पूर्वोत्तर भारत अर्थात?
कुछ लोग पूर्वोत्तर भी घूमने जाते हैं। उनके लिये पूर्वोत्तर का अर्थ होता है दार्जीलिंग और सिक्किम। आखिर सिक्किम की गिनती पूर्वोत्तर में होती है तो सही बात है कि सिक्किम घूमे तो पूर्वोत्तर भी घूम लिये। ज्यादा हुआ तो मेघालय चले गये, चेरापूंजी और शिलांग। इससे भी ज्यादा हुआ तो तवांग चले गये अरुणाचल में, काजीरंगा चले गये असोम में। और बात अगर हद तक पहुंची तो इक्के दुक्के कभी कभार इम्फाल भी चले जाते हैं मणिपुर में। लोकटक झील है वहां जो बिल्कुल विलक्षण है। घुमन्तुओं के लिये पूर्वोत्तर की यही सीमा है।
मिज़ोरम कोई नहीं जाता। क्योंकि यह पूर्वोत्तर के पार की धरती है, पूर्वोत्तर के उस तरफ की धरती है। जिस तरह लद्दाख है हिमालय पार की धरती। जिसमें हिमालय चढने और उसे पार करने का हौंसला होता है, वही लद्दाख जा पाता है। ठीक इसी तरह जिसमें पूर्वोत्तर जाने और उसे भी पार करने का हौंसला होता है, वही मिज़ोरम जा पाता है। पूर्वोत्तर बडी बदनाम जगह है। वहां उग्रवादी रहते हैं जो कश्मीर के आतंकवादियों से भी ज्यादा खूंखार होते हैं। कश्मीर के आतंकवादी तो केवल सुरक्षाबलों को ही मारते हैं, पूर्वोत्तर के आतंकवादी सुरक्षाबलों को नहीं मारते बल्कि हिन्दीभाषियों को मारते हैं। कोकराझार बडी भयंकर जगह है। पूर्वोत्तर का प्रवेश द्वार है कोकराझार। कोकराझार से गुजरे बिना सिक्किम तो जाया जा सकता है लेकिन बाकी के सात राज्यों में नहीं जाया जा सकता।
भारत का सबसे साक्षर राज्य केरल (93.91%) है तो दूसरे स्थान पर मिज़ोरम (91.60%) है। यही नहीं देश के सबसे साक्षर दो जिले सेरछिप (98.76%) और आइजॉल (98.50%) हैं। ये दोनों मिज़ोरम में हैं।
मिज़ोरम के इतिहास का जिक्र किये बिना यह वृत्तान्त अधूरा है। यहां का असली इतिहास आजादी के बाद शुरू होता है। इसे आसाम राज्य में एक जिले का दर्जा दिया गया था। यहां की भाषा-संस्कृति आसाम से अलग होने के कारण शीघ्र ही इसे पक्षपात का सामना करना पडा। आसाम सरकार ने पूर्णतया मिज़ोरम की अनदेखी की। राजकीय भाषा असमिया कर देने और एक अकाल के बाद यहां स्थिति और बिगडी। ऐसे में इसे एक अलग राज्य बनाने की मांग जोर पकडने लगी। इसी दौरान एक विद्रोही संगठन मिजो नेशनल फ्रंट भी बन गया।
मिज़ो नेशनल फ्रंट का लक्ष्य अलग राज्य का नहीं था बल्कि भारत से स्वतन्त्र होकर अलग देश बनाने का था। इसके लिये इस फ्रंट ने अपनी एक सेना भी बनाई- मिज़ो नेशनल आर्मी। 1960 के दशक में फ्रंट के नेताओं ने तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) का भी दौरा करना शुरू किया। वहां से पाकिस्तान ने उन्हें हरसम्भव सहायता दी, धन और हथियारों की सहायता व इन्हें चलाने का प्रशिक्षण भी।
