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28 जनवरी 2014
सचिन ने आवाज लगाई, तब आंख खुली। रात बेहद शानदार नींद आई थी, इसलिये थोडा इधर उधर देखना पडा कि हम हैं कहां। हम खावजॉल में एक घर में थे। सचिन कभी का उठ चुका था और उसने अपना स्लीपिंग बैग बांधकर पैक भी कर लिया था। जब मैं उठा, तो घर की मालकिन ने वहीं चूल्हा रखकर एक कप चाय बनाई और मुझे दी। सचिन जब उठा था, तब उसके लिये बनाई थी।
साढे सात बजे यहां से चल पडे। कुछ आगे ही एक तिराहा था जहां से सीधी सडक ईस्ट लुंगदार जा रही थी और बायें वाली सडक चम्फाई। लुंगदार वाली सडक पर एक गांव है- बाइते। हम चम्फाई से आगे बर्मा सीमा के अन्दर बनी रीह दिल झील देखकर खावबुंग जायेंगे और वहां से बाइते और फिर आगे ईस्ट लुंगदार और फिर और भी आगे।
मिज़ोरम में कई स्थान दिशाओं के नाम पर हैं जैसे ईस्ट लुंगदार, वेस्ट लुंगदार, नॉर्थ वनलाइफाई, साउथ वनलाइफाई आदि। जरूरी नहीं कि इस तरह के ईस्ट व वेस्ट आसपास ही हों। ये पूरे मिज़ोरम में कहीं भी हो सकते हैं, कई सौ किलोमीटर दूर भी। जैसे ईस्ट लुंगदार खावजॉल से सत्तर किलोमीटर दूर है तो वेस्ट लुंगदार आइजॉल के पश्चिम में रीईक के पास। नॉर्थ वनलाईफाई यहां है तो साउथ वनलाईफाई दक्षिण मिज़ोरम में सैहा से करीब 100 किलोमीटर दूर संगाऊ के पास। इसी तरह के और भी स्थान हैं।
डेढ घण्टा लगा यहां से 17 किलोमीटर दूर तुईपुई पहुंचने में। खावजॉल 1200 मीटर पर है, तुईपुई 750 मीटर पर और उसके बाद चम्फाई 1300 मीटर की ऊंचाई पर है। तुईपुई गांव इसी नाम की एक नदी के किनारे बसा है। यहां बीआरओ का बनाया एक विशाल कंक्रीट का पुल है। नीचे घाटी में स्थित होने के कारण तुईपुई में एयरटेल का नेटवर्क नहीं है।
खावजॉल से हम बिना कुछ खाये चले थे, तुईपुई से चम्फाई तक लगातार चढाई है तो यहां कुछ खाना पडेगा। एक ढाबे में घुस गये। घुसते ही निगाह पडी आलू की टिक्कियों जैसी किसी चीज पर। मिज़ोरम में हमें आलू की सब्जी तक नहीं मिली, यहां टिक्कियां हैं; यह देखकर मन में कुछ सन्देह हुआ। पूछताछ की तो पता चल गया कि ये आलू की टिक्कियां ही हैं। उनमें पता नहीं क्या मिला रखा था कि इनके ऊपर एक पतली सी परत बनी हुई थी। इस परत का रहस्य समझ नहीं आया। साथ ही इन्हें हिन्दी टिक्कियों की तरह तवे पर नहीं बल्कि कढाई में पकौडियों की तरह तला जा रहा था। टिक्कियां बनाईं और तेल में छोड दीं। इन पर बेसन आदि नहीं लगाया गया। फिर भी इनके ऊपर बनी परत सन्देहास्पद तो थी। शायद इनमें अण्डा भी मिला हो।
कुछ भी हो, हमें यह टिक्की बेहद पसन्द आई। मिज़ो परांठे फीके होते हैं, बिल्कुल बेस्वाद। परांठे पर यह टिक्की रखकर ‘रोल’ बनाकर खाने में आनन्द आ गया। साथ में चाय ले ली। यह मिज़ोरम में अब तक का हमारा सबसे स्वादिष्ट भोजन था। दोनों ने कम से कम बीस टिक्कियां और दस परांठे खा डाले।
