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हमारी केदारनाथ की असली यात्रा गुप्तकाशी से शुरू होती है। तारीख थी 20 अप्रैल 2011। गुप्तकाशी से मैं और सिद्धान्त सुबह सवेरे ही जीप पकडकर गौरीकुण्ड के लिये निकल पडे। यहां गुप्तकाशी में एक मजेदार घटना घटी। चूंकि सिद्धान्त राष्ट्रीय लेवल का मैराथन धावक है और मुम्बई मैराथन में नौवें स्थान पर रहा था। तो सीधी सी बात है कि सेहत और फिटनेस के मामले में मुझसे मीलों आगे है। जब बात हिमालय के किसी भी हिस्से में पैदल चलने की हो तो यही बात बहुत मायने रखती है। अगर उसके अलावा कोई और होता तो मैं उस पर भारी पड जाता लेकिन आज मेरा साथी मुझ पर इक्कीस साबित हो रहा था। तो मैं भी सोच रहा था कि ऐसा कौन सा काम करूं कि मुझे थोडी बहुत बढत मिल सके। तभी एक मौका मिल गया। शाम जब उसने होटल के बाथरूम के पानी में हाथ डाला तो ठण्डा पानी देखकर उसके होश उड गये। बोला कि यार पानी बेहद ठण्डा है, आज पूरे दिन से सफर पर हैं, नहाये नहीं है। सुबह नहाना पडेगा। मैं तो बराबर में खाने वाले से गर्म पानी मंगवा लूंगा। यह सुनकर मेरा जाटत्व कुछ जागा। सोचा कि बेटा यही मौका है। खुद पानी में हाथ डाला, इधर भी होश उड गये। लेकिन फिर भी कहा कि अरे नहीं यार, कुछ ठण्डा वण्डा नहीं है। मैं तो इसी में नहाऊंगा। और जब सुबह को तडके तडक उसी पानी से नहाया तो आधे घण्टे तक सिर की सारी नसें सुन्न रहीं।
साढे आठ बजे तक गौरीकुण्ड पहुंच गये। एकदम सन्नाटा, ज्यादातर दुकानें बन्द। मात्र एक दुकान ही खुली थी। मैगी खाई गयी। सिद्धान्त ने नहीं खायी। बोला कि मुझे इनका मैगी बनाने का तरीका ही पल्ले नहीं पडा। ऐसे थोडे ही मैगी बनती है। उधर मुझे बस खाने से मतलब था। चाहे कोई बनाये, कैसी भी बनाये। फिर यह भी पता था कि आगे 14 किलोमीटर की चढाई है, रास्ते में खाने की तो दूर कोई चाय की दुकान भी नहीं मिलेगी। बेटा, जितना सामान पेट में जा सकता है, डाल ले। इसके अलावा बिस्कुट के दो पैकेट भी ले लिये। रास्ते में भूख लगे तो खा लेंगे। किसी नई कम्पनी के बेकार से दिखने वाले बिस्कुटों को देखकर सिद्धान्त ने एक बार तो नाक सी सुकोडी, लेकिन मैंने समझाया कि भाई अगर मुझे कहीं एक बार भूख लगनी शुरू हो गई तो मैं कहीं का नहीं रहूंगा। चक्कर पे चक्कर आने लगेंगे। मेरे दिमाग में यही बात समाई रही कि बन्दा मैराथन धावक है, खाने-पीने पर जबरदस्त कंट्रोल है, उल्टी सीधी चीजें नहीं खायेगा, खायेगा भी तो नामी गिरामी कम्पनी की ही खायेगा। यह अच्छी सेहत का राज भी है।
मेरी आज की योजना थी कि आज आराम से शाम तक ऊपर केदारनाथ पहुंचेंगे। वही रुकेंगे। सुबह को वासुकी ताल और गांधी सरोवर देखकर वहां से वापस लौटेंगे। परसों कहां जाना है, यह वापस आकर तय करेंगे। लेकिन सिद्धान्त के विचार कुछ अलग थे। बोला कि चौदह किलोमीटर है, तीन घण्टे में पहुंच जायेंगे। आज ही आठ किलोमीटर और आगे वासुकी ताल देखकर वापस गौरीकुण्ड आ जायेंगे। तीन घण्टे में चौदह किलोमीटर सुनकर मेरे होश उड गये। मैं तो तीन घण्टे में इतनी दूरी मैदान में भी नहीं चल सकता, फिर यहां तो पहाड है। लगातार चढते जाना है। चलो, देखते हैं क्या होवेगा।