इसी दौरान भारत-चीन युद्ध और भारत-पाकिस्तान युद्ध हुए। भारत का सारा ध्यान अपनी पश्चिमी और उत्तरी सीमाओं पर लग गया। विद्रोही फ्रंट ने इस परिस्थिति का भरपूर लाभ उठाया। इसकी अपनी प्रशिक्षित सेना हथियारों से लैस थी ही, साथ ही अच्छा संख्याबल भी था। विद्रोह को सुनियोजित तरीके से अन्जाम दिया गया। गुप्तरूप से इस ऑपरेशन का नाम रखा गया- ऑपरेशन जेरिचो। इसका अन्तिम लक्ष्य 1 मार्च 1966 को पूर्ण क्रान्ति करके मिज़ोरम को स्वतन्त्र राष्ट घोषित करने का था। इसमें कोई शक नहीं था कि तात्कालित तौर पर पाकिस्तान इस नये देश का समर्थन करता।
विद्रोही 28 फरवरी की रात को आइजॉल में घुस गये। इन्होंने शहर की टेलीफोन लाइनें काट दीं ताकि प्रशासन बाहर से सहायता न मांग सके। इन्होंने रात में ही शहर के सभी प्रमुख स्थानों और कार्यालयों पर कब्जा कर लिया। शहर की पूर्ण घेराबन्दी कर दी ताकि कोई बाहर न जा सके। कानून व्यवस्था स्थानीय पुलिस और आसाम राइफल्स के हाथों से निकल चुकी थी। हालात इतने बदतर हो चुके थे कि आइजॉल के डिप्टी कमिश्नर को आसाम राइफल्स के यहां शरण लेनी पडी। बाहर से सहायता का एकमात्र साधन सिल्चर सडक ही थी जिसे विद्रोहियों ने बुरी तरह क्षतिग्रस्त कर दिया था।
1 मार्च 1966 को मिज़ो नेशनल फ्रंट के नेता लालदेंगा ने भारत से आजादी की घोषणा कर दी और अधिक से अधिक संख्या में मिज़ो लोगों को अपने समर्थन में करने लगे। इसके बाद शहर में बुरी तरह हिंसा भडक उठी। गैर-मिज़ो लोगों को जमकर मारा गया, उनकी दुकानें लूटी गईं और घरों में आग लगा दी गई।
मिज़ोरम के दूसरे भागों में भी ऐसा ही हुआ। आइजॉल से 200 किलोमीटर दूर चम्फाई में तो उन्होंने आसानी से आसाम राइफल्स की पोस्ट पर कब्जा कर लिया। आसाम की सीमा पर स्थित वैरेंगते पर भी कब्जा कर लिया और सरकारी कर्मचारियों को जिले से भागना पडा। लुंगलेई में भी ऐसा ही हुआ। कोलासिब में करीब 250 लोगों को बन्धक बना लिया गया जिनमें गैर-मिज़ो नागरिक, सरकारी कर्मचारी आदि थे।
3 मार्च को भारत की आंख खुली। मामले की गम्भीरता को देखते हुए आसाम राइफल्स की और ज्यादा बटालियनें हेलीकॉप्टर से आइजॉल भेजी गईं व शहर में कर्फ्यू लगा दिया गया। हेलीकॉप्टर से जवानों को भेजना भी आसान नहीं था क्योंकि विद्रोहियों के पास अच्छे हथियार थे जो हवा में घातक मार कर सकते थे। इसकी जिम्मेदारी भारतीय वायुसेना को दी गई। पहली कोशिशों में विद्रोहियों ने वायुसेना को भी क्षति पहुंचाई। इसके बाद वो घटना हुई जिसे भारत तो क्या कोई भी देश नहीं करना चाहेगा। अपने ही देश में अपने ही नागरिकों पर हवाई हमला। वायुसेना ने जमकर हवाई हमले किये। बाद में मिज़ोरम के मुख्यमन्त्री ज़ोरमथंगा ने इन हमलों को ‘निर्दयी बमबारी’ कहा था। तात्कालिक रूप से ऐसा करना आवश्यक था।
