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21 अप्रैल 2011 को दोपहर बाद तीन बजे मैं तुंगनाथ से नीचे उतरकर चोपता पहुंच गया। मुझे पता चल गया था कि चोपता से ऊखीमठ जाने वाली आखिरी बस तीन बजे के आसपास ही निकलती है। वैसे तो मेरा टारगेट ढाई बजे तक ही चोपता आ जाने का था लेकिन तुंगनाथ में हुई बर्फबारी के मजे लेने के चक्कर में मैं आधा घण्टा लेट हो गया। चोपता पहुंचकर पता चला कि ऊखीमठ वाली बस अभी नहीं गई है।
साढे तीन बजे बस आई। ड्राइवर को नाश्ता करना था इसलिये पन्द्रह मिनट खडी रही। आखिरी बस होने की वजह से फुल भरी हुई थी इसलिये ताला तक खडे होकर जाना पडा। ताला वो जगह है जहां से देवरिया ताल के आधार स्थल सारी गांव के लिये सडक जाती है। सारी से देवरिया ताल तक ढाई किलोमीटर पैदल रास्ता है। यह बस गुप्तकाशी जा रही थी। मैंने टिकट ले लिया कुण्ड तक का। ऊखीमठ और गुप्तकाशी के बिल्कुल बीच में है कुण्ड। कुण्ड में एक तिराहा है जहां से ऊखीमठ, गुप्तकाशी और रुद्रप्रयाग के लिये सडक जाती है। मैं जल्दी से जल्दी रुद्रप्रयाग पहुंच जाना चाहता था। वैसे मेरे पास अभी कल का दिन भी था लेकिन तीन चार दिनों से लगातार सफर कर-कर के बहुत थक गया था और जल्दी से जल्दी दिल्ली लौट जाना चाहता था। सिद्धान्त भी साथ नहीं था।
पांच बजे से पौने छह बज गये, लेकिन कुण्ड में रुद्रप्रयाग जाने वाली कोई बस या जीप नहीं आई। रुद्रप्रयाग से गुप्तकाशी या ऊखीमठ और ऊखीमठ से गुप्तकाशी जाने वाली गाडियां ही आती रहीं। तय कर लिया कि अब रुद्रप्रयाग जाने से कोई फायदा नहीं, चलो गुप्तकाशी ही चलते हैं। तभी गुप्तकाशी की तरफ से एक बस आई। यह वहां काम कर रहे प्रोजेक्ट के स्टाफ को अगस्त्यमुनि छोडने जा रही थी। हालांकि अब रुद्रप्रयाग जाने का कोई फायदा नहीं था, लेकिन फिर भी मैं उसमें हो लिया। अगस्त्यमुनि पहुंच गया। यह जगह कुण्ड और रुद्रप्रयाग के बिल्कुल बीच में है।
अब वही पंगा अगस्त्यमुनि में भी हो गया। अंधेरा होने लगा था लेकिन रुद्रप्रयाग की कोई गाडी नहीं मिली। ट्रकों को भी हाथ दिया लेकिन कोई फायदा नहीं। लगने लगा कि आज की रात अगस्त्यमुनि में ही काटनी पडेगी। तभी एक जीप आती दिखी। आदत के मुताबिक उसे हाथ दिया। नहीं रुकी लेकिन कुछ आगे जाकर कई लोगों ने हाथ दिया तो रोक ली। यह देखकर इधर तुरन्त दौड लगा दी और उसमें चढ लिया। यह भी नहीं पूछा कि यह जा कहां रही है। रास्ते में पता चला कि यह किसी की पर्सनल जीप है जो रुद्रप्रयाग जा रही थी और लगे हाथों सवारियां भी बैठा ली हैं। आठ बजे तक रुद्रप्रयाग पहुंच गये। इस समय यहां से ऋषिकेश के लिये तो दूर श्रीनगर के लिये भी गाडी मिलनी मुश्किल होती है। इसलिये मैं यही रुकने के बारे में सोचने लगा।
इस जीप में सभी सवारियां रुद्रप्रयाग की ही थीं। उतर गये। बस ऐसे ही मैंने ड्राइवर से पूछा कि आगे कहां जाओगे? बोला कि ऋषिकेश। अरे यार, ऋषिकेश तो मुझे भी जाना है। तो बोला कि बैठे रहो। अपना तो हो गया काम। बारह एक बजे तक भी ऋषिकेश पहुंच जायेंगे तो सुबह होने तक दिल्ली।
