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उस दिन शाम को जब मैं मणिकर्ण में था, तो मेरे पास एक दिन और था। कोई लक्ष्य नहीं था कि कल जाना कहां है। अन्धेरा हो गया, एक धर्मशाला में कमरा ले लिया। तभी मुनीश जी का फोन आया। पूछने लगे कि कहां हो। अपन ने शान से बताया कि मणिकर्ण में हैं। बोले कि कल का क्या प्लान है? इधर कुछ हो तो बतायें भी। तब सुझाव मिला कि कल सोलांग घाटी चले जाओ। मनाली से दस-बारह किलोमीटर दूर है। मस्त जगह है। मुनीश जी ने तो फोन काट दिया लेकिन इधर दिमाग में हलचल होने लगी। प्लान बनने लगा कल सोलांग जाने का। अगर मुनीश जी दो घण्टे पहले बता देते तो मैं उसी समय कुल्लू चला आता। दो घण्टे लग जाते हैं मणिकर्ण से कुल्लू जाने में। यानी अब सुबह को जल्दी उठना पडेगा। इधर मेरी वो वाली बात है- “खा के सो जाओ, मार के भाग जाओ।” एक बार सो गया तो सुबह को जल्दी उठना भी महाभारत है। इसलिये सुबह पांच बजे का अलार्म भरा और दो रिमाइण्डर भरे।
तय समय पर अलार्म बजा, दो मिनट बाद पहला रिमाइण्डर बजा और फिर तीन मिनट बाद दूसरा रिमाइण्डर। मजाल कि बन्दे ने करवट भी बदली हो। मूंछें हों तो नत्थूलाल जैसी, नींद हो तो जाट जैसी। दिल्ली में भी ड्यूटी के अलावा दो ही काम होते हैं- एक तो खाना, और सो जाना। अपने तो रूम पार्टनर भी मेरा नाम गिनीज बुक में लिखवाने की सोच रहे हैं- सोने के मामले में। असल में मैं खासतौर से सुबह की ड्यूटी के लिये दस रिमाइण्डर भरता हूं- दो-दो मिनट बाद। यानी बीस मिनट तक मोबाइल पूरी ताकत से बजता रहता है, अगले की आंख नहीं खुलती। दोनों पार्टनर (अमित और रविन्दर) जग जाते हैं, अडोसी-पडोसी जग जाते हैं। अब तो उनकी भी आदत हो गयी है कि जब भी पहला रिमाइण्डर बजता है तो तुरन्त एक गिलास पानी मुंह पर डाल देते हैं। दोनों को सत्तर बार समझा चुका हूं कि भाई, सोते हुए पर पानी मत डाला करो। लात बजा लो, घूंसे बजा लो, लेकिन पानी मत डालो।
तो उस दिन भी ऐसा ही हुआ। आंख खुली नौ बजे। अभी निकलूंगा तो बारह बजे तक तो कुल्लू ही पहुंचूंगा, फिर कब मनाली, कब सोलांग। प्लान खत्म। कल बाजार से मणिकर्ण गाइड खरीदी थी। खोलकर पढने लगा। तय हुआ कि खीरगंगा सही रहेगा। मणिकर्ण से 25 किलोमीटर और ऊपर है खीरगंगा। 15 किलोमीटर पर है पुलगा। पुलगा से एक किलोमीटर पहले एक गांव पडता है, नाम है बरशैणी, वहां तक बसें जातीं हैं। आगे 10-11 किलोमीटर तक पैदल चलना पडता है।
मणिकर्ण से बस पकडी, बरशैणी पहुंचा। छोटा सा गांव। सामने पुलगा भी दिख रहा है। पुलगा में एक बडी पनबिजली परियोजना का काम चल रहा है। पार्वती नदी पर बांध बनाया जा रहा है। कंक्रीट ही कंक्रीट दिखाई देती है। मणिकर्ण से बिना कुछ खाये-पीये ही निकल पडा था। बरशैणी में तीन-चार परांठे खाये आलू के। बिस्कुट के दो पैकेट रखे, पानी की बोतल भरी। निकल पडे।
