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16 अगस्त 2012
चार बजे अपने आप आंख खुल गई। यह शोरानूर जंक्शन था। यहां से चार लाइनें निकलती हैं- कोयम्बटूर के लिये, त्रिवेन्द्रम के लिये, मंगलौर के लिये और चौथी नीलाम्बर रोड के लिये। अपनी ट्रेन मंगलौर की तरफ चल पडी। अपन दोबारा पसर गये।
अब आंख खुली बडागारा पहुंचकर। यह कोई लम्बी-चौडी ठाठ वाली ट्रेन नहीं है, नाम तो एक्सप्रेस का है लेकिन हर दस पन्द्रह मिनट में, बीस पच्चीस किलोमीटर पर रुकती जरूर है। ट्रेन सही समय पर चलनी चाहिये, चाहे हर जगह रुकती हुई चले।
अगला स्टेशन माहे है। मैं अपने साथ अपनी यात्रा में काम आने वाली हर ट्रेनों के ठहरावों की लिस्ट लेकर निकला हूं जिससे पता चल जाता है कि अब गाडी कहां रुकेगी। इसलिये पता चल गया कि अब माहे में रुकेगी।
माहे पुदुचेरी में है। हां जी, सही कह रहा हूं कि माहे पुदुचेरी में है, पांडिचेरी में है। सोचिये मत कि पुदुचेरी तो चेन्नई के पास है, पूर्वी समुद्र से मिला हुआ है, यहां पश्चिमी समुद्र के किनारे पुदुचेरी कहां से आ गया। इस बारे में कुछ भी सोचना मना है। जो कह दिया सो कह दिया। बोल दिया कि माहे पुदुचेरी में है तो है। असल में पुदुचेरी में चार जिले हैं- पुदुचेरी, कराईकल, माहे और यानम। शुरू वाले दोनों जिलों की सीमा तमिलनाडु से मिलती है, माहे की केरल से और यानम की आन्ध्र प्रदेश से। पुदुचेरी पर फ्रांस का शासन रहा है, अंग्रेजों से भारत आजाद हो गया लेकिन पुदुचेरी आजाद नहीं हुआ। बाद में जब फ्रांसीसी भी चले गये तो उनकी चार अलग-अलग स्थानों पर बसी बस्तियों को उनके नजदीकी राज्य में नहीं मिलाया गया बल्कि फ्रांसीसी शासन की याद जिन्दा रखने के लिये सभी को पांडिचेरी नाम दे दिया गया जो बाद में पुदुचेरी हो गया और अब ये केन्द्र शासित प्रदेश हैं।
नारियल की भयंकर बाढ है यहां। खरपतवार की तरह उगता है यह। हर जगह। हमारे यहां कांग्रेस घास होती है हर जगह, गाजर घास भी कहते हैं उसे। हम कांग्रेस का इस्तेमाल नहीं कर सके, उन्होंने नारियल का इस्तेमाल कर लिया।
कहीं कहीं समुद्र भी दिख जाता है। मजा आ जाता है समुद्र देखकर। ऊपर वाले ने धरती पर दो चीजें ही मस्त बनाई हैं- पहाड और समुद्र। खूबसूरती में दोनों एक से ऊपर एक है। घुमक्कडी धर्म भी इन्हीं दोनों से जिन्दा है।
ग्यारह बजकर पांच मिनट का समय है ट्रेन का मंगलौर सेण्ट्रल पहुंचने का लेकिन यह बीस मिनट पहले ही पहुंच गई। अब मेरी अगली ट्रेन बारह पचास की है मत्स्यगन्धा एक्सप्रेस जिससे मैं सुबह तक मुम्बई पहुंच जाऊंगा।
मंगलौर में दो स्टेशन हैं- मंगलौर सेण्ट्रल (MAQ) और मंगलौर जंक्शन (MAJN)। मंगलौर सेंट्रल एक टर्मिनल स्टेशन है जबकि दूसरा मुम्बई- त्रिवेन्द्रम मुख्य लाइन पर है। जब केरल से आते हैं तो नेत्रावती नदी को पार करने का मतलब होता है कि आप मंगलौर शहर में घुस गये। इसके बाद एक लाइन सीधे हाथ जंक्शन की तरफ चली गई है और दूसरी उल्टे हाथ सेंट्रल की तरफ। बाईपास लाइन की सुविधा भी है यानी अगर सेण्ट्रल से सीधे जंक्शन जाना चाहें तो जा सकते हैं। अपनी मुम्बई वाली मत्स्यगन्धा इसी बाईपास लाइन का इस्तेमाल करेगी।