गौरीकुण्ड में एक गरम पानी का सोता भी है- गंधक के पानी का। इसे एक कुण्ड में डाल दिया जाता है जिसमें लोगबाग नहाते हैं। आज इसमें केवल एक आदमी अपने पैर धो रहा था। हमें बस एक फोटो खींचना था, खींचकर निकल पडे।
अभी तक केदारनाथ के कपाट नहीं खुले हैं। 7 मई को खुलेंगे। उसके बाद गढवाल में यात्रा सीजन शुरू हो जायेगा। गढवाल में जिंदगी इस यात्रा सीजन के इर्द-गिर्द ही घूमती है। आजकल रास्ते की मरम्मत चल रही है। होटल वाले अपनी आमदनी के स्रोत को भी सजा-धजा रहे हैं। कुल मिलाकर पूरे रास्ते भर हमें लोकल आदमी ही दिखे। कोई ‘टूरिस्ट’ या घुमक्कड नहीं दिखा।
गौरीकुण्ड से 7 किलोमीटर आगे और केदारनाथ से 7 किलोमीटर पहले रामबाडा नामक जगह आती है। रामबाडा गौरीकुण्ड से निकलते ही दिखने लगता है। अपने पुराने यात्रा अनुभवों से मैंने पहले ही घोषणा कर दी थी कि केदारनाथ मन्दिर के पास हमें बर्फ मिलेगी। तभी रामबाडा से दो किलोमीटर पहले हमें चार जने आते दिखाई दिये। चारों के हाथों में लाठी और कपडे भी चकाचक। मैं खुश हो गया कि ये लोग ऊपर केदारनाथ से सुबह चले होंगे यानी रात को वही पर रुके होंगे। मतलब साफ है कि ऊपर रुकने का इंतजाम है। चलो इनसे कुछ बात करते हैं।
हमारे शुरूआत करने से पहले ही उन्होंने शुरूआत की- "कहां से आये हो?"
"दिल्ली से।"
"आप ऊपर नहीं जा सकते।"
"क्यों?"
"क्यों क्या। रामबाडा से आगे रास्ता ही नहीं है।"
"फिर आप रात में कहां रुके थे?"
"हम पुलिस वाले हैं। रामबाडा में हमारी ड्यूटी है तुम जैसों को आगे जाने से रोकने के लिये।"
"क्यों, ऐसा क्या है रामबाडा से आगे?"
"अरे भाई, आगे बहुत ज्यादा बर्फ है। मन्दिर तक अभी रास्ता भी नहीं बना है। मन्दिर भी बर्फ में आधा दबा हुआ है।"
"फिर तो मजा आ जायेगा। हमारा यहां आना सफल हो जायेगा।"
"हम तुम्हें जाने देंगे तभी तो सफल होगा।"
"अरे भाई जाने दो। हम पिछले 30 घण्टों से यहां आने के लिये सफर कर रहे हैं। और पिछले 5 किलोमीटर से पैदल भी आ रहे हैं। अगर ऐसा है तो आपकी ड्यूटी गौरीकुण्ड में ही होनी चाहिये थी।"
चारों पुलिसवालों में से दो तो ठण्डे ठण्डे कूल कूल थे, एक न्यूट्रल था और एक गर्म।
"देखो भई, तुम्हारी सुरक्षा की जिम्मेदारी हमारी है। वहां दस दस फुट से भी ज्यादा बर्फ है। रास्ता बनाने का काम चल रहा है। फिर ऊपर से लगातार पत्थर भी गिर रहे हैं। पता नहीं कौन सा पत्थर तुम्हारे ऊपर गिर जायेगा। अगर ऐसा हो गया तो हमारी शामत आ जायेगी। हमसे पूछा जायेगा कि जब ड्यूटी थी तो रामबाडे से आगे क्यों जाने दिया।"
"और अगर पत्थर काम कर रहे मजदूरों पर गिर गये तो? अभी तक कितने मजदूरों के ऊपर गिरे हैं?"
