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25 मई 2011 की सुबह थी, जब मैं और गप्पू अपनी घुमक्कडी को नये आयाम देने करेरी गांव में सोकर उठे। आज हमें यहां से 13 किलोमीटर दूर ऊपर पहाडों में झील तक जाना था। हालांकि शलभ के अनुसार करेरी गांव से इसकी दूरी 10 किलोमीटर है। गांव वाले ज्यादा बताते हैं। यह झील दुनिया के किसी भी पर्यटन नक्शे में नहीं है। यह झील है केवल घुमक्कडों के नक्शे में। इस झील का ना तो कोई धार्मिक महत्व है, हालांकि झील के किनारे एक छोटा सा मन्दिर बना है। ना ही किसी आम पर्यटन स्थल की तरह है। जिनके पैरों में चलने की खाज होती रहती है, वे ही लोग इस झील को जानते हैं और वे ही यहां तक जाते भी हैं।
कल हमारी योजना थी कि आज सुबह जितनी जल्दी हो सके, उठकर निकल पडना है और शाम तक हर हाल में वापस भी आना है। कुल मिलाकर 26 किलोमीटर का आना-जाना हो जायेगा। मैं तो इसे कर सकता था, लेकिन गप्पू जी कुछ ऐसे ही थे कि शायद ना भी कर पाते। क्योंकि ऊपर झील के आसपास बताते हैं कि टेंट लगे हैं। हम टेंट में रुकने के खर्चे से बचना चाहते थे। जिस मकान में हम रात को रुके थे, उनका लडका सतीश मैक्लोडगंज में ट्रेकिंग करवाता है। वो आज घर पर ही था। कल सोते समय उसने कहा था कि उसके पास स्लीपिंग बैग हैं। अगर चाहो तो ले जा सकते हो। स्लीपिंग बैग मैंने कभी इस्तेमाल नहीं किया है (अमरनाथ यात्रा के दौरान शेषनाग झील पर मिलिट्री वाले स्लीपिंग बैग मिल गये थे), लेकिन फिर भी मैंने तुरन्त स्लीपिंग बैगों की मांग रख दी। किराया पूछने पर उसने कहा कि जो मन करे दे देना। इसके बाद एक बार सतीश ने हमारे साथ चलने को भी कहा लेकिन हमने मना कर दिया। इस कारण हम सुबह आराम से उठे।
सुबह को जब हमने स्लीपिंग बैग मांगे तो सतीश आनाकानी करने लगा। कहने लगा कि वास्तव में स्लीपिंग बैगों की कोई जरुरत नहीं है। रास्ते में दो जगह टेंट लगे मिलेंगे, वही स्लीपिंग बैग और खाना भी मिल जायेगा। बेकार में ही इन्हें यहां से लादकर ले जाओगे। बोझा ढोओगे। भले ही करेरी झील घुमक्कडों के लिये है, लेकिन आजकल हर जगह उगी पडी ट्रेवलिंग कम्पनियां पर्यटकों को भी झील तक ले जाती हैं। पर्यटक छुट्टियों में ट्रेवलिंग कम्पनियों से चाहते हैं कि किसी ऐसी जगह पर ले चलो जहां मजा भरपूर आये लेकिन भीडभाड ना हो। भला गर्मियों की छुट्टियों में हिमालय में ऐसी कौन सी जगह होगी। तो कम्पनियां उन्हें करेरी झील पर ले आती हैं। कम्पनियां दो दिन की इस यात्रा को छह दिन में कराती हैं और मोटी रकम लेती हैं। खुद गप्पू जी भी अपने घर पर कहकर आये थे कि करेरी झील मानसरोवर झील के बाद दूसरी पूजनीय झील है। तब जाकर उनके घरवालों ने उन्हें यहां आने दिया।
