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आज गौमुख तपोवन यात्रा की आखिरी किश्त है। इसकी शुरूआत एक मजेदार वाकये से करते हैं।
आज गौमुख तपोवन यात्रा की आखिरी किश्त है। इसकी शुरूआत एक मजेदार वाकये से करते हैं।
पिछले दिनों मेरे पास एक फोन आया। किसी महिला की आवाज थी। उन्होंने इतनी आत्मीयता से बात की कि मैं सोच में पड गया कि ये कौन हो सकती हैं। अगर अनजान होतीं तो पहले अपना परिचय देती, फिर बात शुरू करतीं। आखिरकार मैंने झिझकते हुए पूछ ही लिया कि आप कौन हो। उन्होंने बताया कि तुम गंगोत्री गये थे। तो उत्तरकाशी में गौमुख का परमिट बनवाते समय तुम्हें एक मोटी मिली थी, मैं वही मोटी हूं।
मैं हैरान रह गया। आपको भी याद होगा कि उत्तरकाशी से गंगोत्री वाली पोस्ट को मैंने इसी किस्से से शुरू किया था कि शामली की दो मोटी-मोटी महिलाएं भी गौमुख का परमिट बनवाने के लिये वहीं थीं। वे अकेले जाना चाह रही थी जबकि मुझ समेत सभी उन्हें एक पॉर्टर ले जाने की सलाह दे रहे थे। पता नहीं उन्होंने पॉर्टर का परमिट बनवाया या नहीं लेकिन मैं उन्हें अगले दिन भोजबासा तक ढूंढता हुआ गया था। लेकिन वे नहीं मिली। उस दिन बात आई-गई हो गई। ना उन्हें मेरे बारे में मालूम था, ना कोई फोन नम्बर, ना कोई पता। और उस दिन अचानक उनका फोन आया तो हैरानी की बात ही थी।
असल में वे उस दिन गंगोत्री तो चली गईं लेकिन हर किसी ने उन्हें इतना हतोत्साहित किया कि वे गौमुख नहीं गईं। अगर मुझे वे गंगोत्री में मिल जाती तो उनका यह निर्णय सुनकर मैं उन्हें गौमुख जाने को प्रेरित करता। ऊंचाई की वजह से दिक्कत आती जरूर है लेकिन रास्ता इतना मुश्किल नहीं है। यही इस रास्ते का प्लस पॉइण्ट है। खैर, बात यही है कि वे गंगोत्री से आगे नहीं गईं।
वापस शामली लौटकर उनकी किसी सहेली ने उन्हें नेट पर मेरा गौमुख वाला लेख देखकर बताया कि तुम गौमुख नहीं जा पाई। लो, यह रहा नेट पर गौमुख का ‘लाइव’ प्रसारण। फोटो भी हैं, इसे देख लो। और जब उन्होंने मेरी वो लेखमाला पढनी शुरू की तो उत्तरकाशी वाला किस्सा उन्हें जाना-पहचाना लगा।... और उन्हें मुझसे शिकायत है कि मैंने उनके बारे में मोटी शब्द का इस्तेमाल किया। वैसे उनका नाम प्रतिमा शरण है। वे शामली में ही एक स्कूल में मास्टरनी हैं।
अब चलते हैं आज के मुद्दे पर। गंगोत्री समुद्र तल से 3000 मीटर की ऊंचाई पर है। शिमला और मसूरी 2000 मीटर पर हैं, यानी गंगोत्री इनसे भी 1000 मीटर ज्यादा ऊपर है। गौमुख इससे 18 किलोमीटर आगे 3900 मीटर की ऊंचाई पर है। इतनी ऊंचाई पर ऑक्सीजन का घनत्व कम होता है, इसलिये सांस लेने में दिक्कत महसूस होती है। थकान जल्दी हो जाती है, चक्कर आते हैं, खाने पीने को मन नहीं करता- यही इसके लक्षण हैं। ऐसे माहौल में अगर कम से कम एक दिन रुक लिया जाये तो शरीर ऊंचाई के अनुकूल ढल जाता है। फिर सांस की उतनी दिक्कत नहीं आती। आपको पता होगा कि अमरनाथ यात्रा शुरू हुए अभी एक महीना भी नहीं हुआ है, और वहां 100 के करीब मौतें हो चुकी हैं। इनमें से ज्यादातर ऊंचाई की वजह से हुईं। अचानक ऊंचाई पर पहुंच जायेंगे तो शरीर पर बुरा असर पडता ही है।
