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5 जून, 2010, शनिवार। सुबह लगभग दस-ग्यारह बजे कुल्लू पहुंच गया। बस अड्डे से ब्यास के उस तरफ वाला पहाड बहुत ही आकर्षित कर रहा था। उसी पर कहीं बिजली महादेव है। बस अड्डे पर घूम ही रहा था कि ढाबे वालों ने घेर लिया कि साहब, आ जाओ। परांठे खाओ, चाय पीयो। इधर अपनी भी कमजोरी है आलू के परांठे, समोसे, ब्रेड पकौडे; या तो चाय के साथ या फिर फैण्टा-मरिण्डा के साथ। पेल दिये दो परांठे चाय के साथ। खा-पीकर आगे के लिये तैयार हुए। बिजली महादेव का ही इरादा था।
हिमाचल में मुझे यही एक बात सबसे अच्छी लगती है कि जिन रास्तों पर बस जा सकती है, बस नियमित अन्तराल पर जाती है। यही मामला बिजली महादेव का भी है। सामने दो-तीन बस वाले मनाली-मनाली चिल्ला रहे थे। और सभी में सवारियां भी भरी पडी थीं। एक से पूछा कि भाई, बिजली महादेव के लिये कोई बस मिलेगी भी या नहीं। बोला कि अभी दस मिनट पहले पौने बारह बजे निकली है। अब तो तीन घण्टे बाद पौने तीन बजे ही आयेगी। उसने मुझे टैक्सी करने की सलाह दे डाली। अब इधर हम टैक्सी से दूर ही दूर रहते हैं। जिस काम को बस बीस रुपये में कर देती है, उसके ये हजार रुपये मांगते हैं। हां, एक काम कर सकते हैं। तीन घण्टे तक कुल्लू में घूम सकते हैं। शहर में काफी मन्दिर-वन्दिर हैं। निकल पडा। बस अड्डे से बाहर निकलते ही टैक्सियां खडी थीं। चलो, एक बार पूछ लेते हैं। पूछने में क्या जाता है? उसने किराया बताया चार सौ रुपये एक तरफ का। माफ कर, भाई। गलती हो गयी जो तेरी तरफ चला आया।
बस अड्डा और रेलवे स्टेशन; ये ऐसी जगहें हैं जहां खाने-पीने की चीजें काफी सस्ती मिलती हैं। भले ही गुणवत्ता कम हो। अभी तक तो ऊपर वाले की कृपा है कि सब हजम हो जाता है। टैक्सी से सुलटकर फिर बस अड्डे में जा घुसा कि देखते हैं खाने-पीने की और क्या-क्या चीजें हैं। शहर में जाऊंगा तो महंगी ही मिलेंगीं। तभी सामने एक बस खडी दिखी जिस पर लिखा था- कुल्लू से बिजली महादेव। अरे, बिजली की बस तो ये खडी। फिर भी पूछ लेता हूं कि कितने बजे चलेगी। बताया कि बैठ जाओ, चलने ही वाले हैं। सवा बारह-साढे बारह बजे के करीब चल पडे। बोल बिजली महादेव की जय।
कुल्लू के एकमात्र फ़्लाईओवर से गुजरकर फिर ब्यास को पार करके उसी पहाड की चढाई शुरू हो जाती है, जिसे मैं पहले काफी आकर्षक बता रहा था। धीरे धीरे सडक सिकुडती जाती है। हिमाचली गांवों से निकलती हुई, सेब के बागों से गुजरती हुई बस धीरे धीरे ऊपर जा रही थी। अब मैं सोच रहा था कि वापसी में थोडा बहुत पैदल आऊंगा, इन गांवों के फोटू खींचूंगा, सेब के बाग देखूंगा। तभी एक जगह कंडक्टर ने उतार दिया कि उतरो भई, बिजली महादेव का रास्ता आ गया।
यहां से मन्दिर दो-ढाई किलोमीटर है। पैदल का रास्ता है। औसत चढाई है। मस्त रास्ता है। नीचे चित्र देखिये और मजे लीजिये:
इस नजारे के साथ पैदल रास्ता शुरू होता है। |
नीचे दिखता कुल्लू शहर |
पहचानिये इसे ये क्या है? |
ऐसे घर होते हैं कुल्लू घाटी के गांवों में |
यह बहुत पुराना घर है। |
कैसा लग रहा है? |
यह है असली हिमाचल। पता नहीं लोग-बाग मनाली क्यों जाते हैं? |
अरे हां, अपना फोटू भी खींच लूं। पीछे वाली सीढियां ही रास्ता है। |
एक हिमाचली गांव। |
गेहूं के खेत। यहां अभी भी गेहूं खेतों में खडा है। पका नहीं है। भई पकने के लिये गर्मी चाहिये, गर्मी यहां है नहीं। |
यह मौसम कुल्लू घाटी में बहार का मौसम है। |
परम्परागत कुल्लू निवासिनी। |
यहां गुनगुनी धूप में अगर चाय मिले तो कैसा रहेगा। |
गलीच आज नहाया भी नहीं है। बस से उतरकर सीधा ऊपर आ गया। |
गांव-देहात पीछे रह गया। अब शुरू होता है करीब एक किलोमीटर का जंगल का रास्ता। |
कैसा लग रहा है? जलन हो रही है? |
हिमाचल वालों ने ना, रास्ता बढिया बना रखा है। तारीफ करने का मन कर रहा है। |
ओ हो हो हो हो, आखिरकार चढाई खत्म तो हुई। |
ऊपर का नजारा। इस पर तो जी सा आ गया था। अरे हां, गर्मी का मौसम है, कुल्लू घाटी के लिये यह पीक सीजन है, लेकिन भीड कहां है। मैं बताऊं? भीड मनाली में है। |
अगला भाग: बिजली महादेव
मणिकर्ण खीरगंगा यात्रा
1. मैं कुल्लू चला गया
2. कुल्लू से बिजली महादेव
3. बिजली महादेव
4. कुल्लू के चरवाहे और मलाना
5. मैं जंगल में भटक गया
6. कुल्लू से मणिकर्ण
7. मणिकर्ण के नजारे
8. मणिकर्ण में ठण्डी गुफा और गर्म गुफा
9. मणिकर्ण से नकथान
10. खीरगंगा- दुर्गम और रोमांचक
11. अनछुआ प्राकृतिक सौन्दर्य- खीरगंगा
12. खीरगंगा और मणिकर्ण से वापसी
मजा आ गया साथ घूम कर...तस्वीरें भी बहुत बढ़िया हैं..आगे इन्तजार है.
