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21 अप्रैल 2011 को जब हम त्रियुगी नारायण में बैठे चाय पी रहे थे तो चायवाले ने अकस्मात ही कहा कि वो देखो, वहां तुंगनाथ है। उसके ‘वो देखो’ इन दो शब्दों में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं थी लेकिन जैसे ही कानों में पडा कि ‘वहां तुंगनाथ है’ तो तुरन्त गर्दन उधर घूम गई। दूर- बहुत दूर नीली पहाडियां दिख रही थीं। उनके बाये हिस्से में कुछ बर्फ भी दिखाई दे रही थी। लेकिन चायवाले ने बताया कि बरफ के दाहिने वाली चोटी तुंगनाथ है। इसका मतलब था कि तुंगनाथ में बर्फ नहीं है।
तुंगनाथ पूरी दुनिया में सबसे अधिक ऊंचाई पर स्थित हिन्दू मन्दिर है। इसकी समुद्र तल से ऊंचाई 3680 मीटर है। यह पंचकेदारों में तीसरा केदार है। हम कल पहले केदार यानी केदारनाथ में थे और वहां दस फीट तक बर्फ थी तो सोचा था कि तुंगनाथ इससे भी अधिक ऊंचाई पर है तो वहां भी खूब बर्फ होगी। शायद ना भी जा पायें। लेकिन अब देखने से लग रहा है कि तुंगनाथ में बर्फ नहीं है तो जा सकते हैं। बस, तभी इरादा बना लिया सुबह सात बजे गुप्तकाशी से गोपेश्वर जाने वाली बस पकडने का।
मैं पहले भी बता चुका हूं कि मेरा हमसफर सिद्धान्त अपने घर पर बताकर आया था कि वो देहरादून जा रहा है। तीन दिन मंदाकिनी की घाटी में काटने के बाद हालात ऐसे बने कि उसे चौथे दिन वास्तव में देहरादून में होना चाहिये था। इसलिये सिद्धान्त की तरफ से तुंगनाथ जाने की मनाही हो गई। सुबह मैंने तो गोपेश्वर वाली बस पकडी और सिद्धान्त ने हरिद्वार वाली।
40 रुपये लगे और मैं दो घण्टे बाद नौ बजे तक चोपता पहुंच गया। अच्छा हां, एक बात और है। मैं चोपता के नाम से थोडा इमोशनल सा हो जाता हूं। 24 फरवरी 2008 का दिन था, इतवार था। दैनिक जागरण के यात्रा पेज पर लिखा था- प्रकृति से एकाकार कराता चोपता तुंगनाथ। यह लेख मुझे इतना पसन्द आया कि मैंने इसे अपने उस समय के अभिन्न मित्र रामबाबू को दिखाया। रामबाबू और मेरे शब्द थे कि पता नहीं इस जन्नत में कभी जा पायेंगे या नहीं। और ऊपर वाले की मेहरबानी है कि तीन साल दो महीने बाद मैं उस जन्नत में पहुंच गया। हां, रामबाबू साथ नहीं था।
चोपता से लगा हुआ ही दुगलबिट्टा है। दोनों जगहें अपने बुग्यालों के लिये प्रसिद्ध हैं।
चोपता से तुंगनाथ मन्दिर की दूरी साढे तीन किलोमीटर है। पक्का पैदल रास्ता बना हुआ है। यहां मेरी उम्मीद के विपरीत काफी चहल-पहल थी। हालांकि अभी यहां के कपाट नहीं खुले थे। फिर भी कम पैदल चलने के कारण पंचकेदारों में सबसे ज्यादा चहल-पहल यही रहती है।
इस चित्र पर क्लिक करें और यह बताये कि वे दो जने क्या कर रहे हैं। चलिये मैं ही बता देता हूं। वे दोनों लडकियां हैं और चोपता से शॉर्ट कट से आ रही हैं और कमर पर कोल्ड ड्रिंक की दो-दो पेटियां लाद रखी हैं। डेढ किलोमीटर पर इनकी दुकान है।
नीचे बायें कोने में दुगलबिट्टा का बुग्याल दिख रहा है।
यह स्थान देवदर्शनी है। यहां चाय की एक दुकान है। यह एक ऐसी जगह है जहां से यमुनोत्री, गंगोत्री से लेकर बद्रीनाथ तक की चोटियां दिखाई देती हैं। त्रियुगी नारायण भी दिखता है। सामने तुंगनाथ से ऊपर चंद्रशिला चोटी दिखाई दे रही है।