उधर थलसेना ने भी मोर्चा संभाला। 6 मार्च को सेना आइजॉल पहुंची, इसके बाद चम्फाई और लुंगलेई। मार्च के अन्त तक सेना ने पूरे मिज़ोरम का कंट्रोल अपने हाथ में ले लिया। एक समय मिज़ोरम में सभी आसाम राइफल्स की चौकियों पर विद्रोहियों ने कब्जा कर लिया था सिवाय आइजॉल के। लेकिन वायुसेना ने उनके मंसूबों पर पानी फेर दिया। रही सही कसर थलसेना ने पूरी कर दी।
इसके बाद विद्रोहियों को भागना पडा और वे गांवों में सामान्य लोगों के बीच घुलमिल गये और अपनी गतिविधियां जारी रखीं। यह भी एक चुनौतीयुक्त परिस्थिति थी क्योंकि इसमें आमलोगों को दोतरफा मार पडती है- एक तो विद्रोहियों से और दूसरी सेना से। तब जनवरी 1967 में भारत सरकार ने यहां ग्रुपिंग पॉलिसी लागू की जिसमें सभी को अपने अपने गांव छोडकर सेना के नियन्त्रण वाले इलाकों में बसना था। ये निवास स्थान मुख्यतः सडकों के पास थे। ऐसा करने के बाद सेना को विद्रोहियों को ढूंढने व उनकी चालें नाकाम करने में आसानी रही, हालांकि बडी संख्या में आमलोगों को मानसिक समस्या का सामना करना पडा। अपना घर व जमीन छोडकर अनजान स्थान पर बसना किसे अच्छा लगता है?
इसके बाद हालात और सुधरे। अगस्त 1968 में विद्रोहियों को माफी दे दी गई जिसके फलस्वरूप बडी संख्या में विद्रोहियों ने समर्पण किया व मुख्यधारा में शामिल हुए। फिर 21 जनवरी 1972 को मिज़ोरम को केन्द्र शासित प्रदेश बना दिया गया। मिज़ो नेशनल फ्रंट की विद्रोही गतिविधियां 1976 में समाप्त हुईं जब उसने भारत सरकार के साथ ‘सन्धि’ की। इसकी शर्तों के अनुसार भारत सरकार मिज़ोरम को अलग राज्य बनाने व आइजॉल को उसकी राजधानी बनाने पर सहमत हुई तो फ्रंट अपनी विद्रोही व हिंसक गतिविधियां छोडने पर। आखिरकार मिज़ोरम 20 फरवरी 1987 को भारत का राज्य बना।
तो जी, ऐसी भीषण कहानी थी मिज़ोरम की। अब चूंकि मैं मिज़ोरम घूमकर लौट चुका हूं तो कह सकता हूं कि मिज़ोरम भारत के सबसे शान्त राज्यों में से एक है। इसके पडोसी राज्य अवश्य उत्पाती हैं। यहां मिज़ो भाषा बोली जाती है लेकिन अपनी कोई लिपि न होने के कारण यह रोमन में लिखी जाती है। अधिसंख्य आबादी ईसाई है।
इस ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को देखकर ही मैंने मिज़ोरम जाने का फैसला किया। साक्षरता का एक अर्थ और भी होता है कि यहां समझदार लोग रहते हैं। कम साक्षरता अर्थात कम समझदारी। सुरक्षा को लेकर मेरे पास कोई नकारात्मक वजह नहीं थी। मैं आश्वस्त था कि मेरी यात्रा शानदार व सुरक्षित होगी।
