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6 जून, रविवार। सुबह सोकर उठा तो काफी धूप चढ गयी थी। मैं कुल्लू में था। कल सोते समय सोचा था कि सुबह जल्दी उठकर मलाना जाऊंगा। इरादा था नग्गर की तरफ से चन्द्रखनी दर्रा पार करके मलाना पहुंचूंगा। हालांकि दर्रा पार करने में पूरा दिन भी लग सकता है। लेकिन जो होगा, देखा जायेगा। अगर मलाना भी नहीं पहुंच सका, तो चन्द्रखनी दर्रा देखकर ही आ जाऊंगा। सुबह पांच बजे ही निकल पडूंगा। लेकिन सारे के सारे अन्दाजे और वादे धरे के धरे रह गये। आठ बजे के बाद आंख खुली। मलाना फिर कभी।
अभी भी मेरे पास दो दिन थे। एक विकल्प था मनाली जाने का और रोहतांग देखने का। फिर सोचा कि कभी दोस्तों के साथ ही मनाली जाऊंगा। मनाली आने के लिये सभी दोस्त तुरन्त तैयार हो जायेंगे। दूसरा विकल्प था मणिकर्ण जाने का। नहाये धोये, कपडे पहने, बस अड्डे पर दो-तीन परांठे खाये और निकल पडे मणिकर्ण की ओर। मणिकर्ण जाने के लिये कुल्लू से वापस भून्तर आना पडता है। भून्तर में ब्यास-पार्वती संगम पर पुल पार करके बायें मुडकर मणिकर्ण के लिये सडक जाती है।
रविवार का दिन और छुट्टी का मौसम होने के कारण मणिकर्ण रोड पर काफी भीड थी। गुरुद्वारा होने के कारण ज्यादातर लोग पंजाबी थे। रास्ते में एक गांव पडता है- शाट। कुछ साल पहले यहां बादल फट पडा था, जिससे बहुत तबाही मची थी। शाट के बाद आता है जरी। मलाना जाने का एकमात्र सुगम रास्ता जरी से ही जाता है। जरी से कुछ दूर मलाना नाले पर या कहिये कि मलाना नदी पर एक पनबिजली योजना के तहत बांध बन रहा है। बांध तक बढिया सडक बनी है। बांध से दो-तीन किलोमीटर और आगे चलकर तीन किलोमीटर खडी चढाई चढने के बाद मलाना आता है। यह जानकारी मुझे बाद में पता चली। नहीं तो मैं उसी दिन भी मलाना जा सकता था।
जरी से आगे और मणिकर्ण से तीन-चार किलोमीटर पहले कसोल है। कसोल शायद आम भारतीयों के लिये नहीं है क्योंकि यहां ज्यादातर संख्या विदेशियों की ही रहती है। एक विदेशी से बाद में बात हुई तो पता चला कि उसे मणिकर्ण के बारे में कोई जानकारी नहीं है। उसने मणिकर्ण का नाम भी नहीं सुना था। लेकिन कसोल का नाम सुनते ही उसने वहां के बारे में बताना शुरू कर दिया। कसोल में आलीशान होटलों की कोई कमी नहीं है। लेकिन जगह भी बडी मस्त है। पार्वती के उस पार जाने के लिये एक पुल भी है। उसी पार गर्म पानी के सोते भी हैं।
मणिकर्ण से पहले कसोल से निकलते ही जाम शुरू हो जाता है। असल में यहां सडक सिंगल लेन ही है। ट्रैफिक जबरदस्त है। इसलिये जाम लग ही जाता है। सीधे खडे पहाड हैं। जरा सी गलती भी जानलेवा हो सकती है। लेकिन ड्राइवरों की सूझ-बूझ से हादसे टल जाते हैं। एक जगह ऐसा हुआ कि हमारी बस के सामने दिल्ली की एक कार आ गयी। बचने का कोई रास्ता ही नहीं था। बस के पीछे गाडियों की लाइन लगी थी। संयोग से