ऊपर दाहिने कोने में चंद्रशिला चोटी है। उससे कुछ नीचे तुंगनाथ मन्दिर है। दूरी यहां से करीब एक किलोमीटर है।
मन्दिर के आसपास काफी बर्फ है। यहां तक कि रास्ता भी बर्फ के ऊपर से ही है।
यह बन्दा दिल्ली से आया था। इसके दो साथी और हैं। यह उन दोनों को किसी तरह घेर-घोटकर देवदर्शनी तक ले आया था। लेकिन दोनों बेचारे ऐसे थे कि लाख कोशिश करने पर भी देवदर्शनी से आगे नहीं चल पाये। इसलिये इसे अकेले ही आना पडा।
जय श्री तुंगनाथ
असल में हुआ यूं कि इसे बर्फ के उस तरफ से इस तरफ आना था। मैं इसका इरादा समझ गया। मुझे लगा कि जब यह बर्फ से गुजरेगा तो बर्फ के ढलान की वजह से यह पक्का फिसल जायेगा। मैंने कैमरा तैयार कर लिया कि जब यह फिसलेगा तो फोटो खींचूंगा। लेकिन इसने दो कदम बर्फ पर चलते ही छलांग लगा दी और सफलतापूर्वक इधर आ गया। इस फोटो में यह छलांग लगा रहा है।
यह है चंद्रशिला जाने का रास्ता। चंद्रशिला तुंगनाथ से डेढ किलोमीटर दूर एक चोटी है।
अगला भाग: चन्द्रशिला और तुंगनाथ में बर्फबारी
केदारनाथ तुंगनाथ यात्रा
1. केदारनाथ यात्रा
2. केदारनाथ यात्रा- गुप्तकाशी से रामबाडा
3. केदारनाथ में दस फीट बर्फ
4. केदारनाथ में बर्फ और वापस गौरीकुण्ड
5. त्रियुगी नारायण मन्दिर- शिव पार्वती का विवाह मण्डप
6. तुंगनाथ यात्रा
7. चन्द्रशिला और तुंगनाथ में बर्फबारी
8. तुंगनाथ से वापसी भी कम मजेदार नहीं
9. केदारनाथ-तुंगनाथ का कुल खर्चा- 1600 रुपये
स्वर्ग और किसे कहेंगे?
ReplyDeleteजय हो आपकी और आपकी घुम्मकड़ी की....कहाँ कहाँ नहीं घूम आ रहे हैं आप..
ReplyDeleteस्वर्ग
ReplyDeletetusi great ho paaZi.
ReplyDeleteनवीन जानकारी के साथ चित्रों का सुन्दर संयोजन. और कोल्डड्रिंक्स का तो ऐसा है कि आज दुर्गमतम क्षेत्रों में भी चले जायें साफ़ पानी मिले न मिले ये ड्रिंक्स जरुर मिल जायेंगे !
ReplyDeleteतुंगनाथ पूरी दुनिया में सबसे अधिक ऊंचाई पर स्थित हिन्दू मन्दिर है- पक्का?
ReplyDelete|बेहतरीन |
यह बर्फ़ तो पुरानी( कई दिन पहले) की लगती हे, फ़ोटो भी बहुत सुंदर आये, मै भी शनि वार को युरोप की सब से ऊंची पहाड की चोटी पर जा रहा हुं(ट्रेन से) फ़िर पोस्ट लिखूंगा चित्रो समेत, तब तक राम राम
ReplyDeleteभाई जी आपके माध्यम से हमने भी जीते जी स्वर्ग की सैर कर ली...आपकी जितनी प्रशंशा करूँ कम होगी...आपकी जय हो...
ReplyDeleteनीरज
23 May Kareri Jheel, mujhe le chalein apne saath, kahan se aaoge aap? kripya agar ek extra yaatri ka scope hai to le chalein mujhe bhi
ReplyDelete{main do saal Dharamshala mein raha hun]
फोटो पूरी नही है, इसमे आपकी मशहूर शर्ट की फोटो कहां है?
ReplyDeleteसुन्दर चित्रों के साथ बढ़िया यात्रा संस्मरण!
ReplyDeleteरोमांचक यात्रा वृतांत । चित्र तो बेहद सजीव हैं । धन्य है आपकी घुमक्कड़ी ।
ReplyDeleteमेरा भी मन कर रहा है आप के साथ चल पड़ने का।
ReplyDeleteक्या कहूं, मेरी तो प्यारी जगह है ये
ReplyDeletechalo itne sundar tasveeron ke saath hamen bhi laga hamne bhi TUNGNATH ji ka darshan kar liye.... bahut badiya prastuti ke liye aapka aabhar
ReplyDeleteअसली मजे ले रहे हो भाई!
