग करता हुआ आगे बढ रहा है। उन्होंने बताया कि उनका लक्ष्य अक्टूबर में बर्फ पडने से पहले इस सडक को शिंगो-ला पार कराके करग्याक तक पहुंचा देने का है, जबकि बीआरओ का लक्ष्य चुमिक नाकपो तक फिनिशिंग कर देने का है। गौरतलब है कि करग्याक और उससे भी आगे तेंगजे तक चौडी घाटी है जहां सडक बनानी अपेक्षाकृत आसान है। तेंगजे से पुरने तक खडे पहाड हैं जहां लामाजी की जेसीबी काम नहीं आने वाली। क्या पता इसी सीजन में बीआरओ की पदुम वाली सडक पुरने तक आ जाये? तीन-चार किलोमीटर पहले ‘चा’ तक तो पहुंच गई है।
...इस यात्रा के अनुभवों पर आधारित मेरी एक किताब प्रकाशित हुई है - ‘सुनो लद्दाख !’ आपको इस यात्रा का संपूर्ण और रोचक वृत्तांत इस किताब में ही पढ़ने को मिलेगा।
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रात यहीं पर रुका था। |
गौर कीजिये। यह लामाजी की जेसीबी द्वारा बनाई गई सडक है। जब पहली बार सडक बनाने के लिये पत्थर हटाये जाते हैं तो ऐसी ही दिखती है। बाद में फिनिशिंग होती रहती है। |
पीछे-पीछे बीआरओ इसकी फिनिशिंग करता आ रहा है। |
यही हैं वे लामा- छुल्तिम छोसजोर। |
जांस्कर सुमडो |
जांस्कर सुमडो |
अगला भाग: जांस्कर यात्रा का कुल खर्च
पदुम दारचा ट्रेक
1. जांस्कर यात्रा- दिल्ली से कारगिल
2. खूबसूरत सूरू घाटी
3. जांस्कर यात्रा- रांगडुम से अनमो
4. पदुम दारचा ट्रेक- अनमो से चा
5. फुकताल गोम्पा की ओर
6. अदभुत फुकताल गोम्पा
7. पदुम दारचा ट्रेक- पुरने से तेंगजे
8. पदुम दारचा ट्रेक- तेंगजे से करग्याक और गोम्बोरंजन
9. गोम्बोरंजन से शिंगो-ला पार
10. शिंगो-ला से दिल्ली वापस
11. जांस्कर यात्रा का कुल खर्च
अद्भुत लेख..... अद्भुत चित्र ....
ReplyDeleteइन जगहों के बारे में हमने पहले कभी नहीं सुना.....आपके साथ यात्रा का आनंद उठा लिया....
धन्यवाद गुप्ता जी...
Deletechalo der aaye durusat aaye maja aa gya dost
ReplyDeleteदेर नहीं आये... बिल्कुल समय पर आये। धन्यवाद आपका।
Deletejat ji .. total kharch batiya .. plzz
ReplyDeleteटोटल खर्च 15000 रुपये।
Deleteनीरज भाई बहुत ही शानदार यात्रा वृतांत व फोटो,लामा जी का काम भी सहारनीय है..
ReplyDeleteधन्यवाद सचिन भाई...
Deleteबहुत बढ़िया।
ReplyDeleteधन्यवाद बडोला साहब...
Deleteacha trip tha, Baspa valley kab jaoge
ReplyDeleteपता नहीं।
DeleteGood description, nice photos. Thanks for share with us.
ReplyDeleteधन्यवाद शर्मा जी...
DeleteThankyou sir , sher with us , nice photo kachch yatra ka intajar rahega .
ReplyDeleteumesh joshi
धन्यवाद जोशी साहब...
DeleteBhai maja aa gya....!
ReplyDeleteधन्यवाद अशोक भाई...
Deleteबहुत बढ़िया नीरज भाई
ReplyDeleteबहुत बढिया संजय भाई...
Deleteएवेरेस्ट को छूने का समय आ गया है नीरज जी
ReplyDeleteएवरेस्ट की कोई इच्छा नहीं है।
Deleteएक और अनोखी यात्रा
ReplyDeleteJabardast yatra.
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