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29 जनवरी 2014
मिज़ोरम साइकिल यात्रा का सत्यानाश हो चुका था। अब दिल्ली वापस लौटने का फैसला कर चुका था। अगर सबकुछ ठीक-ठाक चलता तो मेरे 12 फरवरी को मिज़ोरम से कोलकाता तक फ्लाइट और उसके बाद दिल्ली तक दूरोन्तो में टिकट बुक थे। रात दोनों टिकट रद्द कर दिये। अब 1 फरवरी को पूर्वोत्तर सम्पर्क क्रान्ति में वेटिंग टिकट बुक किया।
इस यात्रा का मुख्य आकर्षण बर्मा स्थित रीह-दिल झील देखना था। वहां केवल भारतीय नागरिक ही जा सकते हैं। किसी वीजा-पासपोर्ट की आवश्यकता नहीं होती। सीमा पर निर्धारित मामूली शुल्क देकर एक दिन के लिये बर्मा में घूमने का आज्ञापत्र मिल जाता है। बडा उत्साह था अपने इस पडोसी देश को देखने का। लेकिन अब मानसिकता ऐसी थी कि कहीं भी जाने का मन नहीं था। एक तरह से मैं सदमे में था।
सचिन को विदा किया और दस बजे आइजॉल के लिये चलने वाली सूमो में बैठ गया। वह शेष यात्रा पूरी करेगा।
भले ही मैं और सचिन साथ-साथ घूम रहे थे लेकिन दोनों के उद्देश्य अलग-अलग थे। मेरा साध्य था मिज़ोरम भ्रमण और साधन साइकिल जबकि सचिन की साध्य थी साइकिल और साधन मिज़ोरम। बिल्कुल विपरीत लक्ष्य। उसे मिज़ोरम में ‘साइकिलिंग’ करनी थी ताकि बाद में इस यात्रा का प्रस्तुतीकरण देकर वह अपने ग्रुप में दुस्साहसी साइकिलिस्ट की सम्मानपूर्ण पदवी पा सके। वह पिछले साल अकेला लद्दाख गया था, कुछ महीने पहले अरुणाचल, फिर मुम्बई से कन्याकुमारी और अब मिज़ोरम।
जबकि मुझे मिज़ोरम देखना था। मुझे दूरी से कोई मतलब नहीं था। हालांकि रोज के हिसाब से योजना बनाकर अवश्य गया था लेकिन सचिन से पहले ही बता दिया था कि यह अन्तिम योजना नहीं है। अगर हम इस योजना से पिछडते चले गये तो आखिरी दिन साइकिल को बस या सूमो पर लादकर एयरपोर्ट ले जायेंगे। सचिन न ज़ोते गुफाएं देखने गया और न ही बर्मा बल्कि सीधा खावबुंग की ओर चला गया।
खैर, आइजॉल से चम्फाई की दो सौ किलोमीटर की दूरी हमने चार दिनों में तय की थी। अब चम्फाई से आइजॉल जाते हुए इन चार दिनों का फ्लैश-बैक देख रहा था। छह किलोमीटर पर वो जगह देखी जहां कल मैंने सामान उतारकर पुनः बांधा था ताकि साइकिल का सन्तुलन ठीक हो सके। तुईपुई में सूमो उस दुकान के सामने पांच मिनट खडी रही जहां हमने ढेर सारी आलू की पकौडियां खाई थीं। खावजॉल में वन विभाग के रेस्ट हाउस देखे जहां रेंजर के घर पर रात रुके थे। कालकुल में उस होटल पर सूमो आधे घण्टे रुकी और सभी यात्रियों ने लंच किया जहां एक लडकी ने सचिन से मेरे बारे में कहा था कि तुम्हारा मित्र काफी हैंडसम है। मैं यहां सूमो से नहीं उतरा। डर था कि कहीं वो दारूबाज आदमी पुनः न मिल जाये जिससे मैंने पीछा छुडाने की गरज से कहा था कि वापस लौटते समय आपको कैमरा बेच दूंगा। तब क्या मालूम था कि दो दिन बाद ही यहां आना पडेगा?
