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कल्पेश्वर यानी पांचवां केदार

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5 अप्रैल 2012 और हम थे जोशीमठ में। हम यहां तीन तारीख की शाम को आ गये थे। हमारा इरादा बद्रीनाथ जाने का था। कपाट नहीं खुले थे लेकिन फिर भी हम जाना चाहते थे। लोगों ने बताया कि बिना परमिट के नहीं जा पाओगे। हम परमिट भी ले लेते लेकिन फिर दिक्कत आती गाडी की। हजार दो हजार से कम में कोई नहीं ले जाता हमें बद्रीनाथ। इसलिये बद्रीनाथ जाना कैंसिल कर दिया और कल यानी चार तारीख को औली चले गये। वहां से शाम को वापस आये। आज जाना था हमें कल्पेश्वर। पहले से ही सोचकर आये थे कि अगर बद्रीनाथ नहीं जा पाये तो कल्पेश्वर जाना है।
हां, एक बात और रह गई। हम रास्ते में पडने वाले सभी प्रयाग देखते हुए आ रहे थे- देवप्रयाग, रुद्रप्रयाग, कर्णप्रयाग और नंदप्रयाग। अब बचा पांचवां यानी विष्णुप्रयाग। मुझे पता था कि अलकनन्दा में विष्णु गंगा आकर मिलती है, वहीं विष्णु प्रयाग है। विष्णुगंगा की घाटी यहां जोशीमठ से दिखाई देती है। कल जब औली गये थे तो अलकनन्दा के साथ साथ दूसरी दिशा में विष्णु घाटी भी दिखाई दे रही थी। औली से ही देखकर मैंने अन्दाजा लगाया था कि जोशीमठ से विष्णुप्रयाग तीन किलोमीटर से ज्यादा नहीं होना चाहिये।
लेकिन जब यहां पता किया तो यह दस किलोमीटर बताया गया। यह भी बताया गया कि वहां तक गाडियां भी चलती हैं। विष्णुप्रयाग जोशीमठ से बद्रीनाथ रोड पर पडता है। चूंकि उधर कोई ज्यादा हलचल नहीं थी तो गाडियों का भी कुछ पक्का नहीं था। अगर विष्णुप्रयाग जायें तो कल्पेश्वर जाना खतरे में पड सकता है। इसलिये विष्णुप्रयाग को भविष्य के लिये छोड दिया गया और कल्पेश्वर के लिये चल पडे।
जोशीमठ से जब वापस चमोली की तरफ चलते हैं तो दस-बारह किलोमीटर बाद एक जगह आती है हेलंग। यहां से कल्पेश्वर के लिये रास्ता अलग होता है। हम उस तिराहे पर ही उतरे। यहां से उर्गम 12 किलोमीटर है। उर्गम तक मोटर रोड बनी है और उससे आगे तीन किलोमीटर पैदल चलना पडता है। अभी आठ बजे थे और पता चला कि उर्गम जाने के लिये दस बजे के बाद ही जीप मिलेगी। बस नहीं मिलेगी। दस बजे यानी दो घण्टे बाद, यह सोचकर हम उस सडक पर पैदल ही चल पडे। करीब सौ मीटर ही गये थे कि विधान ने एक जीवनदायी बात कही- यार हमने खाना तो खाया ही नहीं है। यह बात सुनकर मैं सकते में आ गया कि इतनी जरूरी बात मैं कैसे भूल गया। खैर, सौ मीटर ही आगे आये, वापस मेन रोड पर पहुंचे। आलू के दो-दो परांठे और चाय ली। हम खाना खा ही रहे थे कि एक जीप से एक गोरा उतरा। यह जोशीमठ में हमारे वाले होटल में ही रुका हुआ था। दो दिनों से हम इसे देख रहे थे। यह अमरीकी है। अक्सर होटल की छत पर बैठा रहता। देखते ही विधान ने इसे बुलाने के लिये आवाज लगाई तो उसने विधान को ढाबे वाला समझा और दूसरे ढाबे में चला गया। खैर, विधान उसके पास गया और आखिरकार गोरा पहचान गया। गोरे का नाम केल्विन था और उसे भी आज कल्पेश्वर ही जाना था और हमारे विपरीत उर्गम में रुकना था। हमने उससे साथ ही चलने को कहा लेकिन उसने यह कहकर मना कर दिया कि वो अकेला ही घूमना चाहता है।
