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24 मई 2011 की दोपहर बाद मैं और गप्पू मैक्लोडगंज से नड्डी की ओर चल पडे। पक्की सडक बनी है। वैसे तो नड्डी तक बसें भी चलती हैं लेकिन अगली बस दो घण्टे बाद थी। इसलिये सोचा गया कि पैदल ही चलते हैं, जब तक बस आयेगी तब तक तो पहुंच भी जायेंगे। मैक्लोडगंज से नड्डी की दूरी छह किलोमीटर है।
चार किलोमीटर के बाद डल झील आती है। यह एक कृत्रिम झील है जो आजकल सूखी हुई है। यह चारों ओर से ऊंचे-ऊंचे देवदार के पेडों से घिरी है। अगर इसमें पानी होता तो यह बडी ही मदमस्त लगती। डल झील से दो किलोमीटर आगे नड्डी गांव है। पक्की मोटर रोड नड्डी तक ही बनी है। यह गांव भी कांगडा जिले के पर्यटन नक्शे में है। यहां विदेशियों का आना-जाना लगा रहता है। हालांकि पूरे कांगडा से धौलाधार की बर्फीली चोटियां दिखती हैं, इसलिये नड्डी से भी दिखती हैं। यह गांव एक पहाड की चोटी पर बसा है। यही कारण है कि बर्फीली चोटियों को देखने के लिये यह बढिया जगह है।
हमें करेरी गांव जाना था। मुझे मैक्लोडगंज में ही पता चल गया था कि नड्डी से करेरी तक जंगल में पैदल चलकर निकलना पडेगा। एक दुकान वाले से पूछा तो उसने बताया कि करेरी जाने के कई रास्ते हैं। आप जिस रास्ते से भी जाओगे, भटक जाओगे। आपको मैं गाइड ले जाने की सलाह दूंगा। मैंने कहा कि भईया, अगर करेरी जाने के कई रास्ते हैं, तो आप किसी भी एक रास्ते की तरफ उंगली उठा दो, हम निकल पडेंगे और पहुंच भी जायेंगे। बोला कि बडा भयंकर जंगल है। आगे रास्ते में से रास्ते निकले हैं। अगर आपने कोई गलत रास्ता भी पकड लिया तो कहीं के कहीं पहुंच जाओगे। मैंने सोचा कि यह ऐसे नहीं बतायेगा। पूछा कि ये बताओ कि अगर आपको जाना पडेगा तो आप कैसे जायेंगे। बोला कि मैं इधर से नीचे उतरकर गतडी होते हुए जाऊंगा। हमने जब गतडी वाले रास्ते को विस्तार से पूछा तो उसने बताया-
“यहां इधर से वो वाली पगडण्डी पकडकर नीचे उतरते जाना। थोडा नीचे उतरकर एक मन्दिर आयेगा। मन्दिर से नीचे उतरते रहना। आप गतडी गांव पहुंच जाओगे। वहां से भी नीचे उतरते रहना। एक खड्ड (नदी) आयेगा। खड्ड पार करके ऊपर चढने का रास्ता ढूंढना। हल्की सी पगडण्डी मिलेगी। ऊपर चढकर फिर से दूसरी तरफ नीचे उतरना। फिर से एक खड्ड आयेगा। उसे पार करके आपको एक सडक मिलेगी। सडक-सडक चलते जाना। आप नोरा पहुंच जाओगे। नोरा से नीचे उतरकर फिर से तीसरा खड्ड पार करके दो किलोमीटर की खडी चढाई चढकर करेरी गांव पहुंच जाओगे।”
करेरी तक के रास्ते में हमें तीन खड्ड पार करने होंगे- यह सोचकर हम दोनों निकल पडे। लेकिन मैंने सोचा कि कहीं इस आदमी ने अपना पिण्ड छुडाने के लिये गलत रास्ता तो नहीं बता दिया। हम गतडी पहुंचकर किसी से अगर रास्ता पूछें और वो कहे कि आप गलत आ गये हो, करेरी का रास्ता नड्डी के उस तरफ से जाता है। उस हालत में हम कहीं के नहीं रहेंगे। एक बार किसी और से भी पूछ कर देख लें। एक से और पूछा। उसने बताया कि सही रास्ता तो मुझे भी नहीं पता है लेकिन अगर आप गतडी होते हुए जायेंगे तो शायद पहुंच ही जाओगे।
लेकर राम का नाम हम गतडी वाले रास्ते पर निकल पडे। एक छोटा सा मन्दिर आया। मन्दिर से भी नीचे उतरते गये। यहां सीढियां बनी हुई थीं। अगर हमसे कहा गया होता कि आप गलत रास्ते से आ गये हो तो हममें इन सीढियों पर चढने की हिम्मत भी नहीं थी। खैर, उतरते गये, उतरते गये। और हम गतडी पहुंच गये। पूछते-पुछाते आखिरकार गतडी को पीछे छोडकर पहले खड्ड के किनारे पहुंच गये।
नड्डी रोड से दिखता मैक्लोडगंज
मैक्लोडगंज से नड्डी जाने वाली सडक
डल झील- सूखी पडी है।
अगर इसमें पानी होता तो कैसी लगती?
