देहरादून से 11-12 किलोमीटर दूर है सहस्त्रधारा। मैं अप्रैल में जब यमुनोत्री गया था तो समय मिलते ही सहस्त्रधारा भी चला गया। यह एक पिकनिक स्पॉट है लेकिन यहां का मुख्य आकर्षण वे गुफाएं हैं जिनमें लगातार पानी टपकता रहता है। यह पानी गन्धक युक्त होता है। नीचे पूरी चित्रावली दी गयी है सहस्त्रधारा में घूमने के लिये। तो शेष जानकारी चित्र देंगे:
नदी का पानी रोककर तालाब बनाये गये हैं जिनमें लोग मस्ती करते हैं। |
ऊपर जहां तक भी निगाह जाती है, ये ही दिखते हैं। लगता है कि दुकानदारों ने अपनी दुकान लगाई और अपने तालाब बना लिये। ऊपर जहां तक दुकानें हैं वहीं तक तालाब हैं। |
यह एक गुफा है। यहां कई गुफाएं हैं। सभी में पानी टपकता है। आश्चर्य इस बात का है कि ये गुफाएं शिवालिक की पहाडियों में हैं। शिवालिक की पहाडियों का मौसम कोई ज्यादा खास नहीं होता, मैदानी मौसम जैसा ही होता है। लेकिन फिर भी इनमें बारहों महीने पानी टपकता है। |
अन्दर फिसलन भी नहीं है। लेकिन अन्दर जाने वाला भीग जरूर जाता है। |
यह है एक गुफा में जाने का संकरा सा रास्ता। |
कहते हैं कि गुरू द्रोणाचार्य ने यहां पर तपस्या की थी। गर्मी से परेशान होकर उन्होने पता नहीं किससे एक आशीर्वाद लिया कि यहां हमेशा पानी टपकता रहे, तो तब से लगातार पानी टपक रहा है। |
भई, गुफा तो प्राचीन होंगी ही। प्राकृतिक जो हैं। इस गुफा में पानी नहीं टपक रहा था। लेकिन अनियमित आकृतियां जरूर थीं जिसका मतलब है कि कभी टपकता था। |
सबसे अच्छी बात मुझे यहां की ये लगी कि यहां धर्म का दिखावा नहीं है। नहीं तो इनको ही कामधेनु के थन बताने वालों की कमी नहीं है। दुनिया भर की कथा-कहानियां बन जाती। वैष्णों देवी के पास की शिवखोली गुफाओं में भी तो यही हाल है। |
यमुनोत्री यात्रा श्रंखला
1. यमुनोत्री यात्रा
2. देहरादून से हनुमानचट्टी
3. हनुमानचट्टी से जानकीचट्टी
4. जानकीचट्टी से यमुनोत्री
5. कभी ग्लेशियर देखा है? आज देखिये
6. यमुनोत्री में ट्रैकिंग
7. तैयार है यमुनोत्री आपके लिये
8. सहस्त्रधारा- द्रोणाचार्य की गुफा
गर्मी से परेशान होकर उन्होने पता नहीं किससे एक आशीर्वाद लिया कि यहां हमेशा पानी टपकता रहे, तो तब से लगातार पानी टपक रहा है।
ReplyDeleteलगता है उनके आशीर्वाद की एक्सपायरी डेट बहुत दूर नहीं है.
बढ़िया आलेख, धन्यवाद!
बढ़िया घुमवा दिये यहाँ भी!
ReplyDeleteनीरज जी
ReplyDeleteबहुत खूब आपने तो हमें भी पहुँचा दिया
सुन्दर चित्र
वाकई घुमक्कड़ी जिन्दाबाद
जिंदाबाद..
ReplyDeleteसहत्रधारा में घूमने का अपना मजा है । भहुत अच्छा लगा पढ़कर ।
ReplyDeleteबहुत*
ReplyDeleteबढ़िया वृतांत नीरज जी, यहाँ बीसियों बार जाता हूँ मगर इस तरह ब्लॉग पर चित्र देख मजा आ गया !
ReplyDeleteहाँ , आपने चुनौती दी थी, यात्रा लेख लिखने की, तो अपनी पुरानी एल्बम ढूंढ रहा हूँ , मिली तो एक-आद दिन में एक पोस्ट घुमक्कड़ी पे मैं भी लगाऊंगा !
