इस यात्रा वृत्तान्त को शुरू से पढने के लिये यहां क्लिक करें।
11 जून 2012 की सुबह पांच बजे अचानक मेरी आंख खुली। यह कुछ चमत्कार ही था कि इतनी ठण्ड में इतनी सुबह मेरी आंख खुली हो और मैं उठ भी गया। टैण्ट से बाहर निकला, धूप नहीं निकली थी। ज्यों ही धीरे धीरे धूप निकलनी शुरू हुई तो सबसे पहले दूर पूर्व में गंगोत्री शिखरों पर दिखाई पडी। उसके बाद हमारे सामने शिवलिंग चोटी पर सूर्य किरणें पडनी शुरू हुईं। नजारा वाकई चमत्कृत कर देने वाला था। उस नजारे के सभी फोटो आप पिछली पोस्टों में देख चुके हैं।
मौनी बाबा भी जग चुके थे। कल यहां कुछ विदेशी भी रुके थे। मुझे पक्का याद नहीं कि ये कल वाले विदेशी ही थे या आज नये आ गये थे। यह आठ बजे की बात है। हमने बाबा के यहां चाय पी, नाश्ते में उबले चने फ्राई हुए बने थे। खाये नहीं, बल्कि पैक करवा लिये।
अच्छा, अब यह बताता हूं कि यहां हमारी क्या हैसियत थी। चौधरी साहब की वजह से यहां हमारी काफी इज्जत हो गई थी। कल मैं नन्दू को लेकर सुबह ही कीर्ति ग्लेशियर की तरफ निकल गया था, शाम तक वापस लौटा। तब तक चौधरी साहब यहीं रुके रहे। वे ध्यान वगैरह खूब करते हैं और अध्यात्म में काफी डूबे हुए हैं। उन्होंने बताया कि वे टैण्ट में रुके ही नहीं। टैण्ट खुला पडा रहा, विदेशियों की भी काफी आवाजाही रही। वे कभी तो मौनी बाबा के यहां बैठते, कभी फेसबुक वाले फकीरा बाबा के यहां जा पहुंचते। असल मे फकीरा बाबा यानी प्रेम पुजारी रहते तो गुजरात में हैं, लेकिन आजकल कुछ दिनों से यहीं तपोवन में एक दूसरे बाबा की कुटिया में रहते हैं। दूसरे बाबा तीन चार दिनों से नीचे गंगोत्री गये हुए थे, तो अपनी कुटिया का इंचार्ज प्रेम पुजारी को बना गये। एक दो दिन में लौट आयेंगे तो कुटिया दोबारा उन्हें हस्तान्तरित कर दी जायेगी। वो कुटिया अमरगंगा के दूसरी तरफ कुछ ऊंचाई पर है। मैं वहां तक नहीं गया।
कुल मिलाकर मौनी बाबा के मन में चौधरी साहब के प्रति काफी सम्मान हो गया। चौधरी साहब बिना रोक-टोक के उनकी कुटिया में बैठे रहते। ऐसा सौभाग्य हर कोई नहीं पा सकता था।
तो जब हम चलने लगे तो चौधरी साहब ने आखिरी बार बाबा से फोटो खिंचवाने की अपील की। परसों से ही हम बाबा से प्रार्थना कर रहे थे लेकिन उन्होंने फोटो नहीं खिंचवाया। जबरदस्ती और धोखे से हमने खींचे नहीं। आज चूंकि बाबा भी काफी भावुक हो गये थे तो उन्होंने इस शर्त पर फोटो खिंचवाने की स्वीकृति दी कि फोटो को कहीं भी प्रकाशित नहीं करना है। उनकी स्वीकृति मिलना हमारे लिये बडी खुशी की बात थी।
दूसरी बात कि नाश्ते को पैक कराना भी बडे सम्मान की बात थी। हमारे पास प्लास्टिक की कुछ प्लेटें थी, हमने छुंके उबले चने पैक किये। आखिर में चलते समय बाबा और चौधरी साहब गले मिले और दोनों रोने लगे। उन्हें देखकर मेरी भी आंखों में आंसू आ गये। अब उस क्षण को याद करके लिख रहा हूं तो भी आंसू आ रहे हैं। अध्यात्म है ही ऐसी चीज। कभी आजमा कर देखो, तब पता चलेगा इन आंसुओं के बारे में। वापस दिल्ली आकर मैंने इस घटना के बारे में अपने एक मित्र को बताया कि वे दोनों गले मिलते समय रोने लगे, तो हमारे मित्र साहब की टिप्पणी थी कि अच्छा, तो बाबा में अभी भी मोह बचा हुआ है, बिछुडने पर रो रहे थे।
खैर, कुछ भी हो, आठ सवा आठ बजे हम तपोवन से चल पडे। पहला सामना उसी सीधी मिट्टी और बजरी की दीवार से हुआ जिससे हमें अब नीचे उतरना था। ...