पिछले कई दिनों से साइकिल चलाते रहने की वजह से अब मुझे उतनी कठिनाई महसूस नहीं हो रही थी, जितनी पहले दिन हुई थी। तुईपुई से चम्फाई 19 किलोमीटर है। दस बजे जब तुईपुई से चले तो लक्ष्य था दो बजे तक चम्फाई पहुंच जाने का। इसके बाद ज़ोते जाकर गुफाएं देखते और फिर ज़ोखावतार चले जाते। ज़ोखावतार भारत-बर्मा सीमा पर है। कल सीमा पार करके रीह-दिल झील देखते।
लेकिन, जैसा सोचा जाता है वैसा अक्सर नहीं होता। होनी को कुछ और ही मंजूर होता है।
साइकिल की चेन पिछले गियर पर दूसरे से तीसरे पर, तीसरे से चौथे पर और अगर और पैडल मारते जाते तो पांचवें और छठे गियर पर जा गिरती। इसका गियर चेंजर चूंकि टूट चुका था, इसलिये चेन को नियन्त्रित करने वाला कोई नहीं था। दो दिन पहले यह दूसरे से पहले पर जा चढती तो कोई खास समस्या नहीं आती लेकिन अब ज्यादा समस्या की बात थी क्योंकि चौथा या पांचवां गियर दूसरे के मुकाबले ज्यादा स्पीड देते हैं इसलिये जोर भी ज्यादा लगाना पडता है। फिर रास्ता चढाई भरा था। चढाई वाले रास्तों पर चेन दूसरे या पहले गियर पर ही रखी जाती है। चौथे पांचवें गियर पर रखेंगे तो अत्यधिक शक्ति लगानी पडेगी। दस पांच मीटर तक तो अत्यधिक शक्ति लगाई जा सकती है लेकिन कई किलोमीटर तक नहीं। अभी भी चम्फाई आठ किलोमीटर दूर था।
जब कई बार हाथ से चेन छठे गियर पर चढा चुका और वो फिर उतर जाती तो इंजीनियरी दिमाग में आई। चेन इसी दिशा में बार बार इसलिये उतर रही है क्योंकि शायद साइकिल इस दिशा में झुकी हुई है। यानी साइकिल पर बंधा सामान कुछ दूसरी दिशा में हो गया है। इसलिये एक जगह साइकिल रोककर सारा सामान उतारकर पुनः बांधा लेकिन फिर फिर वही ढाक के तीन पात।
अब तक सचिन चम्फाई पहुंच चुका था। उसका फोन आया। मैंने समस्या बताई और कहा कि अभी छह किलोमीटर पीछे हूं, पैदल आ रहा हूं। पैदल साइकिल को लेकर चलता गया। सोचता गया- चेन इसलिये उतर रही है क्योंकि इसे कण्ट्रोल करने वाला कोई नहीं है। अभी हम आवाजाही वाले इलाके से गुजर रहे हैं। कल के बाद हमें बर्मा सीमा के साथ साथ बिल्कुल दूरस्थ इलाके में चलना है। वहां इस तरह की समस्या आती तो ज्यादा मुश्किल होती। अच्छा हुआ कि चम्फाई के पास ही ऐसा हुआ है। ठीक होना तो मुश्किल है। मेरे धीरे चलने की वजह से सचिन पहले ही परेशान है। अब और ज्यादा परेशान हो जायेगा। आखिर उसे भी अपने ‘प्रतिद्वन्द्वियों’ को सफल मिज़ोरम यात्रा दिखानी है। अब मैं और आगे नहीं बढूंगा। कल आइजॉल और दिल्ली लौट जाऊंगा।
अपना यह फैसला जब सचिन को बताया तो वो परेशान हुआ। वह स्वयं मेरी साइकिल को लेकर एक मिस्त्री के पास गया। मिस्त्री इसे ठीक करने में असमर्थ था। अगर इसका गियर चेंजर मिल जाता तो बात बन जाती, लेकिन चम्फाई जैसे छोटे कस्बे में कहां मिलेगा? नहीं मिला। अब मेरे वापस लौटने पर मोहर लग गई।
