4 अप्रैल 2012 की सुबह थी। आठ बजे मेरी आंख खुली। देखा कि विधान नहा भी लिया है। आराम से हम इसलिये सोकर उठे क्योंकि हमें आज मात्र औली तक ही जाना था और वापस आना था। कल पता चल गया था कि जोशीमठ से औली जाने वाली उडनतश्तरी मैंटेनेंस के लिये बन्द कर रखी है। सडक मार्ग भी है जो 13 किलोमीटर लम्बा है। इसके अलावा तीसरा रास्ता भी है जिसे पैदल रास्ता कहते हैं। यह करीब 8 किलोमीटर का पडता है।
मैं दो साल पहले
यमुनोत्री गया था, पिछले साल
केदारनाथ यात्रा की। इन दोनों यात्राओं की खास बात यह रही कि दोनों जगह मैं ऑफ सीजन में गया था। कपाट खुलते हैं तो इन मन्दिरों में पूजा-पाठ शुरू हो जाती है। और इसके साथ ही शुरू हो जाता है यात्रा सीजन। ऑफ सीजन में जाना खासा मनोरंजक होता है मुझ जैसों के लिये। केदारनाथ जाने के लिये एक बार तो लगा कि नहीं जा पायेंगे, पुलिस वालों ने रोक लिये थे। कहते थे कि परमिट लाओ, तभी जाने देंगे। लेकिन नसीब नसीब की बात होती है, बिना परमिट के ही जा पहुंचे भगवान केदार के सूने पडे दरबार में।
लेकिन नसीब हमेशा साथ नहीं देते। यहां से यानी जोशीमठ से बद्रीनाथ करीब 50 किलोमीटर दूर है। बद्रीनाथ जाने के लिये परमिट की जरुरत पडती, जो कि यहीं से बन जाता लेकिन फिर दिक्कत आती कि कैसे जायें। केदारनाथ तो इसलिये चले गये क्योंकि वहां ऑफ सीजन में भी गौरीकुण्ड तक बसें जीपें चलती हैं। गौरीकुण्ड से पैदल यात्रा शुरू होती है लेकिन यहां जोशीमठ से आगे बसें जीपें नहीं चलतीं। इसलिये हमें एसडीएम से परमिट लेकर कोई गाडी करनी पडती जो हमारी जेब से हजारों का बिल बनवा कर ही चैन लेती। इसलिये बद्रीनाथ का प्रोग्राम खत्म करना पडा। हम ही जानते हैं कि उस समय हमारे दिल पर क्या बीती थी। दो धाम मैंने ऑफ सीजन में कर रखे थे, तीसरा आज हो जाता तो गंगोत्री को तो कभी भी नाप देते। चारों धाम ऑफ सीजन में हो जाते जाटराम के।
खैर, यहां हमने कमरा एक रात भर के लिये लिया था। इसे अगली रात के लिये भी बढवा दिया गया और फालतू भारी सामान यही रख दिया गया। चल पडे औली की तरफ। हां, चलने से पहले आलू के दो-दो परांठे और चाय भी उदरस्थ कर दिये गये। साथ में बिस्कुट-नमकीन के पैकेट लिये गये। औली में ये चीजें महंगी मिलती हैं।
किसी ने बता दिया कि इस सडक पर वहां से सीधे हाथ पर मुड जाना, फिर ऐसे मुडना, फिर वैसे मुडना, फिर ऐसे, फिर वैसे, फिर सीधे चढते जाना। भूल गये। शुरू में सीधे हाथ मुडकर ऐसे-वैसे मुडना भूल गये और एक बन्द जगह में पहुंच गये। एक से पूछा तो उसने बताया कि ऐसे चले जाओ, वहां से टैक्सी कर लेना। मैंने कहा कि भाई, पैदल वाले हैं हम, पैदल वाला शॉर्ट कट बता दे। पहले तो आंख फाडी और फिर बोला कि मरोगे क्या? औली बहुत दूर है, वहां पैदल नहीं जा पाओगे। मैं सही सलाह दे रहा हूं। अच्छा, उसके अलावा कोई आसपास था भी नहीं इसलिये उसी से पूछना मजबूरी बन गई। वो भी पक्का घाघ ही निकला, बताया नहीं, बल्कि यही सलाह देता रहा कि पैदल नहीं जा सकोगे। वापस मुडे, किसी और से पूछा, तब जाकर सही रास्ते पर आये।
आदि शंकराचार्य थे ना??? वही जिन्होंने पूरे भारत के चारों कोनों में चार धामों की स्थापना की। वे यहां जोशीमठ में ही टिके थे। एक कल्पवृक्ष था, जिसके नीचे उन्होंने ध्यान लगाया था। वो कल्पवृक्ष आज भी है। आज उसके नीचे छोटे मन्दिर बने हैं, पुराने हैं, इसलिये शंकराचार्य की अवधारणा समझ में आ जाती है। नही तो मैं ही खारिज कर देता कि यहां शंकराचार्य आये थे। मजाक में कह रहा हूं कि खारिज कर देता। वे महान घुमक्कड थे और ऐसे महात्माओं की हम बडी इज्जत करते हैं।
खैर, कल्पवृक्ष के लगभग नीचे से औली वाला शॉर्टकट ऊपर चढता है। ऊपर तक गांव बसे हैं, इसलिये इंसानों के साथ साथ पालतुओं की भी आवाजाही बनी रहती है। जगह जगह सडक भी रास्ता काटती रहती है। चारों ओर के बढिया नजारे देखने को मिलते हैं। ढाई घण्टे लगे हम दोनों को औली तक जाने में। पसीना भी डटकर आया लेकिन आखिरकार महसूस नहीं हुआ कि हम थक गये हैं। ना थकने की शिकायत विधान को भी थी। है ना मजे की बात!
