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7 जून 2012 को जब हम उत्तरकाशी फॉरेस्ट कार्यालय से गौमुख जाने का परमिट बनवा रहे थे, तो वहीं पर दो मोटी-मोटी महिलाएं भी थीं। वे भी परमिट बनवाने आयी थीं। गौरतलब है कि अगर हम अपने साथ गाइड या पॉर्टर भी ले जाते हैं, तो उनका भी परमिट बनवाना पडता है। लोकल आदमियों ने उनसे पूछा कि क्या आप अपने साथ कोई गाइड-पॉर्टर नहीं ले जायेंगीं। उन्होंने मना कर दिया। लोगों ने उन्हें पोर्टर ले जाने की सलाह दी- उनके मोटापे को देखते हुए। उनका दोनों का वजन अगर सौ-सौ किलो नहीं भी था तो नब्बे नब्बे किलो से कम भी नहीं था।
महिलाओं ने एक बार तो लोकल आदमियों की तरफ पर्यटकों वाले अंदाज से देखा। अक्सर हम कहीं भी जाते हैं, तो लोकल आदमियों की निष्पक्ष सलाह को शक की निगाह से देखते हैं। हमें यह लगता है कि सामने वाला हमें ठगने की कोशिश कर रहा है या हमें बेवकूफ बना रहा है। उसी हिकारत भरे अन्दाज से उन्होंने उन आदमियों को देखा। कहने लगीं कि हम
वैष्णों देवी गयी थीं, तो पैदल ही गई थीं। वहां हमें कोई दिक्कत नहीं हुई तो यहां कैसे हो जायेगी। वे ठहरे बेचारे किस्म के इंसान। घर की मुर्गी दाल बराबर हर जगह ही होती है। उनके लिये गौमुख चाहे जैसा भी हो, लेकिन वैष्णों देवी दूर की जगह होने के कारण अति सम्मानित है। इसलिये कहने लगे कि हां, आप फिर तो जरूर पैदल ही चली जायेंगी।
ऐसे में मैं चुप नहीं रहता। मैंने कहा कि वैष्णों देवी और गौमुख में जमीन आसमान का फर्क है। आपने भले ही वैष्णों देवी की यात्रा पैदल कर रखी हो, लेकिन बहुत मुमकिन है कि आप गौमुख तक पैदल ना जा पाओ। बेहतर यही है कि आप पॉर्टर ले लो। पूछने लगी कि ऐसा क्यों? जमीन आसमान का फरक क्यों? क्योंकि वैष्णों देवी 2500 मीटर की रेंज में है, पक्की सडक बनी है, हजारों लोग जाते हैं। जबकि गौमुख 4000 मीटर पर है, कच्चा रास्ता है, डेढ सौ लोग भी नहीं जाते। 2500 मीटर के मुकाबले 4000 मीटर की ऊंचाई पर पैदल चलना सारा अन्तर पैदा कर देता है। इसलिये बेहतर यही है कि आप कुछ पैसों का मुंह मत देखो। एक पॉर्टर का परमिट ले लो, चाहे पॉर्टर लेना या मत लेना। खैर, उन्होंने ना पॉर्टर लिया, ना ही परमिट लिया। अगले दिन गौमुख जाते समय मैं उन दोनों मोटियों को ढूंढता रहा लेकिन वे नहीं मिलीं। और मैं गारण्टी के साथ कह सकता हूं कि वे अगर बिना पॉर्टर के गौमुख के लिये निकली होंगी, भले ही उन्होंने यात्रा पूरी कर ली हो, लेकिन वे अपने इस फैसले पर पछताई जरूर रहेंगी। वैसे वे शामली की रहने वाली थीं। शामली यानी हमारे गांव से 50 किलोमीटर दूर।
दोपहर बाद तीन बजे के आसपास हम उत्तरकाशी से निकल पाये। कारण था कि हमें निम (नेहरू पर्वतारोहण संस्थान) से कुछ ट्रेकिंग का सामान लेना था, उसमें देर हो गई थी। सामान पॉर्टर नन्दू के हवाले करके उसे गंगोत्री वाली बस में बैठाकर हम बाइक पर गंगोत्री के लिये निकल पडे। कल हम बाइक पर ही दिल्ली से उत्तरकाशी आये थे, अब फिर से 100 किलोमीटर बाइक पर बैठना पडेगा। मेरा बुरा हाल था, लेकिन बैठने के अलावा कोई चारा नहीं था।
भटवाडी तक अच्छी सडक बनी हुई है। उसके बाद गंगनानी तक करीब 15 किलोमीटर तक सडक थी ही नहीं। मतलब गड्ढे और पत्थर। गंगनानी पुल के पास जाकर जब एक दुकान वाले से पूछा कि भाई, आगे भी क्या ऐसा ही रास्ता है तो उसका जवाब सुनकर बडा सुकून मिला। उसने बताया कि आगे अच्छी सडक बनी हुई है, कहीं-कहीं थोडा बहुत टूटा फूटा टुकडा मिलेगा।
गंगनानी से आगे करीब दो किलोमीटर बाद अति संकरी सडक पर दोनों तरफ जाम लगा हुआ था। असल में वहां मात्र एक ही गाडी के निकलने की जगह थी, और परिस्थितिवश आमने-सामने से दो गाडियां आ गईं, वे निकल नहीं सकीं और जाम लग गया। लेकिन बाइक के बारे में कहा जाता है कि यह कभी भी जाम में नहीं फंसती, कहीं ना कहीं से निकल ही जाती है। हमारी बाइक भी निकल गई।
