Skip to main content

पदुम-दारचा ट्रेक- तेंगजे से करग्याक और गोम्बोरंजन

इस यात्रा वृत्तान्त को आरम्भ से पढने के लिये यहां क्लिक करें
16 अगस्त 2014
सुबह साढे आठ बजे सोकर उठा। हालांकि रात जब सोने जा रहा था तो दुकान मालकिन से यही कहकर सोया था कि सुबह छह बजे चल पडूंगा। सुबह छह बजे आंख भी खुली थी लेकिन बाहर बूंदाबांदी हो रही थी। मैं फिर सो गया। अबकी उठा तो साढे आठ बज चुके थे और तेज धूप टेंट पर पडने लगी थी। दुकान भी खुल चुकी थी। सरचू जाने वाले विदेशियों के ग्रुप का साजो-सामान उखड चुका था और खच्चरों पर लादा जा रहा था।
मैं तय कार्यक्रम से काफी पीछे था। सुबह सवेरे चलने का मकसद इतना ही था ताकि कुछ समय व दूरी की पूर्ति कर सकूं। परसों शाम तक हर हाल में दारचा पहुंचना है। दारचा में मुझे विधान व प्रकाश जी मिलेंगे, कल ही इस बारे में सबकुछ तय हो गया था। अगर मैं न पहुंचा तो वे दारचा में मेरी प्रतीक्षा करते रह जायेंगे। लेकिन बुरी आदत है देर तक सोने की, सोता ही रह गया।

चाय पीकर सवा नौ बजे प्रस्थान कर गया। रास्ता समतल ही था इसलिये चलने में काफी तेजी दिखाई। एक घण्टे में ही थाबले गांव पहुंच गया। छोटा सा गांव है यह। रास्ता गांव के अन्दर से जाता है। ऐसा लगता है कि हम घरों के भीतर से होकर चल रहे हों। रास्ते पर ही याक बंधे थे और महिलाएं दूध दुह रही थीं। हमारे यहां मैदान में रिवाज है कि दूध दुहने वाले से टोका-टाकी नहीं करते हैं। कभी कभी ऐसा करने से गायें अजनबी व्यक्ति को देखकर बिदक जाती हैं। याक भी गाय की ही प्रजाति है। फिर वे पुराने संस्कार; मैं चुपचाप आगे बढ गया।
आखिरी घर को पार करके बैठ गया। पिछले एक घण्टे से मैं लगातार चलता आ रहा था, आराम करने की इच्छा हो रही थी। उस घर की एक खिडकी जिस पर कांच लगा हुआ था, मेरी तरफ ही थी। भीतर कम प्रकाश था, इसलिये मुझे भीतर का कुछ भी नहीं दिख रहा था, जबकि भीतर वालों को मैं दिख रहा होऊंगा। तभी तो एक वृद्ध महिला आईं और पूछा- ओ! चाय पीयेगा? मैंने तुरन्त हां कह दी। उन्होंने मुझे घर के भीतर आने का इशारा किया।
...
इस यात्रा के अनुभवों पर आधारित मेरी एक किताब प्रकाशित हुई है - ‘सुनो लद्दाख !’ आपको इस यात्रा का संपूर्ण और रोचक वृत्तांत इस किताब में ही पढ़ने को मिलेगा।
आप अमेजन से इसे खरीद सकते हैं।



तेंगजे से प्रस्थान






‘की’ गांव जाने के लिये पुल

पवित्र गोम्बोरंजन पर्वत के प्रथम दर्शन

की गांव


करग्याक गांव



अब तो गोम्बोरंजन के साये में ही चलना है।


फ्यांग



यही वो फ्यांग था जिसने मुझे पौने घण्टे तक बैठाये रखा।









यह है मेरी आज की शरणस्थली।


गोम्बोरंजन पर्वत की स्थिति। नक्शे को छोटा व बडा भी किया जा सकता है।



अगला भाग: गोम्बोरंजन से शिंगो-ला पार

पदुम दारचा ट्रेक
1. जांस्कर यात्रा- दिल्ली से कारगिल
2. खूबसूरत सूरू घाटी
3. जांस्कर यात्रा- रांगडुम से अनमो
4. पदुम दारचा ट्रेक- अनमो से चा
5. फुकताल गोम्पा की ओर
6. अदभुत फुकताल गोम्पा
7. पदुम दारचा ट्रेक- पुरने से तेंगजे
8. पदुम दारचा ट्रेक- तेंगजे से करग्याक और गोम्बोरंजन
9. गोम्बोरंजन से शिंगो-ला पार
10. शिंगो-ला से दिल्ली वापस
11. जांस्कर यात्रा का कुल खर्च