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जोशीमठ ज्योतिर्मठ का प्रवेश द्वार |
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ज्योतीश्वर महादेव मन्दिर- आदि गुरू शंकराचार्य की तपस्थली। इसके पीछे कल्पवृक्ष दिखाई दे रहा है। बताते है कि यह 2500 वर्षों से यहां खडा है। |
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महादेव मन्दिर के नन्दीगण |
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औली मार्ग से नीचे जोशीमठ और उसके पार पर्वतों का विहंगम नजारा |
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औली रोड से ऐसा दिखता है जोशीमठ |
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जोशीमठ के उस तरफ पहाड पर टंगे एक गांव तक जाने के लिये बनाई गई सडक |
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विधान चन्द्र उपाध्याय। अभी तक अपनी घुमक्कडी में मुझे दो ही ऐसे जीव मिले हैं, जिनसे मेरी सबसे ज्यादा बनती है। एक विधान और दूसरा अतुल। विधान एक कमजोर ताकतवर इंसान है। उसकी कमजोरी यह है कि वो मेरे बराबर नहीं चल सकता लेकिन ताकत यह है कि वो मुझसे हमेशा दस मीटर पीछे रहता है। मैं धीरे धीरे चलूं, तब भी दस मीटर और सुपरफास्ट चलूं, तब भी दस मीटर। है ना अजीब! |
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गजब का मोटापा और गजब का जज्बा। जोशीमठ से औली अच्छी खासी ऊंचाई पर है। हम पैदल गये थे। वापस आकर विधान के शब्द थे- यार, नीचे उतरना भारी पड रहा है। ऊपर जाने में पता ही चला कि हम कब ऊपर पहुंच गये। आमतौर पर होता उल्टा है। |
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मेरा घर से बाहर निकलना काफी होता है लेकिन आजतक पौधों के नाम तक पता नहीं चले। इसका नाम भी नहीं पता। लेकिन खूबसूरत लग रहा है। |
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जोशीमठ और उस तरफ अलकनन्दा घाटी। |
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ओहो, जाट महाराज बैठे हैं! |
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यह आफ्टर बसन्त है। धरती कितनी भी सूखी हो, लेकिन फूल मुस्कराते मिलते हैं। |
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यही छोटी सी बोतल सूमो पहलवान विधान की प्यास बुझाती थी और यही सूखे पहलवान जाटराम की भी। |
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फूल फिर से आ गये। नाम नहीं मालूम। एक तितली वाला फोटो भी खींचा था हमारे विधान भाई ने। पता नहीं कहां जा छुपा है। |
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अरे ये तो रहा। यह विधान का प्रोडक्ट है। उन्होंने ही खींचा है इस फोटो को। जाटराम में कहां इतनी अक्ल? |
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थकान तो हो ही जाती है। आराम करना भी जरूरी है। |
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रोंगटे खडे करने की जरुरत नहीं है। फोटो खींचने के लिये एक पैर पत्थर पर रख लिया, बस। विधान तो कह भी रहा था कि हम दुनिया को बतायेंगे कि ऐसे ऐसे रास्तों से निकलकर गये थे। विधान पक्की गड्ढाहीन औली रोड पर खडा फोटो खींच रहा है। |
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ये पांच छह झबरे झबरे कुत्ते थे। जंगल में इन लोकल जातियों से डर भी लगता है लेकिन हिमालय है ही ऐसा कि आदमियों की तरह यहां के जानवर भी बढिया होते हैं। |
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यह भी एक झूठा फोटो है। मात्र फोटो खिंचवाने के लिये। यह एक बरसाती नाला है। |
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विधान। गजब का इंसान। हम औली पहुंचने वाले हैं और सूमो पहलवान जैसा दिखने वाला अभी भी बिना थके चला जा रहा है। |
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ये फूल फिर आ गये? |
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यह है जोशीमठ- औली रोड। |
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जाटराम औली पहुंचने वाले हैं। |
अगला भाग: औली और गोरसों बुग्याल
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उत्तम चित्र ।
ReplyDeleteबढ़िया वृतांत ।।
चलो नीरज बाबु अगली बार मिलेंगे तो इस मोटापे के साथ नहीं मिलेंगे!!