... और आखिरकार 11 बजे तक हम तीनों गौमुख पहुंच गये। तपोवन जाते समय हम गौमुख नहीं जा पाये थे, दूर से ही देखा था। इस बार बिल्कुल उस मुहाने पर पहुंच गये जहां से भागीरथी निकलती है। अजीब नजारा था। मैंने इस तरह के गौमुख की कल्पना नहीं की थी। मैं सोच रहा था कि गौमुख कोई गुफा जैसी जगह होगी, जहां ग्लेशियर के नीचे बडी सी गुफा होगी, गाय के मुंह जैसा कुछ होगा और उस गुफा में से भागीरथी निकल रही होगी। लेकिन ऐसा कुछ नहीं था, सीधे बरफ के नीचे से पूरे वेग से भागीरथी बाहर निकल रही थी।
बडा शान्त आध्यात्मिक माहौल था। कुछ विदेशी भी थे, बल्कि कहना चाहिये कि हम तीनों के अलावा सभी विदेशी ही थे, रूसी थे। वहां पिकनिक नहीं मना रहे थे, बल्कि शान्त बैठे थे। भजन कीर्तन कर रहे थे। ये लोग रूस में किसी संस्था से जुडे थे और उसके द्वारा ही यहां आये थे।
हम तपोवन से आ रहे थे, काफी थक भी गये थे। कम से कम मैं इस लायक नहीं बचा था कि नहा सकूं। अगर इस लायक होता तब भी नहीं नहाता। बर्फीले ठण्डे पानी से हाथ गीले करके मुंह पोंछ लिया, बस हो गया गौमुख में गंगा स्नान। घर के लिये गौमुख का ताजा जल भरा और वापस चल पडे। अब हमारा लक्ष्य गंगोत्री था। जल्दी से जल्दी गंगोत्री पहुंचना था, ताकि आज ही बाइक उठाकर उत्तरकाशी पहुंचा जा सके।
हम तपोवन में पर्याप्त समय तक रुके थे, इसलिये मैं पूरी तरह उसके अनुकूल हो गया जबकि चौधरी साहब के साथ ऐसा नहीं हो सका। उन्हें अब भी नीचे उतरते समय काफी दिक्कत हो रही थी। भोजबासा के पास हमने तपोवन से लाये हुए उबले चने खाये लेकिन चौधरी साहब ने मना कर दिया। बोले कि मन नहीं है। हम नीचे गंगोत्री से ही केक के दो छोटे छोटे पैकेट साथ लेकर चले थे। चौधरी साहब ने बडी जबरदस्ती करके एक पैकेट खाया।
नन्दू चौधरी साहब के साथ साथ था, धीरे धीरे चल रहा था इसलिये मैं उनकी तरफ से बेफिक्र था। मैंने तेज चलना शुरू किया और दो घण्टे में बारह किलोमीटर आगे कनखू तक पहुंच गया। कनखू में परमिट चेक किये जाते हैं, प्लास्टिक के सामान चेक किये जाते है। हमारा परमिट दो दिन पहले ही ड्यू हो चुका था, इसलिये पचास रुपये प्रति व्यक्ति प्रतिदिन के हिसाब से तीन सौ रुपये पेनल्टी देनी पडी। हमें मात्र गौमुख तक का ही परमिट मिला था, और हम चले गये तपोवन। तपोवन की यात्रा के आगे ये तीन सौ रुपये कुछ भी नहीं थी। चार दिन पहले यहां से जाते समय मैंने लिखवाया था कि हमारे पास प्लास्टिक की बीस पन्नियां हैं, उन्हें बीस से ज्यादा पन्नियां निकालकर दे दीं और अपने सौ रुपये वापस ले लिये।