कार के पीछे कोई नहीं था। ऐसे में बस पीछे को हट ही नहीं सकती थी, कार को ही पीछे हटकर जरा चौडे स्थान पर लगना था। कार दिल्ली की थी तो जाहिर सी बात है कि ड्राइवर भी दिल्लीवासी ही होगा। दिल्ली में भले ही कैसे भी चलाते हों, लेकिन यहां उससे कार जरा भी पीछे नहीं हटी। पीछे का गियर लगाया तो कार पीछे सीधे जाने की बजाय मुड गयी और पहाड से जा टकराई। जब उसे कोशिश करते काफी देर हो गयी , बेचारा कार से निकलकर बाहर आ गया और बस के ड्राइवर से बोला कि भाई, कार को पीछे करना मेरे बसकी बात नहीं है। तब हिमाचली ड्राइवर ने आसानी से कार को पीछे करके चौडे स्थान पर लगा दिया। बस समेत पीछे का सारा ट्रैफिक निकल गया।
खैर, मणिकर्ण पहुंचे और काफी देर तक वहां की खूबसूरती में खो गये। मणिकर्ण के बारे में अगली बार बताऊंगा। अब चित्र देखिये:
6 जून, रविवार। सुबह सोकर उठा तो काफी धूप चढ गयी थी। मैं कुल्लू में था। कल सोते समय सोचा था कि सुबह जल्दी उठकर मलाना जाऊंगा। इरादा था नग्गर की तरफ से चन्द्रखनी दर्रा पार करके मलाना पहुंचूंगा। हालांकि दर्रा पार करने में पूरा दिन भी लग सकता है। लेकिन जो होगा, देखा जायेगा। अगर मलाना भी नहीं पहुंच सका, तो चन्द्रखनी दर्रा देखकर ही आ जाऊंगा। सुबह पांच बजे ही निकल पडूंगा। लेकिन सारे के सारे अन्दाजे और वादे धरे के धरे रह गये। आठ बजे के बाद आंख खुली। मलाना फिर कभी।
अभी भी मेरे पास दो दिन थे। एक विकल्प था मनाली जाने का और रोहतांग देखने का। फिर सोचा कि कभी दोस्तों के साथ ही मनाली जाऊंगा। मनाली आने के लिये सभी दोस्त तुरन्त तैयार हो जायेंगे। दूसरा विकल्प था मणिकर्ण जाने का। नहाये धोये, कपडे पहने, बस अड्डे पर दो-तीन परांठे खाये और निकल पडे मणिकर्ण की ओर। मणिकर्ण जाने के लिये कुल्लू से वापस भून्तर आना पडता है। भून्तर में ब्यास-पार्वती संगम पर पुल पार करके बायें मुडकर मणिकर्ण के लिये सडक जाती है।
रविवार का दिन और छुट्टी का मौसम होने के कारण मणिकर्ण रोड पर काफी भीड थी। गुरुद्वारा होने के कारण ज्यादातर लोग पंजाबी थे। रास्ते में एक गांव पडता है- शाट। कुछ साल पहले यहां बादल फट पडा था, जिससे बहुत तबाही मची थी। शाट के बाद आता है जरी। मलाना जाने का एकमात्र सुगम रास्ता जरी से ही जाता है। जरी से कुछ दूर मलाना नाले पर या कहिये कि मलाना नदी पर एक पनबिजली योजना के तहत बांध बन रहा है। बांध तक बढिया सडक बनी है। बांध से दो-तीन किलोमीटर और आगे चलकर तीन किलोमीटर खडी चढाई चढने के बाद मलाना आता है। यह जानकारी मुझे बाद में पता चली। नहीं तो मैं उसी दिन भी मलाना जा सकता था।
