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खीरगंगा - दुर्गम और रोमांचक

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पिछली बार पढा कि मणिकर्ण से खीरगंगा 25 किलोमीटर दूर है। 15 किलोमीटर दूर पुलगा तक तो बस सेवा है, आगे शेष 10 किलोमीटर पैदल चलना पडता है। पुलगा से तीन-साढे तीन किलोमीटर आगे नकथान गांव है, जो पार्वती घाटी का आखिरी गांव है। इसके बाद इस घाटी में कोई मानव बस्ती नहीं है।
नकथान से निकलते ही मैं एक काफिले के साथ हो लिया। उनमें सात-आठ जने थे। सभी के पास खोदने-काटने के औजार थे। यहां से आगे ज्यादा चढाई नहीं है। कुछ दूर ही रुद्रनाग है। यहां टेढी-मेढी चट्टानों से होकर पानी नीचे आता है यानी झरना है। यह जगह स्थानीय लोगों के लिये बेहद श्रद्धा की जगह है। देवता भी यहां दर्शन करने को आते हैं। इसका सम्बन्ध शेषनाग से जोडा जाता है। यह जगह बडी ही मनमोहक है। काफी बडा घास का मैदान भी है। पास में ही पार्वती नदी पर शानदार झरना भी है।
रुद्रनाग के बाद पार्वती नदी को पार किया जाता है। अब शुरू होता है जंगल। नदी पार करते ही चढाई शुरू हो जाती है। जो कम से कम चार किलोमीटर दूर खीरगंगा तक जारी रहती है। मेरे साथ जो काफिला चल रहा था, उन्हें असल में आगे रास्ता बनाना था। एक जगह एक बन्दे ने बताया कि यह देखो, यह रास्ता भालू ने खोद रखा है। इस जंगल में भालू बहुत हैं। अब मुझे डर लगने लगा। अपने निर्धारित स्थान पर यह दल रुक गया और चट्टान को काटकर रास्ता बनाने की योजना बनाने लगा। वैसे तो इससे आगे भी रास्ता है लेकिन यहां कुछ दूर तक घोडों-खच्चरों के लायक नहीं है। खच्चरों का इस्तेमाल गद्दी लोग अपने लिये करते हैं।
अब मुझे अकेला चलना था। भालुओं के इलाके में अकेला। सोचा कि एक लठ भी होना चाहिये। एक पेड से तोडने की कोशिश भी की लेकिन नाकाम। आज पहली बार जंगल में चलते हुए डर लग रहा था। अगर वो मुझसे भालुओं का जिक्र ना करता तो आगे का सफर भी ठीक ही कट जाता। खैर, भालू तो मिले नहीं। आखिर में खीरगंगा पहुंच गया।

NAKTHAN
नकथान गांव

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मेरे साथी

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सामने कुछ दिख रहा है?

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पार्वती नदी पर बना जर्जर पुल

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रुद्रनाग के पास

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रुद्रनाग के पास एक धर्मशाला

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रुद्रनाग झरना

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पानी पीयो भाई

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अब बीडी बाडी पी लो, बहुत चलना है।

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रुद्रनाग के पास मैदान

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शानदार झरना

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अब शुरू होता है असली जंगल

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ये हैं गद्दी भेड बकरी चराने वाले। ये लोग गर्मियों में भेडों को लेकर ऊपर ग्लेशियरों पर चले जाते हैं। तीन-चार महीने वहीं रहते हैं। अपना राशन ले जा रहे हैं।

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गद्दी खाना बना रहे हैं।

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मेरे साथियों को यही तक जाना है। इस चट्टान को खच्चर चलने लायक काटना है।

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इन पर आदमी तो चल सकता है लेकिन खच्चर के लिये खतरा है।

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इस जंगल में मुझे डर लगने लगा था।

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ऊपर खाना पहुंचाकर आ रहे हैं गद्दी।

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ठण्डी जगह है फिर भी पसीना-पसीना हो रहा हूं। जबरदस्त चढाई है भाई।

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यह है खीरगंगा का मैदान।


मणिकर्ण खीरगंगा यात्रा
1. मैं कुल्लू चला गया
2. कुल्लू से बिजली महादेव
3. बिजली महादेव
4. कुल्लू के चरवाहे और मलाना
5. मैं जंगल में भटक गया
6. कुल्लू से मणिकर्ण
7. मणिकर्ण के नजारे
8. मणिकर्ण में ठण्डी गुफा और गर्म गुफा
9. मणिकर्ण से नकथान
10. खीरगंगा- दुर्गम और रोमांचक
11. अनछुआ प्राकृतिक सौन्दर्य- खीरगंगा
12. खीरगंगा और मणिकर्ण से वापसी

Comments

  1. जब यह वर्णन पढ़कर और चित्र देखकर ही इतना अच्छा लग रहा है तो आपके आनंद का अंदाज़ लगाना कठिन नहीं है. इस तीर्थयात्रा के वर्णन को बांटने का हार्दिक आभार!