सूखी टॉप, हरसिल, धराली, भैरों घाटी और आखिर में गंगोत्री। चार घण्टे लगे हमें उत्तरकाशी से गंगोत्री तक पहुंचने में। भैरों घाटी से गंगोत्री तक आठ किलोमीटर तक फिर से टूटी-फूटी सडक। वही भैरों घाटी से एक सडक नेलंग के लिये भी जाती है। नेलंग जधगंगा घाटी में बसा है और तिब्बत की सीमा के काफी नजदीक है, इसलिये भैरों घाटी से नेलंग रोड पर चलने के लिये अलग से परमिट की जरुरत पडती है- इनर लाइन परमिट की।
गंगोत्री पहुंचे। यहां पहुंचने से ज्यादा खुशी बाइक से पीछा छूटने की थी। अब कम से कम चार दिनों तक बाइक को भुला दिया जायेगा। हम दोनों बाइक के सफर से बहुत तंग आ गये थे। बाइक थी करिज्मा। यह अपेक्षाकृत शक्तिशाली बाइक है, जिस कारण इसकी एक्सीलरेशन और ब्रेकिंग बडी जबरदस्त है। इन्हीं की वजह से यानी एक्सीलरेशन-ब्रेकिंग की वजह से मेरा और ज्यादा बुरा हाल हुआ। पहाड पर कहीं भी मोड आता, ड्राइवर साहब जबरदस्त ब्रेक लगाते, मोड के गुजरते ही फिर से स्पीड बढा देते। मैं बार बार आगे झुकने और पीछे लुढकने से बचने की कोशिश करता रहा। कुछ किलोमीटर तक तो ऐसा चल जाता है लेकिन अगर सैंकडों किलोमीटर तक ऐसा ही होता रहे तो हालत खराब होनी ही होनी है।
गंगोत्री जाते ही घरवालों को अपनी सलामती की खबर दे दी गई। साथ ही यह भी बता दिया गया कि हम कल सुबह गौमुख के लिये निकल पडेंगे, जिसकी वजह से अगले कुछ दिनों तक कोई नेटवर्क नहीं मिलेगा। नेटवर्क ना मिलने के कारण चिन्ता मत करना। अगर कोई ऐसी वैसी बात हो गई तो आपको अगले दिन या दो दिन बाद अखबार से पता चल जायेगा। हमारे साथ अपना पहचान-पत्र हमेशा साथ रहता है, जिससे बचाव दल को हमें पहचानने में कोई दिक्कत नहीं होगी।
गंगोत्री मन्दिर से कुछ पहले भागीरथी पर लोहे का एक पुल है। पुल के बराबर में एक गोल आकृति का छोटा सा विश्रामघर है। उसमें दो बाइकें पहले से खडी थीं, तीसरी हमारी खडी हो गई। हालांकि यहां बाइक बिल्कुल लावारिस ही खडी थी, लेकिन फिर भी दिक्कत की कोई बात नहीं थी।
मैंने पहले भी बताया था कि अपने साथी जो थे, वे दिल्ली में एक पत्रकार हैं। पत्रकारों के हमेशा हर जगह लिंक होते हैं। उन्होंने भी गंगोत्री में एक लिंक बना लिया। एक सेमवाल जी पकड लिये। इसका नतीजा यह हुआ कि हमारे गंगोत्री पहुंचने से पहले ही एक कमरा बुक हो गया। और कमरा भी 300 रुपये का- अटैच बाथरूम टॉयलेट। थोडी देर बाद नन्दू भी आ गया।
कुछ देर आराम करके हम गंगोत्री मन्दिर देखने निकल पडे। अन्धेरा हो चुका था और आरती चल रही थी। अच्छी खासी भीड थी। नौ बजे मन्दिर बन्द हो जाता है। उस समय आठ के करीब का टाइम था। रात को कहीं से नए श्रद्धालु आने का सवाल ही नहीं है। इसलिये मैंने सोचा कि आधे घण्टे में यहां जितने भी लोग हैं, सभी दर्शन करके चले जायेंगे, इसलिये साढे आठ बजे मैं दर्शन करूंगा। हुआ भी यही। आराम से खाली हो चुके गंगा मन्दिर में दर्शन किये। पूजा पाठ और प्रसाद का मेरे लिये कोई महत्व नहीं होता।
अगले दिन यानी 8 तारीख को हम आराम से सोकर उठे। आज हमें मात्र 14 किलोमीटर पैदल चलकर भोजबासा तक ही जाना था। उठकर भागीरथी दर्शन किये, मुंह धोया। बाहर से गंगोत्री मन्दिर देखा। इस समय भयंकर भीड थी जिसकी लाइन मन्दिर प्रांगण से बाहर तक जा चुकी थी। अच्छा हुआ कि हमने कल ही दर्शन कर लिये।
चो. साब आपके द्वारा दिए गए चित्र ही गंगोत्री के बारे में पूरा विवरण दे रहें हैं . साब गंगोत्री में नहा तो लेना था सिर्फ मु पर फेर लिया . सुगन्धित फोटो के साथ मजा आ गया . चलो ४ दिन २०० किलो के बैग तो नहीं उठाने पड़ेंगे .. मोटी पडोसने जरूर मिलेंगी. चिंता मत करो आपके यात्रा के लेखो को पड़ने तथा सुंदर फोटो को देखने के लिए हम भगवन से वैसे ही प्राथना करते रहते हैं.