जरी से आगे और मणिकर्ण से तीन-चार किलोमीटर पहले कसोल है। कसोल शायद आम भारतीयों के लिये नहीं है क्योंकि यहां ज्यादातर संख्या विदेशियों की ही रहती है। एक विदेशी से बाद में बात हुई तो पता चला कि उसे मणिकर्ण के बारे में कोई जानकारी नहीं है। उसने मणिकर्ण का नाम भी नहीं सुना था। लेकिन कसोल का नाम सुनते ही उसने वहां के बारे में बताना शुरू कर दिया। कसोल में आलीशान होटलों की कोई कमी नहीं है। लेकिन जगह भी बडी मस्त है। पार्वती के उस पार जाने के लिये एक पुल भी है। उसी पार गर्म पानी के सोते भी हैं।
मणिकर्ण से पहले कसोल से निकलते ही जाम शुरू हो जाता है। असल में यहां सडक सिंगल लेन ही है। ट्रैफिक जबरदस्त है। इसलिये जाम लग ही जाता है। सीधे खडे पहाड हैं। जरा सी गलती भी जानलेवा हो सकती है। लेकिन ड्राइवरों की सूझ-बूझ से हादसे टल जाते हैं। एक जगह ऐसा हुआ कि हमारी बस के सामने दिल्ली की एक कार आ गयी। बचने का कोई रास्ता ही नहीं था। बस के पीछे गाडियों की लाइन लगी थी। संयोग से कार के पीछे कोई नहीं था। ऐसे में बस पीछे को हट ही नहीं सकती थी, कार को ही पीछे हटकर जरा चौडे स्थान पर लगना था। कार दिल्ली की थी तो जाहिर सी बात है कि ड्राइवर भी दिल्लीवासी ही होगा। दिल्ली में भले ही कैसे भी चलाते हों, लेकिन यहां उससे कार जरा भी पीछे नहीं हटी। पीछे का गियर लगाया तो कार पीछे सीधे जाने की बजाय मुड गयी और पहाड से जा टकराई। जब उसे कोशिश करते काफी देर हो गयी , बेचारा कार से निकलकर बाहर आ गया और बस के ड्राइवर से बोला कि भाई, कार को पीछे करना मेरे बसकी बात नहीं है। तब हिमाचली ड्राइवर ने आसानी से कार को पीछे करके चौडे स्थान पर लगा दिया। बस समेत पीछे का सारा ट्रैफिक निकल गया।
खैर, मणिकर्ण पहुंचे और काफी देर तक वहां की खूबसूरती में खो गये। मणिकर्ण के बारे में अगली बार बताऊंगा। अब चित्र देखिये:
भून्तर में ब्यास नदी और दाहिने दिख रहा है बिजली महादेव वाला पहाड |
ब्यास नदी |
ब्यास नदी और सामने है बिजली महादेव वाला पहाड |
मणिकर्ण वाली सडक |
यानी मणिकर्ण से जरी 14 किलोमीटर पहले है। |
रास्ते में लगा जाम। मैं बस में आगे ही बैठा हूं और यह सोचिये कि बस को साइड से निकालना कितना खतरनाक है। पीछे खडी तीन कारें और बस पार्किंग में नहीं खडी हैं बल्कि जाम की वजह से कुछ चौडे स्थान पर खडी हैं ताकि सामने से आने वाले वाहन भी निकल सकें। |
पूरे रास्ते भर ऐसा नजारा दिखता है। |
कसोल आने वाला है। |
कसोल |
कसोल के बाद |
मणिकर्ण में पार्किंग |
गर्मी के दिन और ठण्डा माहौल, कौन नहीं आना चाहेगा? |
मणिकर्ण साहिब |
मणिकर्ण साहिब |
अगला भाग: मणिकर्ण के नज़ारे
मणिकर्ण खीरगंगा यात्रा
1. मैं कुल्लू चला गया
2. कुल्लू से बिजली महादेव
3. बिजली महादेव
4. कुल्लू के चरवाहे और मलाना
5. मैं जंगल में भटक गया
6. कुल्लू से मणिकर्ण
7. मणिकर्ण के नजारे
8. मणिकर्ण में ठण्डी गुफा और गर्म गुफा
9. मणिकर्ण से नकथान
10. खीरगंगा- दुर्गम और रोमांचक
11. अनछुआ प्राकृतिक सौन्दर्य- खीरगंगा
12. खीरगंगा और मणिकर्ण से वापसी
गजब वृतांत..शानदार तस्वीरें.
