इस यात्रा वृत्तान्त को शुरू से पढने के लिये यहां क्लिक करें।
8 दिसम्बर, 2011 की सुबह मैं और भरत कुल्लू में बस अड्डे के पास एक सस्ते यानी दो सौ रुपये के रेस्ट हाउस में सोकर उठे। पडे पडे ही लगा कि रात बारिश हुई है क्योंकि जब काफी दिन बाद बारिश होती है तो वातावरण में एक खुशबू फैल जाती है- बारिश की खुशबू। इस देशी जानवर को इस खुशबू की बखूबी पहचान है। और जब दरवाजा खोलकर बाहर देखा तो पक्का हो गया कि रात बारिश हुई थी। हालांकि अब नहीं हो रही थी।
और दिसम्बर में इन दिनों हिमालय में बारिश होने का एक अर्थ और है कि बर्फबारी भी जरूर होवेगी। मैं खुश हो गया और घोषणा कर दी कि बेटा भरत, तूने आज तक जिन्दगी में बर्फबारी तो दूर, बर्फ तक नहीं देखी है। आज तेरा नसीब बहुत बढिया है। आज तुझे बर्फबारी दिखाऊंगा। बोला कि क्या मनाली में स्नो फाल मिलेगा। मैंने कहा कि मनाली में तो मुश्किल है लेकिन सोलांग में चांस हैं। मैं हालांकि पहले कभी मनाली नहीं गया था लेकिन इतनी तो परख है ही कि कैसा मौसम होने पर हिमालय के किस हिस्से में बारिश पडेगी, किस हिस्से में बर्फ गिरेगी।
बस अड्डे पर दो दो आलू के परांठे और चाय सुडककर मनाली वाली बस में जा धरे। लोकल प्राइवेट बस थी- दो घण्टे लग गये हमें मनाली जाने में। जिस सुन्दरता के लिये मनाली जाना जाता है, वो हमें ना तो दिखनी थी और ना ही दिखी। बादल थे चारों ओर। और हां, बारिश भी होने लगी थी। ठण्ड हाथों को काटे जा रही थी। अब याद आ रहा था रेनकोट जिसे मैंने कल अमित को दे दिया था कि ले जा, मौसम बहुत बढिया है। मैं तो दूसरों को भी सलाह देता हूं कि तू हिमालय पर घूमने जाना या मत जाना, लेकिन रेनकोट जरूर होना चाहिये। आज अपनी यही सलाह मैंने खुद पर लागू नहीं करी और ले भुगत।
हमारे पास मात्र आज का ही दिन था। शाम को हमें दिल्ली के लिये प्रस्थान कर देना था। आज की योजना थी कि हिडिम्बा मन्दिर चलेंगे। तीन किलोमीटर दूर है, पैदल आना-जाना करेंगे, थोडा बहुत इधर-उधर मुंह मार लेंगे, ताक-झांक कर लेंगे और शाम हो जायेगी। लेकिन बारिश हो रही थी और हम ठण्ड से मरे जा रहे थे।
अगर दिसम्बर के मध्य में मनाली में बारिश हो रही हो तो सीधी सी बात है, सरल सी बात है, साधारण सी बात है, सिम्पल सी बात है कि रोहतांग दर्रे पर बर्फ पड रही होगी। कल तक रोहतांग दर्रा खुला था, गाडियां आ-जा रही थी, लेकिन अब अगले पांच महीनों के लिये बन्द हो गया। मौसम विभाग ने पहले ही चेतावनी दे दी होगी, तभी तो मनाली बस अड्डे पर जगह जगह पर्चे चिपके हुए थे कि 6 तारीख के बाद केलांग के लिये कोई बस नहीं जायेगी। रोहतांग के उस पार केलांग है। रोहतांग ही बन्द हो जायेगा तो केलांग तक कैसे जा सकते हैं। हालांकि सुरंग का काम चल रहा है, जब यह पूरी बन जायेगी, विधिवत उदघाटन हो जायेगा, तो जनवरी फरवरी तक मनाली-केलांग रूट खुला रहेगा।