हम बिना स्लीपिंग बैगों के ही चल पडे। कुछ दूर चलते ही दिमाग की घण्टी बजी कि बेटा, बैग ले ले। मैंने गप्पू को भेजा कि बैग ले आ। कल वापस आयेंगे तो लौटा देंगे। वैसे स्लीपिंग बैगों में कुछ भी वजन नहीं होता, हमारे तकिये से भी हल्का होता है। गप्पू गया और खाली हाथ ही लौट आया। बोला कि सतीश कह रहा है कि तुम बैग नहीं लौटाओगे। यह तीन-चार हजार का आता है। तब मैं सतीश के यहां गया, अपना आईकार्ड उसे दिया और कहा कि तेरे इन पुराने बैगों से ज्यादा कीमती यह आईकार्ड है। यह सरकारी आईकार्ड है। अगर यह खो गया तो ना तो बैग लौटाऊंगा, और पुलिस में रिपॉर्ट लिखी जायेगी वो अलग। उसने आईकार्ड ले लिया और दो बैग दे दिये। और ये बैग झील पर हमारे लिये जीवनदायी सिद्ध हुए।
करेरी गांव से निकलकर झील की तरफ जाने वाली पगडण्डी ढूंढना अजनबियों के लिये बेहद मुश्किल बात है। लेकिन अगर रास्ता एक बार पकड में आ जाये तो वो सीधा डल पर ही छोडता है। यहां किसी भी झील को डल कहते हैं। कदम-कदम पर हमें पूछना पड रहा था कि डल जाने वाला रास्ता कहां से जाता है। एक ने बताया कि यह रास्ता फलाने गांव जा रहा है। इस पर चलने जाना। आगे जाकर दाहिने की तरफ एक रास्ता कटता दिखाई देगा। उस पर चल पडना। वही तुम्हें डल पर पहुंचा देगा। अगर हम उसकी बात को मान लेते और आगे चलकर दाहिने जाने वाले रास्ते पर चल पडते तो भटक जाते। अच्छा हुआ कि हमें दो महिलाएं मिल गईं, उन्होंने कहा कि हमारे पीछे पीछे आ जाओ। कम से कम दो किलोमीटर तक हम उनके पीछे-पीछे चलते रहे। इस दौरान कम से कम दर्जन भर रास्ते दाहिने जाने वाले मिले। एक जगह पत्थरों का ढेर सा लगा था, किसी भी सूरत में वो रास्ता नहीं लग रहा था। महिलाओं ने कहा कि यहां से निकल जाओ, आगे जाकर सडक आयेगी। चलते जाना और एक पुल आयेगा, पुल पार मत करना।
हम हैरान-परेशान कि यार, यहां पत्थरों का ढेर लगा है, यहां रास्ता कहां है। कम से कम दर्जन भर रास्ते हम पीछे छोड आये हैं, और उन महिलाओं ने हमें यहां लाकर छोड दिया। गप्पू जी बोले कि एक बार पत्थरों पर चढकर देख लेते हैं। और चढते ही एक रास्ता दिख गया। खुशी का ठिकाना नहीं रहा और हम बढ चले। थोडा सा आगे जाकर एक निर्माणाधीन सडक मिली।
कांगडा-पठानकोट मार्ग पर एक जगह है शाहपुर। शाहपुर से एक सडक नैणी या नौणी या कुछ ऐसा ही नाम है, जाती है। नैणी से करेरी गांव तक सडक निर्माण चल रहा है। यह वही सडक थी। कुछ और आगे चले तो एक पुल मिला। अभी सडक लायक पुल नहीं बना है, लेकिन पैदल चलने लायक काफी पुराना पुल है। हमें पुल पार करने से मना किया गया था। असल में पुल से जरा सा पहले ही एक रास्ता ऊपर की ओर जाता दिख रहा था। हमें इसी पर चलना है।
