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21 अप्रैल की सुबह आठ बजे मैं सोकर उठा। पहले पहल तो यकीन ही नहीं हुआ कि मैं गौरीकुण्ड में हूं। बराबर में ही मंदाकिनी बह रही थी तो खूब आवाज कर रही थी। सोचता रहा कि क्या बाहर इतनी बारिश हो रही है। कल मैंने और सिद्धान्त ने 50 किलोमीटर जीप से गुप्तकाशी से गौरीकुण्ड आने के बाद 28 किलोमीटर गौरीकुण्ड से केदारनाथ और साथ ही साथ वापसी भी की। 28 किलोमीटर की ट्रेकिंग मैंने हिमालय में पहले कभी नहीं की थी। जितना थक सकते थे, थक गये थे। मुझे उम्मीद नहीं थी कि सिद्धान्त भी थक सकता है लेकिन वो भी चूर था।
कल सोते समय एक बार मन में आया था कि सुबह पहली गाडी से घर को निकल पडेंगे। लेकिन जब आज सुबह आंख खुली तो घुमक्कडी कीडा भी जाग गया था। सोचा कि घर वापसी से हमारे अगले तीन दिन खराब हो जायेंगे क्योंकि हमें 24 तारीख को वापस आना था। मुंह धोते ही सीधा त्रियुगी नारायण दिमाग में आया। सिद्धान्त को बताया तो बन्दा मुझसे भी पहले तैयार हो गया। हालांकि कल केदारनाथ से वापस उतरते समय वो गिर पडा था और घुटने में हल्की चोट भी आई थी।
हरिद्वार के पास कनखल में सती काण्ड होने के बाद अगला जन्म राजा हिमालय के यहां लिया गया। पर्वत पुत्री होने के कारण नाम रखा गया- पार्वती। जब पार्वती बडी हो गई तो शिवजी से उनका विवाह यही पर हुआ था। विष्णुजी को साक्षी बनाया गया था इसलिये मन्दिर में विष्णु की भी पूजा होती है।
त्रियुगी नारायण जाने के कई रास्ते हैं लेकिन गौरीकुण्ड से दो ही रास्ते हैं। गौरीकुण्ड से छह किलोमीटर गुप्तकाशी की ओर सोनप्रयाग आता है। यहां से एक सडक भी त्रियुगी नारायण जाती है जो 12-13 किलोमीटर है। इसके अलावा एक पैदल रास्ता भी है। पैदल रास्ते से 6-7 किलोमीटर है।
सोनप्रयाग में ही हमने सुबह का नाश्ता किया था। दुकान वाले ने बताया कि घण्टे भर का रास्ता है। इसका मतलब है कि मुझे डेढ दो घण्टे तो लगेंगे ही। सोनप्रयाग गांव से करीब सौ मीटर गौरीकुण्ड की तरफ चलने पर लोहे का एक पुल आता है। इसी पुल की बराबर से पुल से पहले ही एक गुमनाम सी पगडण्डी ऊपर की ओर जाती दिखती है। एक लडका पुल के पास बैठा था, उसने बता दिया नहीं तो हमें यह रास्ता दिखता भी नहीं।
रास्ता घने जंगल से गुजरकर जाता है लेकिन डर नहीं लगा। शुरूआत में हालांकि सिद्धान्त ने कहा भी कि तू आगे चल, लेकिन मेरी मरी-मरी स्पीड देखकर उससे धीरे-धीरे चला ही नहीं गया। उसने मुझसे कहा भी कि तू बहुत धीरे-धीरे चल रहा है। मैंने समझाया कि भाई, तू अपनी स्पीड से चलता जा, आगे जाकर बैठ जाना और मेरी प्रतीक्षा करना। मैं अगर तेरी चाल से चलूंगा तो थक जाऊंगा और अगर तू मेरी चाल से चलेगा तो तू थक जायेगा। इससे तो यही ठीक है कि दोनों अपनी-अपनी चाल से चलते रहें।
हमने नीचे सोनप्रयाग से चलते हुए एक गलती कर दी कि बोतल में पानी नहीं भरा। नतीजा वही हुआ जो होना था। प्यास लगने लगी और रास्ते में भी पानी नहीं मिला। जितना चलते जा रहे थे, गला भी उतना ही सूखता जा रहा था। आखिरकार एक जगह रास्ते में पानी की एक नन्हीं सी जलधारा बह रही थी। इसे देखकर तुरन्त ही अंदाजा लग गया कि आसपास ही कहीं पानी का सोता है। आवाज आ नहीं रही थी, इसका मतलब था कि पानी पत्थरों के भीतर से चू रहा है। और वो जगह मिल भी गई। पहाड पर कहीं कहीं पानी अपने आप निकलता रहता है। यहां भी ऐसा ही था। मैं इसे देखते ही पीने को लपक पडा। सिद्धान्त चिल्लाया कि ओये इसे मत पी, यह कीटाणुयुक्त हो सकता है।