बूंदाबांदी बन्द हुई तो हम दोनों गरीब निकल पडे। हवा तो नहीं चल रही थी लेकिन हमें लग रहा था कि बर्फीला तूफान चल रहा है और हम नंगे खडे हैं। मरे जा रहे थे ठण्ड से। भूमध्य सागर, तेरा बेडा गर्क हो कि तुझे आज ही इधर अपनी हवा भेजनी थी। अरे नहीं यार, बुरा मत मानता। तेरी तो जरुरत हमें हर साल जाडों में ही पडती है। जब भी तू नाराज हो जाता है तो हमारे उत्तर भारत में त्राहि-त्राहि मच जाती है। औली और मनाली जैसी जगहें बर्फ से वंचित रह जाती हैं, मैदानों में गेहूं के लिये तेरी दो घूंट जल की बूंदें बडी पावरफुल होती हैं। तेरा बेडा गर्क ना हो, मैंने ऐसे ही कह दिया, अब नहीं कहूंगा।
बस अड्डे से आगे निकले तो एक तिराहा मिला। बिना तैयारी के गये थे, किस्मत के मारे थे इसलिये उस तिराहे का नाम नहीं पता। अगली बार जाऊंगा तो पता कर लूंगा। वहां से उल्टे हाथ की तरफ एक रास्ता हिडिम्बा की तरफ जाता है। मैंने भरत से पूछा कि भरत बता, हिडिम्बा या बर्फ। उसने तुरन्त कहा- बर्फ। बर्फ के लिये सोलांग जाना पडेगा और अगले दो घण्टों तक वहां के लिये कोई बस नहीं है। यह जानकारी मैंने बस अड्डे पर ही हासिल कर ली थी। टम्पू खडे थे, साथ ही टैक्सियां भी थीं। हम गये सीधे टम्पू वालों के पास। चार सौ रुपये मांग रहे थे सोलांग जाने के लेकिन जाट वाली बहसबाजी करी, मोलभाव किया और तब जाकर ढाई सौ में मामला फिट हुआ।
टम्पू में बैठते ही हम दोनों को एहसास हुआ कि हमने अभी अभी अपनी जिन्दगी का एक गलत फैसला ले लिया है। टम्पू खुले होते हैं और जी भरकर हवा आर-पार जाती है। जितनी भी शरीर में गर्माई बची थी, सब खत्म। एक जगह टम्पू रुका और ड्राइवर ने कहा कि उतरो, सोलांग आ गया। एक बार तो जी में आया कि टम्पू वाले को वापस चलने को कह देते हैं। लेकिन फिर ढाई सौ रुपये दिखने लगे। उतर गये। इसीलिये तो कहते हैं कि पैसों में बडी गर्मी होती है। ढाई सौ रुपये वाला मामला ना होता तो हम टम्पू से नहीं उतरते और वापस मनाली जा पहुंचते। और टाइम टाइम की बात होती है। अच्छे भले कल मणिकर्ण जाने की सोच रहे थे। अगर वहां चले जाते तो मजे से गर्म पानी में पडे रहते और गुरुद्वारे के लंगर में दिनभर फ्री में खाते।
जाते ही चाय पी। सोलांग नाले में रोड से करीब चार किलोमीटर दूर एक मन्दिर है। या तो पैदल जाओ या फिर खच्चर वाले खडे रहते हैं। वहां तक जाने का मूड बन गया। अभी साढे ग्यारह बजे थे, मनाली की बस अब डेढ बजे आयेगी। हम उस बस को किसी भी हालत में छोडने वाले नहीं थे। उधर मन्दिर भी दिमाग में था। वहां तक जाना और वापस आना पैदल दो घण्टे में नहीं हो सकता था इसलिये खच्चर ले लिये गये। वैसे एक बात है कि हमारा खच्चर लेने का मन बिल्कुल भी नहीं था, हम मन्दिर ना देखने की सोच चुके थे। हम बस ऐसे ही खच्चर वाले से बात करने लगे तो उसने दो खच्चरों का किराया 800 रुपये बताया। सुनते ही हमारी हवा खराब, हम नहीं जायेंगे। दो घण्टे बाद बस आयेगी, वापस मनाली चले जाना है। ठण्ड से हालत खराब हुई पडी है। चले आये हिमालय देखने और कपडे लत्ते लाये नहीं।
हमारे रेट पूछते ही खच्चर वाला सिर हो गया कि साहब, बताओ कितने दोगे? मैंने कह दिया कि 200 से एक रुपया भी फालतू नहीं देंगे। मुझे उम्मीद थी कि खच्चर वाला बडबडाते हुए चला जायेगा लेकिन वो पट्ठा भी दिलेर था। डटा रहा, कुछ हमारे भी राहु-शनीचर दोस्ती कर बैठे, 300 में दो खच्चरों की शामत आ गयी।
