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21 अगस्त 2012
ट्रेन नई दिल्ली पहुंची। इसी के साथ अपनी भारत परिक्रमा पूरी हो गई।
अब वक्त था विश्लेषण करने का। इस यात्रा में मैंने क्या खोया और क्या हासिल किया, इस बारे में सोचने का।
एक घुमक्कड के पास कुछ भी खोने को नहीं होता। इसलिये जाहिर है कि अपनी तरफ से कुछ भी खोया नहीं गया है, पाया ही है, हासिल ही किया है।
कुछ दोस्तों ने इस यात्रा पर जाने से पहले काफी आलोचना की थी। बेकार का काम बताया था इसे। हालांकि इसमें उतना हासिल नहीं हुआ जितना कि मेरी बाकी यात्राओं में हासिल होता रहा है। पहले एक स्थान पर जाता था और ढेर सारी सामग्री मिलती थे, इसमें ढेर सारे स्थानों पर गया और कम सामग्री मिली है।
मैं पहले से ही पर्यटक और घुमक्कड में फर्क करता आया हूं, आज भी उस मुद्दे को उठाऊंगा। पर्यटक कभी भी घुमक्कड को नहीं समझ पायेगा। ज्यादातर लोग पर्यटक होते हैं, उन्हें घुमक्कड और घुमक्कडी उतने पसन्द नहीं होते, जितना कि पर्यटन। मैं न्यू जलपाईगुडी से होकर निकला, पर्यटकों ने सलाह दी कि दार्जीलिंग और सिक्किम पास ही हैं। डिब्रुगढ गया तो सलाह मिली कि काजीरंगा भी जाना था। इसके अलावा जहां जहां से गुजरा, पर्यटकों ने सलाह देने में कोई कसर नहीं छोडी।
वे एक घुमक्कड मन को नहीं समझ पाये।
मुझे इस यात्रा में भले ही लिखने के लिये कम सामग्री मिली हो, लेकिन अनुभव बडे जबरदस्त हुए। मैंने उन अनुभवों को पिछली पोस्टों में भी लिखा है।
पहला और सबसे बडा अनुभव कि मन में एक उजाला आया है। मेरा इलाका अभी तक मात्र हिन्दी पट्टी ही रही है। इस यात्रा में हिन्दी पट्टी गौण रही। असोम, बंगाल, ओडिशा, आन्ध्र प्रदेश, तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, महाराष्ट्र और गुजरात; ये सब गैर-हिन्दीभाषी हैं। मेरे मन में इन जगहों के बारे में अभी तक अन्धेरा था, अब थोडा थोडा उजाला हो गया है। असोम जल रहा था उस समय। यह राज्य हिन्दी विरोध के लिये भी जलता रहा है, हालांकि उस समय यह स्थानीय मामला था। तमिलनाडु भी हिन्दी विरोध के लिये बदनाम रहा है, वहां भी मुझे अच्छा लगा। इसके अलावा गुजरात भी देखा जहां पंजाब से भी ज्यादा हिन्दी बोली जाती है। मुझे इन सबके बारे में पहले मालूम नहीं था।
अगर मैं अभी तक इन राज्यों में नहीं घूम पाया था तो इसका एक कारण यह भी था कि मुझे हिन्दी छोडते हुए डर लगता था। लगता था कि अन्धेरे में जा रहा हूं, पता नहीं हिन्दीभाषी के साथ स्थानीयों का बर्ताव कैसा हो। अब उतना अन्धेरा नहीं रहा। हालांकि मेरी यात्रा मात्र ट्रेनों से ही थी और ट्रेनों में, स्टेशनों पर हर आदमी, छोटे से बडे तक, सब हिन्दी जानने वाले होते हैं। असली हकीकत तो स्टेशन से बाहर निकलकर पता चलती है। लेकिन वो बाद की बात है और मेरी यात्रा का हिस्सा नहीं है। इसीलिये मैंने कहा है कि कुछ कुछ उजाला हुआ है, पूरा नहीं।
दूसरी बात थी कि कुछ चुनौतियां भी मिलीं। मुझे अपने बारह तेरह दिन लगातार चलती ट्रेनों में बिताने थे, इसलिये कई चुनौतियों का भी सामना करना पडा।
सबसे पहले खाने पीने की। खाने पीने में मेरा रिकार्ड अभी तक शानदार रहा है, सबकुछ हजम हो जाता रहा है लेकिन इस बार मैं हजम नहीं कर सका और बीमार ही पडा रहा। एक बीमार आदमी जिसका खाने तक का मन नहीं है, घूमने में क्या खाक मन लगेगा? मुम्बई से जब अहमदाबाद गया था तो पक्का मन बना लिया था कि छोडो आगे की यात्रा, छोडो ओखा और ऊधमपुर; सीधे दिल्ली चलो।
दूसरी चुनौती थी फोटो खींचने की। चलती ट्रेन से फोटो खींचना आसान नहीं होता। वैसे तो आजकल हर जेब में कैमरा होता है, इसलिये हर आदमी फोटोग्राफर हो सकता है। और करना भी क्या है, क्लिक क्लिक बटन दबाते चले जाओ, कुछ ना कुछ तो कैप्चर हो ही जायेगा लेकिन ध्यान रहे कि हर कैप्चर, हर क्लिक फोटो नहीं होता। बडे उच्च दर्जे की कला है फोटोग्राफी।
गम्भीर फोटोग्राफी, गुणवत्ता युक्त फोटोग्राफी का एक उसूल है कि कैमरा हिलना नहीं चाहिये। लेकिन सौ की स्पीड से दौडी जा रही ट्रेन में ऐसा सम्भव नहीं है। कैमरा हिलेगा और हम अपनी पसन्द का फोटो नहीं खींच सकेंगे। मैं मात्र क्लिक क्लिक में विश्वास नहीं करता। अगर दृश्य मेरी पसन्द का नहीं है तो मैं कभी भी क्लिक नहीं करता हूं। अगर आपको इन चीजों की परख है तो आपने देखा होगा कि मेरी फोटोग्राफी में निखार आ रहा है। फोटोग्राफी के कई नियम हैं, मैं उनमें से एक दो को मानने लगा हूं।
बाकी तो आखिर में इतना ही कहना है कि...
