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3 अप्रैल 2012 की सुबह मैं और विधान रुद्रप्रयाग में थे। यहां से बस पकडी और घण्टे भर में कर्णप्रयाग जा पहुंचे। आज रुद्रप्रयाग से आगे अलकनन्दा घाटी में मैं पहली बार आया था। नहीं तो मंदाकिनी घाटी में दो बार जा चुका था- एक बार मदमहेश्वर और दूसरी बार केदारनाथ और तुंगनाथ। रुद्रप्रयाग से कर्णप्रयाग जाते समय रास्ते में गौचर पडता है जहां हवाई पट्टी भी है। मेरे ध्यान कुछ कुछ ऐसा है कि कुछ दिन पहले सोनिया गांधी ने गौचर में ही ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल लाइन की नींव रखी है।
कर्णप्रयाग में अलकनन्दा में पिण्डर नदी आकर मिल जाती है। पिण्डर नदी पिण्डारी ग्लेशियर से निकलती है। मैं पिछले साल अक्टूबर में पिण्डारी ग्लेशियर गया था। तो इस प्रकार पिण्डर नदी पहली ऐसी नदी बन गई जिसका आदि और अन्त मैंने देखा है। आदि और अन्त यानी उद्गम और समागम। यह पिण्डारी ग्लेशियर से यहां कर्णप्रयाग तक आने में सौ किलोमीटर से भी ज्यादा का सफर तय करती है।
एक बात और रह गई कि कर्णप्रयाग गढवाल और कुमाऊं की सीमा पर बसा हुआ है। राजनीतिक रूप से यह गढवाल के चमोली जिले में है। लेकिन गढवाल से कुमाऊं जाने का एकमात्र सडक रास्ता यहीं से निकलता है। हालांकि कुछ रास्ते नीचे मैदानों से होकर भी हैं। और पिण्डर नदी इस रास्ते को और सुगमता प्रदान करती है। असल में गढवाल क्षेत्र की सभी नदियों का पानी गढवाल से ही होकर बहता है और अलकनन्दा और भागीरथी में जा पडता है और कुमाऊं की सभी नदियों का पानी केवल कुमाऊं में ही बहता है और रामगंगा, कोसी और काली नदी उस पानी को ले जाती हैं। लेकिन कुमाऊं में पैदा होने वाली, पलने-बढने वाली पिण्डर नदी इस परम्परा के खिलाफ है और गढवाल-कुमाऊं में भाईचारा स्थापित करती है।
खैर, यहां संगम तक तो नहीं गये लेकिन संगम के फोटो खींचने के लिये इधर उधर थोडा बहुत पैदल चलना पडा। यहां से फिर बस पकडी और बीस किलोमीटर आगे नंदप्रयाग जा पहुंचे। नंदप्रयाग से एक किलोमीटर पहले ही संगम दिखाई पड जाता है। नंदप्रयाग अलकनन्दा से काफी दूर नंदाकिनी नदी के किनारे बसा है। नंदाकिनी नदी होमकुण्ड से आती है। इसे हेमकुण्ड मत पढ लेना, यह होमकुण्ड है। जब रूपकुण्ड जाते हैं तो उससे भी आगे होमकुण्ड है। खुद रूपकुण्ड की यात्रा बेहद जोखिम भरी है, तो अंदाजा लगाइये कि होमकुण्ड की यात्रा कैसी होती होगी। अक्सर रूपकुण्ड जाने वाले ट्रैकर कर्णप्रयाग से पिण्डर नदी के साथ साथ आगे बढते हैं और लोहारजंग से अपनी ट्रैकिंग शुरू करते हैं और अगर उन्हें होमकुण्ड भी जाना हो तो रूपकुण्ड से आगे एक दर्रे को लांघकर होमकुण्ड पहुंचते हैं और वापसी में नंदाकिनी के साथ साथ नंदप्रयाग आ जाते हैं। नंदप्रयाग से नंदाकिनी घाटी में यानी होमकुण्ड की तरफ 18 किलोमीटर आगे घाट नामक गांव है, जहां तक पक्की सडक बनी है और बसें जीपें भी चलती हैं।
हालांकि मैंने नंदप्रयाग से एक किलोमीटर पहले ही संगम देख लिया था इसलिये मुख्य बस अड्डे से संगम तक का रास्ता भी पता चल गया था। मुख्य बस अड्डे पर उतरकर हम करीब एक किलोमीटर संगम की तरफ चले। यहां अलकनन्दा तो अपने उसी अल्हड अंदाज में बहती है लेकिन नंदाकिनी शान्त है। नंदाकिनी एक स्थान पर चौडी होकर बहती है तो यहां नहाने का उपयुक्त माहौल और जगह बन जाती है। हमसे पहले कुछ बच्चे यहां नहा भी रहे थे और मछलियां भी पकड रहे थे।