इस मन्दिर का भी नाम ध्यान नहीं है। यहां एक पतला सा काफी ऊंचा झरना है जिससे गर्मियों में पानी गिरता होगा, लेकिन आज बर्फ गिर रही थी ईंटों की तरह। वैसे गिर तो पानी ही रहा था लेकिन थोडी थोडी देर बाद ठोस बर्फ भी गिरती और नीचे गिरकर फूट जाती। हां, इस झरने की खास बात तो रह ही गई। इसका पानी सीधा एक शिवलिंग पर गिरता है। या यह कहिये कि पानी के नीचे एक शिवलिंग रख दिया है। कुछ दूर साधुओं के आश्रम हैं। आश्रम से शिवलिंग तक पक्की सीढियां बनी हैं। जब हम सीढियों पर अपने चमडे के जूते पहने चढ रहे थे तो आश्रम में से एक साधु चिल्लाया कि जूते उतारकर जाओ। मैंने कहा कि महाराज, बावले तो नहीं हो गये। जूते तो हमने पहन ही नहीं रखे हैं। बोला कि एक तो तुमने चमडे के जूते पहन रखे हैं और ऊपर से कह रहे हो कि जूते नहीं पहन रखे। मैंने कहा कि आगे चमडा ले जाना मना है क्या? बोला कि हां। मैंने कहा कि ठीक है। जूते मैं उतार देता हूं, और मेरे शरीर पर जो चमडा है उसे तुम उतार दो। अपनी खाल, अपना चमडा मैं खुद नहीं उतार सकता। उसने कहा कि जाओ, तुम्हें मैं जाने देता हूं। अब के बाद आओगे तो चमडे के जूते पहनकर मत आना। ये तो थी मजाक की बात। सच तो नहीं मान ली। असल में सीढियों की शुरूआत में ही लिखा था कि कृपया जूते यहां उतार दें। हम सोच में पड गये कि जूते उतारें या नहीं। एक साधु हमें देख रहा था, उसने कहा कि कोई बात नहीं। ठण्ड का मौसम है, जूते पहनकर ही जाओ। उतारो मत।
सोलांग में बर्फ पड रही थी। यह मौसम की पहली बर्फबारी थी। अब अगले चार पांच महीनों तक पूरे हिमालय में बर्फ पडती रहेगी। हालांकि यहां इतनी बर्फ नहीं थी कि हम उसमें घुटनों तक धंस गये होंगे। हद से हद आधा इंच बर्फ ही पडी होगी। ऊंची चोटियों पर खूब ताजी बर्फ दिख रही थी।
एक बजे तक वापस मेन रोड पर आ गये। पता चला कि डेढ वाली बस आज नहीं आयेगी। खराब मौसम होने के कारण वो बस मनाली से चली ही नहीं। अब साढे तीन वाली की उम्मीद है। अगर वो भी कैंसिल हो गई तो...? चाऊमीन खाते रहे, सोचते रहे। जैसे ही आखिरी चम्मच खाई, तभी ज्ञान प्राप्त हो गया। पैदल चलते हैं। यहां से चार किलोमीटर दूर पलचान है, मनाली-लेह राजमार्ग है। वहां से मनाली के लिये कुछ ना कुछ जरूर मिल जायेगा। पैदल चल पडे। घण्टे भर के बाद वहां भी पहुंच गये। पता चला कि रोहतांग की तरफ से, मढी की तरफ से कोई बस नहीं आयेगी। एकमात्र बस तीन बजे सोलांग जायेगी और साढे तीन बजे वही बस वापस आयेगी।
और वो बस कैंसिल नहीं हुई। चार बजे तक हम मनाली में थे। फिर तो एक ऐसी बस पकडी, ऐसी बस पकडी कि सुबह आठ बजे तक हम भारत की राजधानी पहुंच गये। और हां, वो यात्रा भी मजेदार रही। भरत की परेशानी थी कि उसे बस के सफर में उल्टियां आती हैं। उसने ख्वाहिश की थी कि साधारण बस से नहीं जायेंगे, बल्कि सेमी डीलक्स से जायेंगे। उसमें सीटें ज्यादा आरामदायक होती हैं और आगे-पीछे भी हो जाती हैं। बस में बैठते ही गर्माहट मिली और मैं सो गया। जबकि मेरी बराबर में बैठा भरत बार बार खिडकी का शीशा खोलता और बन्द कर देता। एक ठण्डी हवा का झौंका आता। इसका मतलब था कि इस बस में भी भरत को शान्ति नहीं मिली। उसे शान्ति मिली चण्डीगढ जाकर जहां पहाड खत्म हो जाते हैं और रास्ता सीधा हो जाता है। लेकिन चण्डीगढ से पहले दस घण्टों में वो पूरी तरह निचुड चुका था। जो भी कुछ उसके पेट में था, सबकुछ बाहर निकल चुका था।