हेलंग में जब ढाबे वाले को पता चला कि हम बेचारे समय के मारे हुए हैं और बद्रीनाथ नहीं जा पाये तो उसने बताया कि बद्रीनाथ आम लोगों के लिये आज से यानी पांच अप्रैल से खुल गया है। यह खबर अखबार में भी आई थी। असल में बद्रीनाथ के कपाट तो 29 अप्रैल को खुलने थे लेकिन वहां आना-जाना कुछ दिन पहले ही शुरू कर दिया जाता है। किसी से परमिट लेने की कोई जरुरत नहीं होती। जहां तक रास्ता मिलता है, वहां तक गाडियां भी चली जाती हैं और उससे आगे रास्ता बनाने का काम शुरू हो जाता है। दुकाने तैयार होने लगती हैं। मैं पिछले साल केदारनाथ गया था तो इसी दौरान गया था। हालांकि वहां पुलिस वालों ने रोका भी था। इसी की उम्मीद मुझे इस बार भी थी। लेकिन जोशीमठ में हमें इस बात की जानकारी नहीं हो सकी कि पांच तारीख से बद्रीनाथ जाना आम आदमियों के लिये सुलभ हो जायेगा, सभी बन्दिशें खत्म हो जायेंगी। लेकिन अब जब टाइम भी काफी हो गया है, जोशीमठ भी हमने छोड दिया है, तो वापस वहां जाना उचित नहीं था। और तीसरी बात कि हमें कल शाम तक हर हाल में हरिद्वार और परसों सुबह तक दिल्ली पहुंच जाना था। कल शाम तक हरिद्वार जाने का मतलब था कि हमें कल सुबह यहां से हरिद्वार के लिये चल पडना है। अगर हम बद्रीनाथ चले भी जाते तो आज ही वापस जोशीमठ आने की कोई गारण्टी नहीं थी। इसलिये बद्रीनाथ कैंसिल करके कल्पेश्वर के लिये चल पडे।
जब तक हमने चाय और परांठे खाये, तब तक केल्विन मात्र चाय पीकर हेलंग से चल पडा। उसकी चलने की स्पीड बढिया थी, इसलिये हम उसे आखिर तक नहीं पकड सके। पहले तो कुछ दूर सडक पर चलकर नीचे अलकनन्दा तक उतरना होता है, फिर उसे दूसरी तरफ ऊपर चढना होता है। यहां हेलंग में अलकनन्दा में हिरणावती नदी आकर मिलती है। हिरणावती के किनारे पर कल्पनाथ मन्दिर बना हुआ है। अब हमारी यात्रा हिरणावती के किनारे किनारे शुरू होती है।
हिरणावती के किनारे करीब एक किलोमीटर ही चले होंगे कि उस पर एक पुल दिखाई दिया। छोटा सा पैदल यात्रियों के लायक पुल था और उसके बाद ऊपर चढती बडी पगडण्डी दिखाई दे रही थी। ऊपर टंगा एक गांव भी दिख रहा था। जबकि सडक ने नदी पार नहीं की। मैंने सोचा कि हो सकता है कि यह पगडण्डी शॉर्टकट हो और सडक कहीं आगे से लम्बा चक्कर काट-काटकर जाती हो। यह भी हो सकता है कि यह पगडण्डी और कहीं जा रही हो। हम दोनों सोच में पड गये कि पगडण्डी से जायें या ना जायें। आखिरकार किसी का इंतजार करने वहीं बैठ गये।