करीब आधे घण्टे बाद नन्दू आता दिखाई दिया। मैंने पूछा कि चौधरी साहब कहां हैं। तो उसने बताया कि वे प्यासे हैं। मैं जल्दी जल्दी आया हूं, थक भी गया हूं। मैंने पूछा कि जब वे प्यासे हैं तो उन्हें छोडकर क्यों चले आये? बोला कि कप लेने आया हूं, कप में पानी ले जाऊंगा। असल में हम उत्तरकाशी से ही प्लास्टिक के छोटे छोटे कप भी साथ लेकर चले थे चाय पीने के लिये। मैंने नन्दू को एक बडी पन्नी निकालकर दी कि इसमें पानी ले जाओ। बोला कि नहीं, कप ले जाऊंगा। मैं खदक पडा। अरे यार, वे प्यासे मर रहे हैं, तू जल्दी जल्दी मेरे पीछे इसलिये आया है ताकि उन्हें पानी पिलाने के लिये कप ले जा सके। तो पन्नी क्यों नहीं ले जा सकता। पचास ग्राम पानी के मुकाबले पन्नी में कम से कम आधा लीटर पानी तो आ ही जायेगा। उसे पन्नी लेकर ही जाना पडा।
कुछ देर बाद चौधरी साहब भी आ गये। बिल्कुल पस्त। उनकी हालत देखकर अन्दाजा लग गया कि अब बाइक नहीं चलेगी और हमें गंगोत्री में ही रुकना होगा। मैं भी आज बाइक पर नहीं बैठना चाहता था।
गंगोत्री पहुंचे। कमरा लिया, खाया पीया, सोये, सुबह उठे, नन्दू को बस से भेज दिया और हम पीछे पीछे बाइक से आने लगे। गंगोत्री से पांच किलोमीटर निकलते ही पता चला कि बाइक में पंक्चर हो गया है। इसलिये करीब तीन किलोमीटर आगे भैरोंघाटी तक पैदल गये और पंक्चर लगवाया।
भटवाडी तक पहुंचते पहुंचते मेरी हालत खराब होने लगी बाइक पर बैठे रहने की वजह से। घोषणा कर दी कि उत्तरकाशी के बाद बस से जाऊंगा। जबकि चौधरी साहब मेरे इस फैसले के खिलाफ थे। और आखिरकार निम में सामान जमा करवाकर हम किस तरह वापस आये, इसे केवल हम ही जानते हैं। रात चम्बा में बिताई। अगले दिन दोपहर तक दिल्ली पहुंच चुके थे।
तपोवन से वापसी |
गौमुख ग्लेशियर |
गौमुख ग्लेशियर |
गौमुख से लौटते कुछ साधु |
गौमुख और उसमें से निकलती भागीरथी |
यह है गौमुख। यहां पहली बार भागीरथी के जल को पता चलता है कि खुली हवा कैसी होती है। |
गौमुख के बाद भागीरथी निकल जाती है मानव कल्याण करने |
यहां से पूरे वेग से बाहर निकलती है भागीरथी |
जाटराम |
रूसी लोग कीर्तन करते हुए |
गौमुख के सामने जाटराम |
जय हो |
बडा अजीब महसूस होता है यहां |
और अब घर वापसी |
भरल |
भोजबासा |
भोजबासा से आगे चना भक्षण |
गौमुख जाने वाला एक नन्हा यात्री |
गंगोत्री |
यह है हरसिल यानी हरिशिला। करीब आधा घण्टा हम यहां भी रुके थे। हरसिल को विस्तार से देखने के लिये दोबारा जाना पडेगा। |
और आखिर में चौधरी साहब का फोटो |
गौमुख तपोवन यात्रा
1. गंगोत्री यात्रा- दिल्ली से उत्तरकाशी
2. उत्तरकाशी और नेहरू पर्वतारोहण संस्थान
3. उत्तरकाशी से गंगोत्री
4. गौमुख यात्रा- गंगोत्री से भोजबासा
5. भोजबासा से तपोवन की ओर
6. गौमुख से तपोवन- एक खतरनाक सफर
7. तपोवन, शिवलिंग पर्वत और बाबाजी
8. कीर्ति ग्लेशियर
9. तपोवन से गौमुख और वापसी
10. गौमुख तपोवन का नक्शा और जानकारी
एक बेहतरीन यात्रा का समापन हुआ. और नयी यात्रा के लिए ढेर साडी उर्जा भी मिली. फोटो तो सभी बहुत ही अच्छे है. खासकर गोमुख और हरसिल वाला इस यात्रा में आपने घुमक्कडी के नए आयाम को छुवा है और घुमक्कड़ी के एक नए मापदंड कि स्थापना कि है बेहतरीन यात्रा वृतांत के लिए धन्यवाद........... ऐसे ही घूमते रहिये और हमें भी घुमाते रहिये.....
