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सिद्धान्त चौधरी उत्तराखण्ड घूमना चाहते हैं

गाजियाबाद से सिद्धान्त चौधरी लिखते हैं:

"नीरज भाई नमन,
नीरज जी, मैं आपका ब्लॉग पिछले डेढ साल से पढ रहा हूं। आप जिस तरह से अपनी लेखनी प्रस्तुत करते हैं, मैं उसका काफी बडा प्रशंसक हूं। माफी चाहता हूं कि किसी कारणवश मैंने आपसे सम्पर्क करने का प्रयास नहीं किया। जब भी आप उत्तराखण्ड की यात्रा का सार प्रस्तुत करते हैं तो मुझे लगता है कि आप मुझे कुछ विशेष जानकारी दे सकते हैं।
देखिये, वैसे मैं उत्तराखण्ड कई बार गया हूं (हरिद्वार, ऋषिकेश, नीलकण्ठ, देवप्रयाग, रुद्रप्रयाग, कर्णप्रयाग, जोशीमठ, भीमताल, नैनीताल आदि)। मैं हमेशा अकेला ही उत्तराखण्ड के लिये घूमने निकला हूं। ज्यादातर मैं गलत सीजन में निकल जाता हूं (नवम्बर-फरवरी), इस कारण से मैं कभी ज्यादा आगे नहीं जा सका। रास्ते बन्द होते हैं और लोकल लोगों से आगे जाने के बारे में पूछता हूं तो मना कर देते हैं। एक बार इरादा भी बना लिया था कि अबकी बार दिसम्बर में बद्रीनाथ जाना है लेकिन पाण्डुकेश्वर से आगे आर्मी वालों ने मना कर दिया। वास्तव में मेरे पास टाइम भी कम होता है इसलिये मैं प्लानिंग को ठीक तरह से मैनेज और एप्लाई नहीं कर पाता। एक बात और, मैं ज्यादा से ज्यादा यात्रा को पैदल चलकर पूरा करता हूं।

