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9 जून 2012 की सुबह थी। मैं सोकर उठा तो देखा कि टैंट में अकेला ही पडा था। बाकी सब कभी के उठ चुके थे। बाहर झांका तो मौसम साफ था और धूप भी निकली थी। बिल्कुल सामने गौमुख की दिशा में गंगोत्री श्रंखला के तीनों पर्वत शिखर साफ दिखाई पड रहे थे। चौधरी साहब और नन्दू कभी के जग गये थे और चौधरी साहब अब फोटो ले रहे थे।
सात बजे मेरी आंख खुली और आठ बजे हमने गौमुख की तरफ चलना शुरू कर दिया। चलने से पहले गढवाल मण्डल वालों के यहां महा-महंगी मैगी और चाय ली। इसके अलावा आलू के तीन परांठे पैक करवा लिये और पारले-जी के पांच पैकेट भी ले लिये। गढवाल मण्डल विकास निगम वाले यहां खाने पीने की चीजों को बेहद ऊंचे दामों पर बेचते हैं। आलू का एक परांठा पचास रुपये और पारले जी का एक पैकेट जो नीचे पांच रुपये का आता है, उसे बीस रुपये का बेच रहे थे। कारण वही जो इस दुर्गम इलाके में हमेशा होता है। अच्छा हां, आज हमारा लक्ष्य गौमुख तक ना जाकर आगे तपोवन तक जाने का था। हमारा परमिट मात्र गौमुख तक के लिये था और आज उसका आखिरी दिन था। कायदे से हमें आज गौमुख देखकर गंगोत्री लौट जाना था।
आठ बजे हम तीनों जांबाज फिर से अपने रास्ते पर चल पडे। चौधरी साहब को चलने में थोडी दिक्कत थी लेकिन आज मुझे कोई दिक्कत नहीं हो रही थी। मुझे कल जो दिक्कत हो रही थी, वो हाई एल्टीट्यूड यानी ऊंचाई की वजह से हो रही थी। रात को हम लगभग 3800 मीटर की ऊंचाई पर सोये थे तो शरीर रात-रात में इस ऊंचाई पर काम करने के लिये ढल गया था। मुझे आज ना तो सांस चढ रही थी और ना ही आलस आ रहा था जोकि उच्च पर्वतों का एक सामान्य लक्षण होता है।
लगभग एक किलोमीटर चलने पर भरल दिखाई पडे। यह हिरण की एक प्रजाति होती है जो यहां बहुतायत में पाई जाती है। ये ज्यादातर झुण्डों में रहते हैं और मुश्किल से मुश्किल चट्टान पर आसानी से चढ जाते हैं। जहां चढने के लिये इंसान रस्सी और कई दूसरे सुरक्षा उपकरणों की सहायता लेता है, वहीं ये चार पैरों वाले और खुर वाले प्राणी बडी आसानी से दौड लगाते देखे जा सकते हैं। अगर कोई सीधी वर्टिकल चट्टान हो और उसमें कुछ दरारें भी हों, तो ये दुस्साहसी प्राणी वहां भी चढ सकते हैं। ये अक्सर आदमी से डरते हैं और पास जाने पर दूर भाग जाते हैं। जब इनका झुण्ड का झुण्ड किसी पहाड पर चल रहा होता है तो इनकी वजह से पत्थर भी नीचे गिरते हैं, जो कई बार आदमियों को नुकसान पहुंचा देते हैं।
कई किलोमीटर पहले ही गौमुख ग्लेशियर दिखने लगता है लेकिन जो असली गौमुख है, यानी जहां से भागीरथी निकलती है, वो करीब दो किलोमीटर पहले ही दिखता है। दूर से गौमुख ग्लेशियर उसके मुहाने पर एक मुख जैसी आकृति जहां से भागीरथी का पानी निकलता है, बडे ही खूबसूरत लगते हैं। मुख के ऊपर दूर मीलों तक ग्लेशियर फैला है, जहां बर्फ के ऊपर पत्थरों की भरमार है। नन्दू ने हाथ से इशारा करके बताया कि वो वहां नन्दनवन है जोकि गौमुख से छह किलोमीटर दूर है। नन्दनवन ग्लेशियर के दाहिनी तरफ है और ग्लेशियर के बायीं तरफ तपोवन है। हम भागीरथी के दाहिनी तरफ चल रहे थे, यानी तपोवन जाने के लिये हमें ग्लेशियर पर चढकर उसे पार करना पडेगा। बडा रोमांचक अनुभव होने वाला है!
