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20 अगस्त 2012
ट्रेन यानी जन्मभूमि एक्सप्रेस भटिण्डा से निकल चुकी थी, जब मेरी आंख खुली। साढे सात से ज्यादा का समय था और ट्रेन बिल्कुल सही समय पर चल रही थी।
पंजाब से मेरा आना-जाना कई बार हो चुका है और मैं अच्छी तरह जानता हूं कि पंजाब से एक सिरे पर जो भी फसल दिखाई देगी, धुर दूसरे सिरे पर भी वही फसल दिखेगी। पानी की कोई कमी नहीं है इस राज्य में। नहरों का जाल बिछा हुआ है। भारत के किसी दूसरे राज्य के लिये खेती के मामले में पंजाब से टक्कर लेना आसान नहीं है। लेकिन पंजाब के अलावा भारत में एक इलाका और भी है जो उसे टक्कर दे सकता है। वो इलाका है- दोआब। पंजाब के कम्प्टीशन के लिये दोआब। दोआब यानी (राम)गंगा-यमुना के बीच का इलाका यानी मुख्यतया पश्चिमी उत्तर प्रदेश। मैं दोआब का ही रहने वाला हूं और हिन्दुस्तान के कई हिस्सों में घूमने के बाद दोआब से तुलना करके देखता हूं। या फिर अपनी जन्मभूमि होने के कारण दोआब मुझे सर्वश्रेष्ठ लगता है?
साढे नौ बजे ट्रेन फिरोजपुर पहुंच गई। मैं पहले एक बार यहां तक आ चुका हूं। बंटवारे से पहले यहां से एक लाइन कसूर जंक्शन तक जाती थी। कसूर अब पाकिस्तान में है। तब उसे सतलुज दरिया पार करना पडता था। चूंकि फिरोजपुर से सीमा ज्यादा दूर नहीं है तो उधर जाने वाली लाइन को बन्द कर दिया गया। उधर अमृतसर से भी एक लाइन कसूर तक जाती थी। उस लाइन पर भारतीय क्षेत्र में अभी भी ट्रेनें चलती हैं जो खेमकरन तक जाती हैं। मैं अमृतसर-खेमकरन वाली लाइन पर यात्रा कर चुका हूं।
देखा जाये तो सतलुज के जितना उत्तर में खेमकरन है, उतना ही दक्षिण में फिरोजपुर है। करीब करीब पांच पांच किलोमीटर। यहां सतलुज पर एक पुल बनाकर या उसी पुराने वाले पुल से खेमकरन को फिरोजपुर से जोडा जा सकता था लेकिन एक दिक्कत की वजह से ऐसा नहीं हो सका। दिक्कत है कि खेमकरन और फिरोजपुर के बीच में काफी बडे हिस्से में पाकिस्तान फैला हुआ है। नीचे नक्शा लगा हुआ है। अगर दोनों भारतीय शहरों के बीच में यह पाकिस्तानी ‘कान’ ना होता, तो मैं पक्के तौर से दावा कर सकता हूं कि खेमकरन और फिरोजपुर के बीच आज सीधी ट्रेनें चल रही होतीं।
एक मित्र हैं डॉ. अजीत। सुल्तानपुर लोधी में रहते हैं। सुल्तानपुर लोधी फिरोजपुर और जालंधर के बीच में है। यात्रा पर जाने से पहले उन्होंने कहा था कि वे सुल्तानपुर लोधी स्टेशन पर मिलेंगे। उन्होंने सोचा था कि मैं अहमदाबाद-जम्मू एक्सप्रेस ट्रेन से आऊंगा। लेकिन जब मैंने बताया कि मैं जन्मभूमि एक्सप्रेस यानी अहमदाबाद-ऊधमपुर ट्रेन से यात्रा करूंगा तो उन्होंने कहा था कि वे जालंधर स्टेशन पर मिलेंगे। हालांकि वे नहीं आये।
अजीत साहब एक नम्बर के अलमस्त इंसान हैं। हालांकि मैं इनसे मिला नहीं हूं, लेकिन इनका लिखा पढता रहता हूं। मैं प्रशंसक हूं इनके लेखन का। जब इन्होंने मेरे अपने गांव से गुजरने की खबर पढी तो इनकी टिप्पणी थी:
नीरज जी... अहोभाग्य हमारे... आप हमारे यहां पधारे... 20 अगस्त को आपकी गाडी हमारे घर के सामने से गुजरेगी... जी हां अहमदाबाद जम्मू तवी एक्स... लगभग 11 बजे सुल्तानपुर लोधी आयेगी... जो कि गुरू नानक देव जी से जुडा एक अत्यन्त पवित्र एवं ऐतिहासिक नगर है... यहां मेरी पत्नी एक विद्यालय की प्रिंसिपल है और स्वयं एक adventure loving जीव है... हाल ही में मेरी बेटी के साथ 26 दिन का basic mountaineering course मनाली से कर के आई है... उस दिन हम आपको स्टेशन पे मिलेंगे... गरमा गरम भोजन के साथ... और सम्भव हुआ तो कुछ घण्टे उसी ट्रेन में आपके साथ बितायेंगे... यदि कुछ स्पेशल खाना हो तो बता देना... आपसे फोन से सम्पर्क में रहूंगा 20 अगस्त को कृपया किसी अन्य का आतिथ्य स्वीकार न करें।