साइकिल से घूमने का कार्यक्रम बनाया। यह कार्यक्रम काफी पहले बन चुका था। जैसलमेर साइकिल यात्रा मिज़ोरम के रिहर्सल के तौर पर ही की गई थी क्योंकि इससे पहले मैंने लद्दाख में ही साइकिल चलाई थी। मुम्बई के पेशेवर साइकिलिस्ट सचिन से सम्पर्क किया। उन्होंने मिज़ोरम का नाम सुनते ही समहति दे दी। मेरी इच्छा गणतन्त्र दिवस मिज़ोरम में मनाने की थी। सचिन भी इसके लिये राजी था। आखिरकार 23 जनवरी को मिज़ोरम पहुंचने पर सहमति बनी। यात्रा बीस दिनों की होगी। इस यात्रा में आइजॉल से चम्फाई होते हुए सईया, लांगतलाई, लुंगलेई का चक्कर लगाकर आइजॉल आना था। कुल मिलाकर यह मिज़ोरम परिक्रमा होने वाली थी। दूरी जोडकर देखी तो हम ग्यारह सौ किलोमीटर साइकिल चलायेंगे यानी प्रतिदिन 60-65 किलोमीटर के औसत से। मिज़ोरम पूर्णतः एक पहाडी राज्य है इसलिये रोजाना के हिसाब से यह पर्याप्त है।
मेरे लिये इतनी लम्बी छुट्टियां लेना आसान नहीं था। इसलिये एक चाल चली- एलटीसी लूंगा। एलटीसी अर्थात सरकारी खर्चे पर घूमना। इसमें कार्यालय में साहब लोगों की मजबूरी बन जाती है कि वे छुट्टी दें। इसलिये नई दिल्ली से सियालदह तक राजधानी एक्सप्रेस में टिकट बुक करा लिया। उसके आगे कोलकाता से आइजॉल तक फ्लाइट भी बुक कर ली। मैं 23 जनवरी की दोपहर तक आइजॉल एयरपोर्ट पहुंचता और मेरे कुछ ही देर बाद सचिन भी मुम्बई से फ्लाइट से आइजॉल पहुंच जाता। इसी तरह वापसी के लिये 12 फरवरी को आइजॉल से कोलकाता तक फ्लाइट व उसके बाद सियालदह से नई दिल्ली तक दूरोन्तो थर्ड एसी में बुकिंग कर ली। अगर किसी वजह से दूरोन्तो छूट गई तो एक अतिरिक्त बुकिंग स्लीपर में अगले दिन पूर्वा एक्सप्रेस में कराई। दिल्ली से सीधे आइजॉल फ्लाइट भी बुक कर सकता था लेकिन फिर एलटीसी क्लेम करते समय समस्याएं आतीं। अपने यहां कुछ नियम है कि पूर्वोत्तर के लिये दिल्ली से सीधे फ्लाइट का किराया नहीं मिलेगा बल्कि कोलकाता या गुवाहाटी से मिलेगा।
आने-जाने की बुकिंग करने के बाद दूसरी तैयारियां शुरू कर दीं। इंटरनेट पर दूसरों के मिज़ोरम यात्रा-वृत्तान्त पढे लेकिन किसी भी यात्रा-वृत्तान्त में आइजॉल के अलावा अन्य स्थान के बारे में नहीं मिला। मिज़ोरम टूरिज्म व अन्य वेबसाइटों से वहां के दर्शनीय स्थानों की एक लिस्ट बना ली और उन्हें गूगल मैप पर देख लिया कि उनमें से हमारे साइकिल पथ पर या उसके आसपास कितने पडेंगे। रास्ते में मिलने वाले सभी टूरिस्ट लॉज व उनका सम्पर्क नम्बर भी मैंने जुटा लिया। इसके अलावा एक आवश्यक काम और किया। पूरे रास्ते का गूगल मैप की सहायता से दूरी-ऊंचाई नक्शा बना लिया। हमें पता चलता रहेगा कि कितने किलोमीटर तक चढाई है और कितने किलोमीटर तक उतराई। इससे आगे की योजना बनाने में आसानी रहेगी। हम कभी तो समुद्र तल से 400 मीटर की ऊंचाई पर रहेंगे तो कभी 1500 मीटर पर। पूरा राज्य पहाडी है, इसलिये सडकें भी खूब उतार-चढाव युक्त हैं। यह नक्शा हमारे बहुत काम आया।