आखिरकार हम जीरो पॉइण्ट पर पहुंच गये। यहां एक छोटा सा पत्थर लगा है, जिस पर एक तरफ लिखा है 18 और दूसरी तरह लिखा है 0 यानी गंगोत्री 18 किलोमीटर और गौमुख 0 किलोमीटर। पहले कभी यहां तक गौमुख ग्लेशियर हुआ करता था लेकिन आज पिघलता हुआ यहां से आधा किलोमीटर दूर चला गया है। यहीं से एक पगडण्डी ऊपर की ओर बढनी शुरू होती है, जो हमें ग्लेशियर के ऊपर पहुंचा देती है, फिर चाहें हम नन्दनवन जायें या तपोवन और दूसरी पगडण्डी अपेक्षाकृत नीची रहती है जो वर्तमान गौमुख तक जाती है। हमें तपोवन जाना था, इसलिये ऊपर वाली पगडण्डी पर चल पडे।
अभी तक हम ट्रेकिंग के हाइवे पर चल रहे थे, जहां रास्ता बना था और आसान भी था। तपोवन की तरफ चलते ही रास्ते की नीयत एकदम बदल गई। अब वो दुनिया के सबसे खतरनाक रास्ते में बदल गया जो आगे बढने के साथ साथ और भी खतरनाक होता जायेगा। मेरे पास करीब आठ किलो का एक बैग था, चौधरी साहब ने अपना बैग नन्दू को दे दिया था, इसलिये वे बिना बोझ के चल रहे थे।
थोडी ही देर में हम गौमुख ग्लेशियर के ऊपर पहुंच गये। यहां की ऊंचाई 3990 मीटर है, जोकि गौ-मुख से 100 मीटर ऊंचाई पर है। हमारे नीचे गौमुख था, जहां से भागीरथी पूरे वेग से निकल रही थी। कुछ लोग थे, जो भागीरथी के अत्यधिक ठण्डे जल में स्नान कर रहे थे। इसके अलावा थोडी थोडी देर में गौमुख से कभी बर्फ और कभी पत्थर खड-खड करते नीचे गिर पडते। दूसरी तरफ एक ऊंचा सीधा खडा पहाड था, जिस पर भरल विचर रहे थे। उनकी वजह से छोटे छोटे पत्थर भी गिर पडते थे लेकिन हम उनसे सुरक्षित दूरी पर बैठे थे।
परांठे निकाल लिये गये। चौधरी साहब ने खाने से मना कर दिया। बोले कि मन नहीं है। इसका मतलब है कि उन्हें अभी भी उच्च पर्वतीय बीमारी के लक्षण है। उनकी इच्छाशक्ति जबरदस्त थी कि इतना होने के बावजूद भी वे चले और यात्रा सफलतापूर्वक पूरी की। नहीं तो ऐसे में वापस लौट पडने का मन होता है और लोगबाग लौट भी पडते हैं। .... उन्होंने परांठा नहीं खाया लेकिन हमने जबरदस्ती उन्हें बिस्कुट का एक पैकेट खिला दिया। जबरदस्ती इसलिये कि आधा पैकेट खाते ही वे जिद पर अड गये कि अब और नहीं खाऊंगा। किसी को खाते पीते देखते ही कौवों का झुण्ड आ जाता है और खाने की चीजें हाथ से छीनने का जैसे वे जन्मसिद्ध अधिकार मानते हैं।
एक श्लोक याद आ गया मुझे यहां- काकचेष्टा वकोध्यानं श्वाननिद्रा तथैव च ... अल्पाहारी गृहत्यागी विद्यार्थी पंचलक्षणः।
यहां मुझे पांचों लक्षण दिखाई देने लगे। काकचेष्टा- पहली बात तो यही है कि खाने के लिये काक चेष्टा कर रहे थे और हम भी आगे बढने के लिये काकचेष्टा ही करते हैं। बिना काकचेष्टा के इस इलाके में चलना नामुमकिन ही है।
वकोध्यानं- इसका मुझे ज्यादा अनुभव नहीं हुआ। बगुला जिस तरह ध्यान लगाकर एक टांग पर पानी में खडा रहता है और मौका मिलते ही मछली को पकड लेता है, उस तरह का मुझे रास्ते में कोई अनुभव नहीं हुआ। रही बात ध्यान की तो उसके लिये तपोवन प्रसिद्ध जगह है, जहां हम जा रहे थे।