ReplyDelete@ अभिषेक मिश्र जी,
ReplyDeleteभाई, ये दुर्गम जगहें हमें जितनी सुन्दर लगती हैं वहां के स्थानीय निवासियों के लिये जीवन निर्वाह करना भी उतना ही मुश्किल होता है। कोल्ड ड्रिंक के सहारे इन्हें थोडी बहुत आमदनी होती है तो हमें इसे गलत नहीं मानना चाहिये।
@ तरुण गोयल,
हो सकता है कि लद्दाख या लाहौल स्पीति या किसी और जगह इससे भी ऊंचाई पर कोई मन्दिर मिल जाये। और तुंगनाथ से डेढ किलोमीटर ऊपर चंद्रशिला है जहां गंगा मन्दिर है। लेकिन फिर भी यह ठप्पा तुंगनाथ पर ही लगा हुआ है।
@ आशीष श्रीवास्तव,
भाई जी, मैंने पूरी यात्रा के दौरान वही शर्ट पहन रखी थी। हां, ठण्ड होने के कारण ऊपर से जैकेट डाल रखी है। जरा गौर से देखिये।
आपकी हिम्मत है जो अकेले ही घूम रहे है काफी दिनों से आपकी पोस्ट पढ़ रहा हु और हरिद्वार में बेठा बेठा ये ही सोच रहा हु काश मैं भी आपके साथ घूम रहा होता मुझे भी पहड़ो पर घुमने का बहुत शोक है लेकिन जिन्दगी ऐसी बीत रही है की ये शोक आपकी पोस्ट देख कर ही पुरे कर रहे है कभी भगवान ने चाह तो अकेले न सही किसी और के साथ आपने जिन जिन जगह के फोटो दिए है और उनके बारे में बताया है उन जगह पर जरुर जायेंगे पिछले हफ्ते से ही आपकी पोस्ट पढनी सुरु करी अच्छा लगा आपकी पोस्ट पढ़कर आपने घर पर बेठे बेठे ही ऐसी जगह के दर्शन करा दिए जो शायद ही कभी देखने को मिले
ReplyDeleteआह ..प्रकृति जैसे छलक छलक पढ़ रही है तस्वीरों से.
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत.
भाई छोरे जाट के ...तन्न्ने दिल जीत लिया यार म्हारा .......excellent ...my dear friend ....keep it up ...मेरा एक दोस्त है ......saari जिंदगी बिता दी उसने अपनी दूकान पर बैठे बैठे ...... जब भी मैं उसे देखता हूँ तो सोचता हूँ ...क्या इश्वर ने इसे मनुष्य का शरीर इसी लिए दिया था की ये टा उम्र इसी दूकान पर बैठ कर बिता दे ..........यार मैं अपने आप को बड़ा घुमक्कड़ समझता था ...पर अब पता लगा ...हमारे भी बाप हैं इस दुनिया में .......love you man
ReplyDeleteअजित सिंह
रोमांचक यात्रा वृतांत । चित्र तो बेहद सजीव हैं ।खास कर के बुरांश के फूलों की|धन्यवाद|
ReplyDeleteneeraj ji aap to kamaal ho..... post ke liye dhanyavad
ReplyDeleteI would like to add few more lines for approaching CHOPTA. Last year I reached Ukhimath via Delhi-Guptkashi bus in the month of April. This bus does not go to Ukhimath, but can drop withing the range of 10kms. I was accompanied with my friend. We reached ukhimath at 10.30 am only to find that there is not jeep till next day. Last jeep departs at around 10 am during non yatra period. And if one wishes for hiring jeep, cost is 800/-. The distance is just 28 kms.
ReplyDeletehmmmmmm....We trekked upto chopta that day rather than staying at Ukhimath. So if someone reaching chopta after 10 am during non yatra period, be ready for this experience as well.
Vishal Dixit (retired wanderer)
चर्चा -मंच पर आपका स्वागत है --आपके बारे मै मेरी क्या भावनाए है --आज ही आकर मुझे आवगत कराए -धन्यवाद !
ReplyDeletehttp://charchamanch.blogspot.com/
http://akelachana.blogspot.com/2011/02/gangatok.html
ReplyDeleteनीरज जी ...मेरा भी एक यात्रा वृत्तान्त है ...कुछ अलग अंदाज़ में लिखा है ...उम्मीद है पसंद आयेगा .....
अजित
नीरज रास्ते मे "दो " महाशय दिखे थे ...एक को मेने पहचान लिया दूसरा कोन है ?
ReplyDeletehttp://akelachana.blogspot.com/2011/02/gangatok.html
ReplyDeleteneeraj ji .....
हमारा भी ये यात्रा वृत्तान्त पढ़िए ...मज़ा आयेगा आपको
ajit
अच्छा वृतांत वर्णन है नीरज भाई ...
ReplyDeleteअपने कॉलेज के दिनों में गया था एक बार तुंगनाथ |
मन होता है फिर से हो आऊ..
मस्त जगह है एकदम..
chorey anddy reeee
ReplyDeletechorey anddy reeee
ReplyDeletechorey anddy reeee
ReplyDeleteAap se hum bi ja sakte h ky....
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