दुल्ते में सत्तर रुपये के एक दर्जन केले लिये। ये बिल्कुल भी स्वादिष्ट नहीं थे। मिज़ो लोग कभी दिल्ली आते होंगे और केले खाते होंगे तो मीठे, नरम और सस्ते केले खा-खाकर पागल हो जाते होंगे। इन्होंने उन नरम केलों को मिज़ोरम में लगाने की कोशिश तो की होगी लेकिन बांस की भूमि पर केले में भी कठोरता आ ही जाती है।
वो जगह देखी जहां हम नहाये थे और कपडे धोये थे। अब उस घर में ताला लगा था। हमारे समय में वह खुला था, वहां कोई नहीं था और अन्दर से एक बोतल उठाकर उसे काटकर हमने उसका मग्गा बनाया था। गृह मालिक ने गालियां तो अवश्य दी होंगी। उससे आगे तुईवॉल पुल पर मन्दिर भी देखा जहां हमने टैंट लगाया था और रात गुजारी थी।
कीफांग में सूमो नहीं रुकी। फिर भी तीन किलोमीटर आगे वो होटल मुझे दिख ही गया जहां हम भूखों ने शाही भोजन किया था। पांच किलोमीटर और आगे वह शेड देखा जहां हमने पहली रात को टैंट लगाया था। सेलिंग में सूमो आधे घण्टे को फिर रोक दी कुछ खाने-पीने को। मैंने उबले अण्डे और चाय लिये। सेलिंग मिज़ोरम के एकमात्र राष्ट्रीय राजमार्ग पर है। यहां हिमाचल के तीन-चार ट्रक दिखे। इन्हें देखकर मन में आया कि दौडकर इन्हीं पर चढ जाऊं।
जब तक आइजॉल पहुंचे, सूरज ढल चुका था और शहर में बत्तियां जलने लगी थीं। शहर में प्रवेश करते समय यह नजारा बेहद खूबसूरत था। फोटो तो इसका नहीं लिया। फिर कभी आऊंगा, तब के लिये पता चल गया है कि शाम को दिन ढलने के बाद यह शहर यहां राष्ट्रीय राजमार्ग से कितना खूबसूरत लगता है। मैंने आज तक ऐसा कभी नहीं देखा कि घने बसे शहर में बत्तियां भी जल चुकी हों और पीछे बैकग्राउण्ड में डूब चुके सूरज की बची-खुची रोशनी भी हो। वाकई शानदार नजारा था वह।
मन में आया कि यहां पांच सौ रुपये का कमरा लेने से बेहतर है कि सिल्चर जाया जाये। शाम के छह बज चुके थे। अन्धेरा हो चुका था। सूमो ने मुझे उस स्थान पर उतार दिया जहां से सिल्चर की सूमो मिलती हैं। इस भले मानस ने साइकिल चम्फाई से आइजॉल तक फ्री में पहुंचा दी। कोई पैसा नहीं लिया। जब सिल्चर वाली सूमो के ड्राइवर से बात करने लगा तो उसने साइकिल के सौ रुपये मांगे। मैंने बिल्कुल मना नहीं किया। सिल्चर से आइजॉल यह दो सौ में आई थी।
शहर भर का चक्कर काटकर इसने सवारियां एकत्र की, कुछ सामान भी उठाया और जब आइजॉल छोडा, रात के नौ बज चुके थे। मुझे सोना था, इसलिये मैंने पीछे कोने वाली सीट ली।
जब तक मिज़ोरम में रहे, सूमो कूदती ही रही। कभी कभी तो सिर छत से जा टकराता। असोम में आते ही अच्छी सडक मिल गई और गाडी की रफ्तार भी बढ गई। वैसे तो यहां से सिल्चर चालीस किलोमीटर के आसपास ही है लेकिन यहां सभी रात्रिकालीन सूमो दो-तीन घण्टे के लिये रुकती हैं। जिसे कुछ खाना हो, वह खा लेता है और जिसे सोना होता है, वह सो लेता है। मैंने दाल-चावल खाये और सूमों में ही जाकर सो गया। बाकी यात्री स्थानीय थे। उन्हें मालूम था कि कहां जाकर सोना है। मैं दो घण्टे तक सूमो में अकेला ही सोता रहा।
जब सिल्चर उतरे, तो साढे तीन बजे थे। काफी ठण्ड थी और सभी दुकानें बन्द थीं। इस समय किसी होटल में कमरा लेने का सवाल ही नहीं उठता। सुबह होगी तो गुवाहाटी वाली सूमो पकडूंगा। गुवाहाटी से यहां तक ट्रेन से आया था। एक बार सडक मार्ग भी देख लूं। यह बेहद घटिया निर्णय था। सिल्चर से सुबह वाली ट्रेन से ही निकल जाना था। अब सडक मार्ग से यात्रा करने के बाद मैं दूसरों को यही सलाह देता हूं कि कभी भी गुवाहाटी और सिल्चर की दूरी सडक से तय मत करना खासकर पब्लिक वाहनों में। ट्रेन से हालांकि ज्यादा समय लगता है लेकिन उत्तम है।