जंक्शन क्यों कहते हैं उसे? क्योंकि वहां से एक लाइन मुम्बई जाती है जो कोंकण रेलवे का हिस्सा है, एक नीचे केरल और एक जाती है हासन यानी मैसूर, बंगलुरू। हासन वाली लाइन बडी सुपरहिट लाइन है। बडी ख्वाहिश है उस लाइन पर यात्रा करने की। दिन भर में मात्र दो ही ट्रेनें चलती हैं उस लाइन पर बाकी सब मालगाडियां। बंगलुरू और मंगलौर कर्नाटक के दो बडे शहर हैं और उनके बीच में मात्र दो ट्रेनें ही चलती हैं, यानी लाइन में ही ऐसा कुछ है जो खास है।
मत्स्यगन्धा एक्सप्रेस- यह पता नहीं कन्नड का शब्द है या कोंकण का या मराठी का। मुझे तो यह संस्कृत का शब्द लग रहा है। चलो, इसका हिन्दी अनुवाद करते हैं। मत्स्य मतलब निर्विवाद रूप से मछली। गन्ध दो तरह की होती हैं- एक सुगन्ध और दूसरी दुर्गन्ध। अब मछली से मुझ जैसे शाकाहारियों को सुगन्ध तो आने से रही, दुर्गन्ध ही आयेगी। इसलिये इस ट्रेन का हिन्दी नाम बनता है- मछली दुर्गन्ध एक्सप्रेस। बात अभी भी जमी नहीं। चलिये इसे मछली बदबू एक्सप्रेस, मछली सडांध एक्सप्रेस कर देते हैं। तो जी, मछली सडांध एक्सप्रेस मंगलौर सेण्ट्रल से लोकमान्य तिलक जाती है। ट्रेन का यह मात्र नाम ही नाम है, भाव नहीं है। दुर्गंध नहीं आती।
मंगलौर से चलते ही कोंकण रेलवे शुरू हो जाती है। और शुरूआत में ही जब ट्रेन एक सुरंग से गुजरती है और उस सुरंग के दोनों मुहानों पर, कहीं कहीं बीच में भी पानी टपक रहा था, तो तभी लगने लगा कि कुछ बात तो है कोंकण रेलवे में।
मंगलौर से मडगांव तक की कोंकण रेलवे इस ट्रेन से देखनी तय हुई थी। बाकी असली कोंकण यानी मडगांव से रोहा तक अगली बार के लिये छोड दिया था। कर्नाटक के कोंकण में भी बढिया बढिया नजारे हैं। उदुपि से आगे कुन्दापुरा तक पहुंचकर कोंकण के झाड-झंगाड देखते देखते बोर सा होने लगा। हां जी, ट्रेन झाड-झंगाडों के बीच से ही निकलती है। बोर हो गया तो बोरियत दूर करने के लिये अपनी बर्थ पर जाकर लेट गया, लेट गया तो आंख लग गई, आंख लग गई तो कब मडगांव आ गया पता ही नहीं चला। कोंकण रेलवे के दक्षिणी हिस्से को देखने का मौका हाथ से गया।
मडगांव में कान तो खुल गये लेकिन आंख नहीं खुली। भूख लग रही थी, कान भी बज रहे थे कि खाना.. खाना। लेकिन आंख तब खुल्री जब ट्रेन चलने लगी। खैर, ट्रेन के अन्दर से ही खाना... खाना की आवाज आ रही थी तो भरपेट खाना खा लिया गया नहीं तो दो-चार बिस्कुट खाकर ही रातभर का गुजारा करना पडता। ओडिशा वाले बिस्कुट अभी भी बचे हुए हैं। हर सुबह चाय के साथ एक-दो खत्म कर ही देता हूं। दिल्ली जाकर आखिरी बिस्कुट खत्म करूंगा, नहीं तो अगर दिल्ली तक खाली डिब्बा ले गया तो मलाल रहेगा कि बैग में जगह नहीं है, खाली डिब्बों को ढोता घूम रहा है।
ट्रेन में काकरोच बहुत हैं। बल्कि काकरोच नहीं, उनकी कोई ठिगनी बिरादरी है। इनकी बुराई तो कुछ नहीं है, लेकिन ये कपडों में घुस जाते हैं और गुदगुदी मचाते हैं। इनका कोई कोई सखा तो काट भी खाता है।
एक दो बातें दक्षिण में हिन्दी के बारे में। मैं वैसे तो ज्यादा समय नहीं घूमा हूं उधर लेकिन इतने समय में ही काफी कुछ पता चल गया है। अगर कहीं हिन्दी विरोध होता है तो वो हर विरोध की तरह राजनीति प्रेरित होता है, आम लोगों को इससे कुछ मतलब नहीं है। हिन्दी पैर पसार रही है। केरल में तो सडकों पर भी काफी मात्रा में हिन्दी मिली।