थोडी देर बाद सडक की तरफ से एक आदमी आता दिखा। उसने बताया कि वो पगडण्डी और कहीं जा रही है। इसके अलावा उसने हमें नदी की इसी साइड में एक छोटा रास्ता भी बता दिया कि इससे चलते जाओ, जल्दी पहुंच जाओगे। हम उसके बताये रास्ते पर चल पडे। बेहतरीन चढाई थी। चीड का जंगल था और नीचे घास नहीं थी। हम जितना ऊपर जा रहे थे, नीचे सडक भी उतनी ही शानदार दिख रही थी- घुमावदार सडक। तभी हमें नीचे से एक जीप आती दिखी। हमने फटाफट अपनी नजदीकी सडक लोकेशन पर पहुंचकर जीप को रुकवाने की कोशिश की लेकिन उसमें कोई अधिकारी था। वो भला कब से इस तरह सवारियां बैठाने लगा। हमने थोडी देर तक तो मुंह लटकाया फिर चल पडे।
एक और गोरी चमडी वाला मिला। मुझे विदेशियों से बात करना अच्छा नहीं लगता। बाद में पता चला कि वो फ्रांसीसी था। वो भारी भरकम सामान से लदा था और पैदल ही जा रहा था। इसलिये उसके चलने की स्पीड बेहद कम थी। रुक-रुककर चल रहा था।
भारत में कुछ जगहें ऐसी हैं जहां विदेशी बडी संख्या में आते हैं। हरिद्वार में विदेशी नहीं दिखते, जबकि ऋषिकेश में इनकी बाढ लगी रहती है। इसी तरह हिमालय में भी कुछ खास जगहों पर ही इनकी ज्यादा आवाजाही रहती है। अलकनन्दा घाटी भी इनका बडा गढ है। हिमालय में इन्हें कोई धाम नहीं देखना होता, बल्कि वे यहां की सुन्दरता से बंधे रहते हैं। ट्रेकिंग करते हैं। आज सुबह सुबह हमने दो अलग-अलग देशों के घुमक्कड देखे, जबकि हमारे अलावा कोई भी भारतीय घुमक्कड नहीं दिखा।
खैर, एक लम्बी और थकाऊ चढाई चढकर हम सलना पहुंचे। पहले मैं पहुंचा, मेरे कुछ देर बाद विधान। जब से हमने ढाबा छोडा था, तब से कहीं पानी नहीं मिला। पूरे उम्मीद थी कि रास्ते में कहीं झरना मिल जायेगा। हम परांठे खाकर चले थे, इसलिये प्यास और भी ज्यादा लग रही थी। सलना पहुंचकर बडी राहत मिली। हालांकि यहां भी पानी हमारी पूरी परीक्षा लेकर मिला। गांव में पानी लाने वाली पाइप लाइन टूट गई थी, इसलिये पूरे गांव में मात्र एक जगह ही थोडा सा पानी आ रहा था, पूरा गांव पार करके। और जब प्यास के मारे सांस लेना भी भारी पडने लगा, पानी पीकर कितना सुकून मिला, हम ही जानते हैं।
सलना के बाद भी वैसे तो थोडी ही चढाई है, लेकिन जल्दी ही एक खुली घाटी सामने आ जाती है। इसे कहते हैं उर्गम। उर्गम किसी गांव का नाम नहीं है, बल्कि एक घाटी का नाम है, यानी उर्गम में कई गांव हैं। सलना उर्गम घाटी का पहला गांव है। हिरणावती नदी के उस तरफ भी एक के बाद एक कई गांव नजर आते हैं और उन सभी को जोडने वाली एकमात्र पगडण्डी भी दिखती है। उस तरफ का इलाका भर्की कहा जाता है, क्योंकि उधर भर्की ही सबसे बडा गांव है। हमें भर्की की कोई पहचान नहीं थी, हालांकि हमें वो दिख रहा था। भर्की से हिरणावती के किनारे-किनारे आखिर तक जाकर एक 17000 फीट का दर्रा पार करके बद्रीनाथ पहुंचा जा सकता है।