अच्छा, अबकी बार मैंने अप्रैल में विचार बनाया है और मेरे पास 30 दिन हैं पूरा उत्तराखण्ड घूमने के लिये। मैं आपको थोडा सा आइडिया दे देता हूं कि मैं अपनी यात्रा देहरादून से शुरू करके उत्तरकाशी (यमुनोत्री, गंगोत्री, गोमुख, नंदनवन, तपोवन) होते हुए केदारनाथ, बद्रीनाथ (माणा गांव) के दर्शन करते हुए नीचे की ओर काठगोदाम पर खतम करूंगा। मेरी यात्रा धार्मिक अनुष्ठान पर आधारित है और मैं इस यात्रा में ज्यादा से ज्यादा दूरी ट्रेकिंग से कवर करूंगा। मुझे भी जानकारी है कि अभी भी कई रूट क्लियर नहीं हैं, और मुझे कई तरह की समस्याएं भी आने वाली हैं।
वैसे आप उत्तराखण्ड काफी घूमे हैं, इसलिये आप मेरे कुछ पॉइण्ट क्लियर कर दीजिये।
1. मैं चाहता हूं कि जब मैं देहरादून होते हुए उत्तरकाशी से आगे निकल जाऊं तो मैं पूरी तरह से ट्रेकिंग पर निर्भर हो जाऊं। (असल में मैं ट्रेकिंग रूट को ही फॉलो करूंगा), रात को ट्रेकिंग सम्भव नहीं है, मैं चाहता हूं कि मेरी रात किसी आश्रम में या धर्मशाला में ही कटे। तो मैं चाहता हूं कि आप मुझे एक लिस्ट प्रोवाइड करवा दें, जहां मैं रात को रुक सकूं, जब मैं यमुनोत्री और गंगोत्री की तरफ ट्रेक करूं।
2. यमुनोत्री और गंगोत्री की तरफ पॉपुलेशन काफी कम है, इसलिये दिन में ट्रेकिंग करते हुए (जंगल में) मुझे किस-किस तरह की परेशानियां आयेंगीं? आप मुझे कुछ आइडिया दे दें तो अच्छा रहेगा।
3. क्या मेरा दिन के समय ऊपरी पर्वतीय इलाकों में अकेले ट्रेक करना ठीक रहेगा? या मैं किसी लोकल गाइड या साधु-संत को अपने साथ होने के लिये अप्रोच करूं?
4. मैं ज्यादा से ज्यादा टूरिस्ट प्लेस और पॉपुलेशन से दूर ही रहना चाहता हूं, इसलिये आप मुझे किसी ठीक रास्ते का आइडिया दे सकें तो अच्छा रहेगा।
5. मैं अपने साथ 10 किलो से ज्यादा सामान नहीं ले जाना चाहता, मैं अपने साथ 3 किलो ड्राई फ्रूट और एक कम्बल हमेशा रखता हूं और बाकी पहनने के लिये कपडे ज्यादा नहीं लेता। यदि कुछ और भी जरूरी है तो बता दीजिये।
अच्छा, मेरे पास पूछने को बहुत कुछ है लेकिन मैं लिखने में ज्यादा अच्छा नहीं हूं, इसलिये आपको अपनी बात सही तरीके से शेयर करने में प्रॉब्लम फील कर रहा हूं।
मेरी फिटनेस बढिया है (नेशनल लेवल मैराथन रनर)। मैं शारीरिक और मानसिक कठिनाइयों से निपटने में अव्वल दर्जे का हूं। यदि ट्रेकिंग रूट नॉर्मल हैं (जैसे ऋषिकेश से नीलकण्ठ) तो मैं 40-50 किलोमीटर प्रतिदिन चल सकता हूं। (एक बार मैंने गोवर्धन परिक्रमा जो 21 किलोमीटर की होती है, भाग-भाग कर 1 घण्टे 42 मिनट में खतम कर दी थी। हा हा हा हा।)
भाई देखो, मेरी यात्रा का मोटिव बिल्कुल साफ है कि मैं ज्यादा से ज्यादा टाइम आध्यात्मिक शान्ति में काटना चाहता हूं, जहां मुझे कुछ अच्छे और ज्ञानी साधु-सन्त मिल जायें, जो दुनिया से दूर रहकर तप करते हैं, इसलिये मैं ज्यादा टाइम भटकते हुए नहीं निकलना चाहता। यदि आप मुझे किसी भी प्रकार की हेल्प कर सकें तो मैं आपका आभारी रहूंगा। धन्यवाद।
सिद्धान्त चौधरी
वसुन्धरा, गाजियाबाद
सिद्धान्त जी,
आप अकेले घूमने निकलते हैं और फिटनेस भी बढिया है, यह बडी अच्छी बात है। वैसे तो एक घुमक्कड के लिये साल के बारहों महीने घूमने के होते हैं लेकिन कुछ जगहें ऐसी होती हैं जहां आप गलत मौसम में नहीं जा सकते। अभी पिछले दिनों मेरे एक मित्र की शादी हुई है। बेचारे मुझसे बोले कि यार, हनीमून मनाने जा रहे हैं, कैमरा दे दे। मैंने पूछा कि कहां जा रहे हो। शान से सिर ऊंचा करके बोले कि मनाली। मैंने कहा कि तुरन्त मनाली का इरादा बदल लो, कहीं और जाओ। साऊथ में भी ठीक है। बोले कि नहीं, तुम्हे क्या पता? मनाली हिमाचल प्रदेश में बहुत ही प्रसिद्ध हिल स्टेशन है। मैंने कहा कि वो तो ठीक है, लेकिन यार तुम पहली बार पत्नी के साथ जा रहे हो, लेकिन रोहतांग नहीं जा पाओगे। यह गलत मौसम है। बोले कि नहीं, तुम गलत कह रहे हो। जिस एजेंसी से हमने बात की है वे कह रहे हैं कि रोहतांग चले जायेंगे। मैंने कहा कि मेरे भाई, रोहतांग के बिना मनाली की यात्रा अधूरी मानी जाती है। अभी तक रोहतांग नहीं खुला है। बोले कि तुम मुझे कैमरा दे दो, हम चले जायेंगे।