नीरज भाई , मसूरी जाने के क्रम में देहरादून तो गया हूँ , पर कभी ये जगह नहीं देखी , हाँ किताबो और अखबारों में जरुर पढ़ा था पर रोमांच नहीं आता था, की वहां जाऊ ,पर तुम्हारी रिपोर्ट पढने के बाद अब यहाँ जाना पडेगा.
ReplyDeleteसहत्रधारा में घूमने का अपना मजा है ,आपने तो हमें भी पहुँचा दिया !चित्र देख अच्छा लगा!
ReplyDeleteबहुत सुंदर चित्र ओर विवरण, यह जो उलटी लटकी आकृतियां है यह सब पानी से बनी है, पानी मै चुने की तरह से एक पत्थर का मिशरन होता है, ओर पहाडो मै बनी गुफ़ाओ मै जब पानी बहुत धीरे धीरे रिश्ता है तो वो पत्थर अपनी तह छोडता जाता है, ओर जमता जाता है, ओर फ़िर इस प्रकार की आकृतियां बन जाती है, जो देखने मै बहुत सुंदर लगती है, बहुत अच्छा लगा.
ReplyDeleteधन्यवाद
अब आपने तो बता ही दिया इन्हें कामधेनु के थन :-)
ReplyDeleteयहां कभी-कभी बहाव बहुत तेज होता है और पैर ना जमा कर रखे हों तो बह सकते हैं।
4 वर्ष पहले अन्जू (मेरी पत्नी) और मैं इन तालाबों में स्नान कर रहे थे। एक मित्र ने अन्जू को रबड की ट्यूब दे दी कि इस पर बैठ जाईये। अन्जू का बैलेंस बिगडा और वो बहने लगी। मैनें उसे पकडने की कोशिश की तो मैं भी साथ बह गया। दो तालाब पार करने के बाद तीन दोस्त हमें पकड पाये और बच पाये।
फोटुओं के लिये धन्यवाद
प्रणाम
नीरज भाई अब लगता है कि बाकी और तमाम यात्राओं की तरह मेट्रो का रूट भी आपसे पूछ कर ही तय करना होगा...नहीं तो इस बार की ही तरह पसीने की बाल्टियां भरेंगी....
ReplyDeleteबढ़िया चित्र....यात्रावृत्त भी बढ़िया....
और हां हस्तिनापुर की योजना बहुत जल्दी बनेगी....कल लखनऊ जा रहा हूं, लौटते ही आपको फोन करूंगा....तो तैयार रहिएगा...
चित्रों से सजी हुई बहुत सुन्दर पोस्ट!
ReplyDeleteनीरज,
ReplyDeleteसहस्रधारा तो कई बार गये हैं, लेकिन इन गुफ़ाओं को आज ही देखा है। यही तो फ़र्क है एक घुमक्कड़ और टूरिस्ट में।
दोबारा जाना पड़ेगा भाई।
बढि़या पोस्ट, हमेशा की तरह।
सन १९९९ में यहाँ इतनी दुकानदारी न थी ! यहाँ भरे पानी की वजह है यहाँ हुई बेतहाशा माइनिंग. यहाँ पर्यावरण की काफी ऐसी-तैसी की गयी है और इसलिए यहाँ अब उतना पानी नहीं टपकता जितना कभी टपकता था . खैर....शब्बाखैर !
ReplyDeleteसन १९९९ में यहाँ इतनी दुकानदारी न थी ! यहाँ भरे पानी की वजह है यहाँ हुई बेतहाशा माइनिंग. यहाँ पर्यावरण की काफी ऐसी-तैसी की गयी है और इसलिए यहाँ अब उतना पानी नहीं टपकता जितना कभी टपकता था . खैर....शब्बाखैर !
ReplyDeleteस्मृति ताजा हो आयी ....शुक्रिया !
ReplyDeleteसहत्रधारा में घूमने का अपना मजा है । भहुत अच्छा लगा पढ़कर
ReplyDeletebahut sundar chitra
ReplyDeleteabhar
eisa laga jese aaj hum bhi vaha ghum aaye
ReplyDeleteखुब आंनद आया आपकी यात्रा के साथ-साथ फोटो अति सुंदर ओर कलात्मक है.....धन्य है जाट....राम ....धन्य है तेरी धूम्मडी विद्या। प्रेम....ओर आभार
ReplyDeleteincredible posts
ReplyDeleteमजेदार यात्रा,पढ़ कर मजा आया वाकई
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