मिज़ोरम जाने के लिये इनर लाइन परमिट की आवश्यकता पडती है। मैंने इसे दिल्ली से ही बनवा लिया था। दक्षिण दिल्ली स्थित वसन्त विहार में मिज़ोरम हाउस है। मुझे पता था कि वहीं से इनर लाइन परमिट बनेगा। एक दिन मैं मिज़ोरम हाउस पहुंचा। वहां जाकर पता चला कि अब यह चाणक्य पुरी स्थित मिज़ोरम हाउस में बनता है। चाणक्य पुरी जाना पडा। आधा घण्टा लगा और पन्द्रह दिनों का परमिट मेरे हाथ में आ गया। इसके लिये एक पहचान-पत्र और दो फोटो की आवश्यकता पडती है। हां, 120 रुपये भी लगते हैं। मिज़ोरम से बाहर के प्रत्येक भारतीय नागरिक को इनर लाइन परमिट बनवाना पडता है। चूंकि हमें वहां पन्द्रह दिन से ज्यादा रुकना था इसलिये पन्द्रह दिन के अन्दर किसी भी डीसी ऑफिस में इसे विस्तारित कराया जा सकता था। अपने कार्यक्रम के अनुसार, हम सईया में यह काम करेंगे। मिज़ोरम के लिये इनर लाइन परमिट दिल्ली के अलावा कोलकाता, गुवाहाटी व सिल्चर स्थित मिज़ोरम हाउसों के अलावा आइजॉल हवाई अड्डे पर भी बनवाया जा सकता है।
यात्रा से कुछ दिन पहले मेरी नीयत बदल गई। मैं फ्लाइट से नहीं जाऊंगा बल्कि ट्रेन से सिल्चर तक जाऊंगा और उसके बाद सडक के रास्ते। इसकी वजह थी बराक घाटी रेलवे। गुवाहाटी से आगे लामडिंग जंक्शन स्टेशन पडता है। लामडिंग से मीटर गेज की एक लाइन सिल्चर जाती है। यह कछार की पहाडियों को पार करती है और भारत की सुन्दर रेलवे लाइनों में से एक है। भविष्य में पता नहीं कब इस पर यात्रा करने का मौका मिले, एक दिन ज्यादा लगेगा, इसी चक्कर में इसे भी निबटा लेते हैं। दिल्ली से कोलकाता राजधानी और कोलकाता से आइजॉल फ्लाइट टिकट रद्द कर दिये। फ्लाइट का रद्दीकरण शुल्क 1000 रुपये कटा।
साइकिल में जैसलमेर यात्रा में कुछ खराबी आ गई थी। मैं इसे ठीक नहीं करा सका। लेकिन इस दौरान खूब साइकिल चलाई दिल्ली में। एक बार भी कोई समस्या नहीं आई। चेन पर लगातार निगाह रहती ही थी। कोई भी कमजोर कडी नहीं दिखी। फिर पेशेवर साइकिलिस्ट सचिन साथ था ही। सचिन ने कह रखा था कि नीरज, तुम अपने हिसाब से सबकुछ निर्धारित करो। मैं हमेशा तुम्हारे साथ रहूंगा। हालांकि वो पेशेवर है अर्थात खिलाडी है। पिछले महीने भर से वह अपनी टीम के साथ लगातार साइकिल चला रहा है। मुम्बई से पश्चिमी तट के साथ-साथ कन्याकुमारी जा रहा है। उसे कन्याकुमारी से लौटकर मिज़ोरम के लिये तैयार होने में मात्र एक ही दिन मिलेगा। फिर भी उसका उत्साह देखने लायक था। उसका साथ होना मेरे लिये भी गर्व की बात थी।
मुझे होटलों की कोई जानकारी नहीं मिल सकी। आइजॉल में कुछ होटलों के बारे में पता चल गया था, इसी तरह चम्फाई में भी। आइजॉल से चम्फाई लगभग 200 किलोमीटर दूर है। इस दूरी को तय करने में तीन-चार दिन तो लगेंगे ही। रास्ते में कहां रुकेंगे, होटल मिलेंगे या नहीं, कुछ नहीं पता था। इसी तरह की हालत दूसरे भागों पर भी थी। इस समस्या से बचने के लिये तय हुआ कि टैंट व स्लीपिंग बैग भी ले चलेंगे।
