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हमारी करेरी झील की असली यात्रा शुरू होती है धर्मशाला से। 23 मई की आधी रात तक मैं, गप्पू और केवल राम योजना बनाने में ही लगे रहे। केवल राम ने पहले ही हमारे साथ जाने से मना कर दिया था। अब आगे का सफर मुझे और गप्पू को ही तय करना था। गप्पू जयपुर का रहने वाला है। एक दो बार हिमालय देख रखा है लेकिन हनीमून तरीके से। गाडी से गये और खा-पीकर पैसे खर्च करके वापस आ गये। जब मैंने करेरी झील के बारे में ‘इश्तिहार’ दिया तो गप्पू जी ने भी चलने की हामी भर दी थी। सुबह कश्मीरी गेट पर जब मैंने गप्पू को पहली बार देखा तो सन्देह था कि यह बन्दा करेरी तक साथ निभा पायेगा। क्योंकि महाराज भारी शरीर के मालिक हैं।
धर्मशाला में केवल के यहां ही मैंने गप्पू को पहली हिदायत दी कि भाई, कुछ भी हो जाये, चलने से मना नहीं करना है। आपको रास्ते का कुछ भी अन्दाजा नहीं है। आपको तो यह भी नहीं पता है कि हिमालय पर जब चढते हैं तो कैसा लगता है। बोले कि कुछ भी मतलब। कुछ भी मतलब कुछ भी। किसी भी हालत में बीच रास्ते में मना नहीं करना है। ये नहीं कहना है कि मैं नहीं जा पाऊंगा। बोले कि ठीक है और उन्होंने अपने इस वचन को पूरे रास्ते भर निभाया। यह वचन निभाना हर किसी के बस की बात नहीं होती। मिशन पर जाने से पहले तो हर कोई कह देता है कि मैं ये कर दूंगा, वो कर दूंगा, ऐसा कर दूंगा, वैसा कर दूंगा। लेकिन जब मिशन की मुश्किलें आनी शुरू होती हैं तो शुरूआत में ही ढेर होने लगते हैं।
हमारे पास चार दिन थे। बातों-बातों में यह भी तय हो गया कि आज त्रियुण्ड चलते हैं। त्रियुण्ड से भी आगे इलाका (ILLAKA) नामक जगह है। केवल ने बताया कि इलाका में रहने-खाने का इंतजाम मिल जायेगा। अगले दिन इलाका से चलकर इंद्रहार दर्रे पर पहुंचकर वापस इलाका, त्रियुण्ड, मैक्लोडगंज आना तय हुआ। केवल ने यह भी बताया कि करेरी झील के लिये पहले करेरी गांव जाना पडेगा। करेरी गांव के लिये बसें धर्मशाला से चलती हैं जो आपको मैक्लोडगंज में मिल जायेंगी। करेरी वाली बसें मैक्लोडगंज, नड्डी होकर जाती हैं। मुझे अब से पहले बस यही पता था कि करेरी तक सडक नहीं पहुंची है। जब केवल ने बताया कि करेरी तक सडक पहुंच गई है तो सांस में सांस आई। आखिर बन्दा धर्मशाला का ही रहने वाला है।
और केवल की इस ‘अनमोल’ जानकारी का नतीजा यह हुआ कि मुझे पहाड के लोकल लोगों से भरोसा उठ गया। मैं मानता था कि पहाड के लोकल लोग जितना अपने इलाके के बारे में जानते हैं, उनसे बेहतर कोई नहीं जानता। वास्तव में बात ये है कि करेरी तक अभी कोई सडक नहीं पहुंची है। सडक पहुंची है घेरा तक जहां से करेरी गांव तीन चार किलोमीटर खडी पैदल चढाई पर है। अभी नजदीकी समय में करेरी तक सडक