चलते रहे, चलते रहे। एक जगह एक चबूतरा सा दिखा। यहां घास के नीचे पानी की एक भरी बोतल रखी थी। यही लकडियों का एक ढांचा बना था, जिसपर जरुरत पडने पर त्रिपाल या पन्नी आदि डालकर एक दुकान बनाई जा सके और आने-जाने वाले पर्यटकों को कुछ खाने-पीने का सामान बेचा जा सके। हमने सबसे पहले वो दुकान का ढांचा उजाडा और उसमें से हमें मिले दो लठ। ये लठ हमारे लिये बेहद जरूरी थे।
हमारे बायें तरफ एक नदी थी। इसका नाम तो पता नहीं, लेकिन सहूलियत के हिसाब से हम इसका नामकरण कर देते हैं- करेरी नदी। एक जगह नदी हमारे बहुत पास आ गई तो तय हुआ कि पानी भर लेते हैं। यहां हमने सीधी जाती पगडण्डी को छोड दिया और नदी में घुस गये। असल में इसे नदी कहना भी सही नहीं लग रहा है। खड्ड कहना चाहिये। चलो खड्ड ही कहेंगे। यहां बडे-बडे पत्थर थे। पानी भरा गया। जब वापस हम उसी रास्ते पर लौटे तो एक गद्दी मिला। हिमाचल में भेड-बकरी चराने वाले गडरियों को गद्दी कहते हैं। उससे पूछा तो बताया कि जहां से आपने पानी भरा है, वही से खड्ड को पार करके रास्ता जाता है। आप गलत रास्ते पर आ गये हो। अच्छा था कि हम ज्यादा नहीं चले थे। उसके बताये अनुसार खड्ड पार किया और सही रास्ता पकडा।
यहां से एक किलोमीटर तक रास्ता सीधा ना होकर खडा है। पतली-पतली ऊंची-ऊंची सीढियां। दस सीढियां चढते ही दम निकलने लगता है। इन्हें पार करके एक छोटा सा मैदान आता है। यहां कम से कम 50 बच्चे थे। उनके साथ उनके टीचर थे। ये लोग हैदराबाद से आये थे। यहीं पर एक छोटी सी दुकान भी थी, जहां कोल्ड ड्रिंक के साथ साथ अन्य चीजें भी थीं। अच्छा हां, हैदराबाद वाले सेंट्रल स्कूल के थे और RMC (रीजनल माउंटेनियरिंग सेंटर- क्षेत्रीय पर्वतारोहण केंद्र- धर्मशाला) के सौजन्य से यहां आये थे। वे आज ऊपर से वापस नीचे जा रहे थे।
जैसे ही हैदराबाद वाले गये तो एक दूसरी टीम और आ गई। यह केरल की टीम थी- इसमें भी पचास बच्चे और टीचर थे। थोडी देर यहां रुके रहे और फिर चल पडे।
क्या आप यकीन करेंगे कि यह एक तिराहा है। सीधा तो पता नहीं कहां जा रहा है लेकिन दाहिने पत्थरों के ऊपर से चढकर झील की तरफ जाता है।
यह थी हमारी करेरी झील जाने की छोटी सी तैयारी। एक खाली सा बैग और स्लीपिंग बैग
चल अकेला चल अकेला
यह सडक है जो शाहपुर से करेरी गांव तक बनेगी।
वो रहा सामने पुल जिसे हमें पार नहीं करना है।
पुल से पहले ही रास्ता दाहिने जाता है
यहां से करेरी डल का असली सफर शुरू होता है।
रास्ते में दोनों ने लठ ले लिये। मस्ती के लिये नहीं, जरुरत के लिये
गायें चरती दिख रही हैं क्या?
