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आखिरकार हम दोनों औली से वापस चल पडे। आज की यह पोस्ट कुछ ज्यादा नहीं है, बल्कि पिछली पोस्ट में बहुत ज्यादा फोटो थे, फिर भी कुछ फोटो बच गये थे तो उस कसर को आज निकाला गया है।
गोरसों बुग्याल में हमारी जान पहचान मुम्बई के एक परिवार से हुई। करीब तीन चार घण्टे तक हम साथ साथ रहे। उन्होंने हरिद्वार से ही एक कार बुक कर ली थी और गढवाल में घूम रहे थे। हमें इतनी जानकारी हो जाने के बाद कुछ ज्यादा मतलब उनसे नहीं रह गया था। अब हमें उनकी कार दिख रही थी। हम चाहते थे कि पैदल जाने के बजाय उनकी कार से ही जोशीमठ जायें। उसके लिये जरूरी था उनसे जान-पहचान बढाना ताकि अगर चलते समय वे शिष्टाचारवश भी कहें तो हम तुरन्त उनका पालन करे। हमने तय कर लिया था कि अगर उन्होंने यह ऑफर दिया तो हम इस मौके को किसी भी हालत में हाथ से नहीं जाने देंगे। गलती से भी शिष्टाचर नहीं दिखायेंगे, मना नहीं करेंगे। हम आज ही जोशीमठ से पैदल औली आये थे, गोरसों बुग्याल तक गये थे और थके हुए थे।
पार्किंग में कुछ लोग क्रिकेट खेल रहे थे, मुम्बई वाला भी उनमें शामिल हो गया। हम क्रिकेट खेलने के मूड में नहीं थे, इसलिये खेले नहीं। हमें आधा घण्टा हो गया कि उनका खेल बन्द हो और वे वहां से रवाना हों और हमसे भी साथ चलने को पूछें। हमने पिछले कुछ घण्टों से उनके दिमाग में यह बात अच्छी तरह घुसा दी थी कि हम पैदल ही जोशीमठ से आये हैं और अब फिर जोशीमठ ही जायेंगे।
जब क्रिकेट बन्द नहीं हुआ, हम दोनों उनकी प्रतीक्षा करके पक गये तो पके फल की तरह टूट कर गिर पडे। तय हुआ कि सडक पर ही पैदल चलते हैं, वे जब पीछे से आयेंगे तो शायद साथ चलने का ऑफर दे दें। आखिर वे भी घूमने वाले और हम भी घूमने वाले, पिछले चार घण्टों का साथ तो था ही। मैंने उन्हें कल चोपता जाने की सलाह भी दी थी, इस नाते उस सलाह के बदले कुछ दक्षिणा भी बनती है, इसलिये हम नाउम्मीद नहीं थे।
कम से कम तीन चार किलोमीटर तक सडक के साथ साथ जलेबी की तरह घूमते रहे, वे नहीं आये। हमें भी दो सौ पर्सेण्ट पक्का पता था कि वे आज जोशीमठ जायेंगे और फलाने होटल में रुकेंगे। कभी किसी की गाडी आ जाती, तो कभी किसी की लेकिन वे नहीं आये। आखिरकार उनकी गाडी दूर से आती दिखाई दी, तो हम तुरन्त उनके शिष्टाचार पर हां करने के लिये तैयार हो गये। लेकिन यह क्या????गाडी आई और सर्राटे से निकल गई। चारों के चारों पीछे घूमकर हमें देखते जा रहे थे।
अब तो कुछ उम्मीद नहीं बची। और अब हम क्यों सडक पर चलें? सडक ने हमें धोखा दे दिया और हमने भी इसे तुरन्त ही छोड दिया। पगडण्डी पकडी और नीचे उतरते गये। सवा छह बजे तक हम जोशीमठ में थे। खाया, पीया और सो गये। कल यहां लाइट थी, आज नहीं थी। आज बारिश हुई थी ना, इसलिये कहीं इसी वजह से लाइट चली गई होगी।
कल कल्पेश्वर चलेंगे।
जाटराम औली में उडनखटौले में |
सावधान, आगे तीव्र मोड है। |
औली से पर्वतों का नजारा |
शानदार दृश्य |
ऐसे नजारों की कमी नहीं है। |
पानी की टंकी और पानी के स्रोत |
कहां कहां टंगकर रहते हैं लोग? ऊपर टंगे एक गांव तक जाती सडक। |
एक और बढिया नजारा |
विधान चन्द्र उपाध्याय |
जाटराम |
दिन में चांद और वो भी हिमालय के ऊपर! यह नजारा था तो दोनों के सामने लेकिन दिखा केवल विधान को ही। |
औली- जोशीमठ रोड के किनारे लिखा गया एक ‘श्लोक’ |
विधान के चेहरे पर थकान के कोई भाव नहीं हैं। |
विधान और जाटराम में फरक साफ दिखाई दे रहा है। |
और आखिर में इसी सडक के दो फोटो दिखाऊंगा। एक तो देख लिया दूसरा नीचे है। |
कौन कहता है कि सडकों में जान नहीं होती, सडकें निर्जीव होती हैं? यह रही बलखाती, लहराती, घूमती, नाचती, कूदती, फांदती सजीव जीती जागती सडक। |
जोशीमठ यात्रा वृत्तान्त
1. जोशीमठ यात्रा- देवप्रयाग और रुद्रप्रयाग
2. जोशीमठ यात्रा- कर्णप्रयाग और नंदप्रयाग
3. जोशीमठ से औली पैदल यात्रा
4. औली और गोरसों बुग्याल
5. औली से जोशीमठ
6. कल्पेश्वर यानी पांचवां केदार
7. जोशीमठ यात्रा- चमोली से वापस दिल्ली
प्रकृति यहाँ एकान्त बैठ निज रूप सँवारति..