उर्गम घाटी भौगोलिक रूप से जहां से शुरू होती है, वहीं हेलंग से बारह किलोमीटर का सफर तय करके आने वाली सडक भी खत्म हो जाती है। यह घाटी इतनी खुली है कि यहां से तीन किलोमीटर दूर कल्पनाथ मन्दिर भी दिखाई देता है। पूरी घाटी में गांव और खेत ही हैं। गांवों में यात्रियों के ठहरने के लिये बढिया इंतजाम हैं। हमें यहां नहीं रुकना था, इसलिये इन इंतजामों की ज्यादा परवाह नहीं की।
और वो रहा कल्पेश्वर- उत्तराखण्ड के पांच केदारों में से एक। पांच केदार हैं- केदारनाथ, मदमहेश्वर, तुंगनाथ, रुद्रनाथ और कल्पेश्वर। मैं रुद्रनाथ को छोडकर बाकी चारों केदारों पर जा चुका हूं। यहां हिरणावती पर एक पुल है और पुल पार करके थोडी सी ऊंचाई पर एक बडी सी खुली गुफा के अन्दर कल्पेश्वर केदार स्थित है। यहां कोई मन्दिर नहीं है। बस एक बडी सी चट्टान के नीचे बनी गुफा में दो तीन दीवारें खडी करके शिवलिंग स्थापित है और उसी की पूजा होती है। आज यहां हमारा ही साम्राज्य था। पुजारी सोये पडे थे। उन्होंने हमें देख भी लिया था लेकिन वे उठे नहीं। एक खास बात यह भी है कि कल्पेश्वर के कपाट अन्य केदारों की भांति सर्दियों में बन्द नहीं होते। एक तो यह इतनी ऊंचाई पर नहीं है। बर्फ भी इतनी नहीं पडती। और फिर यह कल्पेश्वर यानी सृष्टि का ईश्वर है। यही बन्द हो जायेगा तो सृष्टि कैसे चलेगी?
सर्वाधिक सुगम है यह। यहां से तीन किलोमीटर पहले तक गाडी आ सकती है और बिल्कुल मन्दिर तक बाइक भी आ सकती है। पक्की तीन चार फीट चौडी सडक बनी है। कहीं भी सीढियां नहीं है। जब हम वापस लौट रहे थे तो कई बाइक सवार हमें जाते दिखाई दिये।
जब हम मन्दिर से वापस चल दिये तो हमें केल्विन मिला। वही अमरीकी। उसने उर्गम में एक कमरा ले लिया था और आज यही रुकेगा। वो न्यूयार्क का रहने वाला है और पक्का घुमक्कड है। पेशे से बढई है यानी कारपेण्टर। कुंवारा है, आगे पीछे कोई नहीं। मस्त मलंग है। यूरोप, अफ्रीका घूम चुका है, पिछले तीन महीनों से भारत में घूम रहा है। साल में तीन चार महीने इसी तरह घूमने में बिताता है। यानी आठ महीने खाट बनाता है और बाकी चार महीनों में तोडता है। केल्विन तुझे भारतीय घुमक्कड की रामराम, तुस्सी ग्रेट हो।
जब हम उर्गम पार करने ही वाले थे तो हमें फ्रांसीसी मिला। उसके पास भारी बोझ था और पसीने-पसीने हो रहा था। वो भी आज यहीं रुकेगा।
उर्गम में हमने पता किया कि हेलंग के लिये आखिरी जीप कितने बजे मिलेगी। पता चला कि कोई भरोसा नहीं है कि जाये भी या ना जाये। हम फिर से बारह किलोमीटर वापस पैदल चलने के लिये तैयार नहीं थे लेकिन फिर भी मानसिक रूप से तैयार थे कि हमें वापस भी पैदल ही जाना पड सकता है।
और आखिरकार सामान ढोने वाली छोटी गाडी मिल गई। अन्दर की दो सीटें पहले ही ‘बुक’ हो चुकी थी। हमें पीछे बैठकर जाना पडा। अन्धेरा होने तक हम चमोली पहुंच गये थे।
अगली बार चमोली से दिल्ली चलेंगे। लेकिन बिना फोटुओं के।