तो साढे तीन बजे सिल्चर में कोई हलचल नहीं थी। मेरे अलावा कुछ यात्री और भी थे जिन्हें गुवाहाटी जाना था। यहीं एक ट्रैवल एजेंट की दुकान के चबूतरे पर बैठे थे। धीरे धीरे सभी यात्री कुछ बिछाकर तो कुछ ओढकर लेटने लगे। मैंने भी अपना स्लीपिंग बैग निकाल लिया और चबूतरे पर ही सो गया।
पांच बजे जब ट्रैवल एजेंसी खुली तो मुझे उठाया गया। कहने लगे कि भाई, अन्दर चलो और वहां सो जाओ। ट्रैवल वालों की ही दुकान में अन्दर कुछ खाली जगह थी। इस समय मुझे इतनी तेज नींद आ रही थी कि मैंने कहा कि मुझे मत जगाओ। कहने लगे कि बहुत सर्दी हो रही है। मैंने कहा कि मुझे नहीं लग रही है। लेकिन उन्होंने मेरी एक न सुनी और मुझे साइकिल समेत अन्दर ही जाना पडा। लेकिन जाकर पुनः सोने से पहले आठ बजे चलने वाली सूमो में गुवाहाटी का एक टिकट बुक करा दिया।
नौ बजे सूमो चली। मुझे अब लगातार यात्रा करते हुए लगभग चौबीस घण्टे हो चुके थे और अभी भी बारह घण्टे की यात्रा बाकी थी। सिल्चर से गुवाहाटी पहुंचने में बारह घण्टे लगते हैं। जब तक गाडी असोम में रही तो अच्छी सडक मिली और रफ्तार भी अच्छी रही। लेकिन मेघालय में घुसते ही रफ्तार पर ब्रेक लग गया। सडक इतनी ज्यादा खराब थी कि धूल के बीच सडक ढूंढना मुश्किल हो जाता था। दक्षिणी असोम, त्रिपुरा, मिज़ोरम और मणिपुर को मुख्य भारत से जोडने वाली यह एक महत्वपूर्ण सडक है। इस पर ट्रकों की जबरदस्त आवाजाही रहती है। एक तो खराब सडक, फिर ट्रकों के कारण यह और भी खराब होती जाती है। धूल इतनी कि गाडी के सभी शीशे बन्द कर लेने पर भी सांस लेना मुश्किल होने लगता।
अब दिल्ली को कोसने का मन कर रहा है- देश की राजधानी को। यह इलाका सांस्कृतिक और भौगोलिक रूप से बाकी देश से बिल्कुल भिन्न है। देखा जाये तो यहां से पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) जाना ज्यादा आसान है। इस इलाके को देश से जोडने वाली रेल लाइन भी देख ली और सडक भी। दोनों बेहद घटिया हालत में हैं।... और लग रहा है कि यहां गधे निवास करते हैं। अपनी छोटी छोटी बातों के लिये कभी असोम बन्द तो कभी पूर्वोत्तर बन्द कर देते हैं। देशवासियों और हिन्दीभाषियों को मारते हैं। लेकिन सडक और रेल के लिये कभी आन्दोलन नहीं करते। बल्कि तोड जरूर देते हैं। रहो बिना सडक के, बिना रेल के। दिल्ली, तू ठीक ही है। जिन्हें सडक की जरुरत नहीं है, उन्हें सडक देनी भी नहीं चाहिये। देते हैं तो तोड देते हैं। संस्कार बडे शक्तिशाली होते हैं। मिशनरियों ने इन्हें ईसाई बनाकर सभ्य और आधुनिक बनाने की कोशिश जरूर की है लेकिन जंगली और आदिवासी संस्कार आसानी से नहीं जायेंगे।
तो यह था मेरा मेघालय से पहला साक्षात्कार। देश के खूबसूरत राज्यों में मेघालय का नाम आता है। यहां सबसे ज्यादा बारिश होती है। लेकिन बारिश का भी एक मौसम होता है। बिना मौसम के यहां धूल उडती है। इस सडक से हटकर भले ही मेघालय अभी भी उतना ही खूबसूरत हो लेकिन फिलहाल यह मेरे लिये धूल भरी सडकों पर रेंग रेंग कर चलते वाहनों वाला राज्य है।
शिलांग के एक यात्री की वजह से अन्दर शहर से होकर जाना पडा, नहीं तो ड्राइवर बाइपास से जाने वाला था। इस बहाने शिलांग की एक झलक भी देख ली। अच्छा लगा। आऊंगा कभी।
