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6 जून, 2010 को दोपहर बारह बजे के करीब मैं कुल्लू से 45 किलोमीटर दूर मणिकर्ण पहुंच गया। कहते हैं कि एक बार माता पार्वती के कान की बाली (मणि) यहां गिर गयी थी और पानी में खो गयी। खूब खोज-खबर की गयी लेकिन मणि नहीं मिली। आखिरकार पता चला कि वह मणि पाताल लोक में शेषनाग के पास पहुंच गयी है। जब शेषनाग को इसकी जानकारी हुई तो उसने पाताल लोक से ही जोरदार फुफकार मारी और धरती के अन्दर से गरम जल फूट पडा। गरम जल के साथ ही मणि भी निकल पडी। आज भी मणिकरण में जगह-जगह गरम जल के सोते हैं।
एक कथा यह भी है कि गुरू नानक देव जी यहां आये थे। उन्होंने यहां काफी समय व्यतीत किया। अगर नानक यहां सच में आये थे तो उनकी हिम्मत की दाद देनी होगी। उस समय जाहिर सी बात है कि सडक तो थी नहीं। पहाड भी इतने खतरनाक हैं कि उन पर चढना मुश्किल है। नीचे पार्वती नदी बहती है, जो हिमालय की तेज बहती नदियों में गिनी जाती है। पहले आना-जाना नदियों के साथ-साथ होता था। इसलिये नानक देव जी पहले मण्डी आये होंगे, फिर ब्यास के साथ-साथ और दुर्गम होते चले गये। भून्तर पहुंचे होंगे। यहां से पार्वती नदी पकड ली और मणिकर्ण पहुंच गये। वाकई महान घुमक्कड थे नानक जी। उन्ही की स्मृति में एक गुरुद्वारा भी है।
मणिकर्ण में हर जगह प्राकृतिक गर्म जल मिलता है। इसी से गुरुद्वारे के लंगर का भोजन भी बनता है। होटलों में भी इसी पानी की आपूर्ति होती है। उस दिन शाम को जब मैने एक धर्मशाला में कमरा लिया तो मैने पूछा कि सुबह को नहाने के लिये गर्म पानी मिल जायेगा क्या? मुझे नहीं पता था कि यहां हर जगह प्राकृतिक गर्म पानी उपलब्ध है। उसने कहा कि हां, मिल जायेगा। सुबह जब मैं उठा तो बाथरूम में देखा कि नल से हल्का गुनगुना पानी आ रहा है। तुरन्त बाल्टी भरी और नैकर-तौलिया ले आया। कपडे निकालकर फिट होकर नहाने बैठा तो बाल्टी में हाथ देते ही दिमाग ठिकाने लग गया। लगा कि सौ डिग्री के पानी में हाथ डाल लिया। शुरू में जब मैने पानी चेक किया था तब ठण्डे वातावरण की वजह से पाइप में तीन-चार फीट तक पानी गुनगुना हो गया था, लेकिन बाद में अति गर्म आने लगा। इतने तेज पानी में नहाना मेरे बसकी बात नहीं थी।
और क्या बताऊं मणिकर्ण के बारे में? चलिये खैर, चित्र देखिये:
श्री मणिकर्ण साहिब गुरुद्वारा |
यह गुरुद्वारे की धर्मशाला है। इसमें कमरे मुफ्त में मिलते हैं। कमरों का आरक्षण लंगर भवन में होता है। दिन ढलने से जितना पहले आरक्षण करा लें, उतना ही बेहतर है। इसके नीचे ही पार्वती बह रही है। |
शिव मन्दिर |
ऐसा है मणिकर्ण |
शिव मन्दिर परिसर में गर्म जल के कुण्ड में चावल और चने पकाते लोग। चावल दस मिनट में और चने आधे घण्टे में पक जाते हैं। |
बगल में ही एक कुण्ड और है। इसमें लंगर का सामान पक रहा है। बायें वाली हाण्डियों में चावल पक रहे हैं और दाहिने वाली ढकी हाण्डियों में दाल। |
जय जय शिव शंकर। |
मणिकर्ण का बाजार। |
लंगर |
यह पुल कैसा लग रहा है? |
उस पुल से दिखता मणिकर्ण साहिब। |
