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14 अगस्त 2012
कल बुखार हो जाने के कारण कमजोरी आ गई थी, लेकिन अब बुखार ठीक था। विजयवाडा स्टेशन पर मैं नीचे उतरा। बराबर वाले प्लेटफार्म पर दक्षिण लिंक एक्सप्रेस खडी थी, जो विशाखापटनम से निजामुद्दीन जाती है। काजीपेट जाकर यह हैदराबाद- निजामुद्दीन दक्षिण एक्सप्रेस से जा मिलती है यानी विशाखापटनम से काजीपेट तक यह लिंक के तौर पर चलती है।
गाडी चल पडी तो थोडी देर खिडकी वाली सीट पर बैठ गया। धूप निकली थी व लू जैसा एहसास भी हो रहा था। फिर भी कमजोरी के कारण नीचे मन नहीं लगा, वापस अपनी ऊपर वाली बर्थ पर चला गया। पडा रहा लेकिन नींद भी नहीं आई।
पूर्वोत्तर वालों ने व दक्षिण वाले फौजी ने ताश खेलने शुरू कर दिये। उनकी बातचीत हिन्दी में हो रही थी लेकिन मेरे पल्ले ना तो पूर्वोत्तरी हिन्दी पडी, ना दक्षिणी हिन्दी। इन लोगों का भी अधिकतम कोयम्बटूर तक का साथ है।
मेरी बर्थ एस-छह में है। यह डिब्बा एक मामले में अनोखा है। इसमें हर कूपे में दो-दो चार्जिंग पॉइण्ट लगे हैं यानी पूरे डिब्बे में अठारह से भी ज्यादा। डिब्रुगढ से चले थे तो जाटराम पूरा खुश था कि मोबाइल, कैमरा, लैपटॉप चार्जिंग के लिये अपनी बर्थ छोडकर नहीं जाना पडेगा। लेकिन इनका मेन स्विच बन्द था।
हमने पहले ही दिन अपनी तरफ से पूरा जोर लगा दिया था कि मेन स्विच ऑन हो जाये। मेन पैनल में चार स्विच थे, जिनमें से तीन ऑन थे, एक ऑफ। हमने सोचा कि अगर ऑफ वाले को किसी तरह घुमाकर ऑन कर दिया जाये तो बात बन सकती है। वो इतना टाइट होता है कि उसे प्लास से ही घुमाया जा सकता है। प्लास था नहीं अपने पास तो नीचे पटरियों के पास से लम्बे लम्बे पत्थर भी उठाकर लाये लेकिन कामयाब नहीं हुए। टीटी से भी कहा लेकिन क्या जरुरत पडी है उसे?
परिस्थितियों से समझौता कर लिया। पहले ही दिन लैपटॉप ढेर हो गया। मोबाइल की तरफ से बेफिक्र था, इसकी एक बैटरी अतिरिक्त रखता हूं। कैमरे की थोडी चिन्ता थी। असोम में कैमरा बता रहा था कि 180 मिनट तक फोटो खींच सकता हूं। त्रिवेन्द्रम पहुंचने में तीन दिन थे, इसलिये तीनों दिनों को 60-60 मिनट दे दी गईं। हालांकि आज आन्ध्र प्रदेश व तमिलनाडु में ज्यादा फोटो नहीं खींचे तो कल के लिये 90 मिनट की बैटरी बची हुई है। बहुत है। फिर एक छोटा रिजर्व कैमरा भी है, जिसकी दो बैटरियां हैं, दोनों फुल हैं।
आन्ध्र प्रदेश में चावल नहीं दिखे, हालांकि कहीं-कहीं छोटे छोटे खेतों में दिख जाते थे।
हिजडे भी नहीं मिले। यात्रा बिना सिहरन के गुजरी।
रेणीगुंटा पहुंचे। यहां से खाटखडी मतलब काटपाडी जाने के दो रास्ते हैं। खाट याद आ रही है। एक रास्ता अरक्कोणम होते हुए जाता है, दूसरा तिरुपति, पकाला होते हुए। ट्रेन तिरुपति नहीं रुकती, इसका मतलब है कि अरक्कोणम वाले रास्ते से जायेगी। हुआ भी ऐसा ही।