ReplyDeletegajab ki yatra karai aapne, neeraj bhai. ab dekhte h ki agla number kahan ka lagta h. kyonki ghumkkadi ka keeda 1 ghumakkar ko kab kaat le kya pata. GHUMKKADI JINDABAAD
ReplyDeleteबहुत सुन्दर यात्रा वर्णन - कम्पूटर पर ही गोमुख दर्शन करा दिए
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद जी !
करोड़ों लोगो के लिए जीवनदायिनी गंगा पर एक नया कुदरती संकट खड़ा हो गया है. गंगा की धारा जिस गंगोत्री के गोमुख से निकलती है, वो बंद हो गया है. हालांकि पानी की धारा अविरल गंगा में आ रही है लेकिन इस घटना ने जानकारों को भी हैरत में डाल दिया है.
ReplyDeleteगोमुख ही वह जगह है जहां से गंगा निकलती है और हजारों किलोमीटर में फैली धरती की प्यास बुझाती है. गोमुख के आसपास पत्थरों के बीच गुजरती छोटी-छोटी धाराएं बन जाती है चौड़े पाट वाली ऐसी गंगा, जिसकी लहरों से लिखी गई है हमारी सभ्यता और संस्कृति की कहानी.
दरअसल गंगोत्री एक ग्लेशियर है और गोमुख इसी का एक हिस्सा है. जहां से बर्फ पिघलकर गंगा बनने के लिए आगे बढ़ती है. गोमुख पर लगातार रिसर्च करने वालों के मुताबिक इस बार ग्लेशियर का एक टुकड़ा टूटने की वजह से गोमुख बंद हो गया है. गंगोत्री नेशनल पार्क के डीएफओ ने भी इसकी पुष्टि की है.
ऐसा भी नहीं है कि गोमुख के बंद हो जाने से गंगा में पानी का आना बंद हो गया हो. दरअसल गोमुख का क्षेत्रफल 28 किलोमीटर में फैला हुआ है. ये समुद्रतल से 4000 किलोमीटर की ऊंचाई पर स्थित है. इसमें गंगोत्री के अलावा नन्दनवन, सतरंगी और बामक जैसे कई छोटे-छोटे ग्लेशियर मौजूद हैं.
फर्क बस ये है कि इस बार गंगा की मुख्य धारा नन्दन वन वाले ग्लेशियर से निकल रही है. जानकारों के मुताबिक इस बार गोमुख में काफी बर्फबारी हुई है. सावन के महीने में कांवड़ लेकर गंगा जल लेने वाले भी बड़ी तादाद में यहां आ रहे हैं. गोमुख का बंद होना सबको हैरान कर रहा है और गंगोत्री पर शोध करने वाले वैज्ञानिक इसकी पड़ताल करने में जुटे हैं.
रेल/बस का सोतडू शेर, बाइक यात्रा पर जाएगा तों उसका हाल ऐसा ही गीदड जैसा होगा, हा हा हा हा हा
ReplyDeleteमुझे अच्छी तरह याद है श्रीखंड महादेव यात्रा जाट देवता के ब्लॉग पर देखी व् पढ़ी थी, जहाँ नीरज जाट पस्त हो गया था बिलकुल इस यात्रा के चौधरी साहब के जैसे, हां हा हा हा हा हा हा
मेरा अगले साल मार्च में लुकला, नामचा बाजार और दूध कोसी और अंत में एवरेस्ट बेस कैंप जाने का कार्यक्रम है, क्या तुम साथ चलोगे...136 किमी की ट्रेकिंग है...5565 मीटर की हाइट पर पस्त होना क्या होता है तुम्हें इस ट्रेकिंग में पता चल जाएगा...लिखना बेहद आसान होता है...