देश भर में हिन्दी प्रसार में दो चीजें ऐसी हैं जो उल्लेखनीय योगदान दे रही हैं। इनमें से एक है रेलवे। स्टेशनों की नाम पट्टिका स्थानीय भाषा और अंग्रेजी के साथ साथ हिन्दी में भी होती है। छोटे से छोटे हाल्ट पर भी दस जगह हिन्दी लिखी मिलेगी। इसके अलावा टिकटों पर भी हिन्दी होती है। चाहे वे आरक्षित टिकट हों या अनारक्षित। स्टेशनों पर विभिन्न कार्यालयों के नाम भी हिन्दी में मिलते हैं जैसे कि वरिष्ठ अभियन्ता, रेल पथ आदि।
दूसरी चीज है नोट। पूरे देश में सभी नोट व सिक्के एक जैसे ही चलते हैं। सभी पर हिन्दी और अंग्रेजी का ही वर्चस्व होता है। बाकी भाषाएं भी लिखी होती हैं लेकिन वे इतनी बारीक होती हैं कि मुश्किल से ही पढी जा सकती हैं। मान लो तमिलनाडु में कोई बच्चा है, जो थोडा बडा होने पर दस का नोट देखता है तो मां से पूछता होगा कि इस पर अंग्रेजी के अलावा ये क्या मकौडे से मरे पडे हैं। मां बताती होगी कि यह मकौडे नहीं हैं, हिन्दी है। तो बच्चे के मन पर कुछ असर तो होता होगा कि यार, बडी शक्तिशाली भाषा है। फिर उसे पता चलता होगा कि यह भाषा यहां से दो हजार किलोमीटर दूर बोली जाती है, तो वो हिन्दी की तरफ बडा आकर्षित होता होगा। उसके बाद जब वो ट्रेन का टिकट लेता होगा तो वहां भी हिन्दी को देखकर ठान लेता होगा कि इस दैवीय भाषा को सीखना है।
कुछ ठलुए और बेकार बैठे राजनेता काम-धाम पाने और चर्चा में रहने के लिये हिन्दी विरोध करते हैं। नहीं तो कहीं भी हिन्दी विरोध नहीं है।
केरल का एक स्टेशन |
माहे पुदुचेरी में है। |
कहीं कहीं ट्रेन समुद्र के बिल्कुल किनारे से होकर जाती है। |
यह है नेत्रावती नदी |
मंगलौर सेंट्रल स्टेशन |
मंगलौर जंक्शन स्टेशन |
मंगलौर के बाद कोंकण रेलवे शुरू हो जाती है। |
उदुपि स्टेशन, कर्नाटक |
अगला भाग: भारत परिक्रमा- दसवां दिन- बोरीवली नेशनल पार्क
ट्रेन से भारत परिक्रमा यात्रा
1. भारत परिक्रमा- पहला दिन
2. भारत परिक्रमा- दूसरा दिन- दिल्ली से प्रस्थान
3. भारत परिक्रमा- तीसरा दिन- पश्चिमी बंगाल और असोम
4. भारत परिक्रमा- लीडो- भारत का सबसे पूर्वी स्टेशन
5. भारत परिक्रमा- पांचवां दिन- असोम व नागालैण्ड
6. भारत परिक्रमा- छठा दिन- पश्चिमी बंगाल व ओडिशा
7. भारत परिक्रमा- सातवां दिन- आन्ध्र प्रदेश व तमिलनाडु
8. भारत परिक्रमा- आठवां दिन- कन्याकुमारी
9. भारत परिक्रमा- नौवां दिन- केरल व कर्नाटक
10. भारत परिक्रमा- दसवां दिन- बोरीवली नेशनल पार्क
11. भारत परिक्रमा- ग्यारहवां दिन- गुजरात
12. भारत परिक्रमा- बारहवां दिन- गुजरात और राजस्थान
13. भारत परिक्रमा- तेरहवां दिन- पंजाब व जम्मू कश्मीर
14. भारत परिक्रमा- आखिरी दिन
अनूठे दृश्य, रोचक वर्णन. लट्ठों की नाव- एकदम खास.
ReplyDeleteभगवन, सही कहा आपने घुमने के लिए सिर्फ दो जगह है पहाड़ एवं समुद्र ! घूमते रहते है आपके साथ साथ !
ReplyDeleteये ट्रेन पर ट्रक के अंदर ड्राईवर की क्या जरूरत है, वैसे समुंदर के फ़ोटो बहुत अच्छॆ आये हैं, आपकी तो फ़ोटोग्राफ़ी में मास्टरी हो चली है ।
ReplyDeleteट्रेन रुकी हुई है और सभी ट्रकों को नीचे उतारा जा रहा है, इसलिये सभी ट्रकों में डाइवर बैठे हैं।
Deleteशानदार चित्रों से भरी पोस्ट।
ReplyDeleteJai Ghumakkadi.
ReplyDeleteशिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं!
............
ये खूबसूरत लम्हे...
बेहद खूबसूरत यात्रा ...
ReplyDeleteआपके बहाने रेलवे के अनदेखे स्टेशन देख पा रहे हैं।
ReplyDeleteखूबसूरत रोचक वर्णन
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