अगर नहीं दिख रही हैं तो ये लो, जूम कर देता हूं।
ये हैं हैदराबाद की टीम के लीडर
हैदराबाद वाली टीम गई तो केरल की टीम आ गई। आगे के सफर में केरल वाले ही हमारे हमसफर बनेंगे।
गप्पू को बडे-बडे पत्थरों से कूदने में बडा मजा आता था। इसी कारण जब भी पानी की बोतल खत्म होती थी तो बन्दा तुरन्त कहता था कि पानी लेने जा रहा हूं। नदी पर बडे-बडे पत्थर जो मिलते थे। यहां बेचारा मलयाली मैम पर कूदने की तैयारी कर रहा है।
अगला भाग: करेरी झील के जानलेवा दर्शन
करेरी झील यात्रा
1. चल पडे करेरी की ओर
2. भागसू नाग और भागसू झरना, मैक्लोडगंज
3. करेरी यात्रा- मैक्लोडगंज से नड्डी और गतडी
4. करेरी यात्रा- गतडी से करेरी गांव
5. करेरी गांव से झील तक
6. करेरी झील के जानलेवा दर्शन
7. करेरी झील की परिक्रमा
8. करेरी झील से वापसी
9. करेरी यात्रा का कुल खर्च- 4 दिन, 1247 रुपये
10. करेरी यात्रा पर गप्पू और पाठकों के विचार
आज शानदार फ़ोटो,
ReplyDeleteअरे भाई,
इस झील के दर्शन लिये ही,
तो हम सब भी बेकरार है, कब कराओगे दर्शन?
गप्पू जी मस्त मानुष लगे, तुम्हें तो खैर पहले से ही जानते हैं:)
ReplyDeleteअच्छी लगी करेरी झील से पहले की यात्रा।
ReplyDelete---------
मिलि हॉट मॉडल केली ब्रुक से...
नदी : एक चिंतन यात्रा।
लो जी... घूम आए.... गप्पू जी के साथ.. स्लीपिंग बेग का क्या किया?
ReplyDeleteलगता है अगली गर्मियों के पहले मुसाफिर को बुक करना पड़ेगा।
ReplyDeleteअरे वाह! बड़ी खूबसूरत जगह है... सभी फोटो एक-से-बढ़कर-एक की तर्ज़ पर ख़ूबसूरती में एक-दुसरे को मात देते नज़र आ रहे हैं... देखकर, मज़ा आ गया!
ReplyDeleteप्रेमरस
मेरा भारत महान!
ReplyDeleteI love my India!
मलयाली मैम का क्या हुआ, गप्पू जी के वजन से बच गई या…… ;)
ReplyDeleteप्रणाम
तुम्हारी तो फोटुएं ही इतनी "जानदार" होती हैं कि वृतांत ना भी लिखा हो तो सब समझा देती हैं।
ReplyDeleteखुश रहो।
बहुत रोचक वर्णन...हमने सोचा अबकी बार करेरी झील के दर्शन करवा दोगे लेकिन लगता है अभी सब्र का इम्तिहान देना बाकी है...अगली पोस्ट का बेताबी से इंतज़ार...
ReplyDeleteनीरज
neeraj bhai sabhi photu mast mast h apki yatra bhi achi lagi baki ki yatra janne ke liye bekarar h. suresh kumar sonipat
ReplyDeleteयात्रा की झलकियाँ!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर चित्रों के साथ सजी हुई हैं!
आपके चित्र ही यात्रा का पूरा आनन्द दे देते हैं।
ReplyDeleteउम्दा चित्रों के साथ रोचक यात्रा वृत्तांत।
ReplyDeleteसुन्दर चित्रों से सुसज्जित यात्रा का वर्णन बहुत बढ़िया लगा! शानदार पोस्ट!
ReplyDeleteआखिर सतीश ने बैग दे ही दिए, नही तो जाट फ़ार्मुला इस्तेमाल करना पड़ जाता। मैम का के होया? चलो आगे मिलते हैं।
ReplyDeleteab yaha ek pakka pul hai or sadak bhi pakki ho gayi hai pr kareri gaon se abhi bhi nahi judi hai...thoda paidal aana pdta hai...
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