Comments

  1. adhbhut.ab aaya asli INDIANA JONES type vivran.rahasya or romanch se bharpur.itni khatarnaak yaatra wo bhi akele .kya baat hai.KY gano ki photo samajh nahi aata ki aapki yatra jyadaa shaandaar hai ki likhne ka dhang .itni himmat ,itna dhairya ,itni mansik kshmta ko shat shat naman.
    GHUMMAKARI ZINDABAAD

    ReplyDelete
  2. adhbhut.ab aaya asli INDIANA JONES type vivran.rahasya or romanch se bharpur.itni khatarnaak yaatra wo bhi akele .kya baat hai.KY gano ki photo bahut hi shandaar aayi hai. samajh nahi aata ki aapki yatra jyadaa shaandaar hai ki likhne ka dhang .itni himmat ,itna dhairya ,itni mansik kshmta ko shat shat naman.
    GHUMMAKARI ZINDABAAD

    ReplyDelete
  3. नीरज भाई सम्पूर्ण उत्तरी पहाड़ी राज्यों को चाहिए कि आप को उनके राज्य का टूरिज्म ब्रांड एम्बेसडर बना दें | आपने जितना उनके राज्य के बारे में विस्तार पूर्वक लिखा है उतना शायद ही किसी और ने लिखा होगा| बच्चन साहब अगर कुछ विज्ञापन दिखाकर गुजरात के टूरिज्म को बुलंदियों पर पंहुचा सकते हैं तो आपने तो इन राज्यों के एक एक फीट को दिखा डाला है अपने ब्लॉग के माध्यम से .............................................

    ReplyDelete
    Replies
    1. ब्रांड एम्बसेडर काम से नहीं बल्कि ‘फेस वैल्यू’ से बनते हैं। अपनी तो कुछ भी फेस वैल्यू नहीं है।

      Delete
  4. नीरज जी , बहुत सुन्दर यात्रा वृतांत। जितना चाहें मन भरकर घुमक्कडी कर लीजिये, शादी के बाद न कोई कर पाता है न ही समय मिल पाता, अपनी जिम्मेदारियों से। हां. कभी पत्नी को घूमने ले जाना हो तब जा सकते हैं। लेकिन वो भी जिम्मेदारियों के साथ.
    ये मस्ती नहीं आ पाती।

    ReplyDelete
  5. आपकी जिजीविषा को प्रणाम है।

    ReplyDelete
  6. बहुत ही शानदार और रोमांचकारी यात्रा के साथ साथ शानदार फोटो ... गोम्बोरंजन पर्वत के सभी फोटो बहुत अच्छा लगे....

    ReplyDelete
  7. इतना घुमने के लिए तो 100 जन्‍म भी कम पडेगे । अदभुत यात्रा वृतांत है आपको देश का ब्राईट एम्‍बेसडर बना देना चाहिए । पधारो म्‍हारे देश का

    ReplyDelete
  8. उत्कृष्ट वर्णन तथा अद्भुत छायाचित्रकारी .....गोंबोरन्जन पर्वत के चित्र बड़े ही मनोहारी लगे।

    ReplyDelete
  9. bhai bahut achha vratant hai ...jungal me akele is tarah sona .....bahut adbhut ..nice dear...

    ReplyDelete
  10. उफ़ ! ये वीराना ! तुझे डर नहीं लगता क्या नीरज। … पर इतने खूबसूरत पर्वत और पहाड़ दिखाने का शुक्रियां ---तेरे साथ हम भी नदी नाले पार करते है। । सच, बड़ा डर लगता है ,अकेले घर में क्या कोई जानवर नहीं आता होगा ?