पहुंचने के आसार हैं भी नहीं। घेरा वाली सडक सीधे धर्मशाला से जाती है ना कि मैक्लोडगंज, नड्डी होकर। बल्कि जो सडक नड्डी तक जाती है उसका वही पर ‘दी एण्ड’ हो जाता है। नड्डी से अगर करेरी गांव जाना हो तो पांच-छह घण्टे पैदल चलना पडेगा। इस पैदल रास्ते में तीन नदियां और तीन पहाड पार करने पडते हैं। अगर केवल राम ने सही जानकारी दी होती तो हमें नड्डी से करेरी तक पैदल चलने में ना तो पूरा दिन गंवाना पडता ना ही अपने घुटने तुडवाने पडते।
और जब बाद में मैंने केवल से इस गलत जानकारी के बारे में बात की तो बन्दा तुरन्त मुकर गया और सारी सही-सही जानकारी देने लगा। बताने लगा कि मैंने तो ऐसा कहा ही नहीं था। करेरी तक अभी सडक पहुंची ही नहीं है, घेरा तक पहुंची है, जो सीधे धर्मशाला से जाती है। असल में जब हमने सुबह चलते समय केवल से बात की थी तो वो फेसबुक पर चैटिंग में ‘पागल’ था। हमारी वजह से उसकी चैटिंग में खलल पड रहा था, इसलिये हमें जल्दी से जल्दी टालने के लिये उसने उस समय जो जी में आया, बताया।
धर्मशाला से जब हम निकले तो त्रियुण्ड हमारा लक्ष्य था। मैं पहले भी त्रियुण्ड गया था लेकिन उससे आगे इंद्रहार दर्रे तक नहीं जा पाया था। मैक्लोडगंज पहुंचे। बस अड्डे पर ही चाय पी। चाय पीते हुए दिमाग में आया कि त्रियुण्ड की चढाई चढना गप्पू के लिये आसान नहीं होगी। और अगर चढ भी गये तो आगे इंद्रहार तक तो महाराज बिल्कुल ही टूट जायेंगे। नतीजा यह हो सकता है कि वहां से वापस आकर करेरी जाने से मना ही ना कर दें। अब योजना में परिवर्तन किया गया। तय हुआ कि भागसू नाग चलते हैं। वैसे तो भागसूनाग मन्दिर तक सडक बनी हुई है, मैक्लोडगंज से लगभग दो किलोमीटर दूर है। उससे भी लगभग एक किलोमीटर आगे भागसू झरना है। कुल छह किलोमीटर का आना-जाना हो जायेगा। गप्पू की ताकत और इच्छाशक्ति पता चल जायेगी।
भागसूनाग के लिये निकल पडे। मन्दिर के सामने ही प्राकृतिक पानी को रोककर छोटा सा स्वीमिंग पूल बना रखा है। नहाने वालों की कमी नहीं थी। पता नहीं पिछले जन्म में गप्पू महाराज भैंस थे या भैंसा, पानी देखते ही बोले कि नहाऊंगा। मैंने कहा कि भाई, नहा ले, मुझे तो नहाना है नहीं। कपडे उतारे और कूद पडे। एक गोता लगाते और कहते कि यार, पानी बहुत ठण्डा है। लेकिन फिर भी कम से कम आधे घण्टे तक गोते लगाते ही रहे।
गप्पू जी हर मोड पर मुडते ही कहते- क्या अल्टीमेट सीन है। अल्टीमेट शब्द उनका तकिया कलाम सा बन गया था। हां, ये अलग बात है कि करेरी तक पहुंचते पहुंचते अपने तकिया कलाम से उनका पीछा भी छूट गया था।