ऊपर दिख रहे बर्फीले पहाड अगर देख लिये हों तो नीचे बसे गांव को भी देख लीजिये।

हेलंग में कल्पेश्वर जाने के लिये लगी सूचना। यहां से मोटर मार्ग से 12 किलोमीटर की दूरी तय करके उर्गम आता है।

अलकनन्दा पर बना एक टूटा हुआ झूला पुल। इसका दूर वाला सिरा गौर से देखिये।

अगर ऊपर वाले फोटो में दूर वाला सिरा ना दिखा हो तो यह रहा उसी सिरे का साइड व्यू। इस पुल से कोई नहीं जाता। इसके बराबर में भारी भरकम मोटर सडक का पुल बन गया है।

उर्गम के रास्ते में।  बराबर में एक छोटी सी नहर है जिससे पानी नीचे बने पावर हाउस में जाता है। आजकल नहर बन्द है, यानी वो छोटा सा पावर हाउस भी बन्द है।

उर्गम के पैदल रास्ते में जाटराम

पता नहीं कुदरत क्या-क्या बना देती है। मुझे तो पहली बात कि इसका नाम भी नहीं पता, दूसरी बात कि .... कुछ नहीं कुछ नहीं।

हेलंग से एक जबरदस्त चढाई चढकर आते हैं हम सलना। यहां से थोडी सी चढाई और है और फिर हम पहुंच जाते हैं उर्गम। यह सलना है।

सलना गांव का एक घर और शानदार लोकेशन। ये गेहूं के खेत हैं।

सलना पार करके पानी पीकर बैठा जाटराम।

उर्गम घाटी के एक घर पर लगी कांग्रेज और भाजपा एक साथ। एक दुर्लभ नजारा।

उर्गम घाटी का एक गांव बडगिण्डा

मदहोश करने वाली घाटी है यह।

पंचधारा

उर्गम घाटी के बच्चे स्कूल से आते हुए।

उर्गम के बाद

कल्पेश्वर से पहले एक झरना

जाटराम आराम फरमा रहे हैं। चमडे के भारी भरकम जूते एक तरफ रखे हैं। मैं हमेशा इन्हीं जूतों से ट्रेकिंग करता हूं। ये मजबूत हैं और मैं ऐसे जूतों को पिछले सात साल से पहन रहा हूं। मुझे ये अब बडे आरामदायक लगते हैं।

विधान भी फोटो खिंचवाने के लिये पसर गया। इसके जूते फट गये हैं। कल औली गये थे ना, वहां फटे हैं।

बस पहुंच गये कल्पेश्वर। पुल पार करो। दस मीटर और चलो, और आप कल्पेश्वर में।

सन्देश तो बढिया है लेकिन इस पर लिखा है कि कल्पेश्वर से फ्यूला नारायण चार किलोमीटर। बाद में पता चला कि फ्यूला नारायण से बद्रीनाथ पैदल ज्यादा दूर नहीं है। बस 17000 फीट ऊंचा सोना शिखर पार करना पडेगा। इस रूट के बारे में मुझे पहले नहीं पता था। जाऊंगा कभी।

जय हो श्री कल्पनाथ

यही  है कल्पेश्वर।

विधान पूजा पाठ कर रहा है। घण्टा बजा रहा है। 

भगवान कल्पनाथ के दरबार में विधान

जाटराम भी

उत्तर प्रदेश लिखा है। यह स्थान उत्तराखण्ड के भीतर बहुत अन्दर जाकर है, फिर भी बारह साल पुरानी बात लिखी है, जब यहां तक उत्तर प्रदेश हुआ करता था।

कल्पेश्वर का एक और दृश्य

मोटरसाइकिल से भी कल्पेश्वर जा सकते हैं। उर्गम में जहां सडक खत्म होती है, वहीं से ऐसी तीन चार फीट चौडी सीढीरहित सडक है, जिस पर मोटरसाइकिल आराम से चलाई जा सकती है।

मालगाडी की छत पर यात्रा। अब चलते हैं हेलंग की ओर।

यह है तुंगनाथ, मदमहेश्वर, रुद्रनाथ, कल्पेश्वर, बद्रीनाथ ट्रेकिंग मार्ग

अमरीकी यात्री केल्विन। यह पेशे से बढई है यानी साल में आठ महीने खाट बनाता है और बाकी चार महीने खाट तोडता है। भयंकर घुमक्कड- यूरोप, अफ्रीका घूम चुका है और पिछले तीन महीनों से भारत में है।

और आखिर में एक गोह, जो यहां लगभग हर पत्थर के नीचे बैठी मिलती है।
अगला भाग: जोशीमठ यात्रा- चमोली से वापस दिल्ली