इस लिंक पर जाइये। जुलाई 2011 की पोस्ट है उनकी। इसमें मेरा भी जिक्र किया है उन्होंने। और उनके हर लेख पढने लायक होते हैं। एक बार पढना शुरू करो, तो इतना पक्का है कि आप बीच में नहीं छोडोगे। हालांकि पिछले कई लेख उनके कांग्रेस की खिलाफत में लिखे जा रहे हैं। मैं राजनीति से जुडा इंसान नहीं हूं, इसलिये उनसे गुजारिश है कि अपने उसी पुराने वाले मोटिवेटिव स्टाइल में लिखें।
एक बार अजीत महाराज के पैर में चोट लग गई तो उनकी घरवाली ने उन्हें तैमूर लंग कहना शुरू कर दिया। अगले ऐसे निकले कि अपने नाम के साथ तैमूर ही लगाना शुरू कर दिया- अजीत सिंह तैमूर। मैंने सोचा कि वे तोमर हैं यानी या तो जाट या गुज्जर हैं, लेकिन शायद गलती से से स्पेलिंग तैमूर हो गई। मैंने उन्हें समझाया कि साहब, स्पेलिंग मिस्टेक हो गई है, इसे सुधारिये। तब मामले का खुलासा हुआ कि वे ना तो जाट हैं, ना ही गुज्जर, बल्कि ‘तैमूर’ हैं।
सही समय पर ट्रेन जालंधर से पठानकोट की तरफ चल पडी। जालंधर में दो स्टेशन हैं- सिटी और छावनी। सिटी स्टेशन अमृतसर की ट्रेनों के लिये इस्तेमाल होता है जबकि छावनी जम्मू जाने वालियों के लिये।
जालंधर और पठानकोट के बीच में कुछ हिस्सा हिमाचल प्रदेश का भी पडता है। बहुत कम लोग इस बात को जानते हैं। चाहे बस से जायें या ट्रेन से, हिमाचल के अन्दर घुसकर चक्की नदी तक हिमाचल में ही रहना होता है। हालांकि हिमाचल के इस इलाके और पंजाब में कोई अन्तर नहीं है, देखने में लगता है कि पंजाब ही है। मौसम अगर साफ हो तो दूर धौलाधार के बर्फीले पहाड भी दिखाई देते हैं। आज मौसम साफ नहीं था, इसलिये बर्फीले पर्वत नहीं दिखे।
ट्रेन पठानकोट नहीं जाती, बल्कि चक्की बैंक से ही जम्मू की तरफ हो लेती है। अगर पठानकोट जाती तो इंजन इधर से उधर करना पडता, इसलिये जम्मू जाने वाली लगभग सभी ट्रेनों के लिये चक्की बैंक स्टेशन को ही पठानकोट का विकल्प बना दिया गया है। चक्की बैंक से एक बाइपास लाइन है जिसके कारण पठानकोट नहीं जाना पडता।
इसका क्या कारण है? बताता हूं।
आजादी से पहले जम्मू में रेलवे लाइन तो थी लेकिन उसका कनेक्शन सियालकोट से था। सियालकोट आज पाकिस्तान में है। उधर पठानकोट में भी रेल थी और वो आती थी सीधे अमृतसर से गुरदासपुर होते हुए। अमृतसर से पठानकोट बडी लाइन थी और पठानकोट से आगे जोगिन्दर नगर तक नैरो गेज थी। पठानकोट कोई जंक्शन नहीं था और ना ही पठानकोट से सीधे जालंधर जा सकते थी, ना ही जम्मू। अगर जालंधर जाना हो, तो पहले अमृतसर जाना पडता। इसी तरह अगर पठानकोट से जम्मू जाना हो तो पहले अमृतसर, फिर लाहौर, फिर सियालकोट और फिर जम्मू। सीधी कोई लाइन नहीं थी।
बंटवारा हुआ। सियालकोट पाकिस्तान में चला गया। जम्मू का बाकी देश से रेल सम्बन्ध कट गया। तब आनन-फानन में जम्मू को पठानकोट से जोडा गया और पठानकोट को जालंधर से। आज जम्मू से आगे ऊधमपुर तक रेल चली गई है, श्रीनगर तक ले जाने की योजना है।
मेरी यात्रा का आखिरी भाग चल रहा है। सुबह सवेरे तक मैं दिल्ली पहुंच जाऊंगा और यह यात्रा पूरी हो जायेगी।