ReplyDeleteneeraj babu,gajab ke insaan ho aap,bidhan g k jaisa main bhi sumo hoon,ab pakka aapke saath jaa sakta hoon.
ReplyDeletehamlog 17th MAY ko bokaro se 1. Amritsar phir 2. Mata vaishno devi ka darshan phir 3.ganga maiya ki aarti hardwar mein. 25th may ko wapsi hai.
Auli yatra ka intejar rahega.
मानना पड़ेगा नीरज की विधान भी मजबूत इंसान हैं वरना वजन की वजय से ऊपर चढ़ना बहुत मुश्किल होता हैं जय हो सुमो पहलवान की .....और साथ ही सूखे पहलवान की भी ...जबसे मुंबई से गया हैं ' हीरो' बन गया हैं रोज़ -रोज़ नई शर्ट!!!! वाह !!!!
ReplyDeleteपर्वतों के गाँव देखकर मन मयूर की तरह नाचने लगता हैं ...और फिर पहाड़ों से दीखते रास्ते ..क्या कहने ??? जल्दी ही ओली की तस्वीरे देखने की इच्छा हैं कहते हैं वो भारत का स्विज़रलैंड हैं ........
बहुत सुन्दर वाह!
ReplyDeleteआपकी यह ख़ूबसूरत प्रविष्टि कल दिनांक 23-04-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-858 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
नीरज भाई एक बेहतरीन यात्रा अपने चरम पर पहुंचती जा रही है अब ज्यादा इंतजार न करते हुए यात्रा का क्लाईमेक्स "औली" भी दिखा दीजिए. वैसे चार धाम कि यात्रा से वापसी में मैं भी १८-१९ तारीख को औली जाऊंगा. औली के फोटो का इंतजार रहेगा.....
ReplyDeleteयार! विधान को यूँ ही सुमो कह रहे हो। मुझे देखते उस उमर में या अब भी तो पता नहीं क्या कहते। ये तो फिलहाल बायें पैर का लिगामेंट चोटग्रस्त है। नहीं तो साथ चलता और बताता कि सुमो पहलवानों में क्षमता कितनी होती है। लगता है विधान दस मीटर पीछे इस लिए चलता है कि आगे चले तो जाटराम उसे पकड़ ही न पाएँ।
ReplyDeleteद्विवेदी जी अब मैं इस 'सूमोपन' से भी मुक्ति पा लूँगा , कुछ महीनो की मेहनत करनी है !!
DeleteNeeraj Ji..... New shirt.....
ReplyDeleteफिर एक बहुत सुंदर पोस्ट एवं सुंदर वादियाँ पुष्प और एक अच्छा यात्री साथी .
ReplyDeleteविधान, अतुल बहुत अच्छे लेकिन सीनिओर जाट का नाम नहीं लिख के परेशानी मोल ले ली
जोशीमठ के बारे में कुत्छ और फोटो विवरण दीजेये जिस व्यक्ति का सम्मान करना होता हे उसके पीछे ही चला जाता हे
सही कहा आपने !!
Deleteसर्वेश जी,
Deleteसीनियर जाट का नाम जानबूझकर नहीं लिखा है। दोनों जाटों की हर आदत अलग-अलग हैं। खाने की, पीने की, उठने की, बैठने की, सोने की, जागने की, सफर करने की... हर आदत।
यात्रओं में गजब की रोचकता है..
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteनीरज भाई राम राम, जोशीमठ के, और अलकनंदा घाटी के चित्र बहुत प्यारे हैं. पूरा जोशीमठ एक पहाड़ी ढलान पर बसा हुआ हैं. नीचे और सामने विष्णु प्रयाग परियोजना का काम दिखाई देता हैं. ये जो सामने पहाड़ पर सड़के दिखाई दे रही हैं, ये सब जे. पी. वालो ने बनायी हैं. उन पहाडो के नीचे सुरंगे बनाई हुई हैं, जिनसे होकर के अलकनंदा बहती हैं. एक बार जब जोशीमठ और बदरीनाथ के बीच में रास्ता बंद हो गया था तो हम लोगो को इन्ही सुरंगों से निकाला गया था. आपने जोशीमठ में खुबानी खाई या नहीं. ये वंहा पर बहुत होती हैं. फूलो के चित्र बहुत अच्छे हैं. विधान जी का स्टेमिना कमाल का हैं. इतने भारी शारीर के साथ, अच्छो अच्छो की ऐसी तैसी हो जाती हैं. अगली पोस्ट का इंतज़ार रहेगा.