जितने कपडे दिख रहे हैं, बस उतने ही हैं। एक हल्की सी जैकेट है, एक शर्ट है बस। |
खच्चर सवारी |
सोलांग घाटी |
मन्दिर के रास्ते में |
नीरज फोटोग्राफर |
सामने मन्दिर और वहां जाती सीढियां। यहीं लिखा है कि जूते उतारो। |
झरना |
झरना और नजदीक से |
शिवलिंग, जिस पर झरने का पानी सीधा गिरता है। अब हर तरफ बर्फ जम गई है। |
कभी कभी धार्मिक जगहों पर हाथ जोड लेने में कोई बुराई नहीं है। |
सुबह से बर्फबारी हो रही है। ऊंचाई पर पहाड और जंगल बर्फ से ढक गये हैं। |
सोलांग घाटी की सुन्दरता |
बर्फबारी |
याक कैफे है ना? इसी में चाऊमीन खाई थी और ज्ञान प्राप्त हुआ था। |
पैदल वापस चल पडे। रास्ते का एक फोटो। |
रास्ते में कहीं पर |
मेरा मूं |
पलचान, यहां से सीधे सोलांग जा सकते हैं, दाहिने मुडकर रोहतांग और तीसरा मनाली। |
इनके बारे में कुछ नहीं कहना। |
और पहुंच गये मनाली। |
अगला भाग: पराशर झील- जानकारी और नक्शा
पराशर झील ट्रैक
1. पराशर झील ट्रेकिंग- दिल्ली से पण्डोह
2. पराशर झील ट्रेकिंग- पण्डोह से लहर
3. पराशर झील ट्रेकिंग- लहर से झील तक
4. पराशर झील
5. पराशर झील ट्रेकिंग- झील से कुल्लू तक
6. सोलांग घाटी में बर्फबारी
7. पराशर झील- जानकारी और नक्शा
टम्पू के ढाई सौ और खच्चर के तीन सौ - रोचक है। दृश्यावलि अच्छी लगी।
ReplyDeleteये हसीं वादियाँ..
ReplyDeleteये महिला और बच्चे की फोटो लाजवाब है!
ReplyDeleteपहाड़ों पर भाई पूरे गरम कपडे ले कर जाया करो.
ReplyDeleteहमें आपके सुंदर मु तथा लेख का इन्तजार रहता हे
Neeraj bhai lage raho...
ReplyDeleteis saal to bahut barfbaari hui. aaj 13 feb hai aur abhi tak thand haddiyan gala de rahi hai yahan himachal mein. Chamba-Manali do din se band hai, ummeed hai is baar leh jaane mein aur bhi jayda anand aaega.
bahut sundar yatra.aapko bhi hamesha yaad rahegi.
ReplyDeletesolang men bhi gai hun apni shimla -manali yatra ke douran...bahut hi sunder jagah hei ...dobara yaad dilane ke liae shukriya ...is bar ki yatra kafi dino baad huii neeraj ..
ReplyDeleteअरे भाई मैं कभी खच्चर पर नहीं बैठा हूँ, लेकिन देखा बहुत है और इस पर ढलान पर उतरना तो बहुत खतरनाक रहता है। चढाई में तो मजा आ जाता होगा।
ReplyDeleteआपकी फोटोग्राफी...आपकी शैली और आपका साहस तीनों...एक दम बम्बाट हैं बोंस...अपुन का सलाम कबूलो...
ReplyDeleteनीरज
नीरज भाई
ReplyDeleteझरने और शिवलिंग वाला फोटो बहुत लगा....आखिर बर्फीली ठण्ड का मज़ा ले ही लिया...
मनाली में सोलंग घाटी में भी जा चूका पर आपने कुछ सोलंग घाटी के नए स्थान दिखा दिए...
रीतेश
UDAIPUR: घसियार(Old Tample Nathdwara), ऐतिहासिक भूमि-"हल्दीघाटी".Part-3
http://safarhainsuhana.blogspot.in/2012/02/udaipur-old-tample-nathdwara.html
SABSE PAHALE WALA PHOTO BAHUT ACHHA LAGA?
ReplyDeleteAAGE SE THANDE ILAKE ME JAATE SAMAY GARAM KAPADE JAROOR SATH LE JAANA.
Bhai call karo aapse baat karni hain 9416164042
ReplyDelete