जम्मू पहुंचे। लगभग पूरी ट्रेन खाली हो गई। अपने पूरे डिब्बे में मैं ही रह गया या शायद एकाध और भी थे।
गाडी जम्मू के प्लेटफार्म नम्बर चार पर पहुंची। यहां इसके बाद मालवा एक्सप्रेस लगेगी। इस ट्रेन के रुकते ही कई सवारियां इसे मालवा एक्सप्रेस समझकर चढ लीं। जब उन्हें हकीकत मालूम हुई, तब वे उतरे।
जम्मू-ऊधमपुर मार्ग भारत के सबसे खूबसूरत मार्गों में से एक है। इस रेलमार्ग के बारे में मैं पहले भी लिख चुका हूं। सारा रास्ता पहाडी है और पुलों- सुरंगों से होकर ही जाता है। मानसून में यहां का सौन्दर्य और भी निखर जाता है। रेल लाइन के किनारे जगह जगह गड्ढे और खम्भे पडे देखे जिससे पता चलता है कि इसके विद्युतीकरण का काम चल रहा है।
ठीक समय पर ट्रेन ऊधमपुर पहुंची। स्टेशन मुख्य शहर से काफी दूर है। जो नये स्टेशन बनते हैं, उन्हें आबादी के बीच में नहीं बनाया जा सकता।
अब यहां से मुझे अपनी भारत परिक्रमा की आखिरी ट्रेन पकडनी है- उत्तर सम्पर्क क्रान्ति। यह डेढ घण्टे बाद है।
अच्छा हां, ऊधमपुर वैसे तो भारत का सबसे उत्तरी स्टेशन नहीं है। सबसे उत्तरी स्टेशन कश्मीर घाटी में है लेकिन उस लाइन का शेष भारत से कोई कनेक्शन नहीं है। इसलिये मैं अस्थायी तौर ही सही ऊधमपुर को सबसे उत्तरी स्टेशन घोषित करता हूं, क्योंकि यह सीधे तौर पर भारत के लम्बे चौडे रेल नेटवर्क से जुडा है। जब ऊधमपुर को आगे काजीगुण्ड यानी कश्मीर रेल से जोड दिया जायेगा, तब इसे दी गई यह अस्थायी पदवी वापस ले ली जायेगी।
अपने साथ एक बंगाली परिवार भी यात्रा कर रहा था। ये वैष्णों देवी से आये थे और आरक्षण ऊधमपुर से था। शायद इन्हें योजना बनाते समय जम्मू से सीटें नहीं मिलीं, इसलिये ऊधमपुर आना पडा। इन्होंने मेरे सामने वाली अपनी ऊपरी बर्थ पर सामान करीने से लगाया और अपने बैग से एक छोटी सी मूर्ति निकालकर मुझे दिखाई। पूछने लगे कि यह क्या है। मैंने कहा कि मूर्ति है। बोले कि किसकी है? मैंने कहा कि पता नहीं। बोले कि ये गोपालजी हैं। हमारा सारा मार्गदर्शन यही करते हैं। हम भी इनका पूरा ध्यान रखते हैं। अब इनका खाने का समय है।
उन्होंने अपने सूटकेसों के बगल में अपने गोपालजी के लिये छोटा सा बिस्तर लगाया, तकिया भी रख दिया और उसके सामने छोटी सी कटोरी में शायद लड्डू का चूरा रख दिया।
ट्रेन जब जम्मू पहुंच गई, काफी भीड हो गई डिब्बे में। बंगाली ने अपने गोपालजी की कटोरी हटाई और नन्हीं सी चादर ओढाकर उन्हें सुला दिया। मैं सोचता रहा कि इंसान भगवान को मुट्ठी में रखता है या भगवान इंसान को।
अगला भाग: भारत परिक्रमा- आखिरी दिन
ट्रेन से भारत परिक्रमा यात्रा
1. भारत परिक्रमा- पहला दिन
2. भारत परिक्रमा- दूसरा दिन- दिल्ली से प्रस्थान
3. भारत परिक्रमा- तीसरा दिन- पश्चिमी बंगाल और असोम
4. भारत परिक्रमा- लीडो- भारत का सबसे पूर्वी स्टेशन
5. भारत परिक्रमा- पांचवां दिन- असोम व नागालैण्ड
6. भारत परिक्रमा- छठा दिन- पश्चिमी बंगाल व ओडिशा
7. भारत परिक्रमा- सातवां दिन- आन्ध्र प्रदेश व तमिलनाडु
8. भारत परिक्रमा- आठवां दिन- कन्याकुमारी
9. भारत परिक्रमा- नौवां दिन- केरल व कर्नाटक
10. भारत परिक्रमा- दसवां दिन- बोरीवली नेशनल पार्क
11. भारत परिक्रमा- ग्यारहवां दिन- गुजरात
12. भारत परिक्रमा- बारहवां दिन- गुजरात और राजस्थान
13. भारत परिक्रमा- तेरहवां दिन- पंजाब व जम्मू कश्मीर
14. भारत परिक्रमा- आखिरी दिन
बहुत ही रोचक..