खाने की भी समस्या आने वाली है। हम भारत के उस हिस्से में जा रहे हैं जहां सौ साल पहले बिल्कुल वन्य जीवन बिताते थे। कबीलों में लोग रहते थे। एक दूसरे पर हमला करते रहते थे। मैंने तो यहां तक सुना है कि वे नरभक्षी भी थे। फिर भी इतना तो पक्का पता है कि वे सबकुछ खा लेते हैं, सांप बिच्छू से लेकर कुत्ते-बिल्लियों तक। पर्यटन का वहां ‘प’ भी नहीं है। ऐसे में शाकाहारी खाना मिलना मुश्किल हो सकता है। बिस्कुट नमकीन व फल-अण्डों पर ज्यादा निर्भर रहना पडेगा।
कडाके की ठण्ड की उम्मीद थी। मौसम वेबसाइट पर लगातार निगाह थी। आइजॉल का तापमान दिल्ली के तापमान के बराबर ही दिख रहा था। उन दिनों दिल्ली में भयंकर सर्दी पड रही थी। न्यूनतम तापमान चार डिग्री के आसपास पहुंच जाता था। मिज़ोरम के पहाडी राज्य होने की वजह से मुझे वहां काफी ठण्ड की उम्मीद थी। फिर भी मात्र दो जोडी कपडे लेकर चलने का निर्णय लिया। एक जोडी पहनकर निकलूंगा और एक जोडी बैग में रखकर। रास्ते में धोते-सुखाते चलेंगे। इनके अलावा एक जोडी गर्म कपडे ताकि कडाके की ठण्ड से बचा जा सके। सचिन ने भी पूछा था कपडों के बारे में। मुझे मालूम नहीं था कि मुम्बई में बिल्कुल भी सर्दी नहीं पडती। फिर भी मैंने कह दिया कि वहां भयंकर सर्दी मिलेगी। यह अच्छा ही हुआ क्योंकि सचिन का विचार था कि वहां भी मुम्बई की तरह गर्मी ही होगी। सचिन भी पर्याप्त गर्म कपडे ले आया।
इस पूरी यात्रा में दिल्ली से दिल्ली तक बीस हजार तक खर्च आने का अन्दाजा है। इसमें से आने-जाने का खर्च और 5200 रुपये अतिरिक्त एलटीसी क्लेम के मिल जायेंगे, बाकी अपनी जेब से लगाना पडेगा।
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नक्शे को छोटा बडा व मैप मोड और सैटेलाइट मोड में भी बदला जा सकता है।
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भारत में मिज़ोरम की स्थिति |
मिज़ोरम साइकिल यात्रा
1. मिज़ोरम की ओर
2. दिल्ली से लामडिंग- राजधानी एक्सप्रेस से
3. बराक घाटी एक्सप्रेस
4. मिज़ोरम में प्रवेश
5. मिज़ोरम साइकिल यात्रा- आइजॉल से कीफांग
6. मिज़ोरम साइकिल यात्रा- तमदिल झील
7. मिज़ोरम साइकिल यात्रा- तुईवॉल से खावजॉल
8. मिज़ोरम साइकिल यात्रा- खावजॉल से चम्फाई
9. मिज़ोरम से वापसी- चम्फाई से गुवाहाटी
10. गुवाहाटी से दिल्ली- एक भयंकर यात्रा
देश के दूरस्थ प्रान्त में यात्रा, वह भी साइकिल से, हमें उत्सुकता बनी रहेगी।
ReplyDeleteबेहद महत्वपूर्ण यात्रा के साथ साथ , यह गंभीर लेख, तुम्हारे परिपक्व व्यक्तित्व का परिचय देने को काफी है , इस गुरुतर कार्य के लिए बधाई इंजीनियर नीरज !