तो अगर आप गौमुख जाने का मन बना रहे हैं तो गंगोत्री में कम से कम एक पूरा दिन रुकें, इधर उधर पैदल घूमते रहें। अगले दिन गौमुख की यात्रा शुरू कर दें। अगर ऊंचाई के तथ्य को छोड दें तो रास्ता बिल्कुल भी मुश्किल नहीं है। हां, चीडबासा के बाद करीब एक किलोमीटर में मिट्टी बजरी के पहाड हैं जिनसे लगातार मिट्टी और पत्थर नीचे गिरते रहते हैं, वे डरा देते हैं। बरसात में तो वे और भी खतरनाक बन जाते हैं। नहीं तो गंगोत्री से गौमुख तक रास्ता आसान ही है, अच्छा बना हुआ है, भोजबासा तक खच्चर भी मिल जाते हैं। रास्ते में एकमात्र रुकने और खाने का स्थान भोजबासा ही है। भोजबासा गंगोत्री से 14 किलोमीटर आगे है।
चलिये, गौमुख तो हो गया। अगर आप गौमुख से भी आगे तपोवन तक जाना चाहते हैं तो सबसे पहले किसी लोकल आदमी को पकडिये। नहीं तो गौमुख में कुछ देर रुककर किसी तपोवन जाने वाले ग्रुप की प्रतीक्षा भी कर सकते हैं। उस ग्रुप के साथ निकल सकते हैं। आगे कोई रास्ता नहीं बना है, ज्यादातर रास्ता गौमुख ग्लेशियर के ऊपर से होकर जाता है, इसलिये चलने में दिक्कत आ सकती है।
तपोवन में एक बाबाजी रहते हैं, वे खाना पीना मुहैया कर देते हैं। लेकिन फिर भी अगर अपने भरोसे से जायें तो ज्यादा अच्छा रहेगा। चूंकि यह इलाका बेहद दुर्गम है, बाबाजी खाना फ्री में खिलाते हैं, इसलिये वहां जाने वालों को मेरी सलाह है कि कुछ ना कुछ ले जायें। जैसे कि आधा एक किलो चावल, दाल, आलू, चायपत्ती आदि। हमें पहले से मालूम नहीं था, नहीं तो हम भी कुछ ना कुछ जरूर ले जाते।
और तपोवन जाने के लिये आपकी सेहत सामान्य से ऊपर ही होनी चाहिये। कुछ ना कुछ अध्यात्म की समझ भी होनी चाहिये। वहां किसी सिद्ध बाबा से मिलने की उम्मीद ना करें। किसी चमत्कार की उम्मीद ना करें। तभी आप तपोवन का असली आनन्द ले पायेंगे।
इसमें गौमुख से तपोवन और उससे आगे कीर्ति ग्लेशियर तक का हमारा ट्रेकिंग मार्ग दिखाया गया है।
गौमुख से चलकर ग्लेशियर पार करना इस रास्ते का सबसे खतरनाक हिस्सा है।
यह है तपोवन से कीर्ति ग्लेशियर तक का रास्ता। यह रास्ता ज्यादा मुश्किल नहीं है। हल्की सी पगडण्डी दिखाई भी पडती है।
यह है गौमुख और कीर्ति ग्लेशियर का मिलन स्थल।
और यह है पूरे गौमुख क्षेत्र का नक्शा।
आखिर में ऊंचाई दिखाता हुआ चार्ट। अपने साथ एक जीपीएस यन्त्र था, जिससे समय समय पर अपनी स्थिति और ऊंचाई नोट कर लेता था। बाद में घर आकर कम्प्यूटर और उस डाटा से प्राप्त आंकडों से यह ग्राफ बनाया गया। इसमें एक जगह ऊंचाई 4547 मीटर लिखी हुई है। आपको याद होगा कि हम तपोवन से कीर्ति ग्लेशियर जाते समय गलत रास्ते पर चल पडे थे। हम उस गलत रास्ते पर चलते चलते इस 4547 मीटर की ऊंचाई तक पहुंच गये थे। इससे आगे हम चाहकर भी नहीं बढ सके। फिर कुछ दूर इसी रास्ते से वापस आकर दूसरा रास्ता पकडा और आखिरकार कीर्ति ग्लेशियर के पास तक पहुंच गये।
गौमुख तपोवन यात्रा
1. गंगोत्री यात्रा- दिल्ली से उत्तरकाशी
2. उत्तरकाशी और नेहरू पर्वतारोहण संस्थान
3. उत्तरकाशी से गंगोत्री
4. गौमुख यात्रा- गंगोत्री से भोजबासा
5. भोजबासा से तपोवन की ओर
6. गौमुख से तपोवन- एक खतरनाक सफर
7. तपोवन, शिवलिंग पर्वत और बाबाजी
8. कीर्ति ग्लेशियर
9. तपोवन से गौमुख और वापसी
10. गौमुख तपोवन का नक्शा और जानकारी
आप जीवट घुमक्कड़ से तकनीकी सक्षम भी हो गये..अब घूमने का आनन्द दुगना हो जायेगा।
ReplyDeleteVery good description thanks
ReplyDeleteSurinder
nice post .
