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कीर्ति ग्लेशियर

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पिछली बार मैंने बताया था कि हम मात्र एक रात के लिये ही तपोवन गये थे लेकिन वहां जाकर हम उसके मोहपाश में इतने बंध गये कि हम वहां दो रात रुके। यानी एक पूरा दिन और। फिर अपने चौधरी साहब की हालत भी काफी खराब थी, उन्हें आराम की जरुरत थी इसलिये भी एक दिन रुकना सही फैसला रहा।
10 जून 2012 की सुबह बाबाजी के यहां चाय पीकर मैंने नन्दनवन जाने का फैसला किया। बाकी सभी लोग मेरे इस फैसले के खिलाफ थे, क्योंकि नन्दनवन जाने के लिये पहले तपोवन से नीचे उतरना पडेगा, फिर खतरनाक गौमुख ग्लेशियर पार करना पडेगा और उसके बाद नन्दनवन की चढाई चढनी पडेगी। तपोवन से नन्दनवन दिखता है। ग्लेशियर के एक तरफ तपोवन है और दूसरी तरफ नन्दनवन। यह भी पता चला कि नन्दनवन में कोई आदमजात नहीं रहती और कभी कभार कोई ट्रैकिंग वाला ग्रुप आ जाता है।
मुझे यहां से निकलना जरूर था, पता नहीं कहां के लिये। दो-चार घण्टे तो मैं यहां बैठ सकता था लेकिन पूरे दिन बैठना मेरे लिये बडी मुश्किल बात थी। मैंने सबको भरोसा दिया कि नन्दनवन नहीं जाऊंगा और नन्दू को साथ लेकर चल पडा। साथ में केवल कैमरा और पानी की बोतल थी। मन में लक्ष्य नन्दनवन ही था।
यहीं से एक पतली सी पगडण्डी पूर्व की ओर जाती दिख रही थी। यहां से निकलते ही नन्दू को बता दिया कि हम नन्दनवन जायेंगे। पट्ठा वो भी अपना समर्थक निकला, झट से हां कह दी। अच्छा, जिस रास्ते से हम गौमुख से आये थे, तपोवन से नन्दनवन जाने के लिये उसी रास्ते का इस्तेमाल जरूरी नहीं होता। पहले हमें तपोवन से ही उसके विपरीत दिशा में चलना होता है, जब लगने लगे कि नन्दनवन हमारे बिल्कुल सामने आ गया तो तुरन्त नीचे उतरकर ग्लेशियर पर पहुंच जाओ और पार करके नन्दनवन। हमें भी ऐसा ही करना था लेकिन जब नीचे उतरने के लिये एक जगह पर पहुंचे तो होश उड गये। छोटे छोटे पत्थरों और मिट्टी के ऊपर खडे थे हम। मैं तपोवन आते समय इनकी भयावहता देख चुका था, इसलिये नीचे उतरने से मना कर दिया। मैं डर गया था। फिर उसके बाद ग्लेशियर पार करना भी खतरनाक था। गौमुख से तपोवन के लिये भी ग्लेशियर पार करना पडता है लेकिन वहां आवाजाही होती रहती है लेकिन यहां कोई हलचल नहीं थी।
यहां से पगडण्डी दो भागों में बंट रही थी। एक तो यही ग्लेशियर पर नीचे उतरने के लिये, जिस पर हम खडे थे, दूसरी सीधी जा रही थी पूर्व दिशा की ओर। मैंने नन्दू से पूछा कि वो कहां जाती है, उसने बताया कीर्ति ग्लेशियर। मैंने तुरन्त कहा कि कीर्ति चलो।
हमने अब एक गलत रास्ता पकड लिया और एक डैड एण्ड (DEAD END) पर जाकर रुक गये। आगे कोई रास्ता नहीं दिख रहा था। आगे था एक कच्चे पहाड का हिस्सा जिससे लगातार पत्थर गिर रहे थे। हालांकि हम ऊंचाई पर थे, इसलिये पत्थर गिरने की जो उच्चतम सीमा थी, उसके नजदीक ही थे। पहाड से अगर पत्थर गिर रहे हों और उन पत्थरों का आपके ऊपर भी गिरने का खतरा हो तो समझ लीजिये कि ढलान बहुत ज्यादा है। यहां भी काफी ढलान था। नन्दू ने हालांकि कोशिश की कि उस कच्चे हिस्से को पार कर लें, लेकिन असफल रहा। मैंने पूछा कि कीर्ति ग्लेशियर किस दिशा में है, तो उसने बताया कि इस कच्चे पहाड के उस तरफ पहुंचकर दिख जायेगा।