Deleteबहुत ही मनोरंजक और रोमांचकारी विवरण....शानदार और बेहतरीन फोटो...|
ReplyDeleteबहुत बढ़िया रही आपकी यात्रा, आपके लेख के साथ हमने भी खूब लुफ्त उठाया इस यात्रा का..|
सफ़र हैं सुहाना ....
http://safarhainsuhana.blogspot.in/2012/07/6.html
जितना सोचा था, उससे ज्यादा आप ने प्रकृति की यात्रा करायी।
ReplyDeleteआलसी सोतडू और बाइक पर यात्रा करेगा तों रोयेगा ही हा हा हा हा हा
ReplyDeleteयह तों बिलकुल
ReplyDeleteश्रीखंड महादेव यात्रा(जाट देवता के ब्लॉग अनुसार) वाली बात हो गयी
जहाँ नीरज जाट पस्त हुआ था यहाँ चौधरी साहब हो गए,
तालिया बढ़िया जोड़ी है हा हा हा हा हा हा
इंसान तो पस्त हो जाते है सिर्फ खच्चर नही होते जो आप हो जो इतनी जबरदस्त पोस्ट पर भी राजनीति कर रहे हो
Deleteमेरा अगले साल मार्च में लुकला, नामचा बाजार और दूध कोसी और अंत में एवरेस्ट बेस कैंप जाने का कार्यक्रम है, क्या तुम साथ चलोगे...136 किमी की ट्रेकिंग है...5565 मीटर की हाइट पर पस्त होना क्या होता है तुम्हें इस ट्रेकिंग में पता चल जाएगा...लिखना बेहद आसान होता है...
Deleteबहुत सुन्दर यात्रा वर्णन, चित्र के साथ बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteये क्या हुआ... गौमुख को .. जब हमने देखा था तो एक बड़ी व गहरी-लम्बी गुफा थी गौमुख जिसमें से भागीरथी निकलती थी..और अब ये एक दरार बन गया... लगता है घोर कलयुग आ गया
ReplyDelete"""एक मित्र को बताया कि वे दोनों गले मिलते समय रोने लगे, तो हमारे मित्र साहब की टिप्पणी थी कि अच्छा, तो बाबा में अभी भी मोह बचा हुआ है, बिछुडने पर रो रहे थे।""" ये तो पक्का है कि आपके इस मित्र को अध्यात्म का ए बी सी भी नही पता.. केवल अपने अहंकार में दूसरों पर कमैट पास कर रहा है..
ऐसी परिस्थिती में रोना एक उच्च आध्यात्मिक स्थिती को दर्शाता है... ये रोना नही एक दिव्य प्रेम का प्रदर्शन था
केदारनाथ जी की यात्रा के बाद यह यात्रा गजब की है इस के फोटोस बहुत ही अच्छे लगे तथा नए रूप में हैं आपके परम मित्र जो की ANONYMOUS के रूप में आपसे शयद इतनी सुंदर यात्रा से जल रहें है लेकिन अच्छे कमेन्ट दे रहे हैं (ग्लासिएर्स के बारे में)
ReplyDeleteएक चौधरी ने दुसरे चौधरी की पूरा चेहरा नहीं दिखाया .. शायेद सभी चौधरी आपस में जलते हैं हा हा हा हा हा
नीरज जी बहुत बहुत धन्यवाद गौमुख के दर्शन करवाने के लिए, बहुत खूब, भाई वाह, गज़ब की यात्रा रही आपकी, बहुत रोमांचक. पहली बार इतने विस्तार में गौमुख, तपोवन के फोटो आपकी मेहरबानी से देखे, और वंहा के बारे में विस्तार से पढ़ा. बहुत बहुत धन्यवाद पुन:, वन्देमातरम
ReplyDeleteएक बढ़िया यात्रा रही अगर बाइक से ना की होती तों? बाइक के अलावा सब कुछ अच्छा था
ReplyDeleteअबकी बार बाइक सीख ही लो ताकि यह समस्या भी समाप्त हो, और किसी को मजाक करने का मौक़ा ना बने
bhagwan,pata hi nahi chalta ki aapki kaun si yatra sabse achchhi hai, mujhe to saari yatraon me ek nayapan lagta hai.aise hi ghumate rahiye prabhu.thanks.
ReplyDeleteneeraj bhai jab aap bhi baba se gle mile roye to mujhe bhi aasu aa gye
ReplyDeleteकल कल, झर झर, कहती, बहती, जय हो गंगोत्री धारा।
ReplyDeleteWaah !waah !! Waah!!! shabd nahi hai kahne ko ......kash mein bhi ja sakti ..:(
ReplyDeleteमौनी बाबा से विदाई का जो वृतांत आपने सुनाया पढ़ कर आँखे नम हो गयी ! बस एक कमी रह गयी मौनी बाबा के एक तस्वीर की किन्तु आपने उन्हें वादा किया था न नहीं प्रकाशित करने का | अच्छा किया नहीं प्रकाशित की ..............
ReplyDeletePuri yatra padhi, Neerajbhai bahut hi sundar prastuti evam photos
ReplyDelete