श्वाननिद्रा- यह तो मेरा चिरस्थायी गुण है। मौका मिलते ही सो जाना अपना गुण श्वान से ही अवतरित है। श्वान कहते हैं कुत्ते को। रही बात इस इलाके की तो ऊंचाई की वजह से चलने का मन नहीं करता लेकिन सो जाने का बहुत मन करता है।
अल्पाहारी- वैसे तो यह मेरा गुण नहीं है लेकिन इस इलाके में हर आदमी को अल्पाहारी बनना ही पडता है। मेरे जैसे लोग खाने के दाम को देखकर अल्पाहारी बन जाते हैं। बाकी लोगों का ऊंचाई की वजह से खाने को मन नहीं करता, इसलिये अल्पाहारी होते हैं।
गृहत्यागी- कोई शक नहीं कि (अस्थायी रूप से) गृहत्याग करके ही इंसान घुमक्कडी कर सकता है और कुछ दिनों के लिये गृहत्याग करके ही गौमुख आदि जगहों पर जा सकता है।
भोजबासा से दिखते गंगोत्री श्रंखला के शिखर |
भोजबासा में जाटराम |
गौमुख की तरफ निकल गये- पीछे देखने पर ऐसा दिखता है भोजबासा |
गौमुख की तरफ। अब हम गंगोत्री शिखरों को देखते हुए ही आगे बढते रहेंगे। ये एक के बाद एक तीन शिखर हैं जिनके नाम क्रमशः गंगोत्री- 1, गंगोत्री- 2 और गंगोत्री- 3 हैं। |
गंगोत्री शिखर और उनके नीचे पूरे विस्तार में फैला गौमुख ग्लेशियर |
भरल- चट्टानों का महारथी |
गौमुख क्षेत्र में भरलों का झुण्ड |
भरल तीखी से तीखी ढलान पर आसानी से चढ सकता है। |
विश्राम भी जरूरी है। |
गौमुख से कुछ पहले |
अभी भी गौमुख तकरीबन एक किलोमीटर दूर है। |
गौमुख जीरो पॉइण्ट पर एक छोटी सी कुटिया है और उस कुटिया में ये बाबाजी रहते हैं। |
जीरो पॉइण्ट और बाबाजी की कुटिया। वास्तविक गौमुख आज यहां से आधा किलोमीटर आगे है। |
जाटराम |
यहां गंगोत्री शिखरों का ही वर्चस्व है। यहां से आगे निकलते ही गंगोत्री के साथ साथ शिवलिंग का भी वर्चस्व होने लगता है और तपोवन पूरी तरह शिवलिंगमय है। |
गौमुख ग्लेशियर और उसमें से पूरे वेग से निकलती भागीरथी। |
अब चल पडे तपोवन की तरफ |
गौमुख पर ऊपर चढकर पीछे देखने पर भागीरथी घाटी ऐसी दिखती है। |
गौमुख |
गौमुख और दूर तक फैला ग्लेशियर। ग्लेशियर पर नीचे तो ठोस बर्फ है और उसके ऊपर पडे हैं बडे बडे पत्थर। |
यहीं बैठकर हमने परांठे खाये थे। |
एक कौवा |
तीन कौवे- यह फोटो इस यात्रा में खींचे गये सर्वोत्तम फोटुओं में से एक है। |
और चल पडे तपोवन की तरफ। हम ग्लेशियर के ऊपर चढ चुके हैं। एक ऐसा ग्लेशियर जहां नीचे ठोस बरफ है और ऊपर बेतहाशा पत्थर बिखरे पडे हैं। इस फोटो में बर्फ और पत्थरों का अनोखा तालमेल दिखाई दे रहा है। |
गौमुख तपोवन यात्रा
1. गंगोत्री यात्रा- दिल्ली से उत्तरकाशी
2. उत्तरकाशी और नेहरू पर्वतारोहण संस्थान
3. उत्तरकाशी से गंगोत्री
4. गौमुख यात्रा- गंगोत्री से भोजबासा
5. भोजबासा से तपोवन की ओर
6. गौमुख से तपोवन- एक खतरनाक सफर
7. तपोवन, शिवलिंग पर्वत और बाबाजी
8. कीर्ति ग्लेशियर
9. तपोवन से गौमुख और वापसी
10. गौमुख तपोवन का नक्शा और जानकारी
neeraj babu,jai ho.bahot badhya.thanks
ReplyDeleteहर हर गंगे, बहुत बहुत धन्यवाद पवित्र गोमुख के दर्शन किये, पहाड़ी कौवे, और भरल के बारे मैं पढ़ कर, और फोटो देखकर अच्छा लगा, दुर्गम वादियां, कठिन चढाई, हिम्मते मर्दा, मददे खुदा..लगे रहो...