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

स्टेशन से बस अड्डा कितना दूर है?

आज बात करते हैं कि विभिन्न शहरों में रेलवे स्टेशन और मुख्य बस अड्डे आपस में कितना कितना दूर हैं? आने जाने के साधन कौन कौन से हैं? वगैरा वगैरा। शुरू करते हैं भारत की राजधानी से ही। दिल्ली:- दिल्ली में तीन मुख्य बस अड्डे हैं यानी ISBT- महाराणा प्रताप (कश्मीरी गेट), आनंद विहार और सराय काले खां। कश्मीरी गेट पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन के पास है। आनंद विहार में रेलवे स्टेशन भी है लेकिन यहाँ पर एक्सप्रेस ट्रेनें नहीं रुकतीं। हालाँकि अब तो आनंद विहार रेलवे स्टेशन को टर्मिनल बनाया जा चुका है। मेट्रो भी पहुँच चुकी है। सराय काले खां बस अड्डे के बराबर में ही है हज़रत निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन। गाजियाबाद: - रेलवे स्टेशन से बस अड्डा तीन चार किलोमीटर दूर है। ऑटो वाले पांच रूपये लेते हैं।

आज ब्लॉग दस साल का हो गया

साल 2003... उम्र 15 वर्ष... जून की एक शाम... मैं अखबार में अपना रोल नंबर ढूँढ़ रहा था... आज रिजल्ट स्पेशल अखबार में दसवीं का रिजल्ट आया था... उसी एक अखबार में अपना रिजल्ट देखने वालों की भारी भीड़ थी और मैं भी उस भीड़ का हिस्सा था... मैं पढ़ने में अच्छा था और फेल होने का कोई कारण नहीं था... लेकिन पिछले दो-तीन दिनों से लगने लगा था कि अगर फेल हो ही गया तो?... तो दोबारा परीक्षा में बैठने का मौका नहीं मिलेगा... घर की आर्थिक हालत ऐसी नहीं थी कि मुझे दसवीं करने का एक और मौका दिया जाता... निश्चित रूप से कहीं मजदूरी में लगा दिया जाता और फिर वही हमेशा के लिए मेरी नियति बन जाने वाली थी... जैसे ही अखबार मेरे हाथ में आया, तो पिताजी पीछे खड़े थे... मेरा रोल नंबर मुझसे अच्छी तरह उन्हें पता था और उनकी नजरें बारीक-बारीक अक्षरों में लिखे पूरे जिले के लाखों रोल नंबरों में से उस एक रोल नंबर को मुझसे पहले देख लेने में सक्षम थीं... और उस समय मैं भगवान से मना रहा था... हे भगवान! भले ही थर्ड डिवीजन दे देना, लेकिन पास कर देना... फेल होने की दशा में मुझे किस दिशा में भागना था और घर से कितने समय के लिए गायब रहना था, ...

लद्दाख बाइक यात्रा-5 (पारना-सिंथन टॉप-श्रीनगर)

10 जून 2015 सात बजे सोकर उठे। हम चाहते तो बडी आसानी से गर्म पानी उपलब्ध हो जाता लेकिन हमने नहीं चाहा। नहाने से बच गये। ताजा पानी बेहद ठण्डा था। जहां हमने टैंट लगाया था, वहां बल्ब नहीं जल रहा था। रात पुजारीजी ने बहुत कोशिश कर ली लेकिन सफल नहीं हुए। अब हमने उसे देखा। पाया कि तार बहुत पुराना हो चुका था और एक जगह हमें लगा कि वहां से टूट गया है। वहां एक जोड था और उसे पन्नी से बांधा हुआ था। उसे ठीक करने की जिम्मेदारी मैंने ली। वहीं रखे एक ड्रम पर चढकर तार ठीक किया लेकिन फिर भी बल्ब नहीं जला। बल्ब खराब है- यह सोचकर उसे भी बदला, फिर भी नहीं जला। और गौर की तो पाया कि बल्ब का होल्डर अन्दर से टूटा है। उसे उसी समय बदलना उपयुक्त नहीं लगा और बिजली मरम्मत का काम जैसा था, वैसा ही छोड दिया।