जोशीमठ यात्रा वृत्तान्त
1. जोशीमठ यात्रा- देवप्रयाग और रुद्रप्रयाग
2. जोशीमठ यात्रा- कर्णप्रयाग और नंदप्रयाग
3. जोशीमठ से औली पैदल यात्रा
4. औली और गोरसों बुग्याल
5. औली से जोशीमठ
6. कल्पेश्वर यानी पांचवां केदार
7. जोशीमठ यात्रा- चमोली से वापस दिल्ली

Comments

  1. जय कल्पेश्वर महादेव की.
    टूटा पुल , पहाड़ के नीचे गाँव के फोटो बहुत सुंदर लगे. केल्विन कितना चुस्त लग रहा था . उसने सेंडल में हे ट्रेकिंग केसे की . विधान जी इस पोस्ट में सिर्फ फटे जूते में ही याद रहे.....
    ७ साल पुराने जूते को कासिम का जूता न बन्ने देना.
    आपके लेख पड़ने में मजा आता हे . पुरे विवरण के साथ .

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  2. टक्कर का घूमक्कड़ मील ही गया आखीर!

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  3. नीरज भाई राम राम, कल्पेश्वर के फोटो पहली बार देखे है, विशेषकर घाटी के फोटो बहुत प्यारे हैं. बच्चो का फोटो बहुत अच्छा हैं, आपके बहाने कल्पेश्वर जी के भी दर्शन हो गए हैं, धन्यवाद.

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  4. वाह फोटो देखकर मन प्रसन्न हो गया।

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  5. केल्विन सेंडल में , विधान जी फटे जूते में.
    देवता जी ७ वर्षों से सेवा में लगे जूतों को कासिम का जूता न बन्ने देना . उस से पहले ही अपने ब्लॉग पर नीलामी का विज्ञापन जरूर देना .
    पुलों के फोटो, पहाड़ के नीचे गाँव , कल्पेश्वर महादेव और विधान के चेहरे पर मुस्कराहट ... बहुत सुंदर

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  6. बहुत बढ़िया रहा आज का सफ़र ..पहाड़ी गाँव देखकर मन प्रसन्न हो जाता हैं ..अमेरिकन भी बड़े घुमक्कड़ होते हैं ....जो कमाया सब खर्च ! कल की किसको चिंता ! लगता हैं विधान ने अपने ब्लॉग के लिए सारे फोटू रख लिए हैं ....इन पहाड़ो पर अकेले जाट राम को देखना भला लगा .....

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  7. neeraj babu mauja hi mauja

    lage raho.

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  8. bahut hi khubsurat yatra or photo bhi ati sundar
    bhai jute kaun si company ke hain or kitne ke hain agar batado ge to bahut meharbani hogi.

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  9. neeraj babu,kelvin ka bhi address le lo aap,wahan bhi chala jaya jayega.ghumane ke liye thanks

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  10. चित्र और वर्णन दोनों बेमिसाल...गज़ब जाट भाई...

    नीरज

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  11. I am a big fan of your blog.I myself like travelling and taking pictures.I also like reading travel diaries.Am currently in UK-and have travelled France,Switzerland and Ireland.Its a different cup of tea than yours-now that I am married and have 2 kids.

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  12. Jaatram jaindabad.
    tumhara blog padhkar isi baat ki prasannata hoti hai, ki itne kareeb ho ki kabhi bhi cycle utha kar chala aaun.

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  13. सब सत्यानाश! सिर मुंडाते ही ओले पड गये। बडी मुश्किल से इस लाइन का कार्यक्रम बनाया था। लेकिन दस्त लग गये और दस्तों से परेशान होकर सब कार्यक्रम रद्द कर दिया।

    'दस्त' के कारण कार्यक्रम स्थगित किया जाता है !!!!!!!!गजब !!!
    बील (बिल्व) का जूस ही पी लेता

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  14. नीरज जी ...आप के साथ बहुत अच्छी लगी कल्पेश्वर की यात्रा ......मजा आ गया | चित्र तो वहा के अतिसुन्दर लगे ......|

    ऊपर से ११ नंबर के फोटो में कांग्रेस का झंडा तो हैं पर दूसरा भाजपा का झंडा नहीं हैं ......

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  15. Gav ka location ekdam badhiya hai, aur jeep ke upar safar nischit hi majedar rahi hogi

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