रेणीगुण्टा में गुंटाकल व कडप्पा से आने वाली लाइन भी मिल जाती है। स्टेशन का ले-आउट कुछ ऐसा है कि देखते ही पता चल गया कि तिरुपति वाली लाइन पहले मीटर गेज थी। कडप्पा वाली का पहले मीटर गेज होना मुझे पता था, तिरुपति वाली का नहीं पता था। इसका मतलब यह हुआ कि रेणीगुण्टा से तिरुपति, पकाला व काटपाडी वाली लाइन भी पहले मीटर गेज थी। काटपाडी से वेल्लोर होते हुए एक लाइन विल्लुपुरम भी जाती है।
पूरे तमिलनाडु में चेन्नई-कोयम्बटूर मुख्य लाइन को छोडकर पहले मीटर गेज ही हुआ करती थी। मदुरै, रामेश्वरम सब मीटर गेज थे। तो यह काटपाडी- विल्लुपुरम वाली लाइन भी मीटर गेज थी। इससे सिद्ध होता है कि काटपाडी में मीटर गेज व ब्रॉड गेज आपस में काटती थीं। फिर तो काटपाडी में बडी लाइन के ऊपर या नीचे से दूसरी लाइन का पुल भी होगा जैसा कि रतलाम में है, बरेली में है, खण्डवा में है, आगरा में है, वाराणसी में है। यह बात मेरे दिमाग में रेणीगुंटा में ही आ गई थी। और काटपाडी जाकर इस बात की पुष्टि भी हो गई। काटपाडी से जब सेलम की ओर बढते हैं, तो एक पुल भी मिलता है जो अब बडी लाइन वाला हो गया है।
दक्षिण-पूर्वी आन्ध्र यानी तिरुपति-रेणीगुण्टा के आसपास पहाडियां भी दिखती हैं। हालांकि तमिलनाडु में ज्यादा दिखीं।
सेलम में श्री प्रवीण पाण्डेय ने मिलने का वादा किया था, लेकिन वे नहीं मिल सके। वे रेलवे में ही किसी बडी भयंकर पोस्ट पर हैं। मैं इंतजार करता रहा कि बाहर खिडकी से एक आवाज आयेगी- ओये जाटराम।
ईरोड में पूर्वोत्तर वाला गैंग छिन्न-भिन्न हो गया। यहां यह भी पता चल गया कि वो बुजुर्ग आदमी लडकों का पापा नहीं था। दो जने ईरोड उतर गये, बाकी दो कोयम्बटूर उतरेंगे। बाकी सवारियां भी पालघाट, एर्नाकुलम व त्रिवेन्द्रम में उतरती जायेंगी। सुबह जब मैं उठूंगा तो डिब्बे में अकेला ही रहूंगा। हां, वो दारू वाला फौजी जोलारपेट्टई में उतर गया।
ओडिशा में जहां फेरी वाले भयंकर ‘बांग’ देते थे, वही आन्ध्र में फेरी का काम महिलाओं ने संभाल रखा है लेकिन बडी मीठी व सुरीली आवाज होती है उनकी। सब की सब चना व मूंगफली बेचने वाली थीं। जवान हो या बुढिया हो, तंदुरुस्त हो या मरियल हो, सबकी फ्रिक्वेंसी, रिंगटोन व वोल्यूम, सब समान रहतीं। एक के जाने पर दूसरी आती तो लगता कि लो, दुबारा आ गई।
विजयवाडा |
रेणीगुण्टा के पास |
रेणीगुण्टा में |
तिरुपति की पहाडियां |
ये लोग अपने साथ चूडा लाये थे, साथ में चीनी भी। बोतल का गिलास बनाकर उसमें चीनी-चूडा पानी में डालकर रख देते। कुछ देर बाद खा लेते। |
काटपाडी तमिलनाडु में है। |
यह वेल्लोर दिख रहा है जो काटपाडी से बिल्कुल सटा हुआ है। |