कल दिल्ली से हम बिना नहाये चले थे, आज रुद्रप्रयाग से भी बिना नहाये ही चल पडे। अब नंदप्रयाग तक पहुंचते पहुंचते दोपहर हो गई और गर्मी भी काफी हो गई। विधान ठहरा पानी का दीवाना और कूद पडा। वो तैरना जानता है, इसलिये उसने इस अपेक्षाकृत शान्त हिमालयी नदी में अपना यह हुनर आजमाया भी। पानी काफी ठण्डा था, इस बात का पता मुझे तब चला जब मैं खुद पानी में उतरा। मैं हैरत में हूं कि विधान घण्टे भर तक कैसे पानी में बन्दरों की तरह उछल-कूद मचाता रहा जबकि मुझे पांच मिनट भी गुजारने भारी हो गये।
खैर, यहां से निकलकर चमोली वाली जीप में बैठ गये। चमोली यहां से दस किलोमीटर दूर है। चमोली से एक रास्ता गोपेश्वर चला जाता है और एक जोशीमठ। चमोली पहुंचते ही हमें जोशीमठ वाली जीप मिल गई।
असली पहाड हमें अब दिखाई देने शुरू हुए। यहां कल से रुक रुक कर बारिश हो रही थी और बारिश में गढवाल के पहाड बडे ही खतरनाक बन जाते हैं। तो जी, बन गये यहां भी ये पहाड खतरनाक और एक स्थान पर ढह भी गये। भूस्खलन हो गया और उसकी चपेट में आकर सब्जियों से भरा एक ट्रक भी नीचे जा पडा। हजारों फीट नीचे अलकनन्दा नदी के किनारे वो ट्रक परखच्चों की हालत में ‘मृत’ पडा था। उसके साथ तीन जानें और भी गईं, हालांकि चार जानें घायल ही हुईं। ऊपर सडक से उस ट्रक का बचाव अभियान चल रहा था। एक क्रेन थी, जिसमें मोटे मोटे तार बांधकर ट्रक को ऊपर खींचा जा रहा था।
यहीं मिट्टी खिसक जाने से दलदल भी बन गई थी जिसमें एक जीप फंसी खडी थी। घण्टे भर तक मुझ जैसे लोग तमाशा देखते रहे, विधान जैसे चिल्लाते रहे और कुछ गिने चुने लोग उसे निकालने के लिये कीचड और दलदल में घुसे रहे। खैर, उन गिने चुने लोगों के सामूहिक प्रयासों से जीप निकल गई। इसके बाद एक ‘छोटा हाथी’ भी यहां से निकलने के लिये आया लेकिन कम स्पीड होने के कारण वो फंसने से बच गया लेकिन उसे बाकी लोगों ने नहीं निकलने दिया। जब दोनों तरफ खडी बाकी गाडियां निकल जायेंगी, तभी वो ‘हाथी’ निकलेगा।
अंधेरा होने से पहले हम जोशीमठ पहुंच गये। ऑफ सीजन था, इसलिये आराम से बिना हाथ-पैर मारे 300 रुपये का शानदार कमरा मिल गया।
कर्णप्रयाग में अलकनन्दा और पिण्डर का संगम |
कर्णप्रयाग |
कर्णप्रयाग में एक छोटी सी सुरंग भी है। इससे एक लोकल रोड गुजरती है, बद्रीनाथ रोड नहीं। |
अलकनन्दा और पिण्डर का संगम। सामने से पुल के नीचे से पिण्डर नदी आ रही है। |
और अब हम जा पहुंचे नंदप्रयाग। नंदप्रयाग में नंदाकिनी पर बना एक छोटा सा झूला पुल। मैंने जितने भी झूले पुल अब तक पार किये हैं, यह सबसे अधिक हिलता था। |
नंदाकिनी नदी |
नंदाकिनी संगम से जरा सा पहले चौडी होकर बहती है जिससे पानी की स्पीड कम हो जाती है। यहां नहाने की बडी शानदार जगह बनती है। |
और विधान शुरू हो गया। |
उसी झूला पुल पर खडे कुछ स्कूली बच्चे। |
झूले पुल के नीचे खडा एक ‘दर्शक’ |
कुछ नन्हे नंगे तैराक |
मूड तो नहीं था लेकिन आखिरकार जाटराम को नहाने की तैयारी करनी ही पडी। |
नंदाकिनी नदी |
जाटराम की नहाते समय बनावटी हंसी |
जोशीमठ जाते समय भू-स्खलन |
उस भू-स्खलन से सब्जियों से भरा एक ट्रक नदी में गिर गया जिससे तीन लोगों की मौत हो गई और चार घायल हो गये। सैंकडों फीट नीचे पडा ट्रक का मलबा। |
भू-स्खलन के पास लगी वाहनों की लाइन। ऑफ सीजन है, नहीं तो बडी लम्बी लाइन लग जाती। |
अगला भाग: जोशीमठ से औली पैदल यात्रा
जोशीमठ यात्रा वृत्तान्त
1. जोशीमठ यात्रा- देवप्रयाग और रुद्रप्रयाग
2. जोशीमठ यात्रा- कर्णप्रयाग और नंदप्रयाग
3. जोशीमठ से औली पैदल यात्रा
4. औली और गोरसों बुग्याल
5. औली से जोशीमठ
6. कल्पेश्वर यानी पांचवां केदार
7. जोशीमठ यात्रा- चमोली से वापस दिल्ली
आप के साथ हम भी यात्रा करते चलते हैं। यहाँ नन्दाकिनी और होमकुंड दो नए नाम जाने।
ReplyDeleteneeraj babu,majaaaaaaaaaaaaaa aa gaya.ghumane ke liye thanks.