ऐसे रास्ते हैं मणिकर्ण जाने के। हैं ना खतरनाक? |
धर्मशाला में एक शीशा लगा था। मेज पर एक मग्गा रखा था, मग्गे पर कैमरा रखा, दस सेकण्ड भरे और …… और क्या? फोटू खिंच गया। |
राम मन्दिर के सामने रखा रथ। इसका प्रयोग त्यौहारों के मौके पर किया जाता है। |
नैना भगवती मन्दिर। कुल्लू में यही शैली चलती है। |
यह है रघुनाथ मन्दिर। यही मणिकर्ण का सबसे पुराना मन्दिर है। इसके पास भी गर्म जल के सोते हैं। |
नैना भगवती मन्दिर और बाजार। |
अगला भाग: मणिकर्ण में ठंड़ी गुफ़ा और गर्म गुफ़ा
मणिकर्ण खीरगंगा यात्रा
1. मैं कुल्लू चला गया
2. कुल्लू से बिजली महादेव
3. बिजली महादेव
4. कुल्लू के चरवाहे और मलाना
5. मैं जंगल में भटक गया
6. कुल्लू से मणिकर्ण
7. मणिकर्ण के नजारे
8. मणिकर्ण में ठण्डी गुफा और गर्म गुफा
9. मणिकर्ण से नकथान
10. खीरगंगा- दुर्गम और रोमांचक
11. अनछुआ प्राकृतिक सौन्दर्य- खीरगंगा
12. खीरगंगा और मणिकर्ण से वापसी
दस सेकण्ड भरे.. पर थोडा सा मुस्करा तो देते..
ReplyDeleteबहुत प्यारे फोटो..
:) .....और क्या ?
ReplyDeleteहम भी दर्शन पाकर धन्य हो गये!
ReplyDeleteदेखकर आनन्द ले लिया अब घूम कर आनन्द लेना है।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर घाटी और मनमोहक चित्र. काश एक बार हम जा पते.
ReplyDeleteऐसा संयोजन सभी धर्मों में होता है जी।
ReplyDeleteआप किसी भी धार्मिक स्थल पर जायें, वहां लगभग सभी धर्मों के लोग मिल जायेंगें। ये झगडे तो बाहर ही होते हैं या यूं कह सकते हैं कि चालबाज नेताओं द्वारा कराये जाते हैं।
तस्वीरों और मणिकर्ण घुमाने के लिये बहुत धन्यवाद
प्रणाम स्वीकार करें
मणिकरण की तसवीरें बहुत अच्छेई है
ReplyDeleteमणिकर्ण का वर्णन शानदार है.......बहुत खूब यात्रा वृतांत.....तस्वीरें तो लाजवाब हैं.
ReplyDeleteलगता है कैमरा नया लिया है...
ReplyDeleteबहुत सुंदर चित्र।
ReplyDeleteहां एक बात, नानक देव यहां कभी नहीं आए थे उनका शिष्य बंदा वहां गया था।
chhore,
ReplyDeletehamne to ye najaare dekhakar he kampkampi chhoote sai, aur too t-shirt men khadya sai? dhyan rakhya kar bhaai apna.
bahut shaandaar pictures vaali post.
congrats.
बहुत सुंदर जानकारी दी, सुंदर चित्र के संग, धन्यवाद
ReplyDeletejaane kaa man hone laga
ReplyDeleteवाह ! सुन्दर चित्र व यात्रा वर्णन ! आपके कैमरे ने तो हमें भी भ्रमण करा दिया |
ReplyDeleteबहुत सुन्दर यात्रा वृतांत। जब नैना देवी जी आयें तो नंगल जरूर आयें। भाखडा से रोप वे और आनन्द पुर साहिब से दोनो तरफ से रास्ता है
ReplyDeleteइस नो़ पर काल कर सकते है?---01887 220377। जै माता दी
Aapke bahane ham bhi darshan laabh le rahe hain.
ReplyDeleteThakns friend hum abi latest he hokar aye hai pr hum snapes clearly nahi le apye jiska hume malal pr aj vo malal bi nahi rha. Thakns
ReplyDeleteहिन्दू धर्म और सिख धर्म के बारे में आपने बहुत बढ़िया लिखा
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