वैसे तो बर्मा सीमा पर कोई तारबन्दी नहीं है, फिर भी आधिकारिक रूप से भारत से बर्मा जाना आसान नहीं है। अरुणाचल-बर्मा सीमा पर पहले तो बीएसएफ से अनुमति लेकर जा सकते हैं जो कि आसान नहीं है, फिर उस तरफ जाया जा सकता है। मणिपुर-बर्मा सीमा पर मोरे में भी कुछ ऐसा ही है। लेकिन मिज़ोरम-बर्मा सीमा पर ऐसा नहीं है। यहां इधर से उधर बेरोकटोक आया जाया जा सकता है। जब से मैंने यह पढा था, तभी यहां आने की इच्छा होने लगी थी। यही इच्छा इस मिज़ोरम यात्रा की जननी थी।
लेकिन अब मन इतनी बुरी तरह खिन्न था कि ज़ोखावतार न जाने की सोच ली। मुझे नहीं पता कि अब कब चम्फाई आना हो या न हो। लेकिन इस महा-यात्रा के खाक में मिल जाने से कुछ भी करने का मन नहीं था। कहीं भी जाने का मन नहीं था। दो सप्ताह बाद की आइजॉल से कोलकाता की फ्लाइट कैंसिल करा दी। और तीन दिन बाद की गुवाहाटी से दिल्ली का ट्रेन टिकट पूर्वोत्तर सम्पर्क क्रान्ति में वेटिंग में बुक कर दिया। उम्मीद है कि चार्ट बनने तक सीट कन्फर्म हो जायेगी।
सचिन ने यात्रा जारी रखने का फैसला किया। वह अकेला घूम सकता है, इसलिये मुझे उसे इस तरह बीच में छोड देने का उतना दुख नहीं हुआ। साथ ही एक खुशी भी हुई कि अब उसे मेरी वजह से धीरे धीरे नहीं चलना पडेगा। अब वो अपनी प्राकृतिक स्पीड से चलेगा। दूरी-ऊंचाई का नक्शा उसे दे दिया। स्लीपिंग बैग उसके पास था ही, किसी आपातकाल के लिये टैंट भी उसे दे दिया। खरीदने से उसने मना कर दिया। मैंने कहा कि कभी मुम्बई आऊंगा, टैंट ले आऊंगा। साथ ही टैंट को हवाई जहाज में ले जाने के लिये एक हजार रुपये भी दे दिये।
चम्फाई एक बडा शहर है, जिला मुख्यालय भी है। कई होटल हैं। हमें पांच सौ रुपये का एक कमरा मिला, कमरा शानदार था। मैं कल आइजॉल जाने के लिये सूमो में एक सीट बुक कर आया। दस बजे वाली सूमो में सीट मिली। यहां सूमो काउण्टर से कई कई दिन पहले अपनी सीटें बुक कर सकते हैं।
चांगतु रेस्टॉरेंट, चम्फाई |
खावजॉल में, जिनके यहां रुके थे, चाय बन रही है। |
एक प्राकृतिक नजारा |
तुईपुई नदी और गांव |
तुईपुई पुल पर |
आलू की टिक्कियां हैं या पकौडे? |
आसमान में जाता एक वायुयान |
चम्फाई के एक रेस्टॉरेंट में मेन्यू कार्ड |
झूम खेती
मिज़ोरम में झूम खेती का प्रचलन है। इसमें जंगल के एक हिस्से को पूर्णतया साफ करके उस उत्पन्न हुई जमीन पर खेती की जाती है। उस हिस्से में जितने भी पेड होते हैं, सभी को काटकर या जलाकर समाप्त कर दिया जाता है। झाडियों और छोटे पौधों में आग लगा दी जाती है। जाहिर है कि राख से जमीन और ज्यादा उपजाऊ होती है। फिर इस पर खेती होती है। इसमें धान, फल और सब्जियां उगाई जाती हैं। कुछ समय बाद जब जमीन की उर्वरता घटने लगती है तो इसे छोड दिया जाता है और फिर किसी दूसरे हिस्से में जंगल नष्ट करके खेती योग्य जमीन बनाई जाती है।