... कुछ नहीं।
... कुछ नहीं।
ट्रेन से भारत परिक्रमा यात्रा
1. भारत परिक्रमा- पहला दिन
2. भारत परिक्रमा- दूसरा दिन- दिल्ली से प्रस्थान
3. भारत परिक्रमा- तीसरा दिन- पश्चिमी बंगाल और असोम
4. भारत परिक्रमा- लीडो- भारत का सबसे पूर्वी स्टेशन
5. भारत परिक्रमा- पांचवां दिन- असोम व नागालैण्ड
6. भारत परिक्रमा- छठा दिन- पश्चिमी बंगाल व ओडिशा
7. भारत परिक्रमा- सातवां दिन- आन्ध्र प्रदेश व तमिलनाडु
8. भारत परिक्रमा- आठवां दिन- कन्याकुमारी
9. भारत परिक्रमा- नौवां दिन- केरल व कर्नाटक
10. भारत परिक्रमा- दसवां दिन- बोरीवली नेशनल पार्क
11. भारत परिक्रमा- ग्यारहवां दिन- गुजरात
12. भारत परिक्रमा- बारहवां दिन- गुजरात और राजस्थान
13. भारत परिक्रमा- तेरहवां दिन- पंजाब और जम्मू-कश्मीर
14. भारत परिक्रमा- आखिरी दिन
वाकई आपने ठीक कहा हैं, फोटो खींचना भी एक कला हैं..नीरज जी आजकल घुमक्कड पर आपका होटल बहुत मशहूर हो रहा हैं, कंहा हो तुम...धन्यवाद, वन्देमातरम..
ReplyDeleteस्वास्थ्य बिना घूमने का आनन्द कम हो जाता है..फिर भी आपने पूरा देश नाप लिया, यही क्या कम है।
ReplyDeleteवाकई आपने ठीक कहा हैं, फोटो खींचना भी एक कला हैं..नीरज जी
ReplyDeleteCongratulations for India's round up.
ReplyDeleteone more thing,the outline Map of India, which is placed on Ur blog, still having some white patches. That means,Journey never ends. congrats for marvelous work. You are rocking
ReplyDeleteनीरज जी.....
ReplyDeleteआपने अपने इस लंबी यात्रा के अंतिम लेख में काफी अच्छी जानकारी दी......|
http://safarhainsuhana.blogspot.in/2012/09/3.html
बहुत मनोरंजक व ज्ञानवर्धक यात्रा रही.. खोया पाया सब मिला कर पाया ही पाया
ReplyDeletelage rahi apni manjil pane me! ALL THE BEST
ReplyDeleteMy Blog:- harshprachar.blogsot.com
:- smacharnews.blogspot.com
I'm envious of your adventures. I have no words for your praise for this exceptional achievement....kudos
ReplyDeleteआपकी यात्रायें मुझे घुमने को प्रेरित करती हैं .. और मैं जहाँ भी गया हूँ .. आपके यात्रा वृतांत मेरे सहायक रहते हैं .. वाकई घुमक्कड़ी जिंदाबाद ..
ReplyDeleteअगर 1947 में भारत-पाक विभाजन ना हुआ होता तो आप सिन्ध और पख्तूनख्वा भी घूम आते।
ReplyDeleteशानदार प्रस्तुति। बधाई।
Bhut badiya
ReplyDeleteBAHUT ACCHA HE
ReplyDeleteME AAPKI APKI HAR TRIP FOLLOW KARTA HU