मैंने कहा कि भाई, बडे जोर की प्यास लगी है, पहले पी लूं। फिर करेंगे कीटाणुओं की बात। पानी ठण्डा था, तन मन तृप्त हो गया। खैर, पानी बिना सिद्धान्त भी नहीं रुक सका। पीते ही बोला कि यार, एकदम मिनरल वाटर है। यही से हमने आगे के लिये बोतलें भी भर लीं। हालांकि आगे नियमित अन्तराल पर पानी मिलता रहा।
यह सोनप्रयाग में बना एक पुल है और सडक है गौरीकुण्ड-गुप्तकाशी मार्ग।
त्रियुगी नारायण जाने का पैदल मार्ग
हालांकि रास्ता जंगल से गुजरकर जाता है लेकिन डर नहीं लगा।
वो सामने मंदाकिनी घाटी है और उधर ही कहीं दूर केदारनाथ है।
एक जगह त्रियुगी नारायण जाने वाली सडक भी मिलती है
पैदल पत्थरयुक्त रास्ता
सामने पंवाली कांठा की हिमाच्छादित चोटियां दिख रही हैं। पंवाली कांठा की गिनती दुनिया के सबसे सुन्दर बुग्यालों में होती है।
हमें सोनप्रयाग से चले हुए डेढ घण्टा हो गया था। यहां पहुंचकर किसी ने बताया कि वो सामने जो गांव दिख रहा है वही त्रियुगी नारायण है। अपने अनुभव से मैंने कहा कि हमें वहां तक पहुंचने में एक घण्टा भी नहीं लगेगा। सिद्धान्त मेरी कम स्पीड से तंग आ चुका था। बोला कि नहीं, अगर हम इसी स्पीड से चलते रहे तो कम से कम दो घण्टे लगेंगे। और हम वहां तक पचास मिनट में पहुंच गये थे, जबकि एक जगह रुके भी थे।
यह है शिव पार्वती का विवाह स्थल
त्रियुगी नारायण से दिखती चोपता तुंगनाथ की चोटियां। यह बात हमें एक स्थानीय निवासी ने बताई थी।
और अब वापस
क्रिकेट का मैदान
बुरांश
सोनप्रयाग
त्रियुगी नारायण में एक मजेदार घटना घटी। मैं और सिद्धान्त बैठे चाय पी रहे थे। बराबर में ही एक प्राइमरी स्कूल था। छुट्टी होने को थी तो सभी बच्चे जोर-जोर से लय-ताल मिलाकर पहाडे रट रहे थे। फिर त्रियुगी नारायण का इतनी दूर होना भी सिद्धान्त के मन में था। बोला कि इन बच्चों का फ्यूचर क्या होगा। मैंने पूछा कि मतलब?
-मतलब ये कि यह जगह इतनी दूर है। इन बच्चों के बाप-दादाओं ने मैदान और वहां की आबोहवा भी शायद ही देखी होगी। ये बच्चे भी यही रह जायेंगे। ना ज्यादा पढ पायेंगे और ना ही ज्यादा तरक्की ही कर पायेंगे।
- नहीं, ऐसी बात नहीं है। इस गांव में कम से कम दसवीं तक का स्कूल तो होगा ही और ज्यादातर आदमी सरकारी नौकरी वाले होंगे।
- ऐसा हो नहीं सकता। सरकारी नौकरी के लिये भी एक न्यूनतम योग्यता और सुविधा तो होनी ही चाहिये। इस गांव में कुछ भी नहीं है।
खैर, हमारी बातें बढती रही। चाय वाला पचासेक साल का आदमी था। उसने पूछा- आप कहां से आये हैं?
- मेरठ से।
- मेरठ में कहां से?
यही सुनकर मेरा दिमाग चौकस हो गया। हिमालय के इस दुर्गम इलाके का रहने वाला एक चायवाला पूछ रहा है कि मेरठ में कहां से। उसका उत्तर बताने से पहले मैंने उससे प्रतिप्रश्न किया- आप पहले फौज में थे ना? आपकी तैनाती मेरठ में भी रही है।
- हां। लेकिन आपको कैसे पता?