आज हमारी खुशनसीबी थी कि मौसम साफ था और पुरवाई चल रही थी। यानी पूर्व की तरफ से हवा आ रही थी। पूर्व की तरफ ऊंचे ऊंचे पहाड और ग्लेशियर ही थे बस। उन ऊंचे पहाडों के उस तरफ अलकनन्दा घाटी है। यानी हवा अलकनन्दा घाटी में ऊपर चढ रही है। हवा जितना ऊपर चढती जाती है, वो ठण्ड पाकर कोहरे की तरह हो जाती है और आखिरकार बादल बन जाती है। इसका मतलब यह है कि उस तरफ अलकनन्दा घाटी में बादल हो गये होंगे। अगर हवा इसी तरह चलती रही तो बीच में ऊंचे पहाडों की वजह से हमारे यहां उन बादलों का आना लगभग नामुमकिन है। अगर पछुवा हवा चलती तो हवा भागीरथी घाटी से होकर यहां आती और इस समय तक सारा वातावरण बादलों से ढक जाता। शाम तक यहां पछुवा चलने लगी थी और मौसम खराब हो गया था।
मौसम की तरफ से हम निश्चिन्त थे। हमने कीर्ति ग्लेशियर देखने के लिये इस कच्चे पहाड के ऊपर चढने पर सहमति बनाई। यह पहाड कच्चा था लेकिन पत्थर निचले हिस्सों में ज्यादा गिरने की वजह से ऊपर अभी भू-स्खलन शुरू नहीं हुआ था। इसलिये यहां हल्की हल्की घास उगी हुई थी जिसकी वजह से अच्छा खासा ढलान होने के बावजूद भी हम इस पर चढ गये। हम समुद्र तल से 4550 मीटर की ऊंचाई तक पहुंच गये थे। आखिरकार हमें फिर से रास्ता बन्द मिला। इस बार कारण इसकी बीहडता थी।
वापस नीचे उतर आये। आगे जरूर जाना था, इसलिये अबकी बार कुछ नीचे उतरकर जाने का निश्चय किया। मैंने अभी बताया था कि हम ग्लेशियर से काफी ऊंचाई पर चल रहे थे। ढलान काफी था। किसी तरह नीचे उतरे और फिर आगे बढ चले। लगभग दो किलोमीटर चलने के बाद हम फिर से एक डैड एण्ड पर रुक गये। आगे लगातार पत्थर गिर रहे थे और धूल उड रही थी। इसे पार करना हमारे लिये नामुमकिन था। यहीं से फोटो खींचे और वापस चलने का फैसला किया। हां, हमें कीर्ति ग्लेशियर दिख गया।
अभी तक मैं सोच रहा था कि कीर्ति ग्लेशियर गौमुख ग्लेशियर के साथ संगम बनाता है, जोकि बिल्कुल सही था। लेकिन दो ग्लेशियर मिलते कैसे हैं, यह मुझे नहीं पता था। दो नदियां तो मिलती देखी हैं, बिल्कुल रेलवे लाइनों की तरह मिलती हैं। जैसे कि दो रेलवे लाइनों को मिलाना है तो पन्द्रह-बीस डिग्री के कोण से मिलाओ, नब्बे डिग्री के कोण पर कभी नहीं मिलतीं, ठीक उसी तरह नदियां भी मिलती हैं। लेकिन ग्लेशियर थोडा अक्खड स्वभाग का होता है, ठोस होता है। मैं सोच रहा था कि दोनों ग्लेशियर नब्बे डिग्री पर मिलेंगे। लेकिन यहां सब भ्रम दूर हो गया। ये भी नदियों की तरह ही मिल रहे थे। मैंने देवप्रयाग में अलकनन्दा और भागीरथी का संगम देखा है, वहां काफी दूर तक दोनों का पानी अलग-अलग पहचाना जा सकता है। ऐसा ही इलाहाबाद में भी है, जहां गंगा और यमुना का पानी काफी दूर तक अलग अलग रंगों में देखा जा सकता है। इसी तरह ये दोनों ग्लेशियर मिल रहे थे। गौमुख ग्लेशियर जहां सफेदी लिये था, वहीं कीर्ति कुछ कालापन लिये था। और दोनों काफी दूर तक अलग अलग चलते हैं, एकदम से नहीं मिल जाते। आगे जाकर धीरे धीरे गौमुख ग्लेशियर कीर्ति को अपने आगोश में ले लेता है। बडा अदभुत नजारा था दो ग्लेशियरों के मिलने का। हमें सामने केदारडोम चोटी भी दिखाई दे रही थी।
वापस चल पडे और डेढ दो घण्टे बाद तपोवन पहुंच गये।