ReplyDeleteनीरज जी आपका और विधान जी का अंग प्रदर्शन अच्छा लगा. कर्णप्रयाग बहुत ही प्यारा संगम हैं. और आपका कहना सही हैं की ये गढ़वाल और कुमाऊ के संगम पर हैं. एक बार हम नैनीताल से अल्मोड़ा, कौशानी होते हुए अन्दर के रास्ते से होते हुए कर्णप्रयाग पहुंचे थे, रास्ते में ग्वाल्दाम पड़ता हैं, जो की एक छोटा सा खुबसूरत स्थान है. फिर नारायण बगड़ होते हुए पिंडर के साथ साथ कर्णप्रयाग पहुँच गए थे. यंहा पर संगम के दूसरी तरफ, जंहा से चढ़ाई शुरू होती हैं, एक होटल में खाना बहुत अच्छा मिलता हैं. वैसे इससे आगे सारा रास्ता खतरनाक हैं. जरा सी बारिश होते ही बंद हो जाता हैं. हम भी एक बार पीपल कोटि के पास ८ घंटे फंसे रहे थे. आपका यात्रा वृत्तान्त और चित्र बहुत अच्छे हैं. अगली पोस्ट की प्रतीक्षा रहेगी.
ReplyDeleteऐसी जलराशि हम भी छपाक से कूदने को तैयार रहते हैं।
ReplyDeletemast
ReplyDeletebhai mera bhi man paani main kud kud kar nahaane ka karta hai lekin ye pahaad ki nadiyon ka paani bahut thanda hota hai, main bhi nahaya tha 1 april ko ganga ji main har ki paidi par pure 40 minute tak so aisee sardi ghusi hai sarir main ki aaj tak baahar nikalne ka naam nahi le rahi hai,,
ReplyDeleteneeraj babu dur hi raha karo pahadon main paani se.....
भईया, हम तो नहाने वहाने के चक्कर से दूर ही रहते हैं, लेकिन विधान नहीं माना। कसम से भईया, मैंने एक ही गोता लगाया और कुछ ही सेकण्डों में बाहर आ गया, जबकि विधान आधे पौने घण्टे तक कूदता रहा।
Deleteवैसे इस नदी में इस जगह पर पानी शान्त था, इसलिये नहा भी लिये। नहीं तो रास्ते में देवप्रयाग, रुद्रप्रयाग, कर्णप्रयाग भी पडे थे।
Maja agaya apana gav dekh kar......
ReplyDeleteकौन सा गांव है जी आपका?
Deleteअरे नीरज सचमुच नहाया या सिर्फ ड्रायक्लीन की ...ही ही ही ..क्योकि जुम्मे के जुम्मे नहाने वाला नीरज आज कैसे नहा लिया ??
ReplyDeleteभाई ,पहाड़ी गाँव देखकर तबियत खुश हो जाती हैं ...हेमकुंड साहेब जाते समय ये तमाम प्रयाग देखे थे और ये छोटे -छोटे पुल बड़े सुंदर लगते हैं ,,,,वाह !
bahut hi sargarvit foto sahit janakari di hai ..
ReplyDeleteइस रूट पे तो हमने भी यात्रा कर राखी है...पुराणी यादें ताज़ा हो गयीं...
ReplyDeleteनीरज
गजब है, ट्रक का तो कुछ बचा ही नहीं, मकोड़े जैसा दिक्खे है।
ReplyDeleteप्रयाग दर्शन कराने के लिए धन्यवाद, नीरज भाई. कर्णप्रयाग संगम पर स्नान ने अपनी पुरानी यादें ताजा कर दी. प्रस्तावित ऋषिकेश - कर्णप्रयाग रेल मार्ग के बारे में मैंने भी सुना है, आप जैसे रेल प्रेमियों की लिए वाकई अच्छी खबर है और दूसरे फेज़ में इसे माणा तक ले जाने का प्रस्ताव है.
ReplyDeleteनीरज जी ....नंदाकिनी नदी का पानी कितना ठंडा था ...| चलो विधान के उकसाने पर नहा तो लिए.....अन्यथा मुझे लगता हैं की आपका नहाने का मन नहीं करता होगा ...| सभी प्रयाग अच्छे लग रहे फोटो में....
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