- सीधी सी बात है। यहां इतनी दूर का बन्दा पूछे कि मेरठ में कहां से तो इसका अर्थ यही है कि आपने कुछ दिन या महीने मेरठ में गुजारे हैं। और एक फौजी ही ऐसा करने की प्राथमिकता रखता है।
अब मैंने सिद्धान्त से कहा- हां सिद्धान्त, इनसे बात कर।
उनसे बात करने पर जो जानकारी मिली वो इस प्रकार है:
इस गांव में लगभग 300 परिवार हैं। दसवीं तक का स्कूल है। आगे पढना है तो सोनप्रयाग या गुप्तकाशी जाना पडेगा। ग्रेजुएशन या इंजीनियरिंग करनी है तो रुद्रप्रयाग और श्रीनगर हैं। इस गांव में सभी परिवारों में सरकारी नौकरी पेशे वाले लोग हैं। ज्यादातर फौजी हैं, कुछ प्रादेशिक सेवाओं में हैं। दर्जन भर के करीब बच्चे रुद्रप्रयाग में पढते हैं और इतने ही श्रीनगर में। इसका मतलब है कि वे ग्रेजुएशन या इंजीनियरिंग कर रहे हैं।
यह सुनते ही सिद्धान्त के सामान्य ज्ञान और इन लोगों के प्रति जो आस्था बढी वो गौर करने वाली थी।
जब वापस नीचे उतर रहे थे तो सिद्धान्त का घुटना जो कल केदारनाथ से उतरते समय चोटिल हो गया था, दर्द करने लगा। यह दर्द इतना बढा कि एक-एक कदम बहुत भारी पड रहा था। हालांकि दर्द मेरे घुटने में भी था। आखिर कल हमने अपनी औकात से ज्यादा ‘प्रदर्शन’ किया था- गौरीकुण्ड से केदारनाथ और वापसी भी, कुल 28 किलोमीटर का आना-जाना पैदल। जब कुछ देर बाद रास्ते में सडक ने काटा तो हम कच्चा रास्ता छोडकर सडक-सडक हो लिये।
गुप्तकाशी से दिखती चौखम्भा चोटी
अगला भाग: तुंगनाथ यात्रा
केदारनाथ तुंगनाथ यात्रा
5. त्रियुगी नारायण मन्दिर- शिव पार्वती का विवाह मण्डप
कई बार पढ़ते हुए या तस्वीरें देखते हुए ऐसे ही मूँह से बेसाख्ता निकल पड़ता है कि कौन टाईप के हो यार!
ReplyDeleteवाकई, हम चाहेंगे कि अगला जन्म ऐसा हो..इस जन्म में तो हमारे बस का नहीं..पढ़कर ही आनन्द लेते रहेंगे. :)
Neeraj JI, ek dam jabardast. Bas aap chalte jaao, hamein aapko dekh ke 'motivation' milti rahegi :)
ReplyDeletehamare to padte padte hi dard hone laga.....itni durgamta dekh kar.....jiyo pyare...ghoomte raho siddhant ke saath....good luck
ReplyDeleteI am PT. Sandeep Kush i was also go there in 2010. It's a very good place in all over indiai sujjest you one time you may go to Triyugi Narayan Temple
DeleteI am PT. Sandeep Kush i was also go there in 2010. It's a very good place in all over indiai sujjest you one time you may go to Triyugi Narayan Temple
Deleteपहाड पर जाकर तो अच्छो-अच्छो की हवा खराब हो जाती है वो चाहे मैराथन का धावक ही क्यों न हो, इस रास्ते पर बरसात में जौक भी मिलती है, अब आगे ध्यान रखना, पानी हमेशा साथ रखना आज कल पहाडों पर भी पानी की समस्या आ रही है। वैसे मैं इस रास्ते से केवल आया था, जब पवांली से आये थे, कावर ले कर।
ReplyDeleteNeeraj Bhai,
ReplyDeleteAap ka blog i think best in travel blog. Lekin update thora slow hai matlab nai post ke liye bahut intzar karna hota hai...
Lekin sab kuch superrrrrrrrrrrr.. hota hai,
Alok, SINGAPORE
....तस्वीरें देखते ही आनन्द आ गया
ReplyDeleteवाह जी !! क्या खुबसूरत चित्र लगाए हैं आपने, उससे भी सुन्दर लेखनी है आपकी, मन को मोह लिया .बेहतरीन प्रस्तुति. आपको मेरी हार्दिक शुभ कामनाएं !!
ReplyDeleteलोग अच्छे लेखक की कलम मांगने की बात करते हैं। मैं तो आपकी टांगें मांगूंगा!
ReplyDeleteअच्छा लगा भाई जाट जी ! आप का ब्लॉग पढ़ कई दिनों से रहा था,लेकिन टिप्पणी आज दे रहा हूँ....कभी मौका मिला तो आप जैसे उत्साही के साथ मैं भी चलना चाहूँगा !