तपोवन से कीर्ति ग्लेशियर की ओर

सामने नन्दनवन दिख रहा है। एक बडा सा समतल चबूतरा है, वही नन्दनवन है। अगर इसी दिशा में आगे चलते जायें तो कई दिन बाद कालिन्दीखाल दर्रे पर पहुंच जायेंगे। गंगोत्री से बद्रीनाथ जाने वाला एक रास्ता यह भी है लेकिन इस पर वे ही लोग जाते हैं, जो ट्रेकिंग के महारथी हो। या फिर कभी कभी सिद्ध साधु भी जाते देखे जा सकते हैं। हमारे और नन्दनवन के बीच में ग्लेशियर है।

यही नन्दनवन है।

ग्लेशियर पर एक छोटी सी झील

एक रास्ता दिख रहा है, इसी पर चलते हैं कीर्ति ग्लेशियर के लिये।

अच्छी धूप निकली हुई है, चलते चलते पसीना आ जाता है।

कीर्ति की तरफ जाता रास्ता

कैसा लग रहा हूं?

तपोवन का राजा शिवलिंग

यह है पहला डैड एण्ड। इससे आगे पत्थर गिर रहे थे, इसलिये हमें इसके ऊपर चढना पडा।

ऊपर से दिखता गौमुख ग्लेशियर


और यहां से आगे बढना हमारे लिये नामुमकिन हो गया- ऊंचाई 4550 मीटर।

थोडी देर आराम करके वापस चलो और नीचे उतरकर अपनी यात्रा जारी रखो।

इस पर्वत का नाम याद नहीं है।

यह है गंगोत्री- 1 शिखर

गंगोत्री- 2 शिखर

गंगोत्री- 3 शिखर

गंगोत्री- 1,2,3 तीनों सम्मिलित रूप से

अच्छा ढलान है।

कीर्ति ग्लेशियर हमारे नजदीक वाला है, कालापन लिये है। इसके परली तरफ सफेद रंग वाला गौमुख ग्लेशियर है।

यह है दूसरा डैड एण्ड जहां से लगातार पत्थर गिर रहे थे और धूल उड रही थी। इसे पार करना नामुमकिन था।