मैक्लोडगंज में तिब्बती रहते हैं। वे भारत का धन्यवाद करते हैं कि संकट में उसने उनको शरण दी।
नड्डी से गतडी जाने वाला रास्ता
WAY TO KARERI
उतरते जाओ, उतरते जाओ
आखिरकार खड्ड तक पहुंच ही गये।
खड्ड पार करने की तैयारी
और वो मारी छलांग
गप्पू को रास्ते में एक चीज पडी मिली। बोला कि ओये जाट, देख मैंने क्या लाजवाब चीज की खोज की है। मैंने देखकर कहा कि हां, इसके लिये तुझे नोबल पुरस्कार मिलना चाहिये। यह चीड का फूल है जो यहां चीड का जंगल होने की वजह से बहुतायत में बिखरा पडा है।
पत्थरों के बीच से निकलता गप्पू
नदी के साथ साथ कुछ आगे चलने पर हमें ऊपर चढने का रास्ता मिल गया। यहां हमें कोई आदमजात नहीं दिखी।
अगला भाग: करेरी यात्रा- गतडी से करेरी गांव
करेरी झील यात्रा
1. चल पडे करेरी की ओर
2. भागसू नाग और भागसू झरना, मैक्लोडगंज
3. करेरी यात्रा- मैक्लोडगंज से नड्डी और गतडी
4. करेरी यात्रा- गतडी से करेरी गांव
5. करेरी गांव से झील तक
6. करेरी झील के जानलेवा दर्शन
7. करेरी झील की परिक्रमा
8. करेरी झील से वापसी
9. करेरी यात्रा का कुल खर्च- 4 दिन, 1247 रुपये
10. करेरी यात्रा पर गप्पू और पाठकों के विचार
हिम्मत है तुम्हारी... वाह...
ReplyDeleteवैसे धीरे धीरे स्टार प्लस वाले सीरियल जैसे लिखने लगे हो.... आधी सांस अटका कर कहते तो शेष अगले भाग में... बहुत नाइंसाफी है..
ReplyDeleteयहाँ तक बढिया रही, आगे का इंतजार है, बरसात में या बाद में जाते तो झील में अवश्य मिलता?
ReplyDeleteरंजन जी से सहमत !
ReplyDeleteमन्दिर की सीढियाँ वापस चढना तो वाकई श्रम का काम होता। इस वाले चीड के बीज ही चिलगोज़े होते हैं शायद। पूरी झील ही सूख गयी, दुखद!
ReplyDeleteगप्पू जरुर इस खड्ड में नहाया होगा।
ReplyDeleteकच्छा सिर पै टांग राख्या सै :)
जै राम जी की
दुनिया देख रहे हैं, आपकी नजर से।
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बाबूजी, न लो इतने मज़े...
चलते-चलते बात कहे वह खरी-खरी।
अरे लाले!!चलते -चलते पांव में पड़ गए छाले .
ReplyDeleteभाई मान गए.. क्या खूब ट्रेकिंग की है .. फ़ोटो बहुत ही अच्छे हैं..
ReplyDeleteमनोज
gazab ki chhalang lagate ho neeraj,teen chhalang me tum bhi duniya naap doge,hahahahaa adbhut hai tumhari yatrayen aur uska varnan to aur bhi sundar.
ReplyDeleteहमें अपना घूमना याद आ गया।
ReplyDeleteआपकी दिलेरी को नमन....आप महान इंसान हो...आप जैसा दिलेर इंसान हम सब के प्रेरणा स्त्रोत्र हैं...कमाल के फोटो खींचे हैं आपने...बधाई...
ReplyDeleteनीरज
हम तो तुम्हारा यात्रा विवरण पढ़कर और चित्र देखकर खुद के घुमने का अहसास कर लेते है :)
ReplyDeletebhai waah.....shabbash jaatraj...jai ho...apan to kamre me hi ghoom lete hain....sadhuwad..gappu ko bhi
ReplyDeleteमनमोहक चित्रों के साथ आपका साहसी यात्रा वर्णन बहुत अच्छा लगा।
ReplyDeleteयह चीज हम शिमला-मनाली यात्रा के दोरान बहुत लाए थे -- ?गजब की यात्रा ..
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