अब होती है असली सफर की शुरूआत। इस जीप में ड्राइवर समेत पांच लोग बैठे थे जो अपने किसी काम से ऋषिकेश जा रहे थे। मैं एक तरह से अकेला ही था। सबसे पीछे बैठा था। डर यह भी था कि कहीं ये लोग कुछ गडबड ना कर दें। इसलिये आदत के उलट जागना पड रहा था। श्रीनगर से पहले उन्होंने जीप रोक दी। अपनी हवा खराब। जंगल और अंधेरा। मूत-मात कर फिर चल पडे। एक किलोमीटर भी नहीं चले कि एक होटल के सामने फिर रोक दी। कुछ खाने-पीने के लिये। खाना-पीना नहीं केवल पीने के लिये। यहां से चले तो कहने लगे कि भाई, तुम पीछे अकेले क्यों बैठे हो। आओ, आगे आ जाओ। बीच वाली सीट पर जाना पड गया तो सारे पूर्वज याद आ गये। चौसठ करोड देवी-देवता दीखने लगे। हालांकि मन के एक कोने में यह भी था- ऑल इज वेल। सब ठीक-ठाक सुलट जायेगा। अच्छा हां, वे गढवाली में बात कर रहे थे जो ज्यादातर मेरे पल्ले नहीं पडी।
श्रीनगर पहुंचे। यहां पहुंचकर कहने लगे कि हम डिनर करेंगे। ड्राइवर से बोले कि कहीं कोई होटल ढूंढकर गाडी रोक देना। एक जगह गाडी रोक दी गई। गाडी रुकते ही सभी अलग-अलग दिशाओं में खाना खाने चले गये। जिसे जो कुछ खाना था, वो उसी हिसाब से चला गया। ड्राइवर ने मुझसे पूछा कि आप नहीं खाओगे कुछ। मुझे क्यों भूख लगने लगी? बोला कि ठीक है, गाडी में ही रहना। और चाबी लगी छोडकर वो भी चला गया। बस यही पर मेरा सारा डर खत्म हो गया। अगर वे गलत होते तो सभी एक ही जगह जाते और वहां बैठकर आगे की योजना बनाते। लेकिन यहां तो सभी अपने-अपने पेट के हिसाब से चारों दिशाओं में फैल गये। थोडी देर बाद ड्राइवर आया। मैंने पूछा कि भाई, आप कौन हो और इस समय ऋषिकेश क्यों जा रहे हो। बोला कि हम गौरीकुण्ड के रहने वाले हैं। हमारे यहां से एक लडका घर से भाग गया है और पता चला है कि वो ऋषिकेश में है। उसे लाने जा रहे हैं। इन चारों में से एक तो उसका बाप है, एक साला है और दो 'बाराती' हैं। ये दोनों बाराती पूरे रास्ते ऐसे ही दिक्कत करेंगे कि कभी भूख लग रही है, कभी दारू पीनी है।
खैर, श्रीनगर से चल पडे। ग्यारह बजने को थे। उत्तराखण्ड में रात आठ बजे के बाद ट्रैफिक नहीं चलता। कीर्तिनगर में पुलिस की चैकपोस्ट थी। पुलिस वालों से प्रार्थना की कि बडी ही मुसीबत है। ऋषिकेश जाना बहुत जरूरी है। पुलिस ने ड्राइवर से लिखवाकर ले लिया कि उसे नींद नहीं आ रही है और सही-सलामत ऋषिकेश पहुंच जायेंगे। कोई पैसा नहीं लिया गया।
अब उन्होंने भी मुझसे पूछा कि यार तुम कौन हो और कहां से आ रहे हो। मैंने कहा कि मैं दिल्ली से आया हूं और केदारनाथ घूमने गया था। सुनते ही सारे लगभग चीख पडे- केदारनाथ? तुम्हें किसी ने रोका नही क्या? मैंने कहा कि नहीं तो। बोले कि ऑफ सीजन में केदारनाथ जाने के लिये रुद्रप्रयाग से डीएम से परमिशन लेनी होती है। मैंने कहा कि मुझे रामबाडा के पास पुलिस वाले मिले तो थे लेकिन उन्होंने भी किसी परमिशन के बारे में नहीं बताया और हमें जाने दिया। बोले कि यार बडे खुशनसीब हो। तुम्हारे पास तो कैमरा भी होगा। जरा फोटो दिखाना।
वे चूंकि गौरीकुण्ड के ही रहने वाले थे इसलिये केदारनाथ के बारे में दुनिया के किसी भी हिस्से के लोगों से ज्यादा जानते हैं। और जैसे ही उन्होंने केदारनाथ में बर्फ देखनी शुरू की तो ड्राइवर ने गाडी साइड में लगा ली और तसल्ली से एक-एक फोटो देखने लगे। हर फोटो को देखकर हाय, ओ तेरे की, इतनी बर्फ वगैरह कहते रहे। ओये देख सोमनाथ, पण्डत की दुकान का तो नामोनिशान ही खत्म है। अबे तेरा होटल भी तो दबा पडा है। ओये यार, हमें दस दिन बाद जाकर इतनी बर्फ अपनी दुकान के सामने से हटानी पडेगी।