सैंकडों वर्षों से मिज़ोरम समेत पूर्वोत्तर के सभी राज्यों में ऐसा होता चला आ रहा है। इस वजह से वहां अत्यधिक वर्षा होने के बावजूद भी बडा पेड नहीं मिलता। ले-देकर बांस ही है। परती जमीन को जब छोड देते हैं तो वहां घास और झाडियां उग आती हैं। पूरे राज्य में जंगल के नाम पर इसी तरह की झाडियों का साम्राज्य है।
झूम खेती पर्यावरण के लिये अत्यधिक हानिकारक है। इस वजह से मिज़ोरम सरकार ने झूम बहिष्कार नामक योजना चला रखी है। जीविका के लिये पशुपालन पर ज्यादा जोर है खासकर सूअर-पालन पर। यह योजना हाल ही में लागू की गई है और अगले पांच वर्षों में झूम के पूर्ण बहिष्कार का लक्ष्य रखा गया है। यह योजना अगर मिज़ोरम में रफल रही तो पूर्वोत्तर के बाकी राज्यों में भी इसे लागू किया जायेगा।
अगला भाग: मिज़ोरम से वापसी- चम्फाई से गुवाहाटी
मिज़ोरम साइकिल यात्रा
1. मिज़ोरम की ओर
2. दिल्ली से लामडिंग- राजधानी एक्सप्रेस से
3. बराक घाटी एक्सप्रेस
4. मिज़ोरम में प्रवेश
5. मिज़ोरम साइकिल यात्रा- आइजॉल से कीफांग
6. मिज़ोरम साइकिल यात्रा- तमदिल झील
7. मिज़ोरम साइकिल यात्रा- तुईवॉल से खावजॉल
8. मिज़ोरम साइकिल यात्रा- खावजॉल से चम्फाई
9. मिज़ोरम से वापसी- चम्फाई से गुवाहाटी
10. गुवाहाटी से दिल्ली- एक भयंकर यात्रा
mizoram - burma ,manipur-burma seema, tatha mizoram ke bare mein .wahan kee samajik sthiti ke bare mein aapake lekh mein bahut uttam jaanakaaree milatee hai.dhanyavaad.
ReplyDeleteआपको ये बताते हुए हार्दिक प्रसन्नता हो रही है कि आपका ब्लॉग ब्लॉग - चिठ्ठा - "सर्वश्रेष्ठ हिन्दी ब्लॉग्स और चिट्ठे" ( एलेक्सा रैंक के अनुसार / 31 मार्च, 2014 तक ) में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएँ,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeleteलग रहा है साइकिल की गड़बड़ी एक शानदार यात्रा का दुःखद अन्त कर देगी.. ऐसा न हुआ हो तो बेहतर है..
ReplyDeleteक्या ऐसा नहीं हो सकता था कि पहली बार या पहले ही दिन जब गीयर चेंजर टूटा था, उसी समय साईकिल कम्पनी से या जहां से साईकिल खरीदी थी उनसे गीयर चेंजर खरीद लिया जाता और कुरियर द्वारा आपके अगले दो दिन आगे के पडाव पर मंगवा लिया जाता।
ReplyDeleteप्रणाम
काश साईकिल ठीक हो जाए ओर आप इस यात्रा को पुरा करे.
ReplyDeleteसायकिल का सारा जुगाड़ साथ में रख कर चलना पड़ेगा अब, वरना यात्रा की भ्रुण हत्या इसी तरह हो जाएगी।
ReplyDeleteSrimaan ANTAR SOHIL JI .............kya dhansu idea hai aapka........main to jaroor yaad rakhoonga..........
ReplyDeleteJaisalmer yatra ke dauraan jo galat pin chain me laga ker jabardasti thoki thi, phir cycle yatra poori ki thi..., ye usi atyachaar ka nateeja lagta hai.. BaDa Dukh hua yatra adhoori chodni pad rahi.
ReplyDeleteभोजन आदि तो बड़ा अच्छा लग रहा है, यात्रा को और आगे बढ़ाइये।
ReplyDeletefir kya huaa ?????????????? aage padhe---
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