ReplyDeleteअब आएगा असली मजा,
ReplyDeleteमैंने पहली ट्रेकिंग गौमुख की ही की थी, वो बिना किसी शारीरिक अभ्यास के, बहुत बुरी बीती थी, लेकिन मुझे दुसरी बार कोई परेशानी ना हुई,
नीरज भाई थोडा धर्म कर्म भी कर लिया करो, थोडा गंगा जी मैं भी स्नान कर लेते, पुण्य मिल जाता. मंदिर के फोटो बहुत शानदार हैं, विशेषकर रात वाला फोटो, गंगोत्री धाम तो वैसे भी दूसरा स्वर्ग हैं, भिखारियों का लाइन से बैठे हुए भीख मांगना एक अच्छा सिस्टम हैं. वे मोटी औरत शामली की थी तभी तो इतनी हिम्मत कर रही थी. शामली का पानी ही ऐसा हैं. शामली मेरी ननिहाल हैं. मेरा बहुत सा बचपन शामली मैं ही गुजरा हैं. बाइक पर तो भाई पीछे बैठने वाले की यही हालत होती हैं. पीछे बैठने के बजाए चलाने वाले को ज्यादा आराम रहता हैं. सफर अच्छा चल रहा हैं, आपके साथ साथ हम भी सफर कर रहे हैं, धन्यवाद
ReplyDeleteneeeraj babu, gangotri me nahate to pata chalta,kya hota hai ganga snan, yaaden taaja kar di aapne.thanks
ReplyDeleteसपरिवार होने के कारण हम गोमुख नहीं जा पाये थे, आपके माध्यम से वह भी देक लेंगे।
ReplyDeleteNEERAJ JI PHOTO IS BEAUTIFULL
ReplyDeleteMUKESH RAGHAV
चित्र बहुत अच्छे है, पुरानी यादों को ताजा कर दिया... रोमांचक यात्रा गौमुख का इंतजार है असली घुम्मकड़ी तो वहां से शुरु होगी-SS
ReplyDeletenice pict
ReplyDeleteneeraj bhai, pictures bahut khoobsurat lag rahi h. likhte to tum ho hi gazab ka maza aa gaya. ab aage dekhte h kya hota h. mujhe lagta h,ki aage ki photos aur bhi jyada khoosurat hongi. thank you.
ReplyDeleteneeraj bhai, pictures bahut khoobsurat lag rahi h. likhte to tum ho hi gazab ka maza aa gaya. ab aage dekhte h kya hota h. mujhe lagta h,ki aage ki photos aur bhi jyada khoosurat hongi. thank you.
ReplyDeleteआज की यात्रा तो बहुत ही लाजवाब रही नीरज ! क्या गंगोत्री मंदिर रात -दिन खुला रहता है ? और रास्ता भी .. और किस महीने जाना ठीक रहेगा ? क्या वहां बहुत ठंडी रहती है ?
ReplyDeleteतीनो पोस्ट के बढ़िया विवरण और अच्छे फोटो नीरज जी. अब लगता है असली मजा आएगा . गंगोत्री के दर्शन कराने के लिए धन्यवाद.
ReplyDeletemain bhi aap ka 1 saal se niyamit pathak hoon. mujhe aap ka blog bahut badhia lagta hai. per comment 1st time ker raha hoon.
ReplyDeletemain bhi aap ka 1 saal se niyamit pathak hoon. mujhe aap ka blog bahut badhia lagta hai. per comment 1st time ker raha hoon.
ReplyDeleteaapne to aanandit hi kar diya neeraj bhai ese hi aap photo dete rahe romance ke
ReplyDeleteab to jane ka man kar rah hai........
It's the best time to make some plans for the future and it's
ReplyDeletetime to be happy. I have read this post and if I could I wish to suggest you few interesting things or tips.
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