ReplyDeleteजीते रहो...
ReplyDeleteऔर हां मोटी शब्द हटा कर उनका नाम लिख दो और हो सके तो फोटू भी लगा दो
नीरज के ज्ञान के कारन (एस एस ने कहा ) सारे पोस्ट कई बार पड़ता हूँ
ReplyDeleteमोटी वाला किस्सा झूठा लगा
सर्वेश जी, एस एस ने ज्ञानी कहा, इसलिये पढते हो, नहीं तो जरुरत ही नहीं थी पढने की।
Deleteऔर मोटी वाला किस्सा सच्चा है। मुझे इसे प्रमाणिक करने की कोई जरुरत नहीं है। अगर प्रमाणिक कर भी दूंगा, तब भी आप झूठा ही मानेंगे।
. मैने ऐसे ही नीरज की जनरल नालेज की तारीफ नही की है बल्कि तथ्यों के आधार पर उसे ज्ञानी कहा... सड़को और रेल की जानकारी उसकी हमेशा लेटेस्ट होती है.. वो जो भी लिखता है पूरी तरह खोजबीन करके न कि सुनी सुनाई बातों पर.
ReplyDeleteएक जगह उसने हिमालय में आने वाले बादलों के बारे में लिखा था कि वहां बादल नीचे जंगलो से बनते है न कि बंगाल की खाड़ी से.... किसी हिमालयो बाशिंदे को भी ये बात पता नही होगी.
नीरज मुझसे बहुत छोटा है...मेरे अपने लड़के से भी छोटा .. मैने उसकी तारीफ खाली खुश करने के लिये नही बल्कि तथ्यो पर की है...
mastarni ka nam kyon likh diya :-)
ReplyDeleteनीरज जी आपके ज्ञान के बारे में तो सीलेंट साब ने पिछले महीने लिखा था . मैंने तो आपकी यात्रा के लेख जुलाई २०१० में मणिकरण से शुरू किये थे
ReplyDeleteमुझे तो आपकी यात्रां में बहादुरी ज्ञान फोटोस तथा अपुन का मु का फोटो बहुत अच्छा लगता है इसीलिए दिन में प्रातः तथा सायं दो समय सर्च करतें हैं
चौधरी साब का फोटो दिखाएँ या नहीं
वाह नीरज जाट जी आपकी यात्रा पीडीऍफ़ में डाउनलोड की और घर पर जाकर आराम से पड़ता हो आपकी गोमुख और तपोवन की यात्रा ने तो एक असीम आनंद की अनुभूति करा दे कुछ समय की लिए तो इस प्रकार प्रतीक हुआ की शायद मैं भी तपोवन जा पुह्चा और बाबा जी मुलाकात से भी एक एलग प्रकार का आनंद आया आप का ब्लॉग से हमे भी कुछ लाभ हुआ है घर पर ही यात्रा कर लेते है -------------थैंक्स एंड रेगार्ड्स
ReplyDeleteयोगेन्द्र राणा मेरठ से
नीरज जी, मैं वृद्धावस्था और कुछ निजी मजबूरियों के चलते तीर्थाटन की इच्छा होते
ReplyDeleteहुए भी कहीं जा नहीं पा रहा हूं। एक दिन गूगल पर यमुनोत्री के फोटो ढूंढते समय अनायास ही आपका ब्लोग पोस्ट मिल गया। मैंने तो घर बैठे ही तीर्थ लाभ कर लिया और आगे भी ईश्वरेच्छा रही तो लाभ मिलता रहेगा। शेष हरि इच्छा। आपका शुक्रिया अदा करने के लिये मेरे पास शब्द नहीं है।
thanks unlimited
ReplyDeleteईश्वर की कृपा आपके साथ सब पर बनी रहे, कार्य तो कठिन है, साहस और कर्म से सरल है, धन्यवाद |
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