यहीं पर थोडी देर आराम करो और वापस चलो।

गौमुख ग्लेशियर- दुनिया के सबसे बडे ग्लेशियरों में से एक।

वापस अपने टैंट में
अगला भाग: तपोवन से गौमुख और वापसी

गौमुख तपोवन यात्रा
1. गंगोत्री यात्रा- दिल्ली से उत्तरकाशी
2. उत्तरकाशी और नेहरू पर्वतारोहण संस्थान
3. उत्तरकाशी से गंगोत्री
4. गौमुख यात्रा- गंगोत्री से भोजबासा
5. भोजबासा से तपोवन की ओर
6. गौमुख से तपोवन- एक खतरनाक सफर
7. तपोवन, शिवलिंग पर्वत और बाबाजी
8. कीर्ति ग्लेशियर
9. तपोवन से गौमुख और वापसी
10. गौमुख तपोवन का नक्शा और जानकारी

Comments

  1. नीरज जी कीर्ति ग्लेशियर के बारे में पहली बार सुना हैं. आपका ध्यान मुद्रा में फोटो अच्छा हैं. बर्फ में भी पसीने छूटते हैं, ये पहली बार देखा हैं. गंगोत्री शिखर के फोटो शानदार है. धन्यवाद, वन्देमातरम.

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  2. neeraj bhai, kamal ki post. aapne is baar poori post me photos khoob sari lagai h, jo ki is post ki sabse acchchi baat rahi. itni saari khoobsurt photos dekh ke maza aaya. lage raho bhaiya. DHANYAWAAD

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  3. नीरज भाई बहुत अच्छा लगता है आप की पोस्ट पढ़ कर
    बहुत अच्छी पोस्ट है ! और तस्वीरों का तो क्या कहना बहुत - बहुत अच्च्छी

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  4. bahut hi khatarnaak yatra rahi aapki...
    photo bahut hi sundar hain....

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  5. bhagwan,kahan kahan ghumate ho.photo jitni achchhi hai yatra vivran usse bhi achchhha hai.thanks.

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  6. NEERAJ BABU KABHI TO SOCH LIYA KARO KI MAIN AKELA ITNI DURR BARF MAIN HOON

    KUCH UUNCH NEECH HO GAYEE TO GHAR PAR JAWAAB KAUN DEGA.......

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  7. नीरज भाई अपनी ५००० - १०००० अच्छी यात्रा के फोटो एक अलग पोस्ट में डालो. देखेंगे की कोण सी अच्छी नहीं लगी.
    दिन में २ बार नीरज जाट जी ब्लॉग अच्छी फोटो तथा यात्रा के लिए खोलना पड़ता है

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  8. इतनी सुन्दर चित्रावली कहाँ मिलेगी भला..

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  9. बहुत ही रोमंचाकरी विवरण साथ में बहुत ही खूबसूरत फोटो भी....मजा आ गया...|
    क्या करते हो...जिस जगह का पता नहीं वहाँ भी जाने को तैयार....बहुत खूब | सच्चे घुमक्कड़ हो...

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  10. मजा तो पिछली पोस्ट में आ ही गया...पूरी श्रंखला ही बहुत अच्छी रही..

    अब इंतजार रहेगा रुप-कुण्ड व होम-कुण्ड यात्रा का

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    1. घुम्मक्कड़ के पाठक भाग्यहीन है जो इस तरह के लेखो से वंचित है.. गुस्सा छोड़ो और वहां लिख डालो ये यात्रा

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    2. कहाँ S.S. ji..... हम हैं न यहाँ, नीरज का लेख पढ़ने के लिए... |

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  11. bahut badhiya neeraj ....chalte raho ...wapsi ka intjar ....

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  12. neeraj jaat sahab tussi great ho

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  13. Neeraj bhai kya aap bataa sakte hai ki kon se time me tapovan janaa sahi rahega

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    1. सर, तपोवन जाने का सर्वोत्तम समय मानसून के जस्ट बाद है... वैसे जून में भी जाना सही रहता है... सर्दियों में रास्ता बंद रहता है और मानसून में भारी बारिश का खतरा रहता है...

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