बांध स्थल से कुछ आगे एक संगम है। पार्वती में एक और नदी आकर मिलती है। उस नदी पर पुल है। पक्की सडक भी यहीं तक है, आगे कच्चा रास्ता है।
पुल पार करके एक नई दुनिया दिखाई देने लगती है। शुरू में तो बडी ही भयानक चढाई है। आधे घण्टे तक चढने के बाद चढाई की भयानकता कम हो जाती है। यहां से ढाई-तीन किलोमीटर आगे नकथान गांव है। यह गांव पार्वती घाटी का आखिरी गांव है। इसके बाद कोई मानव बस्ती नहीं है। नकथान में खाने-पीने की भी व्यवस्था है। नकथान पहुंच गये, असली रोमांच अब शुरू होता है।
अगला भाग: खीरगंगा - दुर्गम और रोमांचक
मणिकर्ण खीरगंगा यात्रा
1. मैं कुल्लू चला गया
2. कुल्लू से बिजली महादेव
3. बिजली महादेव
4. कुल्लू के चरवाहे और मलाना
5. मैं जंगल में भटक गया
6. कुल्लू से मणिकर्ण
7. मणिकर्ण के नजारे
8. मणिकर्ण में ठण्डी गुफा और गर्म गुफा
9. मणिकर्ण से नकथान
10. खीरगंगा- दुर्गम और रोमांचक
11. अनछुआ प्राकृतिक सौन्दर्य- खीरगंगा
12. खीरगंगा और मणिकर्ण से वापसी
तुम्हारी जय हो..
ReplyDeleteकैसे कैसे प्लान बना देतो है.. घूमने का असली मजा..
आनन्द आ गया!
ReplyDeleteनीरज,
ReplyDeleteयार, ग्रेट, ग्रेटर और ग्रेटैस्ट हो तुम, बस्स।
क्या तस्वीरें दिखा दी है, गजब।
lovely pics.
ReplyDeleteऐसी अनजान सुनसान जगह पर कोई असली घुमक्कड़ ही पहुँच सकता है...आपकी तारीफ़ के लिए शब्द कम पड़ने लगे हैं...अगली पोस्ट का इंतज़ार है...अभी तो आप बाबा अमरनाथ के दर्शन में व्यस्त होंगे...जय हो बाबा की...
ReplyDeleteनीरज
नीरज जी मैं हिमाचल में रह कर भी मणिकरण से आगे नहीं गया . आप ने तो कमाल कार दिया .चित्र भी बहुत अचछे हैं.बहुत मजा आया .धन्यवाद
ReplyDeleteनीरजजी , आप अंजन जगह की यात्रा का प्रोग्राम केशे बना लेते हो. आपकी की भी खूब हिम्मत हैं. इस यात्रा के फोटो एवम यात्रा का वर्रण बहुत ही शानदार है . नई जगह की यात्रा हमें करने के लिए धन्यवाद.....
ReplyDeleteखा के सो जाओ, मार के भाग जाओ, ले के नाट जाओ ;-)
ReplyDeleteघुमक्कडी जिन्दाबाद
प्रणाम
रोमांच बढ़ता जा रहा है।
ReplyDeleteवाह भाई वाह इसे कहते है मस्त मलंग, जब तक हाथ पीले नही होते मोज कर लो... फ़िर तो बनिये की दुकान को सब्जी मंडी तक ही घुमने जाना होगा कभी भी आटे की चक्की पर भी जा सकते हो,बहुत सुंदर चित्र मन को लुभावने वाले ओर आप की यात्रा तो मस्त है ही
ReplyDeletegreat
ReplyDeleteइतने सुंदर चित्र .. इतना बढिया विवरण .. बडा अच्छा शौक है !!
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ReplyDeleteजाट भाई अब तो तुम्हारी यात्राओं का वर्णन पढ़कर जलन होने लगी है, इतनी सुन्दर सुन्दर जगहों पर हम क्यों नहीं घूम पा रहे :(
ReplyDeleteतुम्हारी यात्राएं पढ़कर जी ललचा रहा है भाई !
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteचलते रहिये। आनन्द आ रहा है।
ReplyDeleteनकथान गांव भी बहुत बढ़िया लग रहा हैI
ReplyDeleteवाटर फॉल भी जबरदस्त है और हरियाली ही हरियाली गजब