ReplyDeleteमस्त.. बहुत अच्छी फोटो..
ReplyDeleteमणिकरण मैं भी गया हूं.. पर यार वहा गन्दगी बहुत थी...
वाकई आपकी पोस्ट देख कर तस्वीरें देख कर कौन नही आना चाहेगा। सुन्दर पोस्ट। धन्यवाद।
ReplyDelete@"कसोल शायद आम भारतीयों के लिये नहीं है क्योंकि यहां ज्यादातर संख्या विदेशियों की ही रहती है।" ऐसा नहीं है नीरज भाई मगर वहां नशेड़ियों की भरमार के चलते लोग रुकते नहीं हैं. ये बहुत सुन्दर स्थल है और किसी नशेडी की क्या मजाल जो कुछ बोल जाए ! वो अपनी ही दुनिया में खोये रहते हैं और ये पूरी तरह भारतियों की गलती है कि वो वहां रुक कर असली इटालियन, जर्मन और इस्राइली खाने का आनंद नहीं लेते जबकि उस से १०० गुना पैसा देकर ५ स्टार होटल में जाते हैं जहाँ वो होता भी नकली है . तुम्हें पता होगा कि इस्राइल और कई यूरोप के देशों में २-३ साल की कड़ी फौजी सेवा (conscription ) अनिवार्य है . कई विदेशी उसे पूरी करते ही यहाँ छुट्टी मनाने आते हैं और भांग निर्मित चरस के सेवन में डूबे रहते हैं . इनमें से कई यहाँ पर बस गए हैं और दूध बेचते हैं या छोटे -छोटे खोखे चलाते हैं जिनमें ये अपने देश का खाना बेचते हैं !
ReplyDeleteनीरज जी..बहुत खूब सचित्र वर्णन बहुत बढ़िया लगी..आभार
ReplyDeleteएक और खास बात जो शायद आपने नोट ना की हो, कसोल में रॉयल एनफील्ड के तीन प्राइवेट सर्विस सेंटर हैं क्योंकि फिरंगी उस इलाके में इसी गाड़ी पर घूमना पसंद करते हैं। मुनीश जी बुरा ना मानें तो एक बात कहूं, इन सैलानियों की वजह से इस इलाके टूरिज़्म को कोई फायदा नहीं हो रहा है। ज़्यादातर लोग किसी होटल में नहीं रुकते हैं। 5-6 लोग 5-6 हज़ार में एक कमरा किराये पर ले लेते हैं। खाने के नाम पर ये कि चार लोग पैसा पूल करके दो कोक लेते हैं और चार रोटियां, रोटियों को कोक में भिगोकर खा लेते हैं। पूरे दिन मलाना क्रीम के चक्कर में घूमते रहते हैं। जब डिलीवरी नहीं आती तो खुद ही चल देते हैं लेने के लिये मलाना। मलाना के चढ़ाई वाले रास्ते पर आजकल जो फटे टैंट और कचरा नज़र आता है वो किसकी बदौलत है सब जानते हैं।
ReplyDeleteबढ़िया बाबूजी!
ReplyDeleteमैं तो जी कुल्लू में ही अटक के रह गया था।
मस्त वर्णन !
मस्त तस्वीरें!
कसोल तो अब जाके रुकना ही पड़ेगा!
मणिकर्ण का नाम खूब सुना है..मनाली जा कर भी वहां नहीं जा पाए इसका रंज अभी तक है...उसे आपके माध्यम से देखना लिखा था सो आपने दिखा दिया...शुक्रिया आपका...मलाना का नाम हम नहीं सुने थे लेकिन आप और मनीष जी की मेहरबानी से काफी ज्ञान हो गया उसके बारे में...अगली कड़ी का इंतज़ार है...