ReplyDeleteकभी घूमना हो आपके साथ। आप अभी तो हिमालय में शोध कर रहे हैं।
ReplyDeleteचित्र देख के ही मन आनन्द से भर जाता है, जो वहाँ उपस्थित हो, उसकी स्थिति क्या होगी। त्रियुगी नारायण के दर्शन कराने का आभार।
ReplyDeleteदोनों किश्तें आज ही पढ़ीं. यात्रा वृत्तांत और तस्वीरों का अच्छा संयोजन.
ReplyDeleteस्विट्जरलैंड तो घूम ही लिए अब जर्मनी जाकर क्या करोगे ! :-)
सफर में कुछ चॉकलेट भी साथ में रख सकते हैं चलते हुए प्यास कम लगती है और रास्तों में बच्चे मिल जायें तो वो भी खुश. आन्ध्र और अरुणाचल में मेरे तो काफी काम आई है यह आदत.
ReplyDeleteबस इतना कह सकता हूं,अद्भुत।कमाल की क्षमता है नीरज,मान गये घुमक्कड़ी हो तो ऐसी।आनंद आ गया,ऐसा लगा कि हमने भी सैर कर ली,हर हर महादेव्।
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeletevaah bahut hi sundar, rochak, manoranjak !
ReplyDeleteनीरज भाई पडाडो का हमे भी बहुत शोक हे, भारत मे घर वाले जब भी नेना देवी, जबला जी जाते थे मै भी हमेशा बीच का रास्ता चुनता था, जि कम लेकिन ज्यादा खतरनाक होता था, अब इस उमर मे भी मै हिम्मत नही हारता, दो साल पहले दो मील ऊंचाई पर जो सीधी चढाई थी, हम बाप बेटे पेदल चढे थे, बच्चो को करीब ३०,२५ मिंट लगे ओर मुझे ४५ मिंट लगे थे, आप की यात्रा पढ कर कई बार दिल करता हे कि एक बार आप के संग भी जाऊ किसी पहाड वहाड पर, लेकिन सोचता हुं कही आप के गले ना पड जाऊ, क्योकि जब से दिल का चक्कर पडा हे, यह डा० कदम कदम पर डराते हे, वर्ना अब तो दो तीन बार तो घुम आता आप के संग, सभी चित्र एक से बढ कर एक, यानि बहुत सुंदर...राम राम
ReplyDeleteभैया जी , एक दिन केदारनाथ में रुकना चाहिए था । उसका अपना ही मज़ा होता । पहाड़ों में थकना मतलब मज़ा किरकिरा ।
ReplyDeleteचोपटा दूर से तो दिखा दिया । पास से भी देखा या नहीं । बहुत खूबसूरत जगह है । लेकिन अब लगता है वहां जो गेस्ट हाउस था , अब बंद हो चुका है । नेट पर इसका कोई ज़िक्र नहीं मिला ।
सुन्दर तस्वीरें हैं । १९९० की याद ताज़ा हो गई ।
neeraj bhai, kon kaleja rakhte ho bhai. apun to may me jakar bhi apne
ReplyDeleteaap ko bahadur samajh rahe the.
bhai, aap kon sa camera use karte
hei- bahut aacha.
sarvesh
NEERAJ BHAI,
ReplyDeleteKEDARNATH AND OTHER HIMALAYA POINT, REALLY BEAUTIFULL, BAHADURI,
AAPNE KHARCHA TO BATA DIYA LEKIN
PLEASE YAH BHI BATA DE KI AAP KYA KYA SAMAN SATH ME LE GAYE THE, PAISE
KITNE SATH ME RAKHE THE. CAMERA KON
SA THE.
SARVESH. N VASHISTHA
Ye mandir kis raja ne banvaya tha
ReplyDeleteनीरज जी ऐसा वृतांत आपके साहस का पढ कर मे आपका कायल हो गया ।मे केदारनाथ दो बार गया व दशॅन किया ।
ReplyDeleteआपकी फोटो देख कर लगता नही की मे कभी यहाँ गया हु ।इस बार भी जाने का विचार बना रहाॅ हुॅ ।जय बाबा केदारनाथ
नीरज जी ऐसा वृतांत आपके साहस का पढ कर मे आपका कायल हो गया ।मे केदारनाथ दो बार गया व दशॅन किया ।
ReplyDeleteआपकी फोटो देख कर लगता नही की मे कभी यहाँ गया हु ।इस बार भी जाने का विचार बना रहाॅ हुॅ ।जय बाबा केदारनाथ
Bht hi achhe se likha h aapne
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