"भाई, आप बहस मत करो। यहां से वापस चले जाओ। सात तारीख के बाद कभी भी आ जाना। कोई नहीं टोकेगा।"
"फिर क्या पत्थर गिरने बन्द हो जायेंगे। 15 दिन में क्या इतनी बर्फ हट जायेगी?"
"यार अजीब आदमी हो। अभी कपाट बन्द हैं। दुनिया कपाट खुलने के बाद जाती है और आप अभी जाने की जिद कर रहे हो। ऊपर ना तो आपको खाने को मिलेगा, ना ही चाय मिलेगी, ना ही पानी मिलेगा। हम भी बर्फ को पिघलाकर पानी पी रहे हैं। ऊपर ऑक्सीजन भी नहीं है। सांस नहीं ले पाओगे।"
"मतलब छह तारीख को क्या आप वहां ऑक्सीजन के सिलिण्डर ले जाओगे।"
पुलिस वाले इतनी बात नहीं सुन सकते। वो तो उनका दिमाग ठण्डा था कि वे भी बहस करते रहे। आखिर में झल्लाकर बोले कि भाड में जाओ तुम दोनों। मरना ही चाहते हो तो जाओ मरो। आगे महाराष्ट्र के तीन जने भी हैं। वापस आ रहे हैं। फिर रामबाडा में और भी पुलिसवाले बैठे हैं, वे तुम्हें आगे जाने ही नहीं देंगे। हमारा क्या है। हम तो नीचे गौरीकुण्ड में पैसे और खाना लेने जा रहे हैं। कुछ हो गया तो हम तो बचे रहेंगे।
चलते-चलते मैंने पूछा कि क्या आपकी ड्यूटी इस समय रामबाडा में है। बोले कि हां। हम ड्यूटी पर ही हैं।
उनके जाने के बाद मैंने सोचा कि काम हो गया। देखना हम मन्दिर तक आराम से पहुंच जायेंगे। एक बार रामबाडा से निकल जायें और वहां से निकलना अब कुछ भी मुश्किल नहीं है। और हुआ भी ऐसा ही। रामबाडा में कोई पुलिसवाला नहीं था। ऑन ड्यूटी पुलिस वाले हमें दो किलोमीटर पहले ही मिल चुके थे। उन्होंने हमें डराने की पूरी कोशिश की लेकिन जितना वे बरफ बरफ कहते रहे, उतना ही हमारा हौंसला बढता गया।
रास्ते में महाराष्ट्र के तीन जने भी मिले। बोले कि हमें भी पुलिसवालों ने रोकने की पूरी कोशिश की थी लेकिन भाड में जाओ कहकर जाने दिया। आगे बहुत ज्यादा बर्फ है। मन्दिर तक नहीं जा पाओगे। हमने पूछा कि बरफ कितना आगे है। बोले कि रामबाडे से एक किलोमीटर आगे।
रामबाडे से एक किलोमीटर आगे इतनी बर्फ कि आगे बढने का रास्ता ही नहीं है, यह बात मुझे हजम नहीं हो रही थी क्योंकि सामने लगभग एक किलोमीटर पर रामबाडा दिख रहा है और उसके पीछे की चोटियों पर ही बरफ दिखाई दे रही है। फिर रामबाडा से एक किलोमीटर आगे निकलते ही इतनी बर्फ कहां से आ गई।
गौरीकुण्ड का बस अड्डा। गौरीकुण्ड तक ही बसें जा सकती हैं। यहीं से केदारनाथ के लिये सीढियां शुरू हो जाती हैं।
गौरीकुण्ड में गर्म पानी का कुण्ड
केदारनाथ जाने का रास्ता
बीच में घाटी में एक बस्ती दिख रही है। यही रामबाडा है। हालांकि रामबाडा के उस तरफ पहाडों पर बरफ है लेकिन एक किलोमीटर आगे किसी भी हालत में इतनी बरफ नहीं हो सकती कि रास्ता ही बन्द हो।
बुरांश- उत्तराखण्ड का राज्य वृक्ष
रामबाडा के पास एक जमी जलधारा। यह ग्लेशियर नहीं है।