ReplyDeleteCHAKKI BANK IS A MAJOR POINT FOR THREE STATES BECAUSE IT COVERED SOME AREA OF PUNJAB ,HIMACHAL & J & K.IT ALSO IMPORTANT COZ ARMY KANT IN PATHANKOT
ReplyDeleteभारतीय रेल के बारे में इतनी जानकारी --
ReplyDeleteभारत के इतिहास की पूर्ण जानकारी-
भूगोल की पूरी जानकारी-
भाई सेहत का भी पूर्ण ध्यान रखा करो पिछली दो पोस्ट में तो डरा दिया था
कुछ फोटो तो बेइंतहा खूबसूरत हैं...
ReplyDelete."............बंगाली ने अपने गोपालजी की कटोरी हटाई और नन्हीं सी चादर ओढाकर उन्हें सुला दिया। मैं सोचता रहा कि इंसान भगवान को मुट्ठी में रखता है या भगवान इंसान को।"
ReplyDeleteinsan sabko apani mutthi men rakhan c hahta hai neeraj babu !!
नीरज भाई आपने तो भारतीय रेल का ऐसा वर्णन किया हैं की, कभी डिस्कवरी या किसी यात्रा चैनल पर नहीं देखा. आपकी यात्रा एक दस्तावेज हैं. जो की संग्रह करने योग्य हैं. बहुत बहुत बधाई. और धन्यवाद सम्पूर्ण भारत की यात्रा कराने के लिए. वन्देमातरम...हाँ एक बात और अब तो पुस्तक लिख ही डालो...
ReplyDeleteनीरज भाई अब तो मेरा बेटा इशांक भी आपका प्रशंसक हो गया हैं. कहता हैं मैन भी नीरज अंकल जैसा घुमक्कड बनूँगा...
ReplyDeleteआनंददायक.
ReplyDeleteरेलवे की जानकारी आपकी अनुपम है.. फिरोज़पुर मै कई बार जा चुका हूं और पैदल जाकर बार्डर व उस पर बनी भगत सिंह की समाधी भी देखी थी.
ReplyDeleteयात्रा का अंत आ रहा है, बहुत मजेदार विवरण था
आपका यात्रा वर्णन जानकारी और फोटो...अद्भुत है...आप जैसा कोई नहीं
ReplyDeleteनीरज
Nice Yatra Vratant & Very Nice Photos
ReplyDeleteएक ही बात कहाँ सकता हूँ... 'तुस्सी ग्रेट हो'
ReplyDeleteजवाहर जोशी
ठाणे
17/09/2012
बहुत खूब ...बढ़िया रही आपकी यात्रा....फोटो तो अति उत्तम | शायद कुछ ट्रेने पठानकोट और चक्की बैंक दोनो जगह जाती हैं......|
ReplyDeleteहम जब डलहौजी गए थे तब चक्की बैंक स्टेशन पर ही उतरे थे........|
बढ़िया रही आपकी यात्रा....!!!
ReplyDeleteनीरज भाई ......इतनी लम्बी यात्रा सफलता पूर्वक पूरी करने के लिए बधाइयां .....दरसल आपसे उस दिन मिलना तो था पर मुझे एक बहुत ज़रूरी काम से कलकत्ता जाना पड़ गया ....और आपका जो फोन नंबर था उसपे आपसे संपर्क न हो पाया ........मेरी पत्नी व्यस्त थे सो वो जा नहीं पायी ....मैंने उससे कहा भी...... की जाट भाई भूखा मर जायेगा .......पर उसका दिल न पसीजा ......खैर फिर कभी ....पर आपकी यात्रा पढ़ के मज़ा आ गया ........लगे रहो जाट भाई
ReplyDeleteअजित सिंह तैमूर
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