जब चार-पांच दिन बाद वो वापस आया तो मैंने पूछा कि गये थे रोहतांग? बोला कि नहीं यार, तू ठीक कहता था। रोहतांग बन्द था। लेकिन हम मनाली के पास ही दूसरे हिल स्टेशन पर चले गये थे। मैंने कहा कि भाई, हिल स्टेशन तो रूपनगर से निकलते ही शुरू हो जाते हैं। तो ये नतीजा होता है गलत मौसम में गलत जगह पर निकलने का।
अब सिद्धान्त जी आपकी बात पर आते हैं। आप उत्तराखण्ड में काफी घूमे हैं। ज्यादातर गलत मौसम में गये हैं यानी एक तरह से असफल ही हुए हैं। इंसान असफलता से बहुत कुछ सीखता है तो आपको भी उत्तराखण्ड की ‘आबोहवा’ के बारे में बहुत कुछ पता चल गया होगा। ये भी आप जानते होंगे कि उत्तराखण्ड में खासकर गढवाल में यात्रा का एक सीजन होता है- चारधाम यात्रा का सीजन। यमुनोत्री और गंगोत्री के कपाट सबसे पहले खुलते हैं, बस तभी से यात्रा का सीजन शुरू हो जाता है। लोकल लोग भी सोते से उठने लगते हैं।
आपने इस बार भी उत्तराखण्ड में घूमने के लिये जल्दबाजी कर दी है क्योंकि केदारनाथ के कपाट 8 मई को खुलेंगे और बद्रीनाथ के 9 मई को। इनसे दो-तीन दिन पहले अक्षय तृतीया के दिन यमुनोत्री-गंगोत्री के कपाट खुलेंगे। तो सीधी सी बात है कि अप्रैल में जाने पर आपको इन चारों जगहों पर दिक्कत ही पेश आयेगी। यमुनोत्री-गंगोत्री तक तो आप चले जाओगे, केदारनाथ भी चले जाओगे लेकिन बद्रीनाथ जाने में मुश्किल पडेगी। फिर यमुनोत्री से आगे सप्तऋषि कुण्ड नहीं जा पाओगे, गोमुख भी नहीं जा पाओगे।
आपके कुछ पॉइण्ट हैं, उन्हें क्लियर कर रहा हूं। (शर्तें लागू- अगर आप अप्रैल में ना जाकर यात्रा सीजन में जाओ)
1. यमुनोत्री और गंगोत्री दोनों रूटों पर कई चट्टियां और गांव हैं। लोगों की आमदनी यात्रा सीजन में ही होती है तो आपको फ्री में ठहरने की उम्मीद नहीं करनी चाहिये। फिर भी, जहां चाह वहां राह। निकल पडो, रात आयेगी तो कटेगी भी।
2. यात्रा सीजन में इन चारों जगहों के साथ-साथ पांचों केदारों और पांचों बद्रियों में काफी लोगों का आना-जाना होता है। साधु-सन्त भी बहुत होते हैं। तो आपको कोई परेशानी नहीं होगी, साथ भी बना रहेगा। फिर भी जंगली इलाका है, मध्य हिमालय के जंगलों में तेंदुआ और भालू काफी संख्या में होते हैं, इनसे चौकस रहने की जरुरत है। साथ में एक लठ भी हो तो अच्छा है। वैसे भी एक ट्रेकर को लठ हमेशा साथ रखना चाहिये। ट्रेकिंग जहां से शुरू करते हैं, लठ आसानी से मिल जाते हैं।
3. आपको अपने तीसरे सवाल का जवाब ऊपर मिल गया होगा। अकेले सफर करना किसी भी कोण से सही नहीं है। फिर भी यात्रा सीजन में सभी रास्ते चलते रहते हैं। आप किसी भी समय अकेलापन नहीं झेलोगे। कोई ना कोई तो मिलता ही रहेगा। हां, किसी के साथ चलते समय ध्यान रखना कि उसे तेज चलने के लिये मत उकसाना। आप मैराथन रनर हो, आपमें कुदरती तेज चलने की क्षमता है लेकिन साथ वाला भी तेज ही चले, यह जरूरी नहीं।
4. मैं आपको सलाह दूंगा कि आप अपनी यात्रा यमुनोत्री से शुरू करें। यमुनोत्री से कुछ ऊपर यमुना का उदगम स्थल सप्तऋषि कुण्ड है। रास्ता कठिन है लेकिन फिर भी जाया जा सकता है। यमुनोत्री से गंगोत्री जाने के लिये हनुमानचट्टी, उत्तरकाशी होते हुए ही जाना पडेगा। गोमुख चले जाओ, रास्ते में नंदनवन, भोजबासा जो भी कुछ पडता है, घूमा जा सकता है। गंगोत्री से पैदल लंका चट्टी, हरसिल, भटवाडी होते हुए लाटा गांव तक पहुंचिये। लाटा से एक पैदल रास्ता केदारनाथ भी जाता है। तीन-चार दिन लगते हैं। यह रास्ता बहुत गुमशुदा सा है, केवल सावन के महीने में कांवडियों की थोडी-बहुत चहल-पहल होती है। लाटा से पंवाली बुग्याल पहुंचना होता है। पंवाली बुग्याल को भारत के सुन्दरतम बुग्यालों में माना जाता है।
केदारनाथ से बद्रीनाथ जाने से पहले पंच केदार भी घूमा जा सकता है। ऊखीमठ से मदमहेश्वर, ऊखीमठ-चमोली रोड पर चोपता से तुंगनाथ, गोपेश्वर से रुद्रनाथ, साथ ही साथ रुद्रनाथ से कल्पेश्वर। कल्पेश्वर से सीधे जोशीमठ। इनके बाद बद्रीनाथ आदि।
5. सुबह-शाम ठण्ड बढ जाती है। अगर दिन में भीग गये या पसीना ज्यादा आ गया तो शाम को दिन ढलते ही ठण्ड लगनी शुरू हो जाती है। यह इतनी खतरनाक होती है कि बुखार तक हो सकता है। चाहे बन्दा ट्रेकिंग का सर्टिफिकेट धारी हो या नेशनल लेवल का मैराथन रनर।
मैं आपकी अभी इतनी ही सहायता कर सकता हूं। लेकिन अपने अप्रैल में निकलने के इरादे पर दोबारा विचार जरूर कीजिये।
अन्त में, यात्रा की बहुत-बहुत शुभकामनाएं।
वापस आकर अपने अनुभव बताना मत भूलना।
...