रामबाडा से एक किलोमीटर आगे रास्ते में यह बर्फ मिली थी। यही रास्ता आगे से घूमकर ऊपर जा रहा है। जाहिर है कि इसी बर्फ को यह फिर से काटेगा।
रामबाडा से एक किलोमीटर आगे यही जरा सा दस मीटर का बर्फ खण्ड मिला था जिसे पुलिस वालों ने हव्वा बना दिया। इसे ही देखकर महाराष्ट्र वाले भी वापस लौट गये थे। उन्होंने सोचा होगा कि आगे रास्ता है ही नहीं। जबकि ऐसा नहीं है। केदारनाथ मन्दिर तक पहुंचा जा सकता है।
अगला भाग: केदारनाथ में दस फीट बर्फ
केदारनाथ तुंगनाथ यात्रा
1. केदारनाथ यात्रा
2. केदारनाथ यात्रा- गुप्तकाशी से रामबाडा
3. केदारनाथ में दस फीट बर्फ
4. केदारनाथ में बर्फ और वापस गौरीकुण्ड
5. त्रियुगी नारायण मन्दिर- शिव पार्वती का विवाह मण्डप
6. तुंगनाथ यात्रा
7. चन्द्रशिला और तुंगनाथ में बर्फबारी
8. तुंगनाथ से वापसी भी कम मजेदार नहीं
9. केदारनाथ-तुंगनाथ का कुल खर्चा- 1600 रुपये
आपकी पोस्ट में केदारनाथ का नाम देखते ही चली आई...मई में हम भी बद्री नाथ, केदारनाथ जाने की प्रोग्राम बना रहे हैं! फोटो देखकर उत्साह दुगुना हो गया!
ReplyDeletehi . hum bhi may mein badrinath ji aur kausani jane ka program bna rahe hain .............kaisa mausam rahta hai waha ka .....kya woolen cloth l jana padega hume .......aur haridwar se kaise jaya jaye waha .bus se ya apni cab se .....kya jyada sahi rahe ga ...........plz bataiye .......
Deleteआपके उत्साह की जय हो।
ReplyDeleteमजा आ गया महाराज!!!वाह!! घुम्मकड़ी जिन्दाबाद!
ReplyDeleteजिन खोजाँ तिन पाइयाँ, मज़ा आ गया।
ReplyDeleteneeraj bhai,
ReplyDeletemajaa aa gaya......
may mein humbhi jaa rahe hain...
hope aapse aise hi guide lete rehengein.....
दिल्ली की गर्मी में बर्फ का आनंद लिया जा रहा है और दिया जा रहा है -वाह -- नीरज !
ReplyDeleteवेसे केदार नाथ का रास्ता हेमकुंड साहेब से ज्यादा अच्छा दिखाई दे रहा है --शुभ कामनाए ! जल्दी ही दर्शन होगे !
वाह भाई नीरज मजा आगया पुलिस वालो से बात चीत सुन कर, सभी चित्र बहुत शानदार ओर सुंदर लगे, ओर विवरण लाजबाव. राम राम
ReplyDeleteगर्मी के इस मौसम में बर्फ और झरने देख कर आत्मा प्रसन्न हो गयी..आपकी जय हो...
ReplyDeleteनीरज
पुलिसियों के बजाय अगर लोकल लोग कहें कि आगे नहीं जा सकता तब भी कोई बात है पर.... इनका क्या. एक से एक सुंदर विवरण.
ReplyDeleteनीरज जी..यात्रा वॄत्तांत पढ कर ऐसे लगा जैसे के हम खुद यहां वहां घुम रहे है!.. बहुत ही बढिया!..कॄपया मेरे ब्लोग..बात का...पर आप जरा मेरा जरा मार्गदर्शन करें!
ReplyDeleteme bhi bahut samay se vahan jana chahati hun i wish me bhi jald hi jaau
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