ReplyDeleteमस्त मजे लिए नीरज भाई.. सही में जलन हो रही है...
ReplyDeleteवैसे नहाये नहीं न पुरे दिन...
tasveeron ne man moh liya
ReplyDeletehttp://sanjaykuamr.blogspot.com/
पढ़कर एसा लग रहा जैसे हम भी आपके साथ बिजली महादेव घूम रहे है
ReplyDeleteदिल खुश कर दिया महाराज!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया नज़ारा है । कुल्लू घाटी और पहाड़ पर मंदिर । रास्ता भी सुन्दर । क्या बात है । बस ऐसे में कोई साथी भी होता तो क्या बात थी । हम भी बहुत घूमे हैं लेकिन अकेले कभी नहीं ।
ReplyDeleteभाई तेरी ये अगली कड़ी वाली बात बहुत मार देती है...मज़ा सा आन लगया था के अचानक बोल्या बाकि अगली कड़ी में...जल्दी सी लगा दे अगली कड़ी अब सबर न हो रया...फोटो खींचने में भाई तेरा कोई सानी नहीं है...वाह...बिजली महादेव...हम तो भाई नाम भी न सुने थे अब अगली कड़ी में दर्शन भी करवा देगा...जय हो नीरज बाबा की...
ReplyDeleteनीरज
अच्छी तसवीरें , बहुत अच्छा
ReplyDeleteमाधव एयर लाइन्स पर आपकी बुकिंग अभी तक नहीं हुई है ,.
बुकिंग नहीं करानी है क्या ?
सही बात है, लोगों को क्या पता कि हिमाचल कहां है..गर फिरदौस बर रुए ज़मिअस्त ...... हमीअस्तौ हमीअस्तौ हमीअस्त :)
ReplyDeleteफोटू तो जानदार हैं. सचमुच ईर्षा हो रही है. कौन सा केमरा है?
ReplyDeleteबहुत खूब नीरज जी
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत चित्र हैं. लगता है सम्पूर्ण लुत्फ ले रहे है.
वैसे कुल्लू है ही इतना खूबसूरत
मस्त जगह घुम कर आये हो मुसाफिर जी. हाँ जलन तो हो रही है... आपकी एक बात मुझे बहुत पसंद है. बिना प्लानिंग के कहीं भी निकल लेना... प्लानिंग कर के, होटल बुक करके, ट्रेन में रिजरवेशन करके जाने से जहाँ जाते हैं वहाँ का असली स्वाद नहीं आता. होटल में तो सब सुविधाएं मिल जाती हैं दिल्ली की तरह... लेकिन लैंसडाऊन की तरह फ्रेश होना, बिना सोचे समझे फौजीयों के ईलाके में निकल लेना जिंदगी भर नहीं भूल पाऊंगा...
ReplyDeleteसुन्दर चित्र, मोहक यात्रा ।
ReplyDeleteअरे अभी तो मे छुट्टियो पर गया हुआं हु, फ़िर भी कभी कभार टिपण्णी दे देता हुं, बहुत सुंदर लगा आप का यह टुर यहां जरुर आऊंगा कभी, फ़ोटो भी बहुत अच्छे लगे, राम राम
ReplyDeleteuttam chitra,uttam vritt !
ReplyDeletebahut khoob
ReplyDeletemaja aa gaya....
kabhinahn suna tha bijli mahadev ke baare main per aapne ghuma diya....
नीरज, सच में छोरा ही पड़या है तू।
ReplyDeleteकई बार गये हिमाचल, पर स्साला ये अंदाज घुमक्कड़ी का? सच कहूं, कई बार बहुत गुस्सा आता है तुम्हारी पोस्ट पढ़कर(प्यार वाला):)
फ़ोटो बहुत बढ़िया हैं, और मुझे भी हमेशा ही रास्ते बहुत अच्छे लगते रहे हैं, खासतौर पर हिमाचल में।
एक दिन निकल पड़ना है बस बैगपैकिंग करके, पक्का, चाहे पांच साल बाद ही सही।
बहुत अच्छी पोस्ट, और यार ये मत लिखाकर कि नहाया नहीं आज। हा हा हा
नीरज जी बहुत मजा आया.अब आपकी अगली पोस्ट कब आएगी.धन्यवाद
ReplyDeletebehatareen blog aur jabardast lekhni :)
ReplyDeletebhai kaha se nikalte ho jagah... koi pitaera hai kya???? hume ab puchte hi nahi ho...
ReplyDeletevaise tumhare zazbe ko salam...
mujhe sath kyoun nahi le gaye
ReplyDeleteबस वाले ने झूठ क्यो बोला कि बस late आएगी
ReplyDeleteआपने स्टोरी बड़ी सही लिखी है । कुल्लू में कोई भी दुकानदार न चाय वाला न परांठे वाला किसी को जबरदस्ती खाने पीने के लिए बोलता ।
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