ReplyDeleteबढिया यात्रा चुनी, चलते हैं 7-7
ReplyDeleteघूमक्कड़ी ज़िंदाबाद नीरज जी!!!
ReplyDeleteआपको सविनय प्रणाम| आपके हर एक ब्लॉग पोस्ट की सदैव प्रतीक्षा रहती है| आपकी मिजोरम परिक्रमा वाकई नई (लदाख से भी अधिक) ऊँचाईयों को छू रही हैं. . . .
आपने मिजोरम का इतिहास भी दिया है| वाकई शब्द नही है आपके लेखन के महत्त्व को कहने के लिए| और यह ऐसी चीज है जिसमें शब्दों की आवश्यकता भी नही रहती है. . . . :) :)
- आपका चहेता|
बढिया इतिहास
ReplyDeleteसटीक तैय्यारी
इस बार फिर आपने ऐसी जगह चुनी, जहाँ जाने से पहले किसी को भी 4 बार सोचना पड़ेगा। और वो भी साईकिल से ?
ReplyDelete- Anilkv
kya kahu alfaz nahi neeraj bhai bas foto nahi diye ....
ReplyDeleteअच्छा लगा पढ़ कर. अगली पोस्ट में चित्रों की प्रतीक्षा रहेगी
ReplyDeleteवाह मिजोरम!!
ReplyDeleteइस यात् की सूचना कुछ पहले मिलती तो हिम्मत जुटाते पर कोर्इ नहीं आपकी आँखों से देखते हैं मिजोरम.... जारी रहें
नाम तो सुना है और चीनियों कि शक्ल के लोग भी देखे है --उससे ज्यादा तुम्हारे साथ चलकर ही पता चलेगा नीरज --हम साथ साथ है ---
ReplyDeleteएक ऐसे राज्य की साइकिल यात्रा करना जहाँ की कम जानकारी उपलब्ध हो , वास्तव मे अति साहसी कार्य है। मै तो अभी से सोचकर रोमांचित हो रहा हुँ। यात्रा का बेसब्री से इंतजार रहैगा। सुखद यात्रा के लिये हार्दिक सुभकामनाये।
ReplyDeleteयह यात्रा मेरे आगामी भारत के बाइक दौरे में काम आयेगी। जिसमें पूर्वी भारत के सभी राज्यों में घुमक्कडी की जायेगी।
ReplyDeleteपहली बार मिजोरम के बारे में पढ़ रहे हैं, बहुत कुछ जानने को उत्सुक हैं ।
ReplyDeleteएक राज्य और जुड़ा। बँधाई हो। यात्रा वृतांत की प्रतीछा रहेगी।
ReplyDeleteI was so ignorant about Mizoram. Knew that Rajiv gandhi had done the samjhauta with MFN soon after becoming pm and state has been peaceful since.
ReplyDeleteGood wishes and will wait for your next post
मिजोरम की संस्कृति की भी जानकारी देना नीरज भाई.
ReplyDeleteवहां की भाषा,पहनावा आदि
अगली पोस्ट का इन्तजार रहेगा
Neeraj ji, Mysterious tour ke liye badhaye, aapki yatra ghumakkari ke sath sath gyanwardhak bhi hoti hai.
ReplyDeletethanks.
साहसिक निर्णय है मिजोरम जाने का ....शुभ यात्रा
ReplyDeleteजो जा नही पाते वे यात्रा वर्णन से ही जाने की कमी दूर कर लेते हे , फिर मारवाडी जो ठहरे
ReplyDeleteNice blogger, Neeraj I have read you earlier, very interesting knowledgeable thanks a lot awaiting your future blog
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