ReplyDeleteगुप्ता जी, इस मौसम में खुबानी कहां!
Deleteजाट महाराज यह फूल आड़ू का है।
ReplyDeletemast
ReplyDeleteसचित्र वर्णन नीरज भाई
ReplyDeleteनीरज भाई आप गजब के इंसान हो यार आप की हर यात्रा का अपना हे विवरण है और आप ने बहुत सुन्दर सुन्दर पिक्चर दल कर जोशीमठ और आस पास की दरसन करा दिए हम को भी आप का बहुत बहुत शुक्रिया
ReplyDeleteअब आप के औली के यात्रा का इंतज़ार रहेगा
बहुत सुन्दर मनोरम द्रश्यों से सजी सुन्दर यादगार प्रस्तुति ...सच जिंदगी में यही कुछ पल ख़ुशी के बटोर ले तो क्या कहने फिर....
ReplyDeletebahut achhe neeraj jat bhai
ReplyDeleteकेदारनाथ जाने के लिये एक बार तो लगा कि नहीं जा पायेंगे, पुलिस वालों ने रोक लिये थे। कहते थे कि परमिट लाओ, तभी जाने देंगे। लेकिन नसीब नसीब की बात होती है, बिना परमिट के ही जा पहुंचे भगवान केदार के सूने पडे दरबार में।
ReplyDeleteneeraj babu main 2 april 2012 ko isi permit ki vajah se nahi jaa paaya tha kedarnath,,,
police walon ne vaapas bhaga diya rambada se hi........
पैदल जोशीमठ से ओली ..कमाल है .:) यादें ताजा हो गयी पढ़ कर
ReplyDeleteमानना पड़ेगा नीरज की विधान भी मजबूत इंसान हैं वरना वजन की वजय से ऊपर चढ़ना बहुत मुश्किल होता हैं जय हो सुमो पहलवान की .....और साथ ही सूखे पहलवान की भी ...जबसे मुंबई से गया हैं ' हीरो' बन गया हैं रोज़ -रोज़ नई शर्ट!!!! वाह !!!!
ReplyDeleteपर्वतों के गाँव देखकर मन मयूर की तरह नाचने लगता हैं ...और फिर पहाड़ों से दीखते रास्ते ..क्या कहने ??? जल्दी ही ओली की तस्वीरे देखने की इच्छा हैं कहते हैं वो भारत का स्विज़रलैंड हैं ....
मेरी टिप्पड़ी कही गायब हो गई थी नीरज ,मैंनें दोबारा लिखी हैं ..देखना कही ये गायब न हो जाए ..
ReplyDeleteमानना पड़ेगा नीरज की विधान भी मजबूत इंसान हैं वरना वजन की वजय से ऊपर चढ़ना बहुत मुश्किल होता हैं जय हो सुमो पहलवान की .....और साथ ही सूखे पहलवान की भी ...जबसे मुंबई से गया हैं ' हीरो' बन गया हैं रोज़ -रोज़ नई शर्ट!!!! वाह !!!!
Deleteपर्वतों के गाँव देखकर मन मयूर की तरह नाचने लगता हैं ...और फिर पहाड़ों से दीखते रास्ते ..क्या कहने ??? जल्दी ही ओली की तस्वीरे देखने की इच्छा हैं कहते हैं वो भारत का स्विज़रलैंड हैं ....
AE TIPPANI DEVI AB TU ADRASHY MAT HONA ...PLZ..
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ReplyDeleteUdantastri aur aise kai sabdo ke hum diwane hai, gajjab ki lekhni
ReplyDeleteआड़ू या सतालू (अंग्रेजी नाम : पीच (Peach); वास्पतिक नाम : प्रूनस पर्सिका; प्रजाति : प्रूनस; जाति : पर्सिका; कुल : रोज़ेसी) का उत्पत्तिस्थान चीन है। कुछ वैज्ञानिकों का मत है कि यह ईरान में उत्पन्न हुआ। यह पर्णपाती वृक्ष है।
ReplyDelete
ReplyDeleteपोस्ट में जो ७ और १० वी पिक्चर हैं वह जोशीमठ की एक सडक से खीची गयी हैं जिसमे एक बहुत ही सुंदर पहाड़ी के दर्शन होते हैं जिसे वहां के लो sleeping beauty के नाम से पुकारते हैं इस पहाड़ी का मुख्य फोटो इस लिंक पर देखें....
https://t.co/EfJCHXE7r0