ReplyDeleteनीरज
@येल्लो --अजी येल्लो साहब मुझे इसमें भला क्या बुरा मानना है ? ड्रग्स का ऐसा खुल्ले-आम नंगा कारोबार दुनिया में और कहीं नहीं होता और ये समस्या हर भारतवासी की है मगर जब वो वहां रुकना भी गवारा नहीं करते तो समस्या और बढ़ेगी ही . इन समस्याओं की तरफ सबकी निगाह जानी चाहिए . हर हिमाचली को इसका पता है , अखबारों में छपता रहता है मगर वही सुसरे ढ़ाक के तीन पात !
ReplyDeleteसबसे ऊपर वाली फ़ोटो को वालपेपर की तरह प्रयोग कर लिया है :)
ReplyDeletevery xclusive coverage.
ReplyDeletelast year i had visited kuullu -manali but skipped Manikaran, i will go there next time
ReplyDeleteअरे नीरज क्यो ललचा रहा है हमे इतने सुंदर सुंदर चित्र ओर विवरण दिखा कर, नुकसान तो तुझे ही होगा, अगर अगली बार तेरे को पकड लिया कि बच्चू चल अब हमे भी घुमा इन सब जगहो पर, तेरे पास समय हो या ना हो...
ReplyDeleteबहुत सुंदर वर्णन किया आप ने ओर बहुत सुंदर चित्र, मन मोह लिया भाई धन्यवाद
आपकी यात्रा का वर्णन पढ़कर और सजीव तस्वीरें देखकर मेरा भी दिल इसी यात्रा पर निकलने का हो रहा है. हर तस्वीर ललचाती हुई नजर आती है. बहुत बहुत धन्यवाद. बस ऐसे ही नज़ारे देखने को दिल कर्ता है. जहाँ केवल शांत वातावरण हो. असीम सुख और शांति हो.
ReplyDeleteआज फिर आनन्द आ गया भाई.
ReplyDeleteआपका कमाल जारी रहे यही शुभकामनाएं.
बहुत बढ़िया चित्र और विवरण भी..
ReplyDeleteमेरा देखा हुआ है ये स्थान..
अगर मैं सही हूँ तो मणिकर्ण में गरम पानी का सोता भी है कहते हैं वहां अंडे डालो तो उबल /पक जाते हैं .
कुल्लू से वहां तक का पहाड़ी रास्ता बड़ा खतरनाक लगता है .
neeraj ji manikaran is a very beautiful,religious,station.thanks
ReplyDeleteनीरज जी बहुत ही शानदार फोटो हैं देखकर मजा आ गया. लास्ट टाइम २७ जून को मैं भी कुल्लू, मनाली, रोहतांग और मणिकरण की यात्रा से लोटा हु. मणिकरण बहुत ही शानदार जगह हैं . ध्यानावाद.
ReplyDeleteआपकी पोस्ट पढ़कर पहाड़ों की ताज़गी आ गयी ।
ReplyDeleteनीरज जी , मैंने अपनी मनाली, रोहतांग और मणिकरण यात्रा के चित्र निम्न लिखित लिंक पर दे रखे हैं यदि समय मिले तो जरा गौर करना. धन्यवाद.
ReplyDeletehttp://picasaweb.google.com/riteshagraup/MANALIROHTANGMANIKARAN02#
कमेन्ट कहाँ गए?
ReplyDeleteभाई जब मैंने पहला फोटो देखा तभी इस जगह ने मेरा मन मोह लिया, यहाँ ये सब भी होता है ये मुनिशजी और येल्लोजी के विवरण से पता चला
ReplyDeleteहम भी गए थे इस साल बुन्तर ओर मणिकर्ण वाले रास्ते पर चल दिये लेकिन वापिस आ गए कि अगली बार जाएंगे ,आज भी वहाँ बहुत भीड़ होती है , ये 2बात जून 2018 की है
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