भागसू नाग से जब वापस मैक्लोडगंज पहुंचे और हमने पूछा कि करेरी की बस कितने बजे आयेगी तो जवाब सुनते ही तोते उडने लगे। लोगों ने बताया कि यहां से करेरी के लिये कोई बस नहीं जाती, बल्कि नड्डी तक जाती है- दो घण्टे बाद आयेगी। अगर करेरी जाना हो तो या तो नड्डी चले जाओ, वहां से तीन घण्टे लगते हैं पैदल चलकर या फिर धर्मशाला जाओ, वहां से बस मिल सकती है घेरा तक- वहां से भी दो घण्टे लगेंगे करेरी तक के। पता नहीं धर्मशाला से घेरा की बस मिलेगी या नहीं, कितने बजे मिलेगी- यह सोचकर नड्डी की ओर चल पडे- पैदल।
मैक्लोडगंज में चाय की दुकान पर सोचविचार
भागसू नाग वाले रास्ते से दिखता मैक्लोडगंज शहर
स्वीमिंग पूल और सामने भागसू नाग मन्दिर। पूल में नीले रंग की टाइलें लगी हैं इसलिये पानी भी नीला दिख रहा है।
गप्पू जी
सामने दिखता भागसू झरना।
हमारे एक मित्र कभी भागसू झरना देखने गये थे। धर्मशाला तक पहुंचते-पहुंचते उनकी तबियत खराब हो गई। नतीजा- झरना देखे बिना ही वापस लौटना पडा। वापस आकर उनके विचार थे- हर आदमी के अन्दर एक झरना होता है और उस झरने की ऊंचाई आदमी के शरीर की लम्बाई पर निर्भर करती है।
मैक्लोडगंज काफी भीडभाड वाली जगह है और गर्मियां हों तो भागसू झरने पर भी भीड बहुत होती है।
मैडम, यहां पैर रखो। नहीं, मुझे बहुत डर लग रहा है।
हम घर से निकले थे तो घुमक्कड बनकर निकले थे। यहां तक पहुंचकर गप्पू जी पर्यटक बन गये और भीड की मौज मस्ती में शामिल हो गये। मैं अभी भी घुमक्कड हूं और गप्पू का घुमक्कड बनने का इंतजार कर रहा हूं।
अगला भाग: करेरी यात्रा- मैक्लोडगंज से नड्डी और गतडी
करेरी झील यात्रा
1. चल पडे करेरी की ओर
2. भागसू नाग और भागसू झरना, मैक्लोडगंज
3. करेरी यात्रा- मैक्लोडगंज से नड्डी और गतडी
4. करेरी यात्रा- गतडी से करेरी गांव
5. करेरी गांव से झील तक
6. करेरी झील के जानलेवा दर्शन
7. करेरी झील की परिक्रमा
8. करेरी झील से वापसी
9. करेरी यात्रा का कुल खर्च- 4 दिन, 1247 रुपये
10. करेरी यात्रा पर गप्पू और पाठकों के विचार
छोटे भाई,
ReplyDeleteएक बात पल्ले बांध लो कभी फ़्री के चक्कर में ना रहो, रही बात भारी भरकम लोगों की, तो शरीर में जान व हौसला हो तो कैसा भी सफ़र हो आराम से कट जाता है। मैं भी ७५ किलो का प्राणी हूं।
फ़ोटो सारे मस्त है, बस वो मैडम आपको पसंद तो नहीं आ गयी थी, वो विदेशी बाला, राज भाटिया जी से पता कर लेना, कहीं जर्मनी की तो ना थी,
सही चल रहे हो ........लगे रहो .....अगली कड़ी का बेसब्री से इंतजार रहेगा!!
ReplyDelete"पता नहीं पिछले जन्म में गप्पू महाराज भैंस थे या भैंसा, पानी देखते ही बोले कि नहाऊंगा। मैंने कहा कि भाई, नहा ले, मुझे तो नहाना है नहीं।".........और बन्दा(नीरज) चार दिन बिलकुल नहीं नहाया ...उसे क्या नाम दोगे?
ReplyDeleteबस, घुम्मकड़ बने रहिये और घुम्मकड़ी जारी रहे...आनन्द आ गया...स्विमिंग पूल तो ओलंम्पिक साईज है..क्या किराया था इस होटल में?