भारत में सडकों पर हमेशा काम चलता रहता है लेकिन कभी पूरा नहीं होता। शिलांग-गुवाहाटी सडक अब महा-मार्ग बनने वाली है। चौडीकरण का काम चल रहा है। जैसे जैसे गुवाहाटी नजदीक आता जा रहा था, ट्रैफिक भी बढता जा रहा था। पूर्वोत्तर में मैंने इतने ट्रैफिक की कल्पना नहीं की थी।
मिज़ोरम से ही एक फौजी भी आ रहे थे। उन्हें दिल्ली जाना था अवध असम एक्सप्रेस से। उन्हें लग रहा था कि ट्रेन रात नौ बजे चलती है। लेकिन जब मैंने नेट पर देखकर बताया कि ट्रेन का समय नौ बजे नहीं, बल्कि दस बजे है तो उनकी जान में जान आई। हालांकि ड्राइवर ने गाडी चलाने में अपनी पूरी सामर्थ्य लगाई, फिर भी गुवाहाटी पहुंचते पहुंचते साढे नौ बज गये। अब वे साहब आसानी से ट्रेन पकड सकते हैं। हालांकि आज इस ट्रेन के समय में ढाई घण्टे का परिवर्तन किया गया था और अब यह साढे बारह बजे चलेगी।
स्टेशन के पास ही एक कमरा ले लिया। सबसे पहले भरपेट स्वादिष्ट भोजन किया। आज तीस जनवरी थी। मेरी ट्रेन परसों हैं। यानी कल पूरे दिन मैं गुवाहाटी में ही रहूंगा। घूमने की इच्छा नहीं थी और न ही कामाख्या मन्दिर देखने की। एक इच्छा थी कि गुवाहाटी से सुबह छह बजे चलने वाली लामडिंग पैसेंजर से लामडिंग जाऊं और शाम तक लौट आऊं।
अगला भाग: गुवाहाटी से दिल्ली- एक भयंकर यात्रा
मिज़ोरम साइकिल यात्रा
1. मिज़ोरम की ओर
2. दिल्ली से लामडिंग- राजधानी एक्सप्रेस से
3. बराक घाटी एक्सप्रेस
4. मिज़ोरम में प्रवेश
5. मिज़ोरम साइकिल यात्रा- आइजॉल से कीफांग
6. मिज़ोरम साइकिल यात्रा- तमदिल झील
7. मिज़ोरम साइकिल यात्रा- तुईवॉल से खावजॉल
8. मिज़ोरम साइकिल यात्रा- खावजॉल से चम्फाई
9. मिज़ोरम से वापसी- चम्फाई से गुवाहाटी
10. गुवाहाटी से दिल्ली- एक भयंकर यात्रा
yaatra beech mein hee chhodane kaa bahut hee dukh .agar yaatra pooree hotee to hamein mizoram ke baare mein aur bhee bahut kuchh jaanane ko milata.
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ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन उपलब्धि और आलोचना - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
देश भर में घूमने से दिल्ली की सोच पर रोना आता है।
ReplyDeleteमेरे लिए तो दिल्ली आना भी किसी रोने से कम नहीं ---
ReplyDeleteदर्शन कौर जी, दिल्ली से मेरा तात्पर्य उस जमीन के टुकडे से नहीं है जहां देशभर से ट्रेनें आती हैं, जहां लालकिला बना है या कुतुब मीनार है। बल्कि दिल्ली का अर्थ यहां प्रशासन से है, केन्द्रीय प्रशासन से।
Deleteमेरे लिए तो दिल्ली का मतलब स्टेशन की भागमभाग और भीड़ --जहाँ न डिसीप्लेन बस में है न बाजार में ---उफ़ -
Deleteनीरज भाई हमे कोई शक नही,आपकी काबलीयत पर. आपके यात्रा वृतान्त पढने मे मजा आता है इसलिए अधुरी यात्रा के लिए दुख हमे भी है क्योकी हम आपके माध्यम से ही ज्यादातर जगहो को जाने है.
ReplyDeleteNeeraj ji badhai ho
ReplyDeleteAapne yatra ka ek naya sopan tay kiya ...
Y.K.KANSAL
बहुत खूब! बहुत निखार है ट्रेवलॉग में!
ReplyDeleteशानदार...ये मुसाफिरी युंही जारी रहे...
ReplyDeleteनीरज भाई यात्रा अधूरी रहने का आपके साथ -साथ हमें भी दुःख है। शायद यात्रा पूरी होने पर हमे ओर ज्यादा आनन्द और जानकारी मिलती। फिर भी आपकी मिजोरम यात्रा मे आनन्द आया। आपकी अगली यात्रा का इंतजार रहेगा।
ReplyDeleteThanks
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