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  2. रोमांच भरा सफर...

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  3. नीरज जी, चलते रहिये। आनन्द आ रहा है।

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  4. बहुत मनमोहक दृश्य हैं .धन्यवाद

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  5. भाई कमाल कर दिया तमने...फोटो देख कर ही दिल बाग़ बाग़ हो गया...ग़ज़ब के इंसान हो भाई ग़ज़ब के...
    नीरज

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  6. शायद इसी का नाम स्वर्ग है

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  7. नीरज,
    तुम्हारे साहस की बलिहारी। फोटो में जितना सुहाना दिखता है सब, घर बैठे, कभी-कभी लोमहर्षक भी होता है यह तो सशरीर वहां मौजूद रहने वाला ही जान पाता है। एक दो बार गुजरना हुआ है ऐसे अनुभव से।
    बहुत सुंदर, विवरण भी और फोटो भी।

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  8. बहुत ही सुंदर चित्र ओर उतना ही सुंदर वर्णन.धन्यवाद

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  9. नीरज जी
    हिमाचल दर्शन करवाने के लिये धन्यवाद ।सच में बहुत आनन्द आ गया प्रकृति के मनमोहन नजारे देख कर............

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  10. नीरज जी, आपकी यात्रा और उसका यात्रा का वृतांत बहुत ही रोचक हैं , फोटो बहुत ही खूबसूरत हैं. आप एसे अनजानी जगह की यात्रा कैसे कर लेते हो. इस रोमांचकारी यात्रा के लिए धन्यवाद.

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  11. आप तो खूब घूमते हैं...अच्छी-अच्छी जगह.

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  12. चलते रहिये। आनन्द आ रहा है।

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  13. अब मैं कहूँगा कि तुमने पहाड़ पे जाना शुरू किया . ऐसी और जगहों को खोजो और हिंदी भाषी सुस्त, लद्दड़ और बातों के वीर समाज को प्रेरित करो कि वो भी पतलून कस के निकल पड़ें ऐसे ही कहीं ! तभी एक नया भारत बनेगा मेरे भाई और ब्लड प्रेशर तथा मधुमेह से पीड़ित हिंदी समाज का स्वास्थ्य सुधरता जाएगा ! !

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  14. अपनी इस पोस्ट से तुम हिंदी ब्लौग साहित्य को नई ऊंचाई दे रहे हो और वो जमा हुआ ग्लेशिअर इस इलाके के सामने 'खोज ' के मायने में कुछ नहीं . बस ये बात बात में 'दुर्गम' ,'कठिन' शब्द का उल्लेख करके लोगों को न डराओ . ये शब्द लद्दाख के लिए रखो, किन्नौर , स्पीती के लिए रखो .अभी तो खर्दूंगला, नम्कीला , फोतुला बहुत कुछ देखना है . जय भोले शंकर काँटा लगे न कंकर !

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  15. सुन्दर वर्णन और चित्र | इन चित्रों को देख कर उत्तराखंड याद आ गया | ये पहाड़ भी उत्तराखंड के पहाड़ों से मिलतेजुलते हैं | आपके यात्रा विवरणों का कायल हो चुका हूँ |

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  16. आपके ब्लॉग पर पहली बार आना हुआ. मुझे भी घूमने की बहुत शौक है. मगर अकेले होने के कारण बहुत कम मौका मिला है अब तक. आपसे इन सब जगहों पर घूमने की बारे में जानकारी मिल जाये तो बहुत आभारी रहूंगी.
    my email: vandanamahto@gmail.com

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  17. maja aa gaya neeraj bhai......

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  18. Aapki Yatra bahut Mangal Mein rahi hai aur ja sakte hain ki Hum Log Yahan Par Ho Kar Ke aayengi

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  19. अकेले यात्रा करना ही बहुत मुश्किल है , अकेले यात्रा करने के बाद ही आप आज इस ऊंचाई पर पहुंचे हो , जंगल सच मे खतरनाक लग रहा है और 10 किलोमीटर का सफर जाना और आगे देखेंगे 10 किलोमीटर वापिस भी आते हो या वही रहोगे, फोटो के ऊपर टाइम डेट अच्छी लग रही है , ओर वैसे को कोन से कैमरा से क्लिक की है फोटोज

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  20. कुछ मॉडिफाई कर दो नीरज जी ब्लॉग को , ऊंचाई कितनी है रूम कहा लिया था , ये यात्रा कितने बजट में कई जा सकती है

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