ReplyDeleteneeraj babu,mumbai waalo ko aap dono ke pairo per bharosha tha,
ReplyDeleteनीरज भाई बाहर जाकर किसी के भरोसे नहीं रहना चाहिए, खा गए न गच्चा। खैर फोटो बहुत गज़ब के हैं। मज़ा आ गया।
ReplyDeleteमुंबई वालों की हरकत को दिल से मत लगाओ भाई
ReplyDeleteविधान चन्द्र जी कितने खुश दिख रहें हैं . ....
भगवान् के दर्शन सब को नहीं होते ....केदारनाथ जी के दर्शन खुल गए और ६ लोग ठण्ड से मर गए लेकिन जाट भाई आप तो बरफ के बीच में अप्रैल के शुरू में ही झंडा फरहा आये थे.
मुंबई वालों की हरकत को दिल से मत लगाओ भाई
ReplyDeleteविधान चन्द्र जी कितने खुश दिख रहें हैं . ....
भगवान् के दर्शन सब को नहीं होते ....केदारनाथ जी के दर्शन खुल गए और ६ लोग ठण्ड से मर गए लेकिन जाट भाई आप तो बरफ के बीच में अप्रैल के शुरू में ही झंडा फरहा आये थे.
Bahut hi khubsurat nazare ..........
ReplyDeleteNeeraj ji to khar ghumta rahta hi hai par Vidhan ji ya yu kah lo guulu ji bhi kam nahi dikhta hai bhai kamaal ka josh hai.
जाट महाराज! यात्रा के दौरान तो आप अपने ही बनाये नियम ,कायदे और कानून से चलते है, लेकिन आप कैसे? इस बार गच्चा खा गये? वैसे आप इतनी यात्रा कर चुके हैं, आप एक ग्रन्थ लिख सकते हैं। यात्रा विवरण में आप के द्धारा शब्दों का चुनाव बहुत ही अच्छी तरह से करते हैं, चाहे वह आप अपनी जट भाषा का इस्तेमाल करें या कोर्इ और भाषा का इस्तेमाल करें। आप की अगली यात्रा के लिए मेरी तरफ से ढेर सारी शुभकामनाएं।
ReplyDeleteअरे नीरज बाबु ...कार के चक्कर में ही रुक रहे थे या कुछ और ही चक्कर था ऐं!!!!वैसे साधन तो मैं भी ढूंढ रहा था , लेकिन मुम्बई वालों का नहीं !!
ReplyDeleteमुंबई वालो के बारे में पढ़कर मुझे कोई आश्चर्य नहीं हुआ ...यहाँ हर दूसरा आदमी ऐसा ही हैं ..अपने काम से काम रखने वाला ...खेर, तुम्हे क्या ? तुम्हारे पैर सलामत रहे ...और अब कुछ सीख विधान से लो और रोज बादाम का हलवा खाओ थोड़ी ताकत आ जाएगी फिर थकोगे नहीं ? उडनखटोले में बैठने पर क्या कुछ बाँध रखा था या यु ही बेठे थे....
ReplyDeletemast
ReplyDeleteपरिचय के साथ जीवंत, लाजवाब तस्वीरें.
ReplyDeleteफोटोओ में औली तो बहुत खूबसूरत लग रहा हैं, हम भी जोशी मठ तक घूम आये पर किसी कारण से औली न जा पाए पर आपके चित्रों ने और लेख ने औली के बारे हमारी जिज्ञासा बहुत कम कर दी हैं .....| चलो कार वालो ने लिफ्ट नहीं दी तो क्या बात हैं ग्यारह नंबर की गाड़ी तो हैं आपके पास....| किसी से अधिक अपेक्षा करना भी कोई अच्छी बात नहीं.....|
ReplyDeleteAuli pehli baar dekha bus ab to jane ko man karta hai
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