ReplyDeleteनीरज बाबू आज कलम जल्दी रुक गई यहाँ वकोध्यानम नहीं लगा , इसीलिये लेख छोटा था.
ReplyDeleteतीन कोवे पंक्तिबद तथा एक ही केंद्र पर निगाह वह क्या फोटो है भरल के फोटो अच्छे हैं एस बार पास के फोटो की कमी रही. चौधरी साब के फोटो से नाराजगी है क्या..
साँस रोके सब देख रहे हैं..
ReplyDeleteह्म्म, चित्र बहुत सुंदर हैं। बढिया यात्रा चल रही है।
ReplyDeleteनीरज भाई. चित्र बहुत सुंदर हैं... काक वाला तो वाकई..
ReplyDeleteऊपर से पांचवीं फोटो, गंगोत्री का ध्यान से देखो ऐसा लग रहा है कोई ध्यान लगाये बैठा हो... आँख, नाक मुंह, सब साफ़ दिख रहा है....
जबरदस्त फोटो है....
आज तो साक्षात गंगामाँ के दर्शन हो गए ...नीरज, तुम तो श्रवन कुमार बन गए हम जैसे गुजुर्गो के ....:)
ReplyDeleteniraj bhai gomukh ke darshan karane ke liye dhanevad sare foto jordar he hamare to gar bethe gaga darshan ho gaye
ReplyDeleteअविस्मरणिय..अदभुत...मजा आ गया पढ़ कर... कुछ बाते जरुरी है
ReplyDelete1- पहले चित्र में चोटियों के नाम क्या हैं अगर पता हो तो बताना
2- श्वान निद्रा का अर्थ ये नही कि कभी भी सो जाना...बल्कि कही भी कभी भी सोना और हलकी सी आवाज पर एकदम चैतन्य होना... तो दूसरा लक्षण आपमें नही है
3- भरल जहां होता है...उसके आसपास ही हिम चीता भी रहता है..
4- गौमुख गलेशियर पहले गंगोत्री मंदिर के पास था.. धीरे-2 पिघल कर 18 किमी पीछे चला गया..हालांकि अब इसके पिघलने की गति बढ़ गयी है पर औसतन 2.5 से.मी. की रफ्तार से पिघलता रहा है...तो आप साधारण गणित से पता कर सकते हो कितने हजार वर्ष पहले गंगा शुरु हुई थी
चित्र व विवरण लाजवाब.. आगे की प्रतीक्षा क्योकि इससे आगे मेरे लिये नया होगा
ati sundar, neeraj bhai. 3 pakchiyo wali photo sach me lajawab h. baki sari pictures bhi bahut sundar h. aage dekhte h, neeraj bhai, kya dikhate h. AAPKA DHANYAWAAD.
ReplyDeleteतीन कौए..... हें..हें !! नीरज बाबु जगह , विवरण और फोटुयें तीनो मस्त हैं !!
ReplyDeleteVery nice .
ReplyDeleteइतनी बढ़िया और साहसिक यात्रा ...आप तो सच में ऐसा लिखते हैं कि पाठक भी फैंटेसी लैंड में पहुंच जाते हैं। अगली कड़ी का इंतज़ार रहेगा, नीरज।
ReplyDeleteab to jalan si ho aayi hai neeraj babu
ReplyDeleteनीरज जम के तो सोता है और जम के ही खाता है ......बच गया टाइम तो घूम लेता है !!
ReplyDeletebahut hi badhia varnan jatji.
ReplyDeletethanks for posting, eise Laga jyse khud hi gangotri mein hain.
ReplyDeleteवास्तविकता में ये श्लोक विद्यार्थी के लिए है और इस तरह से है...
ReplyDelete"चलचित्र-चेष्टा, केश-ध्यानं, प्रगाढ़ निद्रा तथैव च ।
चाटाहारी च भ्रमणकारी विद्यार्थी पञ्च-लक्षणं ।।"
just joking:D
by the way you have a good command over language too apart from being an amateur traveller.