Comments

  1. वाह! नीरज,आपने तो सारा हिन्दुस्तान का नक्क्षा ही समेत लिया अपनी धुमक्कड़ी में ..

    डलहोजी -चम्बा जाओ तो खजियार जरुर जाना --मेरी पोस्ट पढ़ सकते हो तो पढ़ लेना ..

    आबू सब से सुन्दर जगह लगी मुझे ? १९९८ में गई थी !

    चलो ,जल्दी अच्छी -अच्छी जगह की सैर करवाओ !क्योकि जहां आप जाते हो मै वहाँ जा नही सकती --धन्यवाद !

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  2. उत्तराखण्ड की बहुत सटीक और विस्तृत जानकारी दी है नीरज जी.

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  3. घुमक्कड़ी समूह का आकार बढ़ते जाने के लिये बधाई।

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  4. बंदे को सारी जरुरी जानकारी मिल गयी । अब देखो कैसा रहेगा उसका सफ़र । भालु का बता कर अच्छा किया । सावधान रहेगा, बंदा, घुम्मकड नहीं भक्त ज्यादा है ।

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  5. घूमते रहो उत्तराखंड ....हिमाचल का कार्यक्रम तो मैंने तय करना है न ..अब मैं भी शामिल हो गया ...और बन गया मुसाफिर ..

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  6. नीरज भाई यदि ये कहूं कि आपका ये ब्लॉग हिंदी ब्लॉगजगत को मिले कुछ नायाब नगीनों में से एक है तो शायद कल को मुझे इस बात के लिए फ़ख्र होगा कि मैंने आपके इस ब्लॉग को खूब अच्छी तरह जिया है

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  7. आप तो अच्छे खासे यात्रा सलाहकार हो सकते हैं।

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  8. बहुत सुंदर जानकारी दी, बहुत साल पहले हम नेनी ताल ओर आसपास घुमने गये थे, गलत मोसम मे, बस तीन चार दिन बसो मे धक्के खाये फ़िर वापिस आ गये, नेनी ताल के आसपास सिर्फ़ बसो मे घुमते रहे, अगली बार मुसाफ़िर जिन्दावाद नीरज को पकडेगे

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  9. घुमक्कड़ी के साथ समाज सेवा भी ! बढ़िया है नीरज भाई.

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  10. बहुत सुंदर जानकारी दी नीरज भाई!
    बहुत बहुत धन्यवाद आपका.
    आपको मेरी तरफ से हार्दिक शुभकामनाएं

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  11. अच्छी जानकारी दी आपने..

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  12. वहूत ही विस्तृत जानकारी दी शुकिया

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46 रेलवे स्टेशन हैं दिल्ली में

एक बार मैं गोरखपुर से लखनऊ जा रहा था। ट्रेन थी वैशाली एक्सप्रेस, जनरल डिब्बा। जाहिर है कि ज्यादातर यात्री बिहारी ही थे। उतनी भीड नहीं थी, जितनी अक्सर होती है। मैं ऊपर वाली बर्थ पर बैठ गया। नीचे कुछ यात्री बैठे थे जो दिल्ली जा रहे थे। ये लोग मजदूर थे और दिल्ली एयरपोर्ट के आसपास काम करते थे। इनके साथ कुछ ऐसे भी थे, जो दिल्ली जाकर मजदूर कम्पनी में नये नये भर्ती होने वाले थे। तभी एक ने पूछा कि दिल्ली में कितने रेलवे स्टेशन हैं। दूसरे ने कहा कि एक। तीसरा बोला कि नहीं, तीन हैं, नई दिल्ली, पुरानी दिल्ली और निजामुद्दीन। तभी चौथे की आवाज आई कि सराय रोहिल्ला भी तो है। यह बात करीब चार साढे चार साल पुरानी है, उस समय आनन्द विहार की पहचान नहीं थी। आनन्द विहार टर्मिनल तो बाद में बना। उनकी गिनती किसी तरह पांच तक पहुंच गई। इस गिनती को मैं आगे बढा सकता था लेकिन आदतन चुप रहा।

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