सेलम स्टेशन |
विवेक एक्सप्रेस- भारत की सबसे लम्बी दूरी तय करने वाली ट्रेन |
अगला भाग: भारत परिक्रमा- आठवां दिन- कन्याकुमारी
ट्रेन से भारत परिक्रमा यात्रा
1. भारत परिक्रमा- पहला दिन
2. भारत परिक्रमा- दूसरा दिन- दिल्ली से प्रस्थान
3. भारत परिक्रमा- तीसरा दिन- पश्चिमी बंगाल और असोम
4. भारत परिक्रमा- लीडो- भारत का सबसे पूर्वी स्टेशन
5. भारत परिक्रमा- पांचवां दिन- असोम व नागालैण्ड
6. भारत परिक्रमा- छठा दिन- पश्चिमी बंगाल व ओडिशा
7. भारत परिक्रमा- सातवां दिन- आन्ध्र प्रदेश व तमिलनाडु
8. भारत परिक्रमा- आठवां दिन- कन्याकुमारी
9. भारत परिक्रमा- नौवां दिन- केरल व कर्नाटक
10. भारत परिक्रमा- दसवां दिन- बोरीवली नेशनल पार्क
11. भारत परिक्रमा- ग्यारहवां दिन- गुजरात
12. भारत परिक्रमा- बारहवां दिन- गुजरात और राजस्थान
13. भारत परिक्रमा- तेरहवां दिन- पंजाब व जम्मू कश्मीर
14. भारत परिक्रमा- आखिरी दिन
नीरज जी क्या बात, दाढ़ी भी बढ़ गयी हैं, क्या बैरागी बनने का इरादा हैं, इस यात्रा में आपने एक बात तो जरुर महशूस को होगी की उत्तर से दक्षिण तक, पूरब से पश्चिम तक भारत की संस्कृति, हमारी हिंदू संस्कृति एक हैं. जय माता की , वन्देमातरम...
ReplyDeleteये पहाड़ियों को रेल से देखने के अलग ही मजे हैं, हमें तो पहले हिमसागर एक्सप्रेस ही सबसे लंबी ट्रेन है यह पता था, अब आपसे पता चला है कि विवेक एक्सप्रेस सबसे लंबी ट्रेन है ।
ReplyDelete१४ की सुबह जोलारपेट पहुँचा था, मिलने के लिये। दोपहर तक पुकार हो गयी वापस आने की और उसके बाद ५ दिन सर उठाने की फुरसत भी नहीं मिली, पूर्वोत्तर का पलायन प्रारम्भ हो गया था। मिलना अब भी प्रतीक्षित है।
ReplyDeleteकिर्पया दलाई लामा शब्द का पर्योग किसी व्यक्ति विशेष के लिए न करे |आदरणीय दलाई लामा जी तिब्बती धरम गुरु है ,जो की वर्षों से तिब्बती लोगो के अधिकारों के लिए चीनी सरकार से अहिंसक तरीके से लड़ रहे है|किर्पया उनका सम्मान करें|आशा है आप अन्य लोगो की धार्मिक भावनाओ का सम्मान करंगे और ब्लॉग मे की गयी तुलना को हटा देंगे |धन्यवाद| डॉ. शिरिंग चामलिंग , (धर्मशाला , हि. प्.)
ReplyDeleteचामलिंग साहब,
Deleteआपके कहे अनुसार वो तुलनात्मक शब्द हटा दिया है। आपका इस ओर ध्यान आकृष्ट कराने के लिये बहुत बहुत धन्यवाद।
मुझे तो आपकी पोस्ट के चित्र मुग्ध कर देते हैं, वर्णन तो बढ़िया रहता ही है
ReplyDeleteबहुत सुंदर !
ReplyDeleteनीरज जी देखो कहाँ कहाँ जा रहे हैं
घर बैठे बैठे हमे देश घुमा रहे हैं!
विवेक एक्सप्रेस की यात्रा अच्छी चल रही हैं....हमें तो मजा आ रहा हैं......अच्छा वर्णन किया आपने...|
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