इस फोटो को देखकर पूछा कि भाई ये बताओ कि यह फोटो आपने कहां खडे होकर खींची है। मैंने कहा कि बर्फ पर। बोले कि नहीं, आप मेरे होटल की पहली मंजिल पर रखी पानी की टंकी पर खडे हो। भैया आपने यादें ताजा करा दी हैं। इतनी बर्फ 1996 के बाद पडी है। बडे हिम्मत वाले हो आप।
जब देवप्रयाग की तरफ बढ रहे थे तो एक तेंदुए ने रास्ता काटा। तेंदुए को देखते ही शोर मचा दिया कि बाघ-बाघ। उत्तराखण्ड में तेंदुए बहुतायत में हैं। रुद्रप्रयाग के एक आदमखोर तेंदुए को तो महान शिकारी जिम कार्बेट ने अपनी कलम से अमर कर दिया था। यहां तेंदुए को स्थानीय बोलचाल में बाघ या बघेरा कहते हैं। स्थानीय लोग तेंदुआ कभी नहीं कहते। मैंने भी आज पहली बार तेंदुआ देखा था।
देवप्रयाग में फिर से पुलिस चेकपोस्ट मिली। यहां भी ड्राइवर से लिखवाकर ले लिया गया। चेकपोस्ट पार करते ही सभी ने महसूस किया कि काफी रात हो चुकी है और थकावट भी हो रही है। चलो कहीं रुक जाते हैं। सुबह चले जायेंगे। एक होटल में गाडी पार्क कर दी। खाना खाया और सौ रुपये प्रति व्यक्ति की दर से बिस्तरे मिल गये। उन्होंने मुझसे पूछा भी कि यहां रुकने में कोई दिक्कत तो नहीं है। इधर दिक्कत क्यों होती? पेट भरकर खाना खाया और जी भरकर सोये।
सुबह आराम से उठे। नहाये धोये और फिर चल पडे। ढाई तीन घण्टे लगे और सीधे ऋषिकेश। अगस्त्यमुनि से मैं इनके साथ आ रहा था, डेढ सौ रुपये लिये। कोई ज्यादा नहीं है। बस, इससे आगे तो सफर की औपचारिकता ही थी। दोपहर तीन बजे तक मैं दिल्ली में था।
अगला भाग: केदारनाथ-तुंगनाथ का कुल खर्चा- 1600 रुपये
केदारनाथ तुंगनाथ यात्रा
1. केदारनाथ यात्रा
2. केदारनाथ यात्रा- गुप्तकाशी से रामबाडा
3. केदारनाथ में दस फीट बर्फ
4. केदारनाथ में बर्फ और वापस गौरीकुण्ड
5. त्रियुगी नारायण मन्दिर- शिव पार्वती का विवाह मण्डप
6. तुंगनाथ यात्रा
7. चन्द्रशिला और तुंगनाथ में बर्फबारी
8. तुंगनाथ से वापसी भी कम मजेदार नहीं
9. केदारनाथ-तुंगनाथ का कुल खर्चा- 1600 रुपये
@ओ तेरे की, इतनी बर्फ
ReplyDeleteचलो सफर आराम से पूरा हुआ। शायद उनका भागा हुआ लडका भी मिल गया हो।
वाह भाई! आनंद कर दिया। मैं तो समझ रहा था आप की जगह मैं घूम रहा हूँ।
ReplyDeleteखर्च का अनुमान लगाना मुश्किल है पर अधिक नहीं रहा होगा। मेरे जैसे आदमी हो।
भाई जी खर्चे का तो पता नहीं जी लेकिन करोड़ों रूपये खर्च के भी ऐसा आनंद कोई नहीं उठा सकता जैसा आप उठाते हो...जो करते हो कमाल करते हो भाई जी...
ReplyDeleteनीरज
सुन्दर यात्रा संस्मरण!
ReplyDeleteमगर इस बार चित्र कम लगाए हैं!
गर्मी में सुलगते लोगों को बर्फ दिखाकर आग लगा रहे हैं।
ReplyDeleteबहुत अच्छे, पोस्ट तुंगनाथ की, फ़ोटो केदारनाथ की,
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया यात्रा रही ,आपकी
ReplyDeleteहिम्मत वाले तो आप हैं हीं...और उसका लाभ हमें भी मिल रहा है....
बर्फ तो गज़ब की पड़ी है.
WAHH MAJA AAGAYA, AISA LAGRAHA HAIN JAISE HAM LOG BHI AAP KE SAATH HI GHOOM RAHE HO. LAGE RAHO NEERAJ BHAI, VAISE HAM LOG JUNE KE PAHLE HAFTE MEN KEDARNATH JI BYKE SE JAA RAHE HAIN.
ReplyDeleteबढ़िया यात्रा संस्मरण
ReplyDeleteक्रांतिवीर : लोटियो जाट और सांवतो मीणों | ज्ञान दर्पण
no words to describe this mr neeraj...
ReplyDeleteare bhai neeraj babu kabhi hamare jharkhand bhi aa jao,achche log jarur milenge
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