ReplyDelete@ udan tashtari
ReplyDeleteयह कोई होटल नहीं है। यह एक सार्वजनिक जगह है। कोई भी जाओ, कभी भी जाओ- फ्री में।
नीरजजी मे भी ये जगह गया था, जरने का द्रश्य अत्यंत सुन्दर है, और आपके हर एक ब्लोग्स बढ़िया है
Delete@ नड्डी से अगर करेरी गांव जाना हो तो पांच-छह घण्टे पैदल चलना पडेगा। इस पैदल रास्ते में तीन नदियां और तीन पहाड पार करने पडते हैं।
ReplyDeleteपहाड पर पैदल चलने का काफी अनुभव है, समझ सकता हूँ।
छोरे
ReplyDeleteआजकल लुगाईयां की बहुत फोटो खींचन लाग गया सै, शादी की उम्र हो गयी सै तेरी
भाटिया जी के मैरिज ब्यूरो म्है नाम लिखवा दे, तकाजे तै
जलपरी नै बाहर बैठ कै फोटो क्यूं खिंचवाई???
नवम्बर, 2005 में गये थे जी बहुत ठंड थी तो इस स्वीमिंग पूल का आनन्द हमने नहीं लिया।
ReplyDeleteदूसरी बात उस समय इतना साफ-सुथरा भी नहीं दिखता था।
तस्वीरों और इस जानकारी के लिये आभार
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गप्पू जी को भी प्रणाम
ReplyDeleteनीरज जी नमस्कार, फोटो बहुत अच्छी और शानदार हैं... आप अपनी यात्रा की फोटो गूगल अर्थ में क्यों नहीं डालते ?
ReplyDeleteबीच बीच में पर्यटकी का भी आनन्द उठाते चलें।
ReplyDeleteसुंदर विवरण अच्छे चित्र.
ReplyDeleteदो चोट्टी आली का जुगाड़ करो भाई रै, सूधा सा बालक बिगड़ता दीखे सै:)
ReplyDeleteकेवल राम का चैटिंग वाला प्रसंग मनघड़ंत लग रहा है, (तुम तीनों की मिलीभगत) ताकि केवल के यहाँ दूसरे ब्लॉगर्स भी न पहुंच जायें। हा हा हा
चित्रों से सजा हुआ सुन्दर यात्र वृत्तान्त!
ReplyDeleteसुन्दर चित्रों के साथ बढ़िया यात्रा विवरण
ReplyDeleteरोचक शुरुआत, अगले विवरण की प्रतीक्षा. चलिए अब आपको अपने सफर में सहभागी भी मिल रहे हैं, सफर ज्यादा बेहतर कटता होगा.
ReplyDeleteफ़ोटो सारे मस्त है,आनन्द हीं आनन्द ||
ReplyDeleteशानदार |
भाई तस्बीरे तो अच्छी है यात्रा भी ठीक ही लग रही है लेकिन मुझे अभी तक ज्यादा मज़ा नहीं आया क्योंकि बस यात्रा में कोई मज़ा नहीं है जब ट्रेकिंग करोगे तब ज्यादा मज़ा आयगा पढने में .
ReplyDeleteभागसु नाग देखकर तबियत खुश हो गई ...नीरज ..मुझे मत ले जाइयो अपने साथ ..अपुन तो चडाई देखकर पीछे हटने वालो में से हैं ...
ReplyDeleteवेसे भाग्सू झरना पसंद आया ...जहां जाने की हिम्मत जबाब दे गई थी मेरी ???तुमने घुमा दिया ..शुक्रिया
भागसूनाग मन्दिर के लिये ड्राइवर पहले नड्डी गाँव लेगया . वहाँ से लगभग चार किमी की ट्रैकिंग ( बहुत खूबसूरत रास्ता है )कर भागसूनाग पहुँचे वहाँ के सुन्दर चित्र आपने दिये हैं . तब तक ड्राइवर गाड़ी लेकर वहाँ पहुँच गया . लौटते समय मुझे बड़ी हैरानी हुई .जहाँ पहुँचने में हमें लगभग पूरा दिन ही लग गया वह मैकलॉडगंज से कुछ ही दूरी पर है . प्रशान्त ने बताया कि मात्